.सृजन -मूल्यांकन
देव औरंगाबाद बिहार 824202 साहित्य कला संस्कृति के रूप में विलक्ष्ण इलाका है. देव स्टेट के राजा जगन्नाथ प्रसाद सिंह किंकर अपने जमाने में मूक सिनेमा तक बनाए। ढेरों नाटकों का लेखन अभिनय औऱ मंचन तक किया. इनको बिहार में हिंदी सिनेमा के जनक की तरह देखा गया. कामता प्रसाद सिंह काम और इनकi पुत्र दिवंगत शंकर दयाल सिंह के रचनात्मक प्रतिभा की गूंज दुनिया भर में है। प्रदीप कुमार रौशन और बिनोद कुमार गौहर की भी इलाके में काफी धूम रही है.। देव धरती के इन कलम के राजकुमारों की याद में .समर्पित हैं ब्लॉग.
गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025
बुधवार, 5 फ़रवरी 2025
रेणु संदर्भ भारत यायावर / विजय केसरी
एक लेखक सतत विरोध झेल कर भी गतिशील रहता है/ विजय केसरी
प्रख्यात साहित्यकार कवि, संपादक, आलोचक भारत यायावर ने महान कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु के संपूर्ण लेखकीय जीवन को आधार बनाकर लेखकों के संदर्भ में एक बड़ी बात कही थी। उन्होंने दर्ज किया था कि 'रेणु की जीवनी का सबसे प्रेरक तत्व यह है कि कैसे एक लेखक पद और लिप्सा से विरत रहकर रत रहता है और नित नूतन संधान में लगा रहता है। लेखक भौतिक उपलब्धियों को ठुकरा कर रचनाशीलता को ही अपना जीवन सौंप देता है और सतत विरोध झेल कर भी गतिशील रहता है।" उपरोक्त दो वाक्यों के माध्यम से भारत यायावर ने यह बताने की कोशिश की थी कि एक लेखक सतत विरोध झेल कर भी गतिशील रहता है। लेखक कोई बाहर के व्यक्ति नहीं होता है बल्कि हमारे ही आसपास रहता है। वह हमारे दैनंदिन जीवन के सुख - दुख को ही आधार बनाकर अपनी कहानियों और कविताओं में बातों को दर्ज करता है। वह हमारे रहन -सहन, भाषा, रीति - रिवाज, संस्कृति को गहराई से अध्ययन कर कुछ ऐसा रच डालता हैं, जिसे हम सब उनकी कृति को पढ़े बिना नहीं रह पाते हैं। उनकी कृति में गहरी अर्थवत्ता छुपी रहती है। गहरा संदेश होता है। उनकी कृति समाज को संघर्ष करने की एक नई ऊर्जा प्रदान करती है।
एक लेखक के गहरे अनुसंधान के बाद रचना के रूप में चंद पंक्तियां उत्पन्न होती हैं। यही कारण है कि इन पंक्तियों की गूंज सदियों तक बनी रहती हैं। यह तभी संभव हो पाता है, जब लेखक पूरी तन्मयता के साथ अपनी साधना में रत होता है। इस संदर्भ में यह विचार करना जरूरी हो जाता है कि एक लेखक और आम आदमी में क्या फर्क है ? उदाहरण स्वरूप एक दृश्य को सभी लोग देखते जरूर हैं, लेकिन उसी दृश्य को एक लेखक अपने वैचारिक दृष्टिकोण से देखता है। वह उस पर गंभीरता से विचार करता है। उस दृश्य के कारणों तक जाता है। उस दृश्य के मर्म, पीड़ा और संवेदना को समझने की कोशिश करता है। तब वह लेखक कुछ पंक्तियों में अपनी बातों को प्रस्तुत कर पाता है। वह दृश्य उस लेखक को वैचारिक रूप से झकझोर कर रख देता है। उस लेखक के मन में कई तरह की बातें उठती हैं। वह गहन शोध में रत हो जाता है । यही भूमिका उसे आम आदमी से अलग करता है। आम आदमी के लिए वह दृश्य एक सामान्य घटना के समान होती है।
