गुरुवार, 22 अक्तूबर 2020

*ब्रह्मांड* / दिनेश श्रीवास्तव

 दिनेश-दोहावली / 


              *ब्रह्मांड*


यहाँ सकल ब्रम्हांड का,निर्माता है कौन?

तर्कशास्त्र ज्ञाता सभी, हो जाते हैं मौन।।-१


वेदशास्त्र गीता सभी,अलग-अलग सब ग्रंथ।

परिभाषा ब्रह्मांड की,देते हैं सब पंथ।।-२


सकल समाहित है जहाँ,पृथ्वी,गगन समीर।

वही यहाँ ब्रह्मांड है,बतलाते मति-धीर।।-३


परमब्रह्म को जानिए, निर्माता ब्रह्मांड।

बतलाते हमको यही,पंडित परम प्रकांड।।-४


पंचभूत निर्मित यथा,काया सुघर शरीर।

काया ही ब्रह्मांड है,जो समझे वह धीर ।।-५


पंचभूत विचलित जहाँ, पाता कष्ट शरीर।

इसी भाँति ब्रह्मांड भी,पाता रहता पीर।।-६


ग्रह तारे गैलेक्सियाँ, सभी खगोली तत्त्व।

अंतरिक्ष ब्रह्मांड का, होता परम महत्व।।-७


गूँजे जब ब्रह्मांड में,'ओम' शब्द का नाद।

सभी चराचर जीव के,मिट जाते अवसाद।।-८


नष्ट न हो पर्यावरण,करें संवरण लोभ।

होगा फिर ब्रह्मांड में,कभी नहीं विक्षोभ।।-९


देवत्रयी ब्रह्मांड के,ब्रह्मा,विष्णु महेश।

ब्रह्मशक्ति की साधना,करता सदा 'दिनेश'।।-१०


                 दिनेश श्रीवास्तव

                 ग़ाज़ियाबाद

आज का दिन मंगलमय हो

 प्रस्तुति - कृष्ण  मेहता 

🌞 ~ *आज का हिन्दू पंचांग* ~ 🌞

⛅ *दिनांक 22 अक्टूबर 2020*

⛅ *दिन - गुरुवार*

⛅ *विक्रम संवत - 2077 (गुजरात - 2076)*

⛅ *शक संवत - 1942*

⛅ *अयन - दक्षिणायन*

⛅ *ऋतु - हेमंत*

⛅ *मास - अश्विन*

⛅ *पक्ष - शुक्ल* 

⛅ *तिथि - षष्ठी रात्रि 07:39 तक तत्पश्चात सप्तमी*

⛅ *नक्षत्र - पूर्वाषाढा 23 अक्टूबर रात्रि 01:00 तक तत्पश्चात उत्तराषाढा*

⛅ *योग - सुकर्मा 22 अक्टूबर रात्रि 02:37 तक तत्पश्चात धृति*

⛅ *राहुकाल - दोपहर 01:48 से शाम 03:14 तक* 

⛅ *सूर्योदय - 06:38* 

⛅ *सूर्यास्त - 18:07* 

⛅ *दिशाशूल - दक्षिण दिशा में*

⛅ *व्रत पर्व विवरण - सरस्वती पूजन, हेमंत ऋतु प्रारंभ*

 💥 *विशेष - षष्ठी को नीम की पत्ती, फल या दातुन मुँह में डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*

               🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞


🌷 *दाँतों में से खून निकलता हो तो* 🌷

🍋 *नीबूं का रस मसूड़ों को रगड़ने से आराम होगा ।*

🙏🏻 *- पूज्य बापूजी Jodhpur 4th Sep, 2011*

           🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞


🌷 *वास्तु शास्त्र* 🌷

🏡 *किचन में दवाईयां रखने की आदत वास्तु के अनुसार बिलकुल गलत मानी जाती है। ऐसा करने से लोगों की सेहत में उतार-चढाव बना रहता हैं।*

             🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞


🌷  *इन तिथियों का लाभ अवश्य लें* 🌷

 ➡ *२५ अक्टूबर - दशहरा, विजयादशमी ( पूरा दिन शुभ महूर्त ), संकल्प, शुभारम्भ, नूतन कार्य , सीमोल्लंघन के लिए विजय मुहूर्त ( दोपहर २:१८ से ३:०४ तक ), गुरु-पूजन, अस्त्र-शस्त्र- शमी वृक्ष – आयुध-वाहन पूजन*

➡ *२७ अक्टूबर - पापांकुशा एकादशी ( इस दिन उपवास करने से कभी यमयातना नहीं प्राप्त होती | यह स्वर्ग, मोक्ष, आरोग्य, सुंदर स्त्री, धन व मित्र देनेवाली है | इसका व्रत माता, पिता व पत्नी के पक्ष की १०-१० पीढ़ियों का उद्धार करता है |)*

➡ *३० अक्टूबर - शरद पूर्णिमा खीर चन्द्रकिरणों में रखें (३१ अक्टूबर शरद पूर्णिमा व्रत हेतु) (२७ अक्टूबर से ३१ अक्टूबर तक ) रात्रि में चन्द्रमा को कुछ समय एकटक देखें व पूर्णिमा की रात में सुई में धागा पिरोयें, इससे नेत्रज्योति बढती है ।*

➡ *३१ अक्टूबर से ३० नवम्बर - कार्तिक मास व्रत व पुण्यस्नान ( इसमें आँवले की छाया में भोजन करने से पाप नष्ट हो जाता है व पुण्य कोटि गुना होता है |)*

➡ *८ नवम्बर - रविवारी सप्तमी ( सूर्योदय से सुबह ७: ३० तक), रविपुष्यामृत योग ( सूर्योदय से सुबह ८:४६ तक )*

➡ *११ नवम्बर : रमा एकादशी ( चिन्तामणि व कामधेनु के सामान सर्व मनोरथपूर्तिकारक व्रत), ब्रह्मलीन मातुश्री श्री माँ महँगीबाजी का महानिर्वाण दिवस*

➡ *१३ नवम्बर - धनतेरस, उम दीपदान, नरक चतुर्दशी ( रात्रि में मंत्रजप से मन्त्रसिद्धि)*

➡ *१४ नवम्बर - नरक चतुर्दशी (तैलाभ्यंग स्नान), दीपावली ( रात्रि में किया गया जप-तप, ध्यान-भजन अनंत गुना फलदायी )*

➡ *१६ नवम्बर - नूतन वर्षारम्भ (गुजरात), कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा ( पूरा दिन शुभ मुहूर्त, सर्व कार्य सिद्ध करनेवाली तिथि), भाईदूज, विष्णुपदी संक्रांति ( पुण्यकाल : सुबह ६:५५ से दोपहर १:१७ तक) (ध्यान, जप व पुण्यकर्म का लाख गुना फल )*

🙏🏻 *


             🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞

🙏🍀🌷🌻🌺🌸🌹🍁🙏

अपनों का साथ

 *पिता की चारपाई*


पिता जिद कर रहे थे कि उसकी चारपाई गैलरी में डाल दी जाये। बेटा परेशान था। बहू बड़बड़ा रही थी..... कोई बुजुर्गों को अलग कमरा नहीं देता, हमने दूसरी मंजिल पर ही सही एक कमरा तो दिया.... सब सुविधाएं हैं, नौकरानी भी दे रखी है। पता नहीं, सत्तर की उम्र में सठिया गए हैं?


निकित ने सोचा पिता कमजोर और बीमार हैं.... जिद कर रहे हैं तो उनकी चारपाई गैलरी में डलवा ही देता हूँ। पिता की इच्छा पू्री करना उसका स्वभाव भी था।


अब पिता की चारपाई गैलरी में आ गई थी। हर समय चारपाई पर पडे रहने वाले पिता अब टहलते टहलते गेट तक पहुंच जाते। कुछ देर लान में टहलते। लान में खेलते नाती - पोतों से बातें करते , हंसते , बोलते और मुस्कुराते। कभी-कभी बेटे से मनपसंद खाने की चीजें लाने की फरमाईश भी करते। खुद खाते , बहू - बेटे और बच्चों को भी खिलाते ....धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य अच्छा होने लगा था।


दादा मेरी बाल फेंको... गेट में प्रवेश करते हुए निकित ने अपने पाँच वर्षीय बेटे की आवाज सुनी तो बेटे को डांटने लगा... 

