(20.06.21).आज "अंतर्राष्ट्रीय पिता दिवस " है । हम सबों को थोड़ा रुक कर अपने अपने पिता को याद करने और उनके लिए कुछ करने की जरूरत है। आज की बदली परिस्थितियां और भागमभाग भरी जिंदगी ने सबों को बेचैन बना कर रख दिया है । इस बेचैनी ने लगभग सभी रिश्तो को तार-तार कर के रख दिया है ।
कहने को तो हम सब एक दूसरे के रिश्तेदार जरूर होते हैं, किंतु कितने लोग रिश्तों को निभा पाते हैं ? यह बड़ा सवाल है। चूंकि आज पिता दिवस है । हम सबों को पिता के अर्थ को समझने की जरूरत है । चाहे बहुत पढ़ा लिखा परिवार हो, कम पढ़ा लिखा परिवार हो अथवा बिल्कुल अनपढ़ परिवार हो, सब परिवारों के लोग अपने अपने स्तर से पिता के अर्थ को बखूबी समझते हैं। हर पिता पहले पुत्र ही होते हैं । पुत्र ही आगे चलकर एक पुत्री व पुत्र के पिता बनते हैं। माता के बाद अगर एक बच्चा का सबसे अधिक झुकाव किसी से होता है, वह है पिता। पिता को हम सब चाहे जिन नामों से भी पुकारे, पिता बस पिता होते हैं।
हर परेशानियों में बच्चों के संग पूरी मजबूती के साथ खड़े होते हैं । परिवार की जरूरतों को पूरा करने में दिन-रात मेहनत करने में कोई कसर नहीं उठाते हैं। पिता परिवार के स्तंभ होते हैं ।बच्चों की खुशहाली ही एक पिता के लिए सबसे बड़ी दौलत होती है। घर गृहस्थी चलाना कोई आसान काम नहीं होता । बच्चे अगर यह समझते हैं कि यह सब तो एक पिता की जवाबदेही है, बच्चों का यह सोचना कोई गलत बात नहीं है। इस जवाबदेही में महत्वपूर्ण बात यह है कि एक पिता को इस दायित्व को पूरा करने में अनगिनत परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हर परिवार की अपनी अपनी परेशानी होती है। यह परेशानियां देखने में मामूली जरूर लगती है , किंतु इन परेशानियों से एक पिता ही जूझता है। यह परेशानियां सिर्फ 1 दिन के लिए नहीं होती है, बल्कि हर दिन एक नई चुनौती के रूप में सामने खड़ी होती है।
एक नौकरी पेशा पिता को अगर समय पर वेतन नहीं मिला तो हर क्षण उसकी परेशानियां बढ़ती चली जाती है । घर के लिए राशन की व्यवस्था करना । मकान मालिक को किराया देना। बच्चों का स्कूल का फीस आदि के लिए एक पिता को अनगिनत परेशानियों का सामना करना पड़ता है । इन तमाम परेशानियों के बीच रहते हुए एक पिता लगातार संघर्ष करता है ।जूझता है । और परेशानियों को परास्त कर ही दम लेता है । यह सब पिता बिल्कुल सहजता के साथ करता है । कभी घबराता नहीं है। इन परेशानियों को कभी बोझ समझता नहीं है ,बल्कि दायित्व समझता है । घर के बच्चे अगर बीमार पड़ जाते हैं तो पिता बच्चे को ठीक कराने के लिए दिन-रात लगा देंतें हैं। इस कार्य में उन्हें अपने बॉस अथवा मालिक से डांट भी सुननी पड़ती है , परंतु इस डांट फटकार को भी सहजता से सुन लेते हैं। एक पिता अपने परिवार को खुशहाल रखने का हर संभव कोशिश करता है । उनमें जितनी क्षमता होती है परिवार की खुशहाली के लिए लगा देता है।
