शुक्रवार, 21 जून 2024

पंचमुखी क्यो हुए हनुमान"*

  *एक अद्भुत कथा


प्रस्तुति - उषा रानी / राजेंद्र प्रसाद सिन्हा 



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लंका में महा बलशाली मेघनाद के साथ बड़ा ही भीषण युद्ध चला. अंतत: मेघनाद मारा गया. रावण जो अब तक मद में चूर था राम सेना, खास तौर पर लक्ष्मण का पराक्रम सुनकर थोड़ा तनाव में आया.

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रावण को कुछ दुःखी देखकर रावण की मां कैकसी ने उसके पाताल में बसे दो भाइयों अहिरावण और महिरावण की याद दिलाई. रावण को याद आया कि यह दोनों तो उसके बचपन के मित्र रहे हैं.

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लंका का राजा बनने के बाद उनकी सुध ही नहीं रही थी. रावण यह भली प्रकार जानता था कि अहिरावण व महिरावण तंत्र-मंत्र के महा पंडित, जादू टोने के धनी और मां कामाक्षी के परम भक्त हैं.

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रावण ने उन्हें बुला भेजा और कहा कि वह अपने छल बल, कौशल से श्री राम व लक्ष्मण का सफाया कर दे. यह बात दूतों के जरिए विभीषण को पता लग गयी. युद्ध में अहिरावण व महिरावण जैसे परम मायावी के शामिल होने से विभीषण चिंता में पड़ गए.

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विभीषण को लगा कि भगवान श्री राम और लक्ष्मण की सुरक्षा व्यवस्था और कड़ी करनी पड़ेगी. इसके लिए उन्हें सबसे बेहतर लगा कि इसका जिम्मा परम वीर हनुमान जी को राम-लक्ष्मण को सौंप दिया जाए. साथ ही वे अपने भी निगरानी में लगे थे.

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राम-लक्ष्मण की कुटिया लंका में सुवेल पर्वत पर बनी थी. हनुमान जी ने भगवान श्री राम की कुटिया के चारों ओर एक सुरक्षा घेरा खींच दिया. कोई जादू टोना तंत्र-मंत्र का असर या मायावी राक्षस इसके भीतर नहीं घुस सकता था.

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अहिरावण और महिरावण श्री राम और लक्ष्मण को मारने उनकी कुटिया तक पहुंचे पर इस सुरक्षा घेरे के आगे उनकी एक न चली, असफल रहे. ऐसे में उन्होंने एक चाल चली. महिरावण विभीषण का रूप धर के कुटिया में घुस गया.

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राम व लक्ष्मण पत्थर की सपाट शिलाओं पर गहरी नींद सो रहे थे. दोनों राक्षसों ने बिना आहट के शिला समेत दोनो भाइयों को उठा लिया और अपने निवास पाताल की और लेकर चल दिए.

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विभीषण लगातार सतर्क थे. उन्हें कुछ देर में ही पता चल गया कि कोई अनहोनी घट चुकी है. विभीषण को महिरावण पर शक था, उन्हें राम-लक्ष्मण की जान की चिंता सताने लगी.

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विभीषण ने हनुमान जी को महिरावण के बारे में बताते हुए कहा कि वे उसका पीछा करें. लंका में अपने रूप में घूमना राम भक्त हनुमान के लिए ठीक न था सो उन्होंने पक्षी का रूप धारण कर लिया और पक्षी का रूप में ही निकुंभला नगर पहुंच गये.

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निकुंभला नगरी में पक्षी रूप धरे हनुमान जी ने कबूतर और कबूतरी को आपस में बतियाते सुना. कबूतर, कबूतरी से कह रहा था कि अब रावण की जीत पक्की है. अहिरावण व महिरावण राम-लक्ष्मण को बलि चढा देंगे. बस सारा युद्ध समाप्त.

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कबूतर की बातों से ही बजरंग बली को पता चला कि दोनों राक्षस राम लक्ष्मण को सोते में ही उठाकर कामाक्षी देवी को बलि चढाने पाताल लोक ले गये हैं. हनुमान जी वायु वेग से रसातल की और बढे और तुरंत वहां पहुंचे.

