कुछ दिन पहले ही
हाशिमपुरा नरसंहार मामले में सभी अभियुक्त पुलिसकर्मियों को बरी किया गया
है. इस घटना के समय ग़ाज़ियाबाद के पुलिस अधीक्षक थे विभूति नारायण राय.
राय आज भी उस दिन को याद कर भावुक हो उठते हैं, जब वह घटनास्थल पर गए थे.प्रोविंशियल आर्म्ड कांस्टेबुलरी के जवान दंगे के मामले में छानबीन करने के लिए 22 मई 1987 को मेरठ के हाशिमपुरा इलाक़े में पंहुचे और 42 मुसलमानों को पूछताछ के लिए अपने साथ ले गए थे.
बाद में उन सभी लोगों की लाशें ग़ाज़ियाबाद ज़िले में मुरादनगर के पास गंग नहर में मिलीं. बीबीसी ने विभूति नारायण राय से विशेष बातचीत की.
पूरा इंटरव्यू सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें
विस्तार से पढ़ें
राय का मानना है कि अदालत का फ़ैसला दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन अप्रत्याशित नहीं.
इसकी वजह वो मानते हैं कि मामले की जांच कर रही सीबीसीआईडी पहले ही दिन से अभियुक्तों को बचाने की कोशिश कर रही है और उसकी दिलचस्पी दोषियों को सज़ा दिलवाने में नहीं, बल्कि अभियुक्तों को बचाने में है.
'अभियुक्तों को बचाने की कोशिश'
उन्हें सिर्फ़ एक दिन मिला और इतने कम समय मे ही जांच पूरी नहीं हो सकती थी.
'सही जांच नहीं'
राय कहते हैं कि उस समय उनकी प्राथमिकता ग़ाज़ियाबाद को दंगे से बचाने की थी और उसमें वह कामयाब हुए थे.
'मामले पर कोई गंभीर नहीं'
विभूति नारायण राय का मानना है कि केंद्र या राज्य की किसी सरकार ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया. उत्तर प्रदेश में सरकारें आईं, गईं, केंद्र में भी सत्ता कई बार बदली, पर किसी ने पूरी दिलचस्पी नहीं ली.उनका मानना है कि ऐसा हुआ तो अभी भी लोगों को न्याय मिल सकता है.
'न्याय मुमकिन'
दूसरी ओर, यह भी सच है कि यहां एक ऐसी प्रणाली काम कर रही है, जहां लंबे संघर्ष के बाद ही सही, लोगों को न्याय मिलता है.
यहां अल्पसंख्यकों को ऐसा न्याय मिलता है, जो धर्म पर बने किसी देश में नहीं मिल सकता.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)
गूगल के विज्ञापन
50% छूट - Women's Day
मनाये Craftsvilla के संग. सूट, साड़ी, लेहेंगा www.craftsvilla.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें