स्वामी सहजानंद सरस्वती विचार मंच द्वारा प्रकाशित पत्रिका
विश्वविद्यालय के संचार एवं मीडिया अध्ययन केन्द्र की छात्रा गुंजन राय और ऋतु राय ने स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय को सहजानंद का भारत नामक कृषि पत्रिका की प्रवेशांक सहित दो प्रतियां सौंपी। इस पत्रिका का प्रकाशन स्वामी सहजानंद सरस्वती विचार मंच द्वारा हुआ
है। इन पत्रिकाओं में किसानों की ज्वलंत समस्याओं से संबंधित आलेख संग्रहीत हैं।
रामकुमार वर्मा की प्रथम प्रकाशित काव्य कृति
'गांधी गान' संग्रह में डा. राम कुमार वर्मा की कविताएं पहली बार एक साथ
संकलित हो कर सामने आई थीं। 1922 में छपी इस काव्य पुस्तिका में दो और
तत्कालीन युवा
कवियों 'मिलाप' और 'निर्बल' की कविताएं भी संकलित हैं।
तीन कवियों का यह संग्रह समस्यापूर्ति की रचनाओं से बनाई गई है।
पुस्तक की पृष्ठभूमि यह है कि साहित्य प्रचारक कार्यालय के स्वामी नाथूराम रेजा नें गांधी जी पर 'विश्व मोह लीनो है' पंक्ति पर समस्यापूर्ति करने को कहा। 'कुमार' (रामकुमार वर्मा), 'मिलाप तथा निर्बल' की रचनाएं उन्हें पसंद आई और गांधी नामक पुस्तिका सामने आई। राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े साहित्य की परंपरा में इस पुस्तिका का निश्चित ही ऐतिहासिक योगदान माना जाएगा।
रामकुमार वर्मा का प्रथम प्रकाशित ‘गल्प’
डॉ. रामकुमार वर्मा का प्रथम गल्प संग्रह सुखद सम्मिलन शीर्षक से है जो
सन् 1922 में प्रकाशित हुआ। इस पुस्तक में लेखक का नाम साहित्य रत्नाकर
रामकुमार लाल वर्मा है। सुखद सम्मिलन के अंतर्गत प्रथम दर्शन से लेकर नवम
दर्शन तक 9 गल्प हैं। भावनात्मक गद्य वाले इन गल्पों में स्वाधीनता आंदोलन
की अनुगूंजें हैं। राष्ट्रीय आंदोलन से जुडे़ साहित्यक दृष्टि से वर्मा जी
की यह अत्यंत महत्वपूर्ण कृति है। साहित्येतिहास में अब तक इसका उल्लेषख
नहीं हुआ था।
संग्रहालय को मिलीं डॉ. नगेन्द्र की
यादगार तस्वीरें और लेखकों की चित्रावली
आधुनिक हिंदी आलोचना को समृद्ध करने में डॉ. नगेन्द्र का महत्वपूर्ण
योगदान रहा है। दो साल बाद उनकी जन्मशती मनाई जानेवाली है। अनेक संस्थान
उनकी जन्मशती
से संबंधित कार्यक्रम की योजना बनाने में लगे हैं। ऐसे में हिंदी
विश्वविद्यालय के स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय को डॉ. नगेन्द्र की
दुर्लभ तस्वीरें
प्राप्त होना एक उपलब्धि है।
यादगार तस्वीरें और लेखकों की चित्रावली
डॉ. नगेन्द्र की बड़ी पुत्री डॉ. सुषमा प्रियदर्शिनी ने ये यादगार तस्वीरें महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति श्री विभूति नारायण राय को स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय के लिए भिजवाई हैं। इन चित्रों द्वारा डॉ. नगेन्द्र के जीवन से जुड़े अनेक यादगार प्रसंगों की जानकारी मिलती है। निकट के साहित्यिक अतीत की जीवंत झलक भी इन तस्वीरों में है। व्यक्तिगत चित्रों के अलावा उनके समकालीन चर्चित व्यक्तियों के चित्र इस सामग्री को ऐतिहासिक महत्व प्रदान करते हैं।