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हनुमान जी को रसातल के प्रवेश द्वार पर एक अद्भुत पहरेदार मिला. इसका आधा शरीर वानर का और आधा मछली का था. उसने हनुमान जी को पाताल में प्रवेश से रोक दिया.

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द्वारपाल हनुमान जी से बोला कि मुझ को परास्त किए बिना तुम्हारा भीतर जाना असंभव है. दोनों में लड़ाई ठन गयी. हनुमान जी की आशा के विपरीत यह बड़ा ही बलशाली और कुशल योद्धा निकला.

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दोनों ही बड़े बलशाली थे. दोनों में बहुत भयंकर युद्ध हुआ परंतु वह बजरंग बली के आगे न टिक सका. आखिर कार हनुमान जी ने उसे हरा तो दिया पर उस द्वारपाल की प्रशंसा करने से नहीं रह सके.

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हनुमान जी ने उस वीर से पूछा कि हे वीर तुम अपना परिचय दो. तुम्हारा स्वरूप भी कुछ ऐसा है कि उससे कौतुहल हो रहा है. उस वीर ने उत्तर दिया- मैं हनुमान का पुत्र हूं और एक मछली से पैदा हुआ हूं. मेरा नाम है मकरध्वज.

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हनुमान जी ने यह सुना तो आश्चर्य में पड़ गए. वह वीर की बात सुनने लगे. मकरध्वज ने कहा- लंका दहन के बाद हनुमान जी समुद्र में अपनी अग्नि शांत करने पहुंचे. उनके शरीर से पसीने के रूप में तेज गिरा.

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उस समय मेरी मां ने आहार के लिए मुख खोला था. वह तेज मेरी माता ने अपने मुख में ले लिया और गर्भवती हो गई. उसी से मेरा जन्म हुआ है. हनुमान जी ने जब यह सुना तो मकरध्वज को बताया कि वह ही हनुमान हैं.

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मकरध्वज ने हनुमान जी के चरण स्पर्श किए और हनुमान जी ने भी अपने बेटे को गले लगा लिया और वहां आने का पूरा कारण बताया. उन्होंने अपने पुत्र से कहा कि अपने पिता के स्वामी की रक्षा में सहायता करो.

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मकरध्वज ने हनुमान जी को बताया कि कुछ ही देर में राक्षस बलि के लिए आने वाले हैं. बेहतर होगा कि आप रूप बदल कर कामाक्षी कें मंदिर में जा कर बैठ जाएं. उनको सारी पूजा झरोखे से करने को कहें.

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हनुमान जी ने पहले तो मधु मक्खी का वेश धरा और मां कामाक्षी के मंदिर में घुस गये. हनुमान जी ने मां कामाक्षी को नमस्कार कर सफलता की कामना की और फिर पूछा- हे मां क्या आप वास्तव में श्री राम जी और लक्ष्मण जी की बलि चाहती हैं ?

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हनुमान जी के इस प्रश्न पर मां कामाक्षी ने उत्तर दिया कि नहीं. मैं तो दुष्ट अहिरावण व महिरावण की बलि चाहती हूं.यह दोनों मेरे भक्त तो हैं पर अधर्मी और अत्याचारी भी हैं. आप अपने प्रयत्न करो. सफल रहोगे.

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मंदिर में पांच दीप जल रहे थे. अलग-अलग दिशाओं और स्थान पर मां ने कहा यह दीप अहिरावण ने मेरी प्रसन्नता के लिए जलाये हैं जिस दिन ये एक साथ बुझा दिए जा सकेंगे, उसका अंत सुनिश्चित हो सकेगा.

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इस बीच गाजे-बाजे का शोर सुनाई पड़ने लगा. अहिरावण, महिरावण बलि चढाने के लिए आ रहे थे. हनुमान जी ने अब मां कामाक्षी का रूप धरा. जब अहिरावण और महिरावण मंदिर में प्रवेश करने ही वाले थे कि हनुमान जी का महिला स्वर गूंजा.