अंशुल बाबा बुजुर्ग हैं उन्हें ऐसे कामों के लिए मत बोला करो।


पापा! दादा रोज हमारी बॉल उठाकर फेंकते हैं....अंशुल भोलेपन से बोला।


क्या... "निकित ने आश्चर्य से पिता की तरफ देखा!"... हां, बेटा तुमने ऊपर वाले कमरे में सुविधाएं तो बहुत दी थीं। लेकिन अपनों का साथ नहीं था। तुम लोगों से बातें नहीं हो पाती थी। जब से गैलरी में चारपाई पड़ी है, निकलते बैठते तुम लोगों से बातें हो जाती है। शाम को अंशुल -पाशी का साथ मिल जाता है।


पिता कहे जा रहे थे  और निकित सोच रहा था..... 


बुजुर्गों को शायद भौतिक सुख सुविधाऔं से ज्यादा अपनों के साथ की जरूरत होती है ।


बुज़ुर्गों  का सम्मान करें यह हमारी धरोहर हैं ...!


यह वो पेड़ हैं जो थोड़े कड़वे हैं लेकिन इनके फल बहुत मीठे हैं और इनकी छांव का कोई मुक़ाबला नहीं✒


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रविवार, 18 अक्तूबर 2020

झारखण्ड के पलामू वाला काजर

 #ठेठ_पलामू:- #जड़ी-बूटी और #काजर

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पिछला साल इहे दशहरा टाईम का बात है, भोरे-भोरे उठे तो आदत के अनुसार आँख मइसत उठ के ऐनक देखने गए कि खूबसूरती तनी-मानी बचल है अगुआ लोग के लिए कि सब साफ हो गया। तो अपन चेहरा देख के डेरा गए। पूरा आँख के नीचे करिया हो गया था। जब हाथ से छुए तो पता चला कि काजर लगा हुआ था। फिर याद आया कि #जा_सार_के दशहरा न स्टार्ट हो गया, तो वही माई लगा दी थी। रात में सुतला घरी कि रात के कोई डायन बिसाहिन के नज़र न लगे। अब बड़े हो गए थे, तो सोचे अब न तो बच्चा हैं न ही #सुनर हैं, तो नजर थोड़े लगेगा, पर बात का है न कि माई के लिए बेटा भले 2 लईका के बाप बन जाए, लेकिन उ बच्चा ही रहता है और दुनिया में सबसे सुंदर दिखता है। सो ज़ाहिर सी बात है, नजर से बचाना था तो काजर तो लगाना था।


लईका में दशहरा के ठीक एक दिन पहिले बड़की फुआ के ड्यूटी रहता था। एगो थरिया में बालू आऊ करिया कपड़ा सुई डोरा लेके बैठ जाती थी और सब के लिए छोटा-छोटा चरखूँट आकार में कपड़ा के थैली बना-बना के ओकरा में बालू भर के सी देती थी। अब जे बड़हन लईका रहे उ बाँह पर बाँधे, न तो छोटकन लईकन के नया #डांडा में सी के मिलता था। मने सब के सुरक्षा के लिए बुलेट प्रूफ प्रोटेक्शन तैयार रहता था। रोज रात में सोने के बाद #लीलार में, आँख में, हाथ-पैर के #तरुआ में काजर कर दिया जाता था। जो हमलोग जैसा बड़ा हो जाते भोरे उठते-उठते जा के मुँह धोते कि कोई चिढाये नहीं देख के। 