डॉ. सुषमा प्रियदर्शिनी ने अपने पिता डॉ. नगेन्द्र के चित्रों के साथ एक चित्रावली भी भेजी है। इसमें हिंदी के मूर्धन्य लेखकों के चित्र और उनका परिचय है। इसका संपादन डॉ. नगेन्द्र ने 1969 में किया था। चित्रावली राधा कृष्ण प्रकाशन से छपी थी।
डॉ. रामकुमार वर्मा के पुस्तकालय से मिली दुर्लभ पुस्तकें
प्रख्यात साहित्यकार डॉ. रामकुमार वर्मा की महत्वपूर्ण सामग्री दिनांक
28/12/2012 को प्राप्त हुई। डॉ. वर्मा द्वारा अपने निजी पुस्तकालय में
सहेजकर रखे गये
प्राचीन प्रकाशन (1805-1929) तथा दुर्लभ एवं प्राचीन पांडुलिपियों
(1712-1827) को उनकी सुपुत्री प्रो. राजलक्ष्मी ने माननीय कुलपति विभूति
नारायण राय को
स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय के लिए सौंपी।
प्राचीन प्रकाशनों में प्रमुखत: गोस्वामी तुलसीदास कृत हनुमानबाहुक, टीकासहित विनयपत्रिका, आचार्य चाणक्य प्रणीत सत् राजनीतौ----
सुमित्रानंदन पंत
भारतीय ज्ञानपीठ और साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त कवि सुमित्रानंदन
पंत का जन्म कौसानी में 20 मई 1900 को हुआ था। उनकी प्रकाशित मुख्य
कृतियों में 'कला
और बूढ़ा चाँद', 'चिदम्बरा', 'उत्तरा', 'स्वर्णधूलि', 'ग्राम्या'
इत्यादि हैं। 28 दिसंबर 2012 को उनकी पैंतीसवी पुण्यतिथि है। इस बार
यहाँ उनकी हस्तलिपि
में क्रमश: वर्ष 1932 और 1939 में लिखी दो कविताएँ प्रस्तुत की जा रही
हैं।
रघुवीर सहाय
इस बार अलग तेवर की कविताएँ लिखने वाले रघुवीर सहाय की प्रसिद्ध कविता 'स्वाधीन कवि'
उन्हीं की हस्तलिपि में प्रस्तुत की जा रही है।
संग्रहालय में अब महात्मा गांधी और महावीर प्रसाद द्विवेदी के भी पत्र
स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय की नई उपलब्धि है महात्मा गांधी का
एक पत्र जो उन्होंने प्रेमचंद युग के प्रमुख व्यंग्य लेखक
अन्नपूर्णानन्द को लिखा
था। हमें जयप्रकाश नारायण का पत्र भी मिला है। इसके अलावा विभिन्न लेखकों
द्वारा अन्नपूर्णानन्द को लिखे दर्जनो पत्र प्राप्त हुए हैं। जिन
लेखकों के पत्र
मिले हैं, उनके नाम हैं: अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध, मैथिलीशरण
गुप्त, महादेवी वर्मा, रायकृष्ण दास, भगवती चरण वर्मा, पद्मसिंह शर्मा,
रूपनारायण पांडेय,
जी. पी. श्रीवास्तव, ज्वालादत्त शर्मा, रामप्रसाद त्रिपाठी तथा अवध
उपाध्याय आदि।
अन्नपूर्णानन्द के परिवार के श्री अनिरूद्ध कुमार हैकरवाल (आई.ए. एस. से.नि.) ने महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति श्री विभूति नारायण राय को संग्रहालय के लिए ये पत्र सौंपे हैं।
अन्नपूर्णानन्द (1895-1962) संपूर्णानन्द के भाई थे। उन्होंने प्रेमचंद युग तथा उसके बाद के दौर में श्रेष्ठ व्यंग्य लिखे। उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं: महाकवि चच्चा, मगनु रहु चोला, मंगल मोद, मेरी हजामत, मिसिर जी तथा मन-मयूर।