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हनुमान जी बोले- मैं कामाक्षी देवी हूं और आज मेरी पूजा झरोखे से करो. झरोखे से पूजा आरंभ हुई ढेर सारा चढावा मां कामाक्षी को झरोखे से चढाया जाने लगा. अंत में बंधक बलि के रूप में राम लक्ष्मण को भी उसी से डाला गया. दोनों बंधन में बेहोश थे.

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हनुमान जी ने तुरंत उन्हें बंधन मुक्त किया. अब पाताल लोक से निकलने की बारी थी पर उससे पहले मां कामाक्षी के सामने अहिरावण महिरावण की बलि देकर उनकी इच्छा पूरी करना और दोनों राक्षसों को उनके किए की सज़ा देना शेष था.

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अब हनुमान जी ने मकरध्वज को कहा कि वह अचेत अवस्था में लेटे हुए भगवान राम और लक्ष्मण का खास ख्याल रखे और उसके साथ मिलकर दोनों राक्षसों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया.

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पर यह युद्ध आसान न था. अहिरावण और महिरावण बडी मुश्किल से मरते तो फिर पाँच पाँच के रूप में जिदां हो जाते. इस विकट स्थिति में मकरध्वज ने बताया कि अहिरावण की एक पत्नी नागकन्या है.

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अहिरावण उसे बलात हर लाया है. वह उसे पसंद नहीं करती पर मन मार के उसके साथ है, वह अहिरावण के राज जानती होगी. उससे उसकी मौत का उपाय पूछा जाये. आप उसके पास जाएं और सहायता मांगे.

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मकरध्वज ने राक्षसों को युद्ध में उलझाये रखा और उधर हनुमान अहिरावण की पत्नी के पास पहुंचे. नागकन्या से उन्होंने कहा कि यदि तुम अहिरावण के मृत्यु का भेद बता दो तो हम उसे मारकर तुम्हें उसके चंगुल से मुक्ति दिला देंगे.

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अहिरावण की पत्नी ने कहा- मेरा नाम चित्रसेना है. मैं भगवान विष्णु की भक्त हूं. मेरे रूप पर अहिरावण मर मिटा और मेरा अपहरण कर यहां कैद किये हुए है, पर मैं उसे नहीं चाहती. लेकिन मैं अहिरावण का भेद तभी बताउंगी जब मेरी इच्छा पूरी की जायेगी.

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हनुमान जी ने अहिरावण की पत्नी नागकन्या चित्रसेना से पूछा कि आप अहिरावण की मृत्यु का रहस्य बताने के बदले में क्या चाहती हैं ? आप मुझसे अपनी शर्त बताएं, मैं उसे जरूर मानूंगा.

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चित्रसेना ने कहा- दुर्भाग्य से अहिरावण जैसा असुर मुझे हर लाया. इससे मेरा जीवन खराब हो गया. मैं अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलना चाहती हूं. आप अगर मेरा विवाह श्री राम से कराने का वचन दें तो मैं अहिरावण के वध का रहस्य बताऊंगी.

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हनुमान जी सोच में पड़ गए. भगवान श्री राम तो एक पत्नी निष्ठ हैं. अपनी धर्म पत्नी देवी सीता को मुक्त कराने के लिए असुरों से युद्ध कर रहे हैं. वह किसी और से विवाह की बात तो कभी न स्वीकारेंगे. मैं कैसे वचन दे सकता हूं ?

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फिर सोचने लगे कि यदि समय पर उचित निर्णय न लिया तो स्वामी के प्राण ही संकट में हैं. असमंजस की स्थिति में बेचैन हनुमानजी ने ऐसी राह निकाली कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

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हनुमान जी बोले- तुम्हारी शर्त स्वीकार है पर हमारी भी एक शर्त है. यह विवाह तभी होगा जब तुम्हारे साथ भगवान राम जिस पलंग पर आसीन होंगे वह सही सलामत रहना चाहिए. यदि वह टूटा तो इसे अपशकुन मांगकर वचन से पीछे हट जाऊंगा.

