बुधवार, 20 मई 2020

साजन घर नहीं आए /सुरेन्द्र ग्रोस - मुंबई




बरसन  लागे  कारे  बदरवा।
मोरे  साजन  घर  नहीं आए।।

रात  अंधेरी  बिजुरी  चमके
मोरा रह रह  जीया  घबराए
मोरे साजन  घर  नहीं  आए।।

उन  बिन  रैना काटन  लागे
मोहे   कैसन  नींदिया  आए‌
मोरे  साजन  घर नहीं  आए।।

जागत   सारी  रतिया   बीती
 मैं   बैठी  रही   दीप  जलाए
मोरे  साजन  घर  नहीं  आए।।


जा  बदरा जा  उनसे कहियो
अब  और  ना   मोहे  सताये
मोरे  साजन  घर  नहीं  आए।।

बरसन  लागे   कारे   बदरवा
मोरे  साजन  घर  नहीं  आए।।


- सुरेन्द्र ग्रोस
मुंबई।।



।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

हिंदी दिवस लेख श्रृंखला 2/3 अतुल प्रकाश

अतुल प्रकाश  हिंदी निबंध श्रृंखला: हिंदी दिवस पखवाड़ा-२ *हिन्दी के सबसे विवादास्पद शब्द : नीच से गोदी मीडिया तक, शब्दों की समय-यात्रा- अतुल ...