अपने पत्र में गांधी जी ने वादा किया है कि अन्नपूर्णानन्द जी ने जो किताब उन्हें भेजी है, वे उसे पढ़ने का प्रयास करेंगे। गांधी जी ने अन्नपूर्णानन्द के बड़े भाई संपूर्णानन्द का हालचाल भी पूछा है। यह पत्र 26 जून 1941 को सेवाग्राम से लिखा गया है। पोस्ट कार्ड पर गांधी जी ने स्वयं ' ही 'पता' लिखा है। पत्र हू-ब-हू इस प्रकार है:
सेवाग्राम
वर्धा हो कर (मध्य प्रांत)
भाई अन्नपूर्णानन्द जी
आपने (की) भेजी हुई किताब मिल गई है. संपूर्णानन्द जी को लिखना कि मैं किताब पढ़ने की कोशिश करुंगा. उनका स्वास्थ्य अच्छा होगा. आशा है कि शिवप्रसाद जी अच्छे होंगे.
आपका
मो. क. गांधी
पता :
श्री अन्नपूर्णानन्द
सेवा उपवन, नगवा
Banares
U.P.
मनोहर श्याम जोशी की कविताएँ
सैंतालीस साल की उम्र तक कविताएँ और कहानियाँ लिखते रहने के बावजूद मनोहर
श्याम जोशी केवल पत्रकार की तरह ही पहचाने गए। वर्ष 1981 में उनका 'पहला
उपन्यास
'कुरू-कुरू स्वाहा' छपा। भारतीय टेलीविजन के पहले सोप-आपेरा 'हम लोग' के
लेखक के रूप में उनका नाम अमर हो गया। बाद में उन्होंने 'बुनियाद' और
'मुंगेरीलाल
के हसीन सपने' धारावाहिक भी लिखे। उनकी ख्याति मूलत: गद्य लेखक के रूप
में रही है। उन्होंने एक बार कहा था कि यदि जानने की जिद हो कि मुझे लेखक
किसने
बनाया तो शायद सबसे अधिक सच्चा जवाब यह होगा- अभावों ने। मैंने सदा
निसंकोच स्वीकार किया है कि मुझे कलम पकड़ना अमृतलाल नागर ने सिखाया और
अतिरिक्त
दीक्षा अज्ञेय से मिली।
उनके लेखन की शुरूआत कविताओं से हुई थी। इस मर्तबा उनकी हस्तलिपि में वर्ष 1952 में लिखी कुछ कविताएँ प्रस्तुत हैं।
जन्म:9 अगस्त 1933 - निधन 30 मार्च 2006
इस बार शैलेश मटियानी
शैलेश मटियानी की पांडुलिपियों से यहाँ उनके संस्मरण का एक पृष्ठ
प्रस्तुत है। इस संस्मरण में उन्होंने अपने मुंबई में बिताए जीवन को याद
किया है।
शैलेश मटियानी
14 अक्टूबर 1931 - 24 अप्रैल 2001
डॉ. रामकुमार वर्मा की पांडुलिपियों, पत्रों और निजी वस्तुओं से
समृद्ध हुआ
संग्रहालयtrong>
पिछले दिनों स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय में कवि, नाटककार और
समीक्षक डॉ. रामकुमार वर्मा की पांडुलिपियां, अन्य साहित्यकारों के
उन्हें मिले पत्र
और उनके निजी उपयोग में आने वाली सामग्री संग्रहालय को प्राप्त हुई। यह
सब सामग्री उनकी बेटी डॉ. राजलक्ष्मी वर्मा के सौजन्य से प्राप्त हुई।
इन्हीं में
से चार पत्र यहाँ प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
श्री भगवतीशरण वर्मा का पत्र (वर्ष 1955)
श्री हरिवंश राय बच्चन का पत्र
श्री सुमित्रानन्दन पंत का पत्र
महादेवी वर्मा का पत्र (वर्ष 1966)
शमशेर बहादुर सिंह
स्मृति चयन
स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय में शमशेर बहादुर सिंह की प्रकाशित,
अप्रकाशित पांडुलिपियों, उन्हें मिले पत्रों, उनकी डायरीयों और उनके बनाए
चित्रों
में से यह 'स्मृति चयन' प्रस्तुत किया जा रहा है। किसी भी लेखक की