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जब महाकाय अहिरावण के बैठने से पलंग नहीं टूटता तो भला श्रीराम के बैठने से कैसे टूटेगा ! यह सोच कर चित्रसेना तैयार हो गयी. उसने अहिरावण समेत सभी राक्षसों के अंत का सारा भेद बता दिया.

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चित्रसेना ने कहा- दोनों राक्षसों के बचपन की बात है. इन दोनों के कुछ शरारती राक्षस मित्रों ने कहीं से एक भ्रामरी को पकड़ लिया. मनोरंजन के लिए वे उसे भ्रामरी को बार-बार काटों से छेड रहे थे.

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भ्रामरी साधारण भ्रामरी न थी. वह भी बहुत मायावी थी किंतु किसी कारण वश वह पकड़ में आ गई थी. भ्रामरी की पीड़ा सुनकर अहिरावण और महिरावण को दया आ गई और अपने मित्रों से लड़ कर उसे छुड़ा दिया.

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मायावी भ्रामरी का पति भी अपनी पत्नी की पीड़ा सुनकर आया था. अपनी पत्नी की मुक्ति से प्रसन्न होकर उस भौंरे ने वचन दिया थ कि तुम्हारे उपकार का बदला हम सभी भ्रमर जाति मिलकर चुकाएंगे.

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ये भौंरे अधिकतर उसके शयन कक्ष के पास रहते हैं. ये सब बड़ी भारी संख्या में हैं. दोनों राक्षसों को जब भी मारने का प्रयास हुआ है और ये मरने को हो जाते हैं तब भ्रमर उनके मुख में एक बूंद अमृत का डाल देते हैं.

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उस अमृत के कारण ये दोनों राक्षस मरकर भी जिंदा हो जाते हैं. इनके कई-कई रूप उसी अमृत के कारण हैं. इन्हें जितनी बार फिर से जीवन दिया गया उनके उतने नए रूप बन गए हैं. इस लिए आपको पहले इन भंवरों को मारना होगा.

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हनुमान जी रहस्य जानकर लौटे. मकरध्वज ने अहिरावण को युद्ध में उलझा रखा था. तो हनुमान जी ने भंवरों का खात्मा शुरू किया. वे आखिर हनुमान जी के सामने कहां तक टिकते.

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जब सारे भ्रमर खत्म हो गए और केवल एक बचा तो वह हनुमान जी के चरणों में लोट गया. उसने हनुमान जी से प्राण रक्षा की याचना की. हनुमान जी पसीज गए. उन्होंने उसे क्षमा करते हुए एक काम सौंपा.

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हनुमान जी बोले- मैं तुम्हें प्राण दान देता हूं पर इस शर्त पर कि तुम यहां से तुरंत चले जाओगे और अहिरावण की पत्नी के पलंग की पाटी में घुसकर जल्दी से जल्दी उसे पूरी तरह खोखला बना दोगे.

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भंवरा तत्काल चित्रसेना के पलंग की पाटी में घुसने के लिए प्रस्थान कर गया. इधर अहिरावण और महिरावण को अपने चमत्कार के लुप्त होने से बहुत अचरज हुआ पर उन्होंने मायावी युद्ध जारी रखा.

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भ्रमरों को हनुमान जी ने समाप्त कर दिया फिर भी हनुमान जी और मकरध्वज के हाथों अहिरावण और महिरावण का अंत नहीं हो पा रहा था. यह देखकर हनुमान जी कुछ चिंतित हुए.

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फिर उन्हें कामाक्षी देवी का वचन याद आया. देवी ने बताया था कि अहिरावण की सिद्धि है कि जब पांचो दीपकों एक साथ बुझेंगे तभी वे नए-नए रूप धारण करने में असमर्थ होंगे और उनका वध हो सकेगा.

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हनुमान जी ने तत्काल पंचमुखी रूप धारण कर लिया. उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की ओर हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख.

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उसके बाद हनुमान जी ने अपने पांचों मुख द्वारा एक साथ पांचों दीपक बुझा दिए. अब उनके बार बार पैदा होने और लंबे समय तक जिंदा रहने की सारी आशंकायें समाप्त हो गयीं थी. हनुमान जी और मकरध्वज के हाथों शीघ्र ही दोनों राक्षस मारे गये.

