साल के अंत तक पीएम बन सकते है राहुल ?
यह कहना और सुनना इस समय बड़ा अजीब सा लग सकता है कि इस साल के अंत तक राहुल बाबा और प्रियंका गांधी की पोलिटिकल पारी शुरू हो जाएगी। पोलिटिक्स की घुट्टी तो इन्हें बचपन (1985 से) से दी जा रही है, मगर सोनिया की बीमारी के बाद सारा परिदृश्य बदल चुका है। खासकर विकीलिप्स द्वारा राहुल गांधी के पीएम नहीं बनने की घोषणा के बाद गांधी परिवार इस मामले में करारा जवाब देने को बावला सा है। देश की हालात और मनमोहन सरकार की लगातार गिरती रेटिंग के बाद गांधी परिवार भी इसके लिए राजी हो गया है कि राहुल प्रियंका को प्रधान और उप प्रधान मंत्री बनाकर देश की जिम्मेदारी दे दी जाए। बस इंतजार कीजिए यदि देश में सबकुछ सामान्य रहा तो सोनिया गांधी के भारत आते ही बहुत कुछ बदल और बदला बदला सा माहौल बन और बनाया जा सकता है। अपनी सेहत को देखते हुए मैडम पार्टी नेतृत्व की बागडोर भी प्रियंका गांधी को किसी मौके पर सौंप सकती है। यानी नए साल 2012 में चौथी पीढी के आने पर बहुत कुछ ऐसा होगा जिसके बाबत ज्यादातर कांग्रेसियों ने सोचा भी नहीं था। यानी यूपी में बीएसपी की छोटी बहन बनकर सत्ता में रहने पर भी कांग्रेस गंभीर है।
मनमोहक बदला
हमारे प्रधानमंत्री जी यदि खामोश रहते है तो इससे उनको कमजोर और दब्बू समझने की भूल करने वाले तमाम लोग सावधान। हमारे मन साहब इतनी सफाई से वार करते है कि सांप भी मर जाता है और लाठी भी नहीं टूटती। पहले रामदेव और अब टीम अन्ना के लोग सरकार पर चिल्लाने के बहाने मन सरकार पर उत्पीड़न और तबाह करने का आरोप लगाना चालू कर दिया है। अरविंद केजरीवील किरण बेदी से लेकर प्रशांत भूषण तक सरकार पर जानबूझ कर लपेटने चपेटने और तंग करने का राग अलाप रहे है। लड़की वेश में जान बचाकर रामलीला मैदान से भागे रामदेव भी अब मनमोहन सरकार पर देख लेने और तंग करने या दुश्मनी निकालने जैसे अलंकार लगा रहे है। रामदेव तो सरकार को सीधे धमका रहे है कि अगली बार आंदोलन को कुचलना महंगा पड़ेगा। बाबा रामदेव जी क्या आप दिल्ली में अगली दफा भी कोई धरना आंदोलन प्रदर्शन कर लेने का सपना ( मुंगेरी लाल के हसीन सपने) देख रहे है ? अन्ना साहब भी अपने प्यारे पंचों की हालात देखकर सरकार की नीयत पर आग बबूला हो रहे है। मगर कमाल है कि मन साहब खामोशी के साथ अपना काम लगातार कर और करा रहे है। यानी शांत रहकर दूसरों को अशांत (तबाह) करने की मनमोहक कला{अदा) में माहिर होना है तो सरदार जी की निंदा करने की बजाय उनको अपना गुरू बनाना ही ज्यादा सार्थक होगा।
ईमानदारी का दिखावा
हमारे सबसे ईमानदार पीएम मनमोहनजी ने अपनी और अपने सहयोगी मंत्रियों की संपति की घोषणा कराके वाकई ईमानदारी का नेक प्रदर्शन किया है। सबसे अमीर मंत्रियों में कमलनाथ अव्वल रहे, पीएम होकर भी मनमोहनजी उनके सामने पानी भरते दिखे।भारत जैसे गरीब देश जहां पर 86 करोड़ मोबाईल और 10 करोड़ लैप्टॅाप और नेट यूजर के बाद भी 52 फीसदी लोगों को दो वक्त खाना नसीब नहीं होता। एक तरफ ऐसे लोगों की तादाद भी काफी हो गई है जिनका सालाना वेतन करोड़ों में है तो दूसरी तरफ भारत की 80 फीसदी आबादी आज भी 10 हजार से कम पगार पाता है। भारत जैसे गरीब देश के अमीर(बेईमान) सांसदों की सूची मन को उत्साहित करने की बजाय टीस देती है कि तमाम संसाधनों पर यह कैसी कुंडली पड़ गयी है कि नेता नौकरशाह दलाल और बेईमानों के अलावा सामान्य लोगों को गरीबी के जाल से बाहर निकलना दूभर हो गया है। मंत्रियों की सूची से वाहवाही लूट रहे मनमोहन जी विकीलिप्स के खुलासे और सूची पर गौर फरमाएंगे जिसमें आपके आदर्श गांधी परिवार के खरबों रूपये बैंकों में पड़े है। वहीं इस सूची में सबसे बड़ी दलाल (कालगर्ल) नीरा राड़िया के नाम करीब 300 लाख करोड़ रूपए जमा है। आपकी ईमानदारी कहां तेल लेने गई थी मनमोहन साहब ?