रचना-प्रक्रिया को उसके लिखे साहित्य के अध्ययन से जाना जा सकता है। इस
'स्मृति-चयन'
में हमारा प्रयास रहेगा कि हम उनकी डायरियों से भी ऐसे कुछ पृष्ठ यहाँ
साझा करें जिसमें एक लेखक की जीवन-प्रक्रिया को समझने में थोडी मदद मिल
सकें।
एक डायरी में शमशेर ने किसी भूल पर लिखी अपनी स्वीकृति
शमशेर की अप्रकाशित कविता का अंश
वर्ष 1959 में लिखी शमशेर की एक कविता
वर्ष 1974 की डायरी का एक पृष्ठ
वर्ष 1974 की डायरी का एक पृष्ठ
शमशेर की हिंदी और उर्दू की लिखावट
संग्रहालय में चर्चित साहित्यिक पत्रिकाओं के ऐतिहासिक प्रवेशांक
हिंदी की प्रसिद्ध पत्रिकाओं के प्रवेशांक की उपलब्धता संग्रहालय का एक विशेष आकर्षण है। हिंदी की विभिन्न विधाओं के विकास में पत्रिकाओं का ऐतिहासिक योगदान रहा है। हिंदी में आम तौर पर चर्चित पत्रिकाएं साहित्यिक समय में हो रहे परिवर्तन को दर्ज करने के लिए निकली हैं। 1880 में निकले 'उचितवक्ता' से अब तक प्रकाशित 116 महत्वपूर्ण पत्रिकाओं के प्रवेशांक संग्रहालय में उपलब्ध हैं। उनके आधार पर तत्कालीन समय की वैचारिक हलचल और परिवर्तन को आसानी से रेखांकित किया जा सकता है। शोध और सोच को नई दिशा मिल सकती है। जिन पत्रिकाओं के प्रवेशांक हमारे पास उपलब्ध हैं, उन में से कुछ प्रमुख हैं: 'कल्पना, प्रतीक, आलोचना, नयी कविता, साहित्यकार, कलम, वाम, वर्तमान साहित्य, पक्षधर, प्रारंभ, वसुधा, उत्तर शती, नटरंग, नांदी, प्रतिबद्ध कविता, इतिहास बोध, अतएव, वागर्थ, हंस, कथादेश, कथा दशक, प्रतिमान, कबीर, मंच, संकेत, अभिमंच, इतिहास बोध, साखी, आयाम, दृष्टिकोण, अभिधा, सार्थक, पुरुष, नई कहानी, कदम, विकल्प, समवेत, आवर्त, अलाव, शिखर, प्रयोजन समारंभ, अभिप्राय, युवा, प्रस्ताव, प्रारूप, लेकिन, लोकदस्ता, तथा समकालीन सृजन।
'संग्रहालय देता है इतिहास की सही समझ'
-- विभूति नारायण राय, कुलपति
विश्व संग्रहालय दिवस (18 मई) के मौके पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय
हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय ने कहा है कि अगर हम
संग्रहालय
परंपरा का विस्तार करें तो हमें अपने जन पक्षधर इतिहास को समझने में मदद
मिलेगी। इससे धार्मिक कट्टरताओं और असहिष्णुताओं के विरुद्ध एक सार्थक
हस्तक्षेप हो
सकेगा। संग्रहालय की शक्ति की वजह से ही पश्चिम में संग्रहालयों की मजबूत
परंपरा है। निश्चय ही उनके समाज को इसका लाभ भी मिला है।
-- विभूति नारायण राय, कुलपति
श्री राय ने बताया कि वे इन्हीं उद्देश्यों को सामने रख कर संग्रहालय की संस्कृति का विस्तार करना चाहते हैं। हिंदी विश्वविद्यालय में स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय का निर्माण करके उन्होंने इस दिशा में एक रचनात्मक कदम उठाया है। उन्होंने कहा कि 12 वीं पंचवर्षीय योजना में स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय के लिए 10 करोड़ से अधिक का भवन प्रस्तावित है।
स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय का विस्तृत स्वरूप कैसा होगा ?