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इसके बाद उन्होंने श्री राम और लक्ष्मण जी की मूर्च्छा दूर करने के उपाय किए. दोनो भाई होश में आ गए. चित्रसेना भी वहां आ गई थी. हनुमान जी ने कहा- प्रभो ! अब आप अहिरावण और महिरावण के छल और बंधन से मुक्त हुए.

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पर इसके लिए हमें इस नागकन्या की सहायता लेनी पड़ी थी. अहिरावण इसे बल पूर्वक उठा लाया था. वह आपसे विवाह करना चाहती है. कृपया उससे विवाह कर अपने साथ ले चलें. इससे उसे भी मुक्ति मिलेगी.

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श्री राम हनुमान जी की बात सुनकर चकराए. इससे पहले कि वह कुछ कह पाते हनुमान जी ने ही कह दिया- भगवन आप तो मुक्तिदाता हैं. अहिरावण को मारने का भेद इसी ने बताया है. इसके बिना हम उसे मारकर आपको बचाने में सफल न हो पाते.

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कृपा निधान इसे भी मुक्ति मिलनी चाहिए. परंतु आप चिंता न करें. हम सबका जीवन बचाने वाले के प्रति बस इतना कीजिए कि आप बस इस पलंग पर बैठिए बाकी का काम मैं संपन्न करवाता हूं.

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हनुमान जी इतनी तेजी से सारे कार्य करते जा रहे थे कि इससे श्री राम जी और लक्ष्मण जी दोनों चिंता में पड़ गये. वह कोई कदम उठाते कि तब तक हनुमान जी ने भगवान राम की बांह पकड़ ली.

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हनुमान जी ने भावा वेश में प्रभु श्री राम की बांह पकड़कर चित्रसेना के उस सजे-धजे विशाल पलंग पर बिठा दिया. श्री राम कुछ समझ पाते कि तभी पलंग की खोखली पाटी चरमरा कर टूट गयी.

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पलंग धराशायी हो गया. चित्रसेना भी जमीन पर आ गिरी. हनुमान जी हंस पड़े और फिर चित्रसेना से बोले- अब तुम्हारी शर्त तो पूरी हुई नहीं, इसलिए यह विवाह नहीं हो सकता. तुम मुक्त हो और हम तुम्हें तुम्हारे लोक भेजने का प्रबंध करते हैं.

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चित्रसेना समझ गयी कि उसके साथ छल हुआ है. उसने कहा कि उसके साथ छल हुआ है. मर्यादा पुरुषोत्तम के सेवक उनके सामने किसी के साथ छल करें यह तो बहुत अनुचित है. मैं हनुमान को श्राप दूंगी.

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चित्रसेना हनुमान जी को श्राप देने ही जा हे रही थी कि श्री राम का सम्मोहन भंग हुआ. वह इस पूरे नाटक को समझ गये. उन्होंने चित्रसेना को समझाया- मैंने एक पत्नी धर्म से बंधे होने का संकल्प लिया है. इस लिए हनुमान जी को यह करना पड़ा. उन्हें क्षमा कर दो.

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क्रुद्ध चित्रसेना तो उनसे विवाह की जिद पकड़े बैठी थी. श्री राम ने कहा- मैं जब द्वापर में श्री कृष्ण अवतार लूंगा तब तुम्हें सत्यभामा के रूप में अपनी पटरानी बनाउंगा. इससे वह मान गयी.

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हनुमान जी ने चित्रसेना को उसके पिता के पास पहुंचा दिया. चित्रसेना को प्रभु ने अगले जन्म में पत्नी बनाने का वरदान दिया था. भगवान विष्णु की पत्नी बनने की चाह में उसने स्वयं को अग्नि में भस्म कर लिया.

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श्री राम और लक्ष्मण, मकरध्वज और हनुमान जी सहित वापस लंका में सुवेल पर्वत पर लौट आये.


*प्रस्तुतिकरण*❤️🌹🙏🏽


शुक्रवार, 7 जून 2024

तारीफ की सजा??

