गुरुवार, 11 सितंबर 2025

हिंदी दिवस लेख श्रृंखला 2/3 अतुल प्रकाश

अतुल प्रकाश 


हिंदी निबंध श्रृंखला: हिंदी दिवस पखवाड़ा-२


*हिन्दी के सबसे विवादास्पद शब्द : नीच से गोदी मीडिया तक, शब्दों की समय-यात्रा-

अतुल प्रकाश*

शब्द सिर्फ़ आवाज़ नहीं, ये समय की परतें हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि जिन शब्दों को आप गाली समझते हैं, उनका जन्म किस अर्थ में हुआ था?

हम हिंदी के सबसे विवादास्पद और शक्तिशाली शब्दों की यात्रा पर निकलेंगे। हम जानेंगे कि कैसे 'नीच' एक सामाजिक वर्गीकरण से अपमानजनक गाली बन गया और कैसे 'हरामज़ादा' सिनेमाई इतिहास का हिस्सा बना। हम 'शूद्र' और 'यवन' जैसे प्राचीन शब्दों के बदलते अर्थों को समझेंगे और देखेंगे कि कैसे 'फिरंगी', 'गुलाम' और 'कुली' जैसे शब्द उपनिवेशवाद के प्रतीक बन गए।


आज के दौर के शब्दों, जैसे 'गोदी मीडिया' और 'अर्बन नक्सल' की उत्पत्ति और उनके पीछे छिपी राजनीति को भी समझेंगे। इसके साथ ही, हम 'कमीना', 'लफ़ंगा' और 'भड़वा' जैसे शब्दों की चौंकाने वाली व्युत्पत्ति को भी जानेंगे।

जब आप  भाषा की शक्ति, उसके बदलाव और हमारे जीवन पर उसके प्रभाव के बारे में सोचते हैं तो एक अजीब सा प्रश्न उठता है कि आखिर इन शब्दों की उत्पत्ति कैसे हुई होगी।

👉 चर्चा के मुख्य बिंदु :


*१. विवादित शब्दों की व्युत्पत्ति और इतिहास: 'नीच', 'हरामज़ादा', 'शूद्र', 'यवन'*

*२.उपनिवेशवाद का शब्दों पर प्रभाव: 'फिरंगी', 'गुलाम', 'कुली', 'नेटिव'*

*३. आधुनिक राजनीतिक शब्दों का विश्लेषण: 'गोदी मीडिया', 'अर्बन नक्सल'*

*४.आम बोलचाल की गालियों का मूल: 'गाली', 'भड़वा', 'कमीना', 'लफ़ंगा'*

शब्दों का अर्थ क्यों बदलता है? शब्द सिर्फ़ बोलते नहीं, वे हमारा इतिहास, हमारी सोच और हमारी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य भी तय करते हैं।


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अतुल प्रकाश


 हिंदी निबंध श्रृंखला: हिंदी दिवस पखवाड़ा -3


*दो भाषाओं के मिलावट से बने हिंदी के शब्द -अतुल प्रकाश*


*भाषा का मामला भी तो ‘बहता नीर’ ठहरा। बहने दीजिए, देखिए कहाँ जाकर रुकता है। ज़माना फ्यूज़न का है भाई, मिलावट कहाँ नहीं है!* 

हिंदी में बहुत से शब्द ऐसे भी हैं जो समझ-बूझकर आवश्यकतानुसार दो भाषाओं के मेल-मिलाप से बना लिए गए हैं और प्रचलित हैं। उदाहरण के लिए ‘डबलरोटी’, ‘रेलगाड़ी’ और ‘नौकर-चाकर’ जैसे शब्दों पर ध्यान दीजिए। शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा मिले जिसकी ज़ुबान पर ये शब्द न आए हों। हमारे रोज़मर्रा के व्यवहार में गहरे तक रचे-बसे हुए हैं ये। लेकिन, क्या कभी आपने ध्यान दिया कि इन शब्दों के मूल में आख़िर भाषा कौन सी है। ध्यान देंगे तो पता चलेगा कि अँग्रेज़ी के ‘डबल’ के साथ हिन्दी की ‘रोटी’, बड़े आराम से हजम की जाने लगी और अँग्रेज़ी की ‘रेल’ के साथ हिन्दी की ‘गाड़ी’ चल निकली। तुर्की के ‘नौकर’ के साथ फ़ारसी का ‘चाकर’ भी हिन्दी में बड़े आराम से गलबहियाँ करने लगा।