इस भवन में कई गैलरियां होंगी। स्वाभाविक है कि हिंदी भाषा और साहित्य से जुड़ी स्मृतियों को तो इस संग्रहालय में महत्वपूर्ण स्थान मिलेगा ही, लेकिन रचनाशीलता और अभिव्यक्ति की अन्य विधाओं की परंपरा को भी हम संग्रहालय में भरपूर जगह देंगे। चित्रकला, मूर्तिकला और फिल्म से संबंधित ऐतिहासिक सामग्री का संकलन हमारी योजना में है। मानव शास्त्र से संबंधित सामग्री का विशाल संग्रह भी हमारा लक्ष्य है। आदिवासी जीवन से संबंधित सामग्री शोध और व्याख्या के लिए यहां उपलब्ध होगी।
-
एक विशाल संग्रहालय विकसित करने का संकल्प आपने कैसे लिया ?
हिंदी समाज अपनी थाती को लेकर बहुत गंभीर नहीं रहा है। हिंदी के अपने बड़े लेखकों प्रेमचंद, निराला, मुक्तिबोध और फणीश्वरनाथ रेणु का ही उदाहरण लें। इनके जीवन से जुड़े भवनों, दस्तावेजों या स्मृति चिह्नों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। यह शायद पूरे भारतीय समाज की प्रवृत्ति है, जिसमें इतिहास और मिथक के बीच फर्क करने की बहुत तमीज नहीं है। अभी हाल में हिंदी विश्वविद्यालय ने केदारनाथ अग्रवाल पर एक कार्यक्रम बांदा में किया था। वहां उनके निवास पर उनकी नष्ट होती सामग्री को देख कर बहुत तकलीफ हुई।
-
इस प्रसंग में स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय का क्या योगदान हो सकता है ?
- यही हो सकता है कि देश भर में हिंदी रचनाकारों से जुड़ी बिखरी हुई सामग्री एक स्थान पर एकत्र की जाए और भविष्य के शोधार्थियों तथा गंभीर पाठकों के लिए इस पर काम करने की सुविधा हो।
हिंदी लेखकों की पांडुलिपियों की स्थिति के बारे में थोड़ा और बताइए।
- अभी तक स्थिति यही है कि किसी लेखक के परिवारी जन कुछ दिनों तक तो उत्साह से चीजें सुरक्षित रखते हैं, लेकिन समय बीतने के साथ यह उत्साह कम होता जाता है। सुरक्षित सामग्री नष्ट होती जाती है। लेकिन उनकी रक्षा और संरक्षण के लिए भी कुछ लोग सामने आए हैं। डॉ. रंजना अरगड़े ने हमारे विश्वविद्यालय के संग्रहालय को विख्यात कवि शमशेर बहादुर सिंह की पांडुलिपियां और निजी उपयोग के सामान सौंप कर हिंदी समाज को अमूल्य धरोहर प्रदान की है। यह एक अच्छी शुरूआत है। मुझे लगता है कि अन्य लेखक या उनके परिवार जन संग्रहालय को सामग्री सौंपने के लिए प्रेरित होंगे।
किसी लेखक की पांडुलिपि उसको समझने में क्या भूमिका निभाती है ?