हम सब चाहे जिस उम्र में क्यों न पहुंच जाए । अगर पिता का साथ बना रहता है तो अंदर में एक अजब शक्ति का अनुभव होता है। पिता की उपस्थिति हर उम्र में एक पुत्र को संबल प्रदान करता है। एक पुत्र को लगता है कि मुझ पर पिता का साया बरकरार है। अगर कोई मुसीबत आएगी तो उससे मुकाबला करने के लिए पिता का साया तो है । बचपन के दिनों में जब हम सब बिल्कुल छोटे थे । माता पिता की गोद में थे। हमें देखते ही माता पिता के चेहरे पर एक अजब खुशी प्रगट हो जाया करती थी। माता तो दिन भर साथ होती थी । पिता जब रात में घर वापस लौटते तो हम बच्चों के लिए कुछ न कुछ लाना न भूलते । सबसे पहले हम बच्चों को लाए हुए सामान देते। समान लेकर हम बच्चे उसी में मशगूल हो जाते। हमें सामानों के साथ खेलते और खाते देख दिन भर का उनका थकापन और भूख प्यास मिट जाता है।
आज जब हम पिता की भूमिका में आ चुके हैं । हम भी वही कर रहे हैं, जो एक जमाना में हमारे पिता कर रहे होते थे । बस जरूरत है उस पल को याद करने की। जरूरत है , अपने पिता को याद करने की , उनका खिदमत करने की ।हम सबों को विचार करना है कि वे कहीं हमारी नई गृहस्थी से दूर तो नहीं हो गए हैं ? अगर हम नौकरी पेशा में कहीं बाहर है, तो पिता से फोन कर कितनी बार हालचाल पूछते हैं ? पिता से मिले कितने दिन हो गए ? जिस तरह से हम अपने बच्चों को देखकर खुश होते हैं , हमारे पिता भी हमें देख कर खुश होते हैं।
इस भागमभाग भरी जिंदगी में पुराने रिश्ते टूटते चले जाते हैं । नए रिश्ते के अंतर्गत एक युवा पति पत्नी और बच्चों को एक साथ एक घर में रहने में कोई दिक्कत नहीं होती है । इस नए घर में माता पिता को ही रहने में सबों को दिक्कत होती है, ऐसा क्यों ? क्या माता-पिता बोझ है ? इस सवाल पर समाज के हर पुत्र को विचार करने की जरूरत है । आज के दिन यह भी विचार करने की जरूरत है कि हमारा अस्तित्व पिता के कारण ही निर्मित हुआ है । अगर पिता न होते तो हमारा अस्तित्व भी न होता । हम हैं तभी हमारे पुत्र पुत्री का अस्तित्व है । आज हम अपने बच्चों को बड़ा करने में कोई कसर नहीं उठाते हैं । हमारे पिता भी हमें बड़ा करने में कोई कोर कसर नहीं उठाए होंगे।
आज की नई पीढ़ी को यह बात अच्छी तरह समझ लेना की जरूरत है कि पिता की उपस्थिति में ही घर में एक अनुशासन और पारिवारि में संस्कार बना रहता है । घर के सभी छोटे बड़े मिलजुल कर एक दूसरे को सहयोग प्रदान करते हैं। जो युवा पति पत्नी अपने माता पिता को भूलकर स्वतंत्र रूप से रहते हैं, उनके बच्चों में वैसा संस्कार नहीं बन पाता है , जैसा कि जिन घरों में दादा-दादी साथ होते हैं।
आजाद जीवन शैली से सबसे अधिक तनाव पनपते हैं। और उनके बच्चों का स्वभाव भी चिड़चिड़ापन हो जाता है। आजादी का कतई यह अर्थ लगाया जाना नहीं चाहिए कि हम सब अपने माता पिता को ही भूल जाए । हर पुत्र के लिए पिता बोझ नहीं बल्कि दायित्व है। देश के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिता जीवित नहीं है ।वेे प्रधानमंत्री की ऊंची कुर्सी पर आसीन है। इसके बावजूद भी मां से मिलने और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते हैं । जब मोदी जी अपनी मां से मिलते होंगे , मां उसे गले लगाती होंगी , दोनों को कितनी खुशी मिलती होगी । जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है । एक समय पिता आपकी ताकत थी, आज आप पिता की ताकत बने।
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