भारत यायावर ने रेणु के माध्यम से यह बताने की कोशिश की कि कैसे एक लेखक पद और लिप्सा से विरत रहकर अपनी लेखकीय साधना में रत रहता है। अगर लेखक पद और धन की लिप्सा में दौड़ना प्रारंभ कर दे, तो वह अपनी लेखकीय साधना से विरत हो जाता है। ऐसी परिस्थिति में वह चाह कर भी महत्वपूर्ण रचनाओं को उत्पन्न नहीं कर पाता है। एक लेखक की रचना समाज के लिए कितना महत्वपूर्ण है ? यह बड़ा सवाल है। कई लेखक गण निरंतर लिख रहे हैं। लेकिन उनकी रचनाएं समाज में कोई असर पैदा कर नहीं पा रही हैं । ऐसा क्यों ? इस सवाल पर समाज के बुद्धिजीवियों को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
उसी लेखक की रचना महत्वपूर्ण होती है, जो समाज को एक नई दिशा व रौशनी प्रदान कर सके। महान कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु का संपूर्ण जीवन हिंदी साहित्य की साधना में बीता था। अगर रेणु चाहते तो कई सरकारी पदों पर विराजमान हो सकते थे। उनकी प्रसिद्धि देश और देश के बाहर तक फैली हुई थी। वे धन का अंबार लगा सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया था। उन्होंने कलम की साधना को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। वे जीवन के अंतिम क्षणों तक अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते ही रहे थे। वे नित नूतन संधान में रत होते थे। तभी उनकी रचनाएं कालजई बन पाई।
आज की बदली परिस्थिति में अधिकांश लोगों एवं लेखकों की पद प्राप्ति और कई पीढ़ियों के लिए धन संग्रह करने की लालसा ने समाज का रूप ही बदल कर रख दिया है। क्या पद, धन और विलासिता के बीच कोई लेखक अपनी लेखकीय संवेदना को बनाए रख सकता है ? यह यक्ष प्रश्न है। धन के पीछे भागने वाला लेखक क्या धन के अभाव को समझ सकता है ? क्या पद पर आसीन वह लेखक गरीब, असहाय, मजबूर, बेसहारा दलित लोगों की पीड़ा को महसूस कर सकता है ? क्या विलासिता का जीवन जीने वाला लेखक समाज में घट रही घटनाओं पर निष्पक्ष होकर रचना कर्म कर सकता है ?
भारत यायावर ने अपनी पंक्तियों के माध्यम से यह बताने की कोशिश की कि एक लेखक का जीवन सिर्फ और सिर्फ साहित्य साधना में रत होना चाहिए । पद, धन और विलासिता का जीवन उनके स्वतंत्र विचार व संवेदना के पंखों को कतर कर रख देता है। देश के महान कवि निराला जी ने इलाहाबाद एक मोड़ पर तपती धूप में एक महिला को पत्थर को तोड़ते हुए देखा था । उसके बाद कुछ पंक्तियां उनकी कलम से पैदा होती है। यह पंक्तियां कालजई बन जाती है । यह उनकी सतत साधना का प्रतिफल था। आज भी उनकी पंक्तियां पढ़ी जाती है । उनकी पंक्तियों में पसीने से लथपथ, पत्थर तोड़ती महिला की तस्वीर साफ उभर कर सामने आ जाती है।
फणीश्वर नाथ रेणु की कहानियां समय के साथ संवाद करती नजर आती है । उनकी कहानियों जितनी बार भी पढ़ी जाती है , कुछ न कुछ नूतन विचार प्रकट होते रहते हैं। कई नई बातें निरंतर उभरकर सामने आती रहती है । यह इसलिए हो पाता है कि रेणु पद और लिप्सा से पूरी तरह विरत होकर अपनी साहित्य साधना में रत थे । एक लेखक का जीवन कैसा होना चाहिए ? इस विषय पर यायावर ने बहुत ही मंथन के बाद यह दर्ज किया कि एक लेखक को भौतिक उपलब्धियों से मुक्त होना चाहिए और रचनाशीलता को ही अपना जीवन सौंप देना चाहिए । तभी कुछ बातें उत्पन्न होती है। अगर लेखक भौतिक उपलब्धियों को ही बटोरने में लगा रहेगा, तब वह चाह कर भी लेखकीय साधना से रत नहीं हो पाएगा। लेखक का जीवन सहज, सरल और संवेदना से भरी होनी चाहिए ।