- किसी भी लेखक की रचना प्रक्रिया और उसकी विचार यात्रा को समझने के लिए पांडुलिपियां एक महत्वपूर्ण साधन हैं। अपने ड्राफ्ट में वह जिस तरह का बदलाव करता है वह उसकी मानसिक बनावट और तल्लीनता को समझने में हमें मदद करता है। उदाहरण के लिए पंत की 'ग्राम्या' की भूमिका को ही लीजिए। भूमिका के बतौर पंत जी ने ग्राम्या के शुरू में एक 'निवेदन' लिखा है। उसमें वे एक जगह लिखते हैं : 'हमें ग्रामों की दृष्टि से चरखे की उपयोगिता का तो प्रचार करना है, पर चरखे के आदर्शवाद का समूल विनाश करना है।' लेकिन प्रेस में जाने से पहले पंत जी ने ये पंक्तियां भूमिका से हटा दीं। पंत की राजनैतिक विचार यात्रा का अध्ययन करने वाले शोधार्थी को पंत जी द्वारा इन पंक्तियों के लिखने तथा उसे हटा देने के द्वंद्व को समझना होगा। इसी तरह निराला की हस्तलिपि में जो परिवर्तन समय के साथ आए वे उनके शारीरीक स्वास्थ्य को समझने में मदद तो करते ही हैं, वे उनकी बदलती मन:स्थिति के भी द्योतक हैं।
आज संग्रहालय परंपरा के सामने सबसे बड़ी चुनौती क्या है ?
संग्रहालयों के सामने सबसे बड़ी चुनौती तकनीकी क्षेत्र में हो रहे परिवर्तन के साथ कदम ताल करना है। आज बहुत से लोग लेखन में कंप्यूटर का माध्यम अपना रहे हैं। उनकी सामग्री किस तरह व्यक्तिगत विशिष्टताओं के साथ सुरक्षित रखी जाए इस पर गंभीर मंथन की जरूरत है।
अब संग्रहालय में शमशेर का भी घर
इस सिलसिले में हिंदी विश्वविद्यालय और डॉ. रंजना अरगड़े के बीच एक समझौता-ज्ञापन (एम.ओ.यू.) पर भी हस्ताक्षर हुए। इसके तहत अब शमशेर जी की रचना और जीवन से सम्बद्ध सारी सामग्री के प्रकाशन का अधिकार तथा उसका कॉपीराइट विश्वविद्यालय का होगा।
सामग्री में शमशेर जी की अप्रकाशित पांडुलिपियां बड़ी संख्या में हैं। इनके आधार पर कहा जा सकता है कि अभी एक तिहाई से अधिक शमशेर अप्रकाशित हैं। लगभग सैकड़ों पृष्ठ उर्दू की पांडुलिपियों के भी हैं जो वर्षों से बंधे पड़े हैं। शमशेर जी को लिखे या उनके द्वारा लिखे सैकड़ों पत्र भी संग्रहालय को प्राप्त हुए हैं। इनमें शमशेर के दौर का इतिहास सुरक्षित है।
शमशेर के व्यक्तिगत सामानों में खादी और सिल्क के उनके मोटे कुरते, मोजे, टीशर्ट और पैंट के अलावा एक खूबसूरत शॉल भी है जो उन्हें उज्जैन से विदा के समय भेंट में मिला था। इन कपड़ों में शमशेर के व्यक्तित्व की सादगी झलकती है।
निजी उपयोग की चीजों मे उनकी टूटी और धागे से सिली हवाई चप्पल, उनका नीला टूथ ब्रश और काली कंघी उनके निजी जीवन की दुनिया से साक्षात्कार कराती हैं। उनके सामानों में एक गांठदार छड़ी भी है जिसे रंजना अरगड़े के पिता ने उन्हें भेंट की थी। शमशेर जी की मित्र प्रेमलता वर्मा द्वारा उन्हें भेंट की गई माचिस की कॅवर सहित डिबिया भी है जिसे शमशेर जी ने भूली-बिसरी यादों के बतौर दशकों तक सुरक्षित रखा।