हिन्दी के साथ संस्कृत का गहरा नाता है, इसलिए इन दोनों भाषाओं के शब्द एक साथ सङ्गति बैठाते ज़्यादा दिखाई देंगे। ‘अणुबम’, ‘उपबोली’, ‘गुरुभाई’, ‘परमाणु बम’, ‘आवागमन’, ‘खेती-व्यवस्था’, ‘घर-द्वार’, ‘समझौता-प्रेमी’ जैसे शब्दों में ‘अणु’, ‘उप’, ‘गुरु’, ‘परमाणु’, ‘गमन’, ‘व्यवस्था’, ‘द्वार’, ‘प्रेमी’, संस्कृत के तत्सम शब्द हैं तो ‘बम’, ‘बोली’, ‘भाई’, ‘आवा’, ‘खेती’, ‘घर’, ‘समझौता’ जैसे शब्द हिन्दी के अपने हैं। 

इसके अलावा भाषा के विकास क्रम में समय-समय पर अँग्रेज़ी, फ़ारसी, अरबी और तुर्की बोलने वालों के साथ हिन्दीवालों का लेना-देना काफ़ी रहा है तो इन भाषाओं के मेल से शब्द निर्माण की भी एक प्रक्रिया निरन्तर चलती रही है। ‘खानापूरी’ और ‘पेशाबघर’ जैसे शब्द हम अकसर प्रयोग करते हैं। ‘खाना’ और ‘पेशाब’ फ़ारसी के हैं तो ‘पूरी’ और ‘घर’ हिन्दी के। इसी तरह ‘धन-दौलत’, ‘समझौता-परस्त’, ‘काम-धन्धा’, ‘गुलाब-जामुन’, ‘खेल-तमाशा’, ‘चोर-बाज़ार’, ‘दाना-पानी’, ‘बाल-बच्चे’, ‘तन-बदन’, ‘सीधा-सादा’ जैसे संयुक्त शब्दों में पूर्वार्ध हिन्दी है तो उत्तरार्ध फ़ारसी। अरबी के ‘अख़बार’, ‘किताब’ और ‘माल’ में हिन्दी के ‘वाला’, ‘घर’ और ‘गाड़ी’ मिले तो बन गए ‘अख़बारवाला’, ‘किताबघर’ और ‘मालगाड़ी’। ‘टिकटबाबू’, ‘पॉकेटमार’, ‘पार्सल-घर’, ‘पुलिसवाला’, ‘मोटरगाड़ी’, ‘ठलुआ-क्लब’ में हम आसानी से समझ सकते हैं कि ‘टिकट’, ‘पॉकेट’, ‘पार्सल’, ‘पुलिस’, ‘मोटर’ और ‘क्लब’ अँग्रेज़ी के हैं तो ‘बाबू’, ‘मार’, ‘घर’, ‘वाला’, ‘गाड़ी’, ‘ठलुआ’ हिन्दी के। संस्कृत और अँग्रेज़ी के मेल से भी हिन्दी के शब्द बने हैं। उदाहरण के लिए ‘अधिकारी-क्लब’, ‘क्रास-मुद्रा’ ‘प्रेस-सम्मेलन’, ‘प्रेस-वार्ता’ आदि। संस्कृत-फ़ारसी का मेल देखना हो तो ‘छायादार’, ‘विज्ञापनबाज़ी’, ‘गुलाब-वाटिका’, ‘मजदूर-संघ’ जैसे शब्दों पर गौर फ़रमाइए। ‘छाया’, ‘विज्ञापन’, ‘वाटिका’ और ‘सङ्घ’ संस्कृत के हैं तो ‘दार’, ‘बाज़ी’, ‘गुलाब’ और ‘मजदूर’ फ़ारसी के।


ऐसे ही तुर्की की ‘तोप’ में हिन्दी की ‘गाड़ी’ लगाकर ‘तोपगाड़ी’ चलाई गई। इस ‘तोप’ को संस्कृत के ‘सैनिक’ चलाते हैं तो ‘तोप सैनिक’ बन जाते हैं। ‘धन-दौलत’ में संस्कृत के ‘धन’ के साथ अरबी की ‘दौलत’ दिखाई देती है। संस्कृत के ‘विवाह’ में अरबी का ‘ख़र्च’ ‘विवाह-ख़र्च’ की व्यवस्था करता है। किसी ‘शक्कर मिल’ तक आप पहुँचें तो फ़ारसी की ‘शक्कर’ अँग्रेज़ी की ‘मिल’ में ही दिखाई देगी। ‘पॉकेट-ख़र्च’ का इन्तज़ाम अँग्रेज़ी और अरबी मिलकर करते हैं। ‘गोलची’ की कामयाबी भी अँग्रेज़ी के ‘गोल’ और तुर्की के ‘ची’ में है।



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