फणीश्वर नाथ रेणु की तमाम रचनाएं एक नई बात कहती नजर आती हैं। एक नया संदेश देता नजर आता है। उनका व्यक्तिगत जीवन बहुत ही सहज और सरल था। उनका जीवन कभी भी भौतिक उपलब्धियों को प्राप्त करने में नहीं लगा । फणीश्वर नाथ रेणु अपना संपूर्ण जीवन रचनाशीलता को समर्पित कर दिया था। भारत यायावर नए लेखकों को फणीश्वर नाथ रेणु के माध्यम से यह बताना चाहते थे कि चंद रचनाएं लिख कर, छप कर कोई महान लेखक नहीं बन सकता है। उन्होंने साफ शब्दों में दर्ज किया कि एक लेखक सतत विरोध झेल कर भी साहित्य साधना में रत रहता है।
अब विचारणीय बात यह है कि आज के लेखक कितना विरोध झेल कर अपनी साधना में रत हैं ? थोड़ी सी परेशानी आने पर कई भाग खड़े होते हैं । क्या रेणु अपनी परेशानियों से कभी भागे ? अगर वे भाग खड़े होते तो उनकी रचनाएं समय से संवाद करती नजर नहीं आती। लेखक का जीवन निश्चित तौर पर सतत विरोध झेल कर भी साधना में रत रहने वाला होता है । तभी वह कुछ महत्वपूर्ण रच पाता है। आज की बदली परिस्थिति में जहां चंहुओर लोग धन के पीछे भाग रहे हैं। पद के पीछे भाग रहे हैं । भाई भतीजावाद के पीछे भाग रहे हैं । समाज जाए भाड़ में ।
इन विषम परिस्थितियों में एक सच्चे लेखक का उत्पन्न होना भी अपने आप में बड़ी बात है । मैंने पूर्व में दर्ज किया है कि लेखक हमारे ही समाज के बीच के होते हैं । जब सब लोग धन और पद के पीछे भाग रहे हैं, तो कैसे कोई खुद को इन विकृतियों से बचा पाएगा । इन्हीं परिस्थितियों और लोगों के बीच एक सच्चा लेखक जन्म लेता है, जो भौतिक उपलब्धियों को ठुकरा कर रचनाशीलता को ही अपना जीवन सौंप देता है। वह लेखक सतत विरोध झेल कर भी वह गतिशील रहता है।
विजय केसरी
(कथाकार / स्तंभकार),
पंच मंदिर चौक, हजारीबाग - 825 301
मोबाइल नंबर : 92347 99550,
गुरुवार, 9 जनवरी 2025
निंदा का फल"
प्रस्तुति - कृष्ण मेहता
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एकबार की बात है की किसी राजा ने यह फैसला लिया के वह प्रतिदिन 100 अंधे लोगों को खीर खिलाया करेगा !
एकदिन खीर वाले दूध में सांप ने मुंह डाला और दूध में विष डाल दी और ज़हरीली खीर को खाकर 100 के 100 अंधे व्यक्ति मर गए !
राजा बहुत परेशान हुआ कि मुझे 100 आदमियों की हत्या का पाप लगेगा ! राजा परेशानी की हालत में अपने राज्य को छोड़कर जंगलों में
भक्ति करने के लिए चल पड़ा ताकि इस पाप की माफी मिल सके !
रास्ते में एक गांव आया ! राजा ने चौपाल में बैठे लोगों से पूछा कि क्या इस गांव में कोई भक्ति भाव वाला परिवार है ? ताकि उसके घर रात काटी जा सके !
चौपाल में बैठे लोगों ने बताया कि इस गांव में दो बहन भाई रहते है जो खूब बंदगी करते है !राजा उनके घर रात ठहर गया !
सुबह जब राजा उठा तो लड़की सिमरन पर बैठी हुई थी ! इससे पहले लड़की का रूटीन था की वह दिन निकलने से पहले ही सिमरन से उठ जाती थी और नाश्ता तैयार करती थी ! लेकिन उस दिन वह लड़की बहुत देर तक सिमरन पर बैठी रही !