 


❤️*राजा की प्रंशंसा*❤️


प्रस्तुति -:उषा रानी & राजेंद्र प्रसाद सिन्हा 



एक बार एक राजा के दरबार में एक कवि आया ! कवि  अत्यंत  गुणी और प्रतिभाशाली था ! परन्तु गरीब था और अपनी मज़बूरी ( गरीबी )  से निजात पाने का उसे कोइ मार्ग दिखाई नहीं दे रहा था !  अतः  विवश होकर  उसने अपने  इस  ईश्वर प्रदत्त  दिव्य गुण को  ईश्वर की महिमा गान की जगह एक राजा के दरबार में राजा की महिमा गान कर कुछ धन का लाभ पाने की योजना बनाई !  धन की आवश्यकता ने उसे शायद कुछ विवश कर रखा था  अतः राजा के दरबार में उसने अपनी रचनाओं को सुनाने की अनुमति मांगी जो उसे मिल गयी !

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राजा का संकेत मिलते ही कवि ने राजा की प्रशंसा में कविताएं सुनानी शुरू कर दीं. राजा खुश हो गया. फिर कवि का ध्यान राजसभा में उपस्थित महारानी की ओर गया.

.उसने सोचा अपने मिलने वाले पारितोषिक को सुनिश्चित कर लिया जाए ! अब उसने रानी की प्रशंसा में कविताएँ सुनानी शुरू कीं. रानी भी उसकी कविता से प्रभावित और प्रसन्न थीं.  इस प्रकार अपनी सुन्दर रचनाओं से  कवि ने राजा-रानी दोनों का दिल जीत लिया !

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राजा ने मंत्री से पूछा कि इस विद्वान कवि ने हमें प्रसन्न किया है. राजा इतना प्रसन्न था कि वह कवि को दरबार में जगह तक दे सकता था. पर उसने मंत्री से ही कवि के योग्य उचित ईनाम  के लिए परामर्श किया / पूछ लिया !

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 राजा को मंत्री की बुद्धिमता पर अटूट विश्वास था. उसके परामर्श के बिना निर्णय नहीं लेता था ! परन्तु मंत्री चुप था ! मंत्री एक बड़ा ही योग्य  व्यक्ति था !

 राजा ने दोबारा पूछा तो मंत्री ने अनमने मन से कहा- महाराज, इन्होंने आपको और महारानी को  अपनी रचना और मधुर गीत से प्रसन्न कर लिया है. आपको जो उचित लगे वह पुरस्कार इन्हें दें. इस विषय पर मेरा निर्णय शायद आपको रुचिकर ना लगे !

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यह सुनकर  राजा  की जिज्ञासा और मन  का कौतूहल बढ़ गया ! एक कवि को ईनाम देने की साधारण सी बात पर मंत्री ऐसी बात क्यों कह रहा है !  अवश्य ही  कुछ गहरी बात जरूर है !

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उसने घोषणा की  मंत्री  जी  जो पुरस्कार निर्धारित करेंगे वही पुरस्कार इस कवि को दे दिया जाएगा. कवि ने बड़ी आशा की दृष्टि से मंत्री की ओर देखा !  उसे  अफसोस हो रहा था कि यदि उसे मंत्री के इस प्रभाव का पता होता तो वह कुछ प्रशंसा उसकी भी कर देता. फिर भी यदि यह राजा जितना पुरस्कार नहीं भी देगा पर राजा के प्रशंसक को कुछ पारितोषिक  तो देगा ही !

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अभी वह इन ख्यालों में ही था कि मंत्री ने अचानक कहा- महाराज मेरा निर्णय है कि इस कवि को चार जूते लगाए जाएं.

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कवि पर तो बिजली गिर गई. राजा और रानी की प्रशंसा करने वाले को जूते पड़ेगें, यह सोच कर राजा, रानी समेत सभी दरबारियों की आंखें फटी की फटी रह गईं.

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राजा ने तो घोषणा कर दी थी. चाहकर भी निर्णय़ से पीछे हट नहीं सकते थे. कवि को पांच जूते लगा कर छोड दिया गया.