तुस्सी ग्रेट हो गोदरेज
सरकारी धन और नाना प्रकार के हथकंड़ों से मालदार होने वाले (बेशर्म) नेताओ नौकरशाहों कुछ तो सबक लो। मुबंई शहर को बचाने और आम जनता के साथ शहर की आबोहवा को बेहतर रखने के लिए गोदरेज की मालकिन उधोगपति आदि गोदरेज ने सरकार को 1750 एकड़ भूमि देने की पेशकश की है। गोदरेज समूह के पास मुबंई में 3500 एकड़ जमीन है। इस जमीन की कीमत लगाना किसी भी चार्टर अकांऊटेंट के लिेए भी आज काफी कठिन है। जनता और शहर की फ्रिक् रखने वाली गोदरेज समूह की मालकिन वाकई श्रद्धा और आदर की पात्र बन जाती है। यकीन करना मुश्किल सा लगता है कि जिस देश में एक एक इंच जमीन के लिेए दूसरों की जान लेने वाले इसी देश में गोदरेज जैसा भी एक आदर्श समूह है जो अरबों खरबों की जमीन को केवल जनता और शहर की सेहत के लिए देने पर गंभीर है। तुस्सी ग्रेट हो आदि गोदरेज जी। आपकी जितनी भी तारीफ की जाए वो सब कम है।
जेड सिक्योरिटी में अन्ना
जन लोकपाल बिल के बूते देश भर में अपनी धाक जमाने वाले अन्ना हजारे को सरकार ने जेड ग्रेड की सुरक्षा प्रदान की है और श्रीमान अन्ना ने इसे स्वीकार भी लिया। यह बात कुछ हजम नहीं हो रही है कि जनता के बूते जनता द्वारा जनता के लिए जनसंघर्ष करने वाले अन्ना को अब इसी जनता से क्या खौफ होने लगा कि एकाएक मंदिर में खुले आम रहने वाले अन्ना को सरकारी सुरक्षा की जरूरत आ पड़ी। अन्ना को सरकार के इस कवच को उतार फेंकना चाहिए। उन्हें बूझना होगा कि यह सुरक्षा नहीं फंदा है जिसमें उलझ कर रह गए तो जनता पीछे छूट जाएगी और अन्ना आगे निकल जाएंगे, जहां पर वे खुद को सरकारी साजिश के शिकार माने जाएगे। यानी अन्ना को अब आगे का रास्ता तय करना होगा कि बगैर खतरे के कौन सा रास्ता सबसे सेफ रहेगा।
माकन खेल (फेल) और राजीव पास
जनाधार विहीन होने के बाद भी समय और सामने वाले की औकात को भांपने में हमेशा फिस्सडी रह गए अजय माकन हर बार चौबे बनने की फिराक में मात खा जाते है। हर विवाद के मौके पर अपनी टांग अड़ाने वाले माकन खेल नीति बनाने के नाम पर पत्रकारों के पत्रकार और नेताओं के नेता के रूप में (कु) विख्यात राजीव शुक्ला से जा उलझे। देश की सबसे अमीर खेल बोर्ड बीसीसीआई को सरकारी फंदे में लाने का प्लान बनाया था। मगर बीसीसीआई के उपाध्यक्ष राजीव शुक्ल के पावर को जानकर भी अनदेखा कर गए माकन इस बार भी चारो तरफ बुरी तरह चित हो गए। अपने दिवंगत चाचू ललित माकन के नाम और काम का फसल काट रहे अजय माकन अपनी कुटिलता से तो अपने चाचा की बेटी के अधिकारों को तो दबा देते है, मगर बुलडोजर राजीव के सामने माकन साहब आपकी दाल नहीं गल सकती। मौका पड़ने पर तो अपने राजीव साहब मनमोहन जी से भी जबरन कोई काम करवा सकते है। माकन भाई ज्यादा उलझने की बजाय अपनी नौकरी की सलामती मनाते रहने में ही बुद्धिमानी है।
इरादा तो नेक है
दो विचारवान लोग जब एक साथ बैठते हैं तो कुछ ना कुछ भला ही होता है। खासकर बिहार के सीएम नीतीश कुमार और ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश एक साथ मंत्रणा करना तो और खास हो जाता है। गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों के लिए बीपीएल आयोग बनाने के सुझाव को जयराम ने औपचारिक तौर पर मान लिया। अब देखना है कि जयराम इसे किस शक्ल में प्रस्तुत करके बीपीएल के नीते रहने वाले करोड़ों लोगों के कल्याण का श्री गणेश कब कहां और किस तरह करते है।