जब लड़की सिमरन से उठी तो उसके भाई ने कहा कि बहन तू इतना लेट उठी है अपने घर मुसाफिर आया हुआ है !
इसने नाश्ता करके दूर जाना है तुझे सिमरन से जल्दी उठना चाहिए था !
तो लड़की ने जवाब दिया कि भैया ऊपर एक ऐसा मामला उलझा हुआ था !
धर्मराज को किसी उलझन भरी स्थिति पर कोई फैसला लेना था और मैं वो फैसला सुनने के लिए रुक गयी थी इसलिए देर तक बैठी रही सिमरन पर ?
उसके भाई ने पूछा ऐसी क्या बात थी तो लड़की ने बताया कि फलां राज्य का राजा अंधे व्यक्तियों को खीर खिलाया करता था ! लेकिन सांप के दूध में विष डालने से 100 अंधे व्यक्ति मर गए !
अब धर्मराज को समझ नही आ रही कि अंधे व्यक्तियों की मौत का पाप राजा को लगे सांप को लगे या दूध नंगा छोड़ने वाले रसोईए को लगे !
राजा भी सुन रहा था ! राजा को अपने से संबंधित बात सुन कर दिलचस्पी हो गई और उसने लड़की से पूछा कि फिर क्या फैसला हुआ ?
लड़की ने बताया कि अभी तक कोई फैसला नही हो पाया था !
राजा ने पूछा कि क्या मैं आपके घर एक रात के लिए और रुक सकता हूं ?
दोनों बहन भाइयों ने खुशी से उसको हां कर दी !
राजा अगले दिन के लिए रुक गया, लेकिन चौपाल में बैठे लोग दिन भर यही चर्चा करते रहे कि ....
कल जो व्यक्ति हमारे गांव में एक रात रुकने के लिए आया था और कोई भक्ति भाव वाला घर पूछ रहा था ?
उस की भक्ति का नाटक तो सामने आ गया है ! रात काटने के बाद वो इस लिए नही गया क्योंकि जवान लड़की को देखकर उस व्यक्ति की नियत खोटी हो गई !
इसलिए वह उस सुन्दर और जवान लड़की के घर पक्के तौर पर ही ठहरेगा या फिर लड़की को लेकर भागेगा !
दिनभर चौपाल में उस राजा की निंदा होती रही !
अगली सुबह लड़की फिर सिमरन पर बैठी और रूटीन के टाइम अनुसार सिमरन से उठ गई !
राजा ने पूछा .... "बेटी अंधे व्यक्तियों की हत्या का पाप किसको लगा ?"
लड़की ने बताया कि .... "वह पाप तो हमारे गांव के चौपाल में बैठने वाले लोग बांट के ले गए !"
निंदा करना कितना घाटे का सौदा है ! निंदक हमेशा दुसरों के पाप अपने सर पर ढोता रहता है ! और दूसरों द्वारा किये गए उन पाप- कर्मों के फल को भी भोगता है ! अतः हमें सदैव निंदा से बचना चाहिए !
भक्त कबीर जी ने कहा है ....
जन कबीर को नींद सार !
निंदक डूबा हम उतरे पार !!