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कवि बहुत दुखी हुआ और  शाम को जब मंत्री अपने घर की ओर चला तो कवि भी पीछे-पीछे चल पडा !  मंत्री जी जब  घर पहुंचे  और अपनी पत्नी को राजसभा में हुई  सारी घटना पत्नी को बताने लगा और बोला कि मुझे बहुत दुख है एक विद्वान  अत्यंत गुणनि , प्रतिभाशाली और  जिस पर माता सरस्व ती की कृपा है उसके साथ यह सब करना पडा ! 

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पत्नी ने पूछा कि इसमें विवशता की क्या बात थी जो आपने एक योग्य कवि का अपमान किया ?

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मंत्री बोला- परमात्मा ने उस कवि को बहुत सुंदर बुद्धि और मधुर आवाज दी है. सरस्वती ने उसमें इतने गुण भर दिए हैं कि वह इस राज्य का सम्मानित मंत्री बनने के योग्य है  परन्तु उसने ईश्वर की महिमा गान , अपनी प्रतिभा  एवं कला  को और बढ़ाने की और ध्यान देने की जगह उसने एक राजा की चाटुकारिता को चुना !

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ऐसे राजा उसके सम्मान में अगवानी करें ऐसी प्रतिभा और कला से युक्त है वह गायक कवि. परंतु उसने अपना मोल ही नहीं समझा !

 आज वह एक राजा की चाटुकारिता कर रहा था ! यदि आज मैं उसे पुरस्कार दिला देता तो वह ज्यादा से ज्यादा पुरस्कार की आस में अपनी कला का प्रयोग सिर्फ राजा रानी की प्रशंसा करने में ही लगाता रहता ! इसके बाद जो राजा बनता फिर वह उसकी चाटुकारिता करता जीवन बिता देता ! उसकी  संताने फिर उस कार्य में लग जातीं और अपनी प्रतिभा एवं कला दोनों का शनैः शनैः अंत होना शुरू हो जाता !

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मंत्री ने पत्नी को कहा- मैं स्वयं कवि का प्रशंसक हूं इसलिए थोड़ा सा दण्डित  कर मैंने उसे कला एवं प्रतिभा के दुरूपयोग एवं अवनति से बचा लिया है !  पत्नी ने पूछा वो कैसे ?

      मंत्री ने बताया- कवि सबसे पहले ईश्वर की प्रशंसा करता है  साथ ही अपनी प्रतिभा को बढ़ाने , कला को निखारने में एकाग्रचित होता है ना की किसी की चाटुकारिता में ध्यान लगाता है ! इसने तो राजा को ही ईश्वर मान लिया. भगवान की प्रशंसा में तो एक शब्द न कहे और राजा-रानी के लिए गाता चला गया  तो मुझे लगा कि उसे इस अपराध की छोटी सी सजा देकर मुक्ति दी जाए !

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 अपनी चाटुकारिता से वह  स्वयं भी पथ्ब्रष्ट होता और  ऐसे राजा को भी  पथभ्रष्ट  कर सकता था / अहंकारी बना सकता था  ! 

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बाहर खडे कवि ने सुना तो रोने लगा ओर मंत्री के सामने आकर पैर पकड लिए. आज के बाद मैं सिर्फ  वही करूँगा जो मुझे अपनी कला को निखारने के लिए आवश्यक है और  ईश्वर की महिमा गाऊंगा. आपने बड़े अपराध से मुझे बचा लिया.




रविवार, 2 जून 2024

मजरूह सुल्तानपुरी के बारे में

 


मजरूह सुल्तानपुरी के बारे में 15 ख़ास बातें


1. नाम था असरार उल हसन खान. मगर दुनिया ने मजरूह सुल्तानपुरी के नाम से जाना.


2. पैदाइश की जगह, उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले का निजामाबाद गांव. यहां उनके अब्बा पुलिस महकमे में तैनात थे. पुरखों की असल जमीन सुल्तानपुर में थी. बहरहाल, पैदाइश की तारीख 1 अक्टूबर, 1919.


3. नौशाद से लेकर अनु मलिक और जतिन ललित, एआर रहमान और लेस्ली लेविस तक के साथ काम किया.