संकट में बीएसएनएल
देश की सबसे बड़ी सरकारी दूरसंचार कंपनी संकट में है। घाटे से वह इस कदर परेशान हो गई है कि देश भर के 25 हजार कर्मचारियों की छंटनी पर गंभीर है। हालांकि उसके पास करीब 75 हजार कर्मचारी अभी भी फालतू है। डॅाट ने इस पर रोक लगाते हुए वीआरएस स्कीम लाने का सुझाव दिया है। सरकारी लापरवाही और घोर गलाकाट कंपीटिशन में भी बीएसएनएल के करोड़ो लाईने बेकार पड़ी है। लोग सरकारी सेवा से उबकर निजी शरणों में जा रहे है। और अपने संचार मंत्री कपिल सिब्बल साहब को सरकारी उपक्रमों की बदहाली तबाह नहीं करती है. सिब्बल साहब कुछ तो शर्म करो वकील साहब कि दम तोडने जा रही बीएसएनएल को फिर से खड़ा किया जा सके। डॅाट के अलावा कैग से भी लताड़ खाने के बाद भी वकील साहब के साथ साथ बीएसएनएल
के नौकरशाहों को इसकी बदहाल होती हालत पर ध्यान नहीं जा रहा।
योगानंद का कांग्रेसी खेल
दिल्ली के सभी विधायकों में सबसे ज्यादा विद्वान लेखक के रूप में विख्यात और दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष डा.योगानंदशास्त्री से तो किसी को ऐसी उम्मीद ही नहीं थी। लोकसभा और राज्यसभा के सांसद सदन को नहीं चलने दे रहे है। दोनें सदनों के अध्यक्ष परेशान हो रहे है, मगर दिल्ली विधानसभा को इसके अध्यक्ष डा.योगानंद शास्त्री ही चलने नहीं दे रहे है। एक तो सत्र इतना छोटा रखा जाता है कि जब तक हवा माहौल गरमाता है, तभी सत्र खत्म हो जाता है। इस बार तो बीजेपी सीएम के इस्तीफे को लेकर ज्यादा हल्ला बोलने के लिए तैयार थी, तभी शास्त्री ने मार्शलों की मदद से 23 विधायको को पूरे सत्र के लिए सदन से निकाल बाहर करके सीएम को साफ सुरक्षित बचा लिया। सदन में वैसे भी विधायकों से ज्यादा दंगल मार्शल करते है, क्योंकि कहीं कुछ हंगामा हुआ नहीं कि विधानसभा अध्यक्षों द्वारा मार्शलों को सदन में दौड़ा दिया जाता है। शास्त्री जी पढ़े लिखों पर एक कहावत है कि पढ़ा लिखा मूरख। क्या देहाती मुहाबरा आपके ऊपर सटीक नहीं जम रहा है?
छुट्टी लेने के सौ बहाने
मेहनती जापानियों के बारे में एक किस्सा मशहूर कि एक जापानी को हर शुक्रवार के दिन बदन दर्द करने लगता था और रविवार को यही दर्द खुद ब खुद खत्म हो जाता। वह एक मनोचिकित्सक के पास गया तो उसने बताया कि अगले दो दिनों की छुट्टी के अहसास से ही बदन में दर्द जाग जाता था और अगले दिन फिर काम करने की लगन से रविवार को बदन तरोताजा हो जाता था। इसके विपरीत ज्यादातर भारतीयों को सोमवार को काम के नाम से ही बुखार चढ़ जाता है और शुक्रवार से ही मौज मस्ती मनाने के नाम पर वे मगन हो जाते है। भले ही यह भारतीयों के निकम्मेपन और आलस स्वभाव पर एक मजाक हो मगर एक सर्वेक्षण में इस बहाने पर मुहर लग चुकी है कि बहाने बाजी से छुट्टियां लेनें में सबसे अव्वल होते है भारतीय। क्या इस पर कोई शर्मिदा होने के लिए राजी है?
रेप का कोई शेप नहीं
सचमुच आदमी से ज्यादा नंगा और दरिंदा (जानवर भी कह ले) कोई और नहीं होता। कोई अपनी मासूम बेटी के साथ बाप तो कोई चाचा कोई फूफा कोई भाई, मौसा तो कोई पड़ोसी नाबालिग रिश्तेदारों और लड़कियों की इज्जत अस्मत के डकैत बन बैठे है। उम्र 55 की और नजर बचपन पर। हम किस युग में जी रहे है, यह पता नहीं। इस गंगा यमुना और सरस्वती जैसी नदियों और संबंधों की गरिमा के लिए जान तक कुर्बान कर देने वाले इस देश में काम का खुमार कुछ इस कदर हावी हो गया है कि लोग अब तमाम रिश्ते नातों और उम्र का लिहाज तक भूल गए है। 91 फीसदी कम उम्र की लड़कियां अपने घर में ही सुरक्षित नहीं है।
कुमाता का एक शर्मनाक चेहरा
कहा जाता है कि पूत कपूत हो सकता है। बाप सांप हो सकता है पर माता कुमाता नहीं हो सकती। शायद इसी वजह से माता का स्थान सबसे उपर है। मगर आज के युग में कुमाताओं की भी कोई कमी नहीं रह गई। दिल्ली की ही एक नीरा नामक माता ने अपने प्यार में अड़चन बन रहे 19 साल के बेटे को दो लाख की सुपारी देकर हत्या करवा दी। सात माह तक यह मामला छिपा भी रहा, क्योंकि दोस्त हत्यारों ने चेहरा इतना कुचलकर हरिद्वार की तरफ फेंक आए थे कि पुलिस को लाश तो मिली, मगर पहचान जाहिर नहीं हो सकी। अपने पति को जूती समझने वाली नीरा का इश्क चल भी रहा था कि एकाएक दो लड़के पुलिस के हत्थे चढे और पुलिसिया मारपीट में कुमाता का चाल चरित्र चेहरा चालाकी पर से पर्दा उठ गया। अपने आशिक के साथ हवालात की रोटियां खा रही कुमाता पर क्या किसी को कोई सहानुभूति है ?
आशिक बनने से पहले सावधान
अगर आप किसी से प्यार करने जा रहे हो तो सावधान। अब जमाना बदल गया है। आपकी प्रेमिका भी वैसी नहीं रही कि जबतक इश्क किया, किया। और मौज मस्ती के बाद जब चाहा तो फिर छोड़ दिया। और लड़कियां भी मन दबाकर बेवफाई की पीड़ा को पी जाए। जी नहीं, अब तो लड़कियां भी सबक सीखाना जान गई है। नोएडा की एक लड़की तो आशिक के दफ्तर के बाहर धरने पर बैठ गई,तो दूसरी लड़की ने अपने प्रेमी के चेहरे पर तेजाब फेंक कर चेहरा ही बदरंग कर दिया। और अपने प्रेमी की बेवफाई से परेशान होकर एक कन्या तो बाकायदा बारात लेकर लड़के के घर पर जा धमकी। परिवार वालों ने अपनी इज्जत(?) को बचाने के लिए दुल्हा के रूप में आई दुल्हन को घर में लाकर बहू बनाया। अपनी प्रेमिका को गर्भवती बनाने के बाद रफूचक्कर हो गए आशिक को तो और बुरा अंजाम भुगतना पड़ा। अदालत में गुहार लगाकर बाकायदा पुलिस सुरक्षा के साथ अपने ससुराल में जाकर बैठ गई । ससुराल में ही चांद सा बेटे को दादा दादी के बीच जन्म देकर आज घर में राज कर रही है और आशिक महाराज अपनी जान बचाने के लिए मामले को रफा दफा करके सबके सामने सिर नवाकर बैठ गए। यानी प्यार करने से पहले आशिकों को सोच लेना होगा कि धोखा देना अब इतना आसान नहीं है।
यह कैसी साफगोई?
