शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

तोड़ दो मेरा जाम / ओशो

 तोड़ दो मेरा जाम

कि अब मैं पी न सकूंगा

प्यास बुझी तो जी न सकूंगा

तोड़ दो मेरा जाम


प्यास मधुर सपनों का सागर

प्यास छलकते नयन की गागर

सपनों का अंजाम

कि अब मैं पी न सकूंगा

प्यास बुझी तो जी न सकूंगा

तोड़ दो मेरा जाम


प्यास मनोहर प्यार की रजनी

प्यास नशीले रूप की सजनी

लहराए हर गाम

कि अब मैं पी न सकूंगा

प्यास बुझी तो जी न सकूंगा

तोड़ दो मेरा जाम


दीपक, शीशे, फूल, सितारे

छोड़ के बढ़ चल कोई पुकारे

जीवन है संग्राम

कि अब मैं पी न सकूंगा

प्यास बुझी तो जी न सकूंगा

तोड़ दो मेरा जाम


प्यास रसीला स्वप्न मिलन का

मीत हमारे बालेपन का

पीत हुई बदनाम

कि अब मैं पी न सकूंगा

प्यास बुझी तो जी न सकूंगा

तोड़ दो मेरा जाम


प्यास जगत की रीत पुरानी

आशाओं की छांव सुहानी

कर लूं कुछ बिसराम

कि अब मैं पी न सकूंगा

प्यास बुझी तो जी न सकूंगा

तोड़ दो मेरा जाम


प्यास मेरी जानी-पहचानी

प्यास मेरे हृदय की रानी

प्यास मेरा इनआम

कि अब मैं पी न सकूंगा

प्यास बुझी तो जी न सकूंगा

तोड़ दो मेरा जाम


भक्त तो अपने जाम को तोड़ देता है। इस जगत का सब पीकर देख लिया और व्यर्थ पाया। सब पीया और प्यास बुझी नहीं। सब पीया और प्यास बढ़ती ही चली गई।

प्यास मेरी जानी-पहचानी

प्यास   मेरे   हृदय   की   रानी

अब तो वह परमात्मा की प्यास से भरा है। अब वह कहता है, इस जानी-पहचानी प्यास को परमात्मा की तरफ दौड़ाता हूं।


वही है धन्यभागी, वही है बुद्धिमान, जो परमात्मा के चरणों में सारे चित्त को लगा देता है; सब तरफ से बटोर लेता है अपनी ऊर्जा को और उस एक पर समर्पित कर देता है।


ओशो

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