सोमवार, 2 अप्रैल 2012

अपनी बात/ दूसरों के शब्द /asb




Saturday, March 31, 2012


न शिकायत है, न ही रोए!..................प्रेमजी



ये उम्र तान करके सोए हैं,
थकान पांव-भर जो ढोए हैं।

किसी सड़क पे नहीं मिलती है,
सुबह जो गर्द में ये बोए हैं।

लोग कहते हैं कारवां चुप है,
सराय धुंध में समोए हैं।

नाव कब तक संभालते मोहसिम,
पहाड़ भी जहां डुबोए हैं।

रहन की छत है, ब्याज का बिस्तर,
न शिकायत है, न ही रोए हैं।

फफोले प्यार के निकल आए,
न जाने जिस्म कहां धोए हैं।

न कोई खौफ है अंधेरों से,
न कोई रोशनी संजोए है।

एक मुर्दा शहर-सा मौसम है,
एक मुर्दे की तरह सोए हैं।

ये कहानी कहीं छपे न छपे,
कलम की नोक हम भिगोए हैं।
- प्रेमजी

आँखें तरस रहीं हैं दीदार को उनके.........कुसुम सिन्हा

हवाओं में ऐसी ख़ुशबू पहले कभी न थी
ये चाल बहकी बहकी पहले कभी न थी

ज़ुल्फ़ ने खुलके उसका चेहरा छुपा लिया
घटा आसमा पे ऐसी पहले कभी न थी

आँखें तरस रहीं हैं दीदार को उनके
दिल में तो ऐसी बेबसी पहले कभी न थी

फूलों पे रख दिए हैं शबनम ने कैसे मोती
फूलों पे ऐसी रौनक पहले कभी न थी

यादों की दस्तकों ने दरे दिल को खटखटाया
आती थी याद पहले पर ऐसी कभी न थी...............
--------कुसुम सिन्हा

Monday, March 26, 2012


कांपते लब , आँख नम , कहा मुस्कुराकर 'अलविदा' ........सचिन अग्रवाल 'तन्हा'

तजरुबा जो ज़िन्दगी का याद था वो लिख दिया
ज़ेहन ओ दिल में कुछ जमा 'अवसाद' था वो लिख दिया ..........

कांपते लब , आँख नम , कहा मुस्कुराकर 'अलविदा'
एक लम्हा जो बहुत बर्बाद था वो लिख दिया..........

कागजों पर कैसे कोई ज़िन्दगी लिखता भला
हाँ मगर जो कुछ तुम्हारे बाद था वो लिख दिया ..............

कम नज़र आती है अब पत्थर उठाने की उम्मीद
सीने में थोडा बहुत 'फौलाद' था , वो लिख दिया ......................

----------सचिन अग्रवाल 'तन्हा'


Friday, March 23, 2012


वो स्पर्श तुम छोड़ जाओगी..........रंजन मिश्र

क्या तुम मुझे भूल जाओगी ?
मैं वर्षो से नहीं मिला तुमसे ,
ना ही सालो से बात की ,
तो क्या तुम मुझे भूल जाओगी ?
वो नदी किनारे की रात ,
तेरे हाथो में मेरा हाथ ,
वो स्पर्श तुम छोड़ जाओगी ,
तो क्या तुम मुझे भूल जाओगी ?
ऐ हमसफ़र ! मैं तेरा साथ न दे पाया ,
तेरे आंचल को थाम न पाया , उन नजरो का जादू तोड़ जाओगी ,
तो क्या तुम मुझे भूल जाओगी ?
तेरी गली नहीं गया ,
तेरी यादो को वही छोड़ आया ,
तो तुम रिश्ता तोड़ जाओगी ,
क्या तुम मुझे भूल जाओगी ?
वो दरवाजा जो वापसी का था ,
मैं उस पर ताला जड़ आया ,
तो तुम मुझसे मुंह मोड़ लोगी ,
क्या तुम मुझे भूल जाओगी ?
----- रंजन मिश्र

Tuesday, March 20, 2012


इश्क़ में इल्ज़ाम उठाने ज़रूरी हैं............हेमज्योत्सना 'दीप'

सफ़र के बाद अफ़साने ज़रूरी हैं
ना भूल पाए वो दीवाने ज़रूरी हैं

जिन आँखों में हँसी का धोखा हो
उनके मोती चुराने ज़रूरी हैं

माना के तबाह किया उसने मुझे,
मगर रिश्ते निभाने ज़रूरी हैं

ज़ख़्म दिल के नासूर ना बन जाए
मरहम इन पर लगाने ज़रूरी हैं

माना वो ज़िंदगी हैं मेरी लेकिन,
पर दूर रहने के बहाने ज़रूरी हैं

इश्क़ बंदगी भी हो जाए, कम हैं,
इश्क़ में इल्ज़ाम उठाने ज़रूरी हैं

महफ़िल में रंग ज़माने के लिए,
दर्द के गीत गुनगुनाने ज़रूरी है

रात रोशन हुई जिनसे सारी,
सुबह वो 'दीप' बुझाने ज़रूरी हैं।
--------हेमज्योत्सना 'दीप'

Sunday, February 19, 2012


हो गई कस्तूरी सांसें........................उर्मिला जैन 'प्रिया'

स्नेह के पंखो पर सवार
फूलों की रेशमी छुवन लिये
महकती महकाती
छोटी छोटी रातें.

फूलों की वासंती बहार
सहेजे कितना प्यार
मन को दुलराती
छोटी छोटी सौगातें.

हरित भूमि पर
दूब थी मखमली
मरुस्थल में फुहारें
तुम्हारे नेह की बातें.

सतरंगी तूलिका,गोधूलि बेला
ऑंखों में भर कर चाहत के रंग
देह बन गई चंदन
हो गई कस्तूरी सांसें.


-----उर्मिला जैन 'प्रिया'

Thursday, February 16, 2012


धूप में भीगा मन शब्दों के अर्थ - अनर्थ करे....................विजय वाते

हरे कच्चे इस वन में खोया है पांखी
अनायास ही सोये मन में झांका है पांखी

नीले नीले प्रेमगीत के मुखड़े जैसा है
नभ का टुकड़ा है ये सुख की वर्षा है पांखी

जाने कौन दिशा से आया जाएगा किस ओर
मंद पवन की फुगड़ी है ये गरबा है पांखी

घर सारे वर्षा मे भीगे, देह धर्म भीगे
अपने पंखों के कौतुक में डूबा है पांखी

धूप में भीगा मन शब्दों के अर्थ - अनर्थ करे
भरे गले की देहरी में यूँ अटका है पांखी...
-------विजय वाते
प्रस्तुतिकरणः श्याम सुन्दर सारस्वत

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जरा गांव में कुछ दिन ( या घर लौटकर ) तो देखो 😄😄

 गांव का मनोरंजन  डेढ़ महीना गांव में ठहर जाओ,तो गाँववाले बतियाएंगे "लगता है इसका नौकरी चला गया है सुबह दौड़ने निकल जाओ तो फुसफुसाएंगे ...