शाहरूख खान भी प्रचार प्रसार के लिए वो तमाम हथकंड़ों का सहारा लेना चालू कर दिया है। अपनी एरोगैंसी के लिेए बदनाम और इसी के चलते कई घरेलू संबंधों को खो चुके खान इस समय दबंग और थ्रीइडियट से पीछे चल रहे है। तो नाम और गप्प शप्प में बने रहने के लिे किंग खान ने अपने सेक्स लाईफ के अनुभवों को सार्वजनिक करने लगे है। अपनी इमेज को लेकर सावधान खान को सबों के सामने बिपाशा और डिनो मारिया के ( रंगरलियों) ब्लू फिल्म का तो खुलासा करके बिपाशा को शर्मसार (मौज मजा बन जाता है सार्वजनिक होने पर सजा) कर दिया, मगर अपने उन तमाम संगीनियों को छिपा गए। अलबता यह कहना नहीं भूले कि मजा तो केवल मनपंसदीदा पार्टनर के साथ ही आता है। गौरी सावधान । खान में अब रावण जैसे किंग के गुण दिखने लगे है। क्या होगा जब रावण सबके सामने होगा।
शंकर दयाल सिंह : क्या सच क्या झूठ
आपातकाल के दौरान इमरजेसी: क्या सच और क्या झूठ किताब लिखकर इमरजेसी और संजय गांधी का कच्चा चिठ्ठा खोलने वाले बिहार के हरदिल अजीज लोकप्रिय सांसद और लेखक दिवंगत शंकर दयाल सिंह की बेहद लोकप्रिय किताब है। त्तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नाक के बाल रहे शंकर दयाल जी इस किताब के चलते ही कांग्रेस पार्टी और श्रीमती गांधी की गुड बुक से बाहर हो गए। हर आदमी को अपना बनाकर उसके हो जाने वाले शंकर दयाल जी का मुस्कुराता चेहरा और जोरदार ठहाके आज भी लोगों को बरबस चौंका देती है। किसी मिठाई से भी ज्यादा मिठास भरे शंकर दयाल जी के इस साल 75 वां जन्मदिन (27 दिसंबर) है। जिसे अम़ृत महोत्सव की तरह एक महाउत्सव के रूप में पूरे वर्ष मनाया जाएगा। इसे एक अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक राजनीतिक और पत्रकारिय जलसे के रूप में मनाने की योजना पर काम चल रहा है। कई किस्तों में सांसद और मंत्री रह चुके और कश्मीर नरेश के अलावा भारतीय साहित्यिक संबंध परिषद के अध्यक्ष डा. कर्ण सिंह इस आयोजन समिति के मुखिया है। देश के कई राज्यों के साथ ही विदेशों में भी कुछ कार्यक्रम कराने की योजनाओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है। इसमें खासतौर पर शंकर दयाल जी के पुत्र रंजन और राजेश के अलावा बेटी रश्मि सिंह की त्तत्परता लगन मेहनत और काम करने के अनथक प्रयासों का ही नतीजा है कि राष्ट्रपति भवन में महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल इस अम़ृत महोत्सव का शुभारंभ करेंगी। सूर्य मंदिर के लिए जग विख्यात गांव कस्बा (जो नाम दे दे) देव में सूर्य मंदिर के बाद देव, भवानीपुर गांव के शंकर दयाल सिंह और इनके पिता कामता प्रसाद सिंह काम को ही लोग राष्ट्रीय स्तर पर जानते और मानते है। एक छोटे से गांव से बाहर निकल कर दुनियां भर में विख्यात होने वाले इस ग्रामीण धरती के सपूत जिसने अपनी कलम से पूरी दुनियां को रौंद डाला और अपनी मुस्कान से सबों को अपना बना लिया। सबों को अपना बनाकर उसका बन जाने वालो में एक इस जादूगर को अपने गांव देहात की जनता की तरफ से नमन। गांव के हर उस आदमी की तरफ से सलाम जिसके पास इस पिता पुत्र को लेकर दर्जनों कथा कहानी और संस्मरण आज भी मन में जिंदा है। देव के हर आदमी की तरफ से मैं इस महा उत्सव की सफलता की कामना करता हूं। शंकर दयाल सिंह के गांव शहर कस्बा देव का ही वाशिंदा होने के नाते यह हमलोग की जिम्मेदारी भी बन जाती है कि इस परिवार के साथ जुड़कर रहे ताकि इसी बहाने देव का भी कुछ कल्याण हो सके।
(दो सप्ताह से इस साप्ताहिक कॅालम को नियमित नहीं रख पा रहा हूं , इसके लिए क्षमा करे। मेरी कोशिश रहेगी कि यह कॅालम आप सब तक शनिवार को हर हाल में उपलब्ध हो सके।
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