4. 1965 में फिल्म 'दोस्ती' के गाने 'चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे' के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड जीता.


5. 1993 में दादा साहब फाल्के अवॉर्ड से नवाजे गए.


6. बाप नहीं चाहते थे कि बेटा अंग्रेजी सीखे. इसलिए उन्हें मदरसे में भेज दिया गया. यहां उन्होंने अरबी और फारसी जबान सीखी. मजरूह के पिता पुलिस डिपार्टमेंट में काम किया करते थे.


7. आलिम बनने के बाद वह लखनऊ पहुंचे. यूनानी चिकित्सा पद्धति सीखने. फिर एक दिन इस असफल हकीम की किस्मत ने करवट ली. वह सुल्तानपुर के एक मुशायरे में अपनी गजल सुना बैठे. लोगों की दाद उन्हें इतनी सच्ची और हौसलाबख्श लगी कि उन्होंने तय कर लिया कि बहुत हुआ नाड़ी जांचने का काम.


8. उन्होंने मुशायरों में आमद बढ़ा दी. जिगर मुरादाबादी की शागिर्दी भी शुरू कर दी. 'मैं अकेला ही चला था जानिब ए मंजिल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया.' 


9. 1945 में मजरूह एक मुशायरे में शामिल होने के लिए बॉम्बे आए. उनकी गजलों और नज्मों को लोगों ने खूब पसंद किया. सुनने वालों में एक थे प्रॉड्यूसर एआर कारदार. मजरूह के बोल सुनकर कारदार पहुंच गए उनके गुरु जिगर मुरादाबादी के पास. सिफारिश के लिए. मगर मजरूह ने फिल्मों के लिए लिखने से इनकार कर दिया. अदबी तबके में उन दिनों इस तरह के काम को हल्का माना जाता था.


10. फिर जिगर ने समझाया. इसमें पैसा अच्छा है. परिवार को मदद हो जाएगी.


11. फिर कारदार मजरूह को नौशाद के पास ले गए. उन्होंने मजरूह को एक ट्यून सुनाई और कहा, इसके मीटर पर कुछ लिखो. मजरूह ने लिखा, 'जब उसने गेसू बिखराए, बादल आए झूम के.' नौशाद को ये लफ्ज पसंद आए और उन्हें फिल्म 'शाहजहां' के लिए बतौर गीतकार रख लिया गया. इसी में केएल सहगल ने गाया, 'जब दिल ही टूट गया'. सहगल चाहते थे कि उनकी आखिरी यात्रा में यही गाना बजे.

12. मजरूह का फिल्मी सफर शुरू हो गया. महबूब का अंदाज, शाहिद लतीफ की आरजू. पर तरक्कीपसंद खेमे के साथ उनका जुड़ाव उनके बागी तेवरों में नजर आया.

13. 1949 में उन्हें बलराज साहनी जैसे कई वामपंथियों के साथ जेल में डाल दिया गया. उनसे कहा गया कि माफी मांगो, वर्ना दो साल की जेल होगी. जेल में रहने के दौरान ही उनकी बड़ी बेटी हुई. परिवार पर आर्थिक संकट आ गया. तब राज कपूर ने मजरूह का लिखा 'दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई' खरीदा और परिवार को उस वक्त हजार रुपये दिए इसके ऐवज में.

14. पहले गीतकार थे, जिन्हें दादासाहब फाल्के मिला.


15. 24 मई, 2000 को उनका निधन हो गया. वजह बना न्यूमोनिया का अटैक. उस वक्त उनकी उम्र थी 80 बरस.


चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे, फिर भी कभी अब नाम को तेरे, दोस्ती फिल्म का ये गीत, जिसके लिए मजरूह को पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला.


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गणेश चतुर्थी / डॉ वेद मित्र शुक्ल,

गणेश चतुर्थी (विशेष:) ग़ज़ल         - डॉ वेद मित्र शुक्ल,            नई दिल्ली   सबसे पहले जिनकी पूजा हम करते, प्यारे गणेश, जन-गण-मन में गणप...