रात में जब दशहरा के मेला ई सब देखने निकलते, तो सब के अंदर ई विश्वास रहता था, कि जड़ी-बूटी तो पहिने हैं, हमको थोड़े कुछ होगा। बस जे हाल अभी कोरोना के समय में मॉस्क पहिन के फील होता है, उहे उस टाईम जड़ी-बूटी से होता था। गलती से कौनो के जड़ी-बूटी टूट के गिर जाए , भूला जाये तो समझिए उहो आफ़त। "कइसे भूला गेलई, अब के के देखा था, फलना के माई तो ना न देखले हलौ।" इस तरह के ढेरे सवाल, फिर दूसरा दिन नया बना के पहनाया जाता था। 


अब डायन बिसाहिन भी दुनिया के कोना-कोना में अंधविश्वास और विज्ञान के बीच में कोरोना जैसा ही पहेली बना हुआ है। नया-नया रिसर्च चलते रहा है मानने न मानने वाला का वाद विवाद भी होते रहा है। इसलिए सही में होता है कि नहीं इसपे कोई बात नहीं करेंगे। पर करिया रंग सब  प्रकाश को सोख लेता है और काजल से आँख को बहुत फायदा है दुनो बात विज्ञान से सत्यापित है। इसलिए अगर लड़का लोग के काजर लगा हो, तो फ़ोटो जरूर भेजिएगा। महिलाएँ लड़कियां भी काजल के साथ बढ़िया फ़ोटो भेजिए। बाकि जड़ी-बूटी अब कोई पहिनता है, बनाता है कि नहीं ये तो नहीं पता। अगर किसी के घर बना होगा, तो उसका भी फ़ोटो भेज सकते हैं।

बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

गीत

 *भारत का नया गीत*

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*आओ बच्चों तुम्हे दिखायें,

 शैतानी शैतान की... ।*

*नेताओं से बहुत दुखी है,

 जनता हिन्दुस्तान की...।।*


*बड़े-बड़े नेता शामिल हैं, 

 घोटालों की थाली में ।*

*सूटकेश भर के चलते हैं,

 अपने यहाँ दलाली में ।।*


*देश-धर्म की नहीं है चिंता,

 चिन्ता निज सन्तान की ।*

*नेताओं से बहुत दुखी है,

 जनता हिन्दुस्तान की...।।*


*चोर-लुटेरे भी अब देखो,

 सांसद और विधायक हैं।*

*सुरा-सुन्दरी के प्रेमी ये,

 सचमुच के खलनायक हैं ।।*


*भिखमंगों में गिनती कर दी,

 भारत देश महान की ।*

*नेताओं से बहुत दुखी है,

 जनता हिन्दुस्तान की...।।*


*जनता के आवंटित धन को,

 आधा मंत्री खाते हैं ।*

*बाकी में अफसर ठेकेदार,

 मिलकर मौज उड़ाते हैं ।।*


*लूट खसोट मचा रखी है,

 सरकारी अनुदान की ।*

*नेताओं से बहुत दुखी है,

 जनता हिन्दुस्तान की...।।*


*थर्ड क्लास अफसर बन जाता, 

फर्स्ट क्लास चपरासी है,

*होशियार बच्चों के मन में,

 छायी आज उदासी है।।*


*गंवार सारे मंत्री बन गये,

 मेधावी आज खलासी है।*

*आओ बच्चों तुम्हें दिखायें,

 शैतानी शैतान की...।।*


*नेताओं से बहुत दुखी है,

 जनता हिन्दुस्तान की.


*please share in othar Group*

Ajay Kumar Patel  

Prayagraj

सोमवार, 5 अक्तूबर 2020

गुड़ुप ! ( लघुकथा )/ सुभाष नीरव

 लेखनी लघुकथा मैरेथन 2020

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मित्रो, यू.के. निवासी हिन्दी साहित्यकार और 'लेखनी' पत्रिका की संपादिका शैल अग्रवाल जी  द्वारा प्रारंभ की गई 'लेखनी लघुकथा मैरेथन, 2020' के लिए कल उन्होंने मुझे नामित किया। मैं उनका आभारी हूँ। इसके तहत मुझे पाँच दिन तक प्रतिदिन अपनी एक लघुकथा पोस्ट करनी है और किसी एक लघुकथा लेखक को नामित करना है। आज मेरा पहला दिन है। मैं अपने कथाकार मित्र बलराम अग्रवाल को इस 'लेखनी लघुकथा मैरेथन 2020' के लिए नामित करता हूँ और अपनी एक लघुकथा आपसे साझा करता हूँ।

-सुभाष नीरव

5 अक्तूबर 2020


लघुकथा

गुड़ुप !