मंगलवार, 17 दिसंबर 2024
साहित्य के माध्यम से कौशल विकास ( दक्षिण भारत के साहित्य के आलोक में )
14 दिसंबर, 2024
केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के हैदराबाद केंद्र केंद्रीय हिंदी संस्थान हैदराबाद
साहित्य के माध्यम से मूलभूत कौशल विकास (दक्षिण भारत के साहित्य के विशेष संदर्भ में)
(संगोष्ठी का उद्घाटन सत्र)
इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के निदेशक प्रो सुनील बाबुराव कुलकर्णी ने कहा कि साहित्य को व्यापक दायरे में विश्लेषित करना चाहिए और उसके माध्यम से श्रवण, पठन, वाचन और लेखन कौशल के साथ साथ अभिव्यक्ति, प्रबंधन और संवाद कौशलों को भी विकसित करना चाहिए। समय समय पर साहित्य का पूनर्मूल्यांकन आवश्यक है।
मुख्य वक्ता प्रो आर एस सर्राजु, केंद्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद ने यह कहा कि नई शिक्षा नीति के अनुरूप हमें कौशल विकास की ओर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि जीवन के सभी आयामों पर कौशल विकास होता है।
इस संगोष्ठी के बीज बोते हुए मानू के परामर्शी प्रो ऋषभदेव शर्मा Rishabha Deo Sharma ने कहा कि कौशल विकास को दो तरह से बाँटा जा सकता है - हार्ड स्किल्स और सॉफ्ट स्किल्स। हार्ड स्किल्स में तकनीकी और ज्ञानात्मक साहित्य आता है, जबकि सॉफ्ट स्किल्स में संप्रेषण, भाषा, व्यक्तित्व विकास, मूलभूत कौशल, जीवन प्रबंधन और विशेष रूप से इन सबकी ललित साहित्य के माध्यम से सिद्धि आती है। आगे उन्होंने इनको चार वर्गों में बाँटा है -
1. संचार कौशल ; भाषा और संप्रेषण (ये ही मूलभूत कौशल हैं। भाषा और संप्रेषण के विकास में साहित्य की भूमिका पर विचार करना होगा)
2. नेतृत्व कौशल : व्यक्तित्व विकास और सार्वजनिक जीवन
3. प्रबंधन कौशल : समय प्रबंधन, तनाव प्रबंधन, अवसर और आपदा प्रबंधन
4. जीवन कौशल : सामंजस्य और अनुकूलन कौशल
काव्यशास्त्र के हवाले प्रो ऋषभदेव शर्मा ने अभिव्यक्ति कौशल को रेखांकित किया है।
इस अवसर पर कार्यक्रम के संयोजक क्षेत्रीय निदेशक प्रो गंगाधर वानोडे ने संगोष्ठी के मूल उद्देश्य को स्पष्ट किया तथा सह संयोजक डॉ फ़त्ताराम नायक (सहायक प्रोफेसर) ने सबका स्वागत किया।
सत्र का संचालन डॉ सुषमा देवी ने किया।
रविवार, 15 दिसंबर 2024
दूसरा मिसरा ही नामी हो गया
ऐसे बहुत से शायर हैं, जिनका दूसरा मिसरा इतना मशहूर हुआ कि लोग पहले मिसरे को तो भूल ही गये। ऐसे ही चन्द उदाहरण यहाँ पेश हैं:
"ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है,
*वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है।*"
*- मिर्ज़ा रज़ा बर्क़*
"भाँप ही लेंगे इशारा सर-ए-महफ़िल जो किया,
*ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं।"*
*- माधव राम जौहर*
"चल साथ कि हसरत दिल-ए-मरहूम से निकले,
*आशिक़ का जनाज़ा है, ज़रा धूम से निकले।"*
*- मिर्ज़ा मोहम्मद अली फिदवी*
"दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ से,
*इस घर को आग लग गई,घर के ही चराग़ से।"*
*- महताब राय ताबां*
"ईद का दिन है, गले आज तो मिल ले ज़ालिम,
*रस्म-ए-दुनिया भी है,मौक़ा भी है, दस्तूर भी है।"*
*- क़मर बदायुनी*
"क़ैस जंगल में अकेला ही मुझे जाने दो,
*ख़ूब गुज़रेगी, जो मिल बैठेंगे दीवाने दो।"*
*- मियाँ दाद ख़ां सय्याह*
'मीर' अमदन भी कोई मरता है,
*जान है तो जहान है प्यारे।"*
*- मीर तक़ी मीर*
"शब को मय ख़ूब पी, सुबह को तौबा कर ली,
*रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई।"*
*- जलील मानिकपूरी*
"शहर में अपने ये लैला ने मुनादी कर दी,
*कोई पत्थर से न मारे मेरे दीवाने को।"*
*- शैख़ तुराब अली क़लंदर काकोरवी*
"ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने,
*लम्हों ने ख़ता की थी, सदियों ने सज़ा पाई।"*
*- मुज़फ़्फ़र रज़्मी* 🌹🌹
डाकिया और अम्मा
"अम्मा!.आपके बेटे ने मनीआर्डर भेजा है।"
डाकिया बाबू ने अम्मा को देखते अपनी साईकिल रोक दी। अपने आंखों पर चढ़े चश्मे को उतार आंचल से साफ कर वापस पहनती अम्मा की बूढ़ी आंखों में अचानक एक चमक सी आ गई..
