संजय सिन्हा-
आप किसी से अपने बारे में कुछ कहने को कह दीजिए तो उन्हें सांप सूंघ जाएगा। लेकिन दूसरों के बारे में वो कुछ भी कह सकते हैं। दूसरों के बारे में वो अपने से अधिक जानते हैं। कमाल है।
कल पटना में मेरी मुलाकात रवीश से हो गई। रवीश कुमार पत्रकार हैं और उनसे मेरा मिलना कोई महान खगोलीय घटना नहीं है। हम दोनों एक ही धंधे के हैं। एक ही शहर में रहते हैं। एक ही संस्थान से पढ़ कर निकले हैं। हमारा मिलना और नहीं मिलना क्या बड़ी बात है? रवीश की अपनी पहचान है। मेरी अपनी। रवीश की पहचान मेरी तुलना में कई गुना अधिक है। मैंने तो जो थोड़ी बहुत पहचान बनाई, वो टीवी से अधिक फेसबुक से बनी। लेकिन रवीश को लोग हार्डकोर जर्नलिस्ट के रूप में जानते हैं। मैं हमेशा पर्दे के पीछे रहा, सिवाय तेज़ चैलन के अपने कार्यकाल में कहानी वाले संजय सिन्हा के रुप में जाने जाने के।
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