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सुभाष नीरव


दिन ढलान पर है और वे दोनों झील के किनारे कुछ ऊँचाई पर बैठे हैं। लड़की ने छोटे-छोटे कंकर बीनकर बाईं हथेली पर रख लिए हैं और दाएं हाथ से एक एक कंकर उठाकर नीचे झील के पानी में फेंक रही है, रुक रुककर। सामने झील की ओर उसकी नजरें स्थिर हैं। लड़का उसकी बगल में बेहरकत खामोश बैठा है।

"तो तुमने क्या फैसला लिया?" लड़की लड़के की ओर देखे बगैर पूछती है।

"किस बारे में?" लड़का भी लड़की की तरफ देखे बिना गर्दन झुकाए पैरों के पास की घास के तिनके तोड़ते हुए प्रश्न करता है।

इस बार लड़की अपना चेहरा बाईं ओर घुमाकर लड़के को देखती है, "बनो मत। तुम अच्छी तरह जानते हो, मैं किस फैसले की बात कर रही हूँ।"

लड़का भी चेहरा ऊपर उठाकर अपनी अँखें लड़की के चेहरे पर गड़ा देता है, "यार, ऐसे फैसले तुरत-फुरत नहीं लिए जाते। समय लगता है। समझा करो।"

लड़की फिर दूर तक फैली झील की छाती पर अपनी निगाहें गड़ा देती है, साथ ही, हथेली पर बचा एकमात्र कंकर उठा कर नीचे गिराती है – गुड़ुप !

"ये झील बहुत गहरी है न?"

"हाँ, बहुत गहरी। कई लोग डूबकर मर चुके हैं। पर तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो?" लड़का लड़की की तरफ देखते हुए पूछता है। लड़की की नज़रें अभी भी दूर तक फैले पानी पर टिकी हैं, "क्या मालूम मुझे इस झील की जरूरत पड़ जाए।"

लड़का घबरा कर लड़की की ओर देखता है, "क्या मूर्खों जैसी बात करती हो? चलो उठो, अब चलते हैं, अँधेरा भी होने लगा है।"

दोनों उठकर चल देते हैं। दोनों खामोश हैं। पैदल चलते हुए लड़की के अंदर की लड़की हँस रही है, 'लगता है, तीर खूब निशाने पर लगा है। शादी तो यह मुझसे क्या करेगा, मैदान ही छोड़कर भागेगा। अगले महीने प्रशांत इस शहर में पोस्टिड होकर आ रहा है, वो मेरे साथ लिव- इन में रहना चाहता है।'

लड़के के भीतर का लड़का भी फुसफुसाता है, 'जाने किसका पाप मेरे सिर मढ़ रही है। मैं क्या जानता नहीं आज की लड़कियों को?… कुछ दिन इसके साथ मौज-मस्ती क्या कर ली, शादी के सपने देखने लगी। हुंह ! मेरी कम्पनी वाले मुझे कब से मुंबई ब्राँच में भेजने को पीछे पड़े हैं। कल ही ऑफर मंज़ूर कर लेता हूँ।'

चलते-चलते वे दोनों सड़क के उस बिन्दु पर पहुँच गए हैं जहाँ से सड़क दो फाड़ होती है। एक पल वे खामोश से एक दूजे को देखते हैं, फिर अपनी अपनी सड़क पकड़ लेते हैं।

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किशोर कुमार कौशल की 10 कविताएं

1. जाने किस धुन में जीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।  कैसे-कैसे विष पीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।।  वेतन के दिन भर जाते हैं इनके बटुए जेब मगर। ...