"बेटा!.पहले जरा बात करवा दो।"
अम्मा ने उम्मीद भरी निगाहों से उसकी ओर देखा लेकिन उसने अम्मा को टालना चाहा..
"अम्मा!. इतना टाइम नहीं रहता है मेरे पास कि,. हर बार आपके बेटे से आपकी बात करवा सकूं।"
डाकिए ने अम्मा को अपनी जल्दबाजी बताना चाहा लेकिन अम्मा उससे चिरौरी करने लगी..
"बेटा!.बस थोड़ी देर की ही तो बात है।"
"अम्मा आप मुझसे हर बार बात करवाने की जिद ना किया करो!"
यह कहते हुए वह डाकिया रुपए अम्मा के हाथ में रखने से पहले अपने मोबाइल पर कोई नंबर डायल करने लगा..
"लो अम्मा!.बात कर लो लेकिन ज्यादा बात मत करना,.पैसे कटते हैं।"
उसने अपना मोबाइल अम्मा के हाथ में थमा दिया उसके हाथ से मोबाइल ले फोन पर बेटे से हाल-चाल लेती अम्मा मिनट भर बात कर ही संतुष्ट हो गई। उनके झुर्रीदार चेहरे पर मुस्कान छा गई।
"पूरे हजार रुपए हैं अम्मा!"
यह कहते हुए उस डाकिया ने सौ-सौ के दस नोट अम्मा की ओर बढ़ा दिए।
रुपए हाथ में ले गिनती करती अम्मा ने उसे ठहरने का इशारा किया..
"अब क्या हुआ अम्मा?"
"यह सौ रुपए रख लो बेटा!"
"क्यों अम्मा?" उसे आश्चर्य हुआ।
"हर महीने रुपए पहुंचाने के साथ-साथ तुम मेरे बेटे से मेरी बात भी करवा देते हो,.कुछ तो खर्चा होता होगा ना!"
"अरे नहीं अम्मा!.रहने दीजिए।"
वह लाख मना करता रहा लेकिन अम्मा ने जबरदस्ती उसकी मुट्ठी में सौ रुपए थमा दिए और वह वहां से वापस जाने को मुड़ गया।
अपने घर में अकेली रहने वाली अम्मा भी उसे ढेरों आशीर्वाद देती अपनी देहरी के भीतर चली गई।
वह डाकिया अभी कुछ कदम ही वहां से आगे बढ़ा था कि किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा..
उसने पीछे मुड़कर देखा तो उस कस्बे में उसके जान पहचान का एक चेहरा सामने खड़ा था।
मोबाइल फोन की दुकान चलाने वाले रामप्रवेश को सामने पाकर वह हैरान हुआ..
"भाई साहब आप यहां कैसे?. आप तो अभी अपनी दुकान पर होते हैं ना?"
"मैं यहां किसी से मिलने आया था!.लेकिन मुझे आपसे कुछ पूछना है।"
रामप्रवेश की निगाहें उस डाकिए के चेहरे पर टिक गई..
"जी पूछिए भाई साहब!"
"भाई!.आप हर महीने ऐसा क्यों करते हैं?"
"मैंने क्या किया है भाई साहब?"
रामप्रवेश के सवालिया निगाहों का सामना करता वह डाकिया तनिक घबरा गया।
"हर महीने आप इस अम्मा को भी अपनी जेब से रुपए भी देते हैं और मुझे फोन पर इनसे इनका बेटा बन कर बात करने के लिए भी रुपए देते हैं!.ऐसा क्यों?"
रामप्रवेश का सवाल सुनकर डाकिया थोड़ी देर के लिए सकपका गया!.
मानो अचानक उसका कोई बहुत बड़ा झूठ पकड़ा गया हो लेकिन अगले ही पल उसने सफाई दी..
"मैं रुपए इन्हें नहीं!.अपनी अम्मा को देता हूंँ।"
"मैं समझा नहीं?"
उस डाकिया की बात सुनकर रामप्रवेश हैरान हुआ लेकिन डाकिया आगे बताने लगा...
"इनका बेटा कहीं बाहर कमाने गया था और हर महीने अपनी अम्मा के लिए हजार रुपए का मनी ऑर्डर भेजता था लेकिन एक दिन मनी ऑर्डर की जगह इनके बेटे के एक दोस्त की चिट्ठी अम्मा के नाम आई थी।"
उस डाकिए की बात सुनते रामप्रवेश को जिज्ञासा हुई..
"कैसे चिट्ठी?.क्या लिखा था उस चिट्ठी में?"
"संक्रमण की वजह से उनके बेटे की जान चली गई!. अब वह नहीं रहा।"
"फिर क्या हुआ भाई?"
रामप्रवेश की जिज्ञासा दुगनी हो गई लेकिन डाकिए ने अपनी बात पूरी की..
"हर महीने चंद रुपयों का इंतजार और बेटे की कुशलता की उम्मीद करने वाली इस अम्मा को यह बताने की मेरी हिम्मत नहीं हुई!.मैं हर महीने अपनी तरफ से इनका मनीआर्डर ले आता हूंँ।"
"लेकिन यह तो आपकी अम्मा नहीं है ना?"
"मैं भी हर महीने हजार रुपए भेजता था अपनी अम्मा को!. लेकिन अब मेरी अम्मा भी कहां रही।" यह कहते हुए उस डाकिया की आंखें भर आई।
हर महीने उससे रुपए ले अम्मा से उनका बेटा बनकर बात करने वाला रामप्रवेश उस डाकिया का एक अजनबी अम्मा के प्रति आत्मिक स्नेह देख नि:शब्द रह गया.......
TEA DAY मुबारक हो ❤️
🙏🏽/ एक चाय के सौ फायदे / ❤️
प्रस्तुति :❤️ कमल शर्मा
*नींबू वाली चाय*
पेट घटाए।
*अदरक वाली चाय*
खराश मिटाए।
*मसाले वाली चाय*
इम्युनिटी बढ़ाए।
*मलाई वाली चाय*
हैसियत दिखाए।
*सुबह की चाय*
ताजगी लाए
*शाम की चाय*
थकान मिटाए।
*दुकान की चाय*
मजा आ जाए।
*पड़ोसी की चाय*
व्यवहार बढ़ाए।
*मित्रों की चाय*
संगत में रंगत लाए।
*पुलिसिया चाय*
मुसीबत से बचाए।
*अधिकारियों की चाय*
फाइलें बढ़ाए।
*नेताओं की चाय*
बिगड़े काम बनाए।
*विद्वानों की चाय*
सुंदर विचार सजाए।
*कवियों की चाय*
भावनाओं में बहाए।
*रिश्तेदारों की चाय*
संबंधों में मिठास लाए।
*चाय चाय चाय*
सबके मन भाय।
*एक चाय*
भूखे की भूख मिटाए
*एक चाय*
आलस्य भगाए ।
*एक चाय*
भाईचारा बढ़ाए।
*एक चाय*
सम्मान दिलाए।
*एक चाय*
हर काम बन जाए।
*एक चाय*
हर गम दूर हो जाए।
*एक चाय*
रिश्तो में मिठास लाए।
*एक चाय*
खुशियाँ कई दिलाए।
*चाय पिए*
और चाय पिलाए।
जीवन को आनंदमय बनाए।
जीवन को आनंदमय बनाए।
humko bhi pilaye.....
*अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं*👍👌😁🙏
पृथ्वीराज चौहान की शौर्य गाथा
*मत चूको चौहान* वसन्त पंचमी का शौर्य *चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण!* *ता उपर सुल्तान है, चूको मत चौहान!!* वसंत पंचमी का दिन हमें ...
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प्रस्तुति- कृति शरण / मेहर स्वरूप / सृष्टि शरण / अम्मी शरण / दृष्टि शरण पौराणिक कथा, कहानियों का संग्रह 1 to 10 पौराणिक कह...
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जी.के. अवधिया के द्वारा 25 Sep 2010. को सामान्य , शाश्वत रचनाएँ , ज्ञानवर्धक लेख कैटेगरी के अन्तर्गत् प्रविष्ट किया गया। टैग्स: कवि ...
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Radio Journalism Radio Journalism रेडियो पत्रकारिता संचार के आधुनिक माध्यमों में रेडियो ने अपने वर्चस्व और महत्व ...