कुछ अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेजों में शमशेर जी के मैट्रिक और बी.ए. का सर्टिफिकेट सम्मान पत्र, स्मृति चिह्न तथा उनके मृत्यु का प्रमाण पत्र आदि भी हैं।
विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय ने डॉ. रंजना अरगड़े से यह सामग्री स्वीकार करने के बाद कहा कि वे इस अमूल्य निधि की सुरक्षा और उसके रख रखाव की विशेष व्यवस्था करेंगे। उन्होंने कहा कि शमशेर जी की संपूर्ण सामग्री विश्वविद्यालय में आ जाने की घटना से अनेक बड़े लेखक और उनका परिवार संग्रहालय को संरक्षण के लिए पांडुलिपियां देने के लिए प्रेरित होगा। श्री राय ने कहा कि उनका स्वप्न हिंदी विश्वविद्यालय में हिंदी लेखकों की सामग्री का सबसे बड़ा संग्रहालय बनाने का है।
इस मौके पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का भी आयोजन हुआ, जिसमें मशहूर कवि केदारनाथ सिंह, प्रो. निर्मला जैन, डॉ. गंगा प्रसाद विमल, नरेश सक्सेना, विजय मोहन सिंह और शंभु गुप्त ने शिरकत की।
डॉ. केदार नाथ सिंह ने कहा कि शमशेर की इस विराट सामग्री के भीतर अभी अनेक शमशेर छिपे हैं। उन्होंने कहा कि शमशेर की सामग्री के बाद हिंदी के और भी वरिष्ठ लेखकों या उनके परिवारों को उनकी सामग्री इस संग्रहालय को सौंप देनी चाहिए। प्रो. निर्मला जैन ने कहा कि शमशेर की इन पांडुलिपियों से शमशेर के बारे में अनेक भ्रम दूर होंगे और शोध को नई दिशा मिलेगी। डॉ. गंगा प्रसाद विमल का कहना था कि शमशेर की सामग्री से संग्रहालय देश में अद्वितीय बन गया है। नरेश सक्सेना ने कहा कि संग्रहालय मे अनेक ऐसी दुर्लभ चीजें हैं जो शमशेर के व्यक्तित्व को संपूर्णता में समझने के लिए जरूरी हैं। शंभु गुप्त ने शमशेर के कृतित्व की महत्ता पर विस्तार से प्रकाश डाला।
शमशेर बहादुर सिंह की
एक अप्रकाशित कविता की पांडुलिपि
एक अप्रकाशित कविता की पांडुलिपि
लता मंगेशकर के पत्र
पद्मा सचदेव के नाम
पद्मा सचदेव के नाम
हिंदी विश्वविद्यालय के सहजानंद सरस्वती संग्रहालय को डोगरी और हिंदी की प्रसिद्ध लेखिका पद्मा सचदेव की बहुमूल्य पांडुलिपियां और ऐतिहासिक महत्व के पत्र बड़ी संख्या में प्राप्त हुए हैं। उन्होंने अनेक चित्र भी दिए जिन में तत्कालीन समय की जिंदगी धड़कती है। दिनकर, बच्चन, अमृतलाल नागर, धर्मवीर भारती के पत्रों के साथ ही पद्मा सचदेव ने हमें लता मंगेशकर और आशा भोसले के पत्र भी सौंपे हैं। लता मंगेशकर के पत्र ऐतिहासिक महत्व के हैं, क्योंकि वे इस तरह के व्यक्तिगत पत्र बहुत कम लोगों को लिखती हैं। दूसरे इन पत्रों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इन से लता जी की कुछ व्यक्तिगत रुचियों तथा पसंद-नापसंद के बारे में पहली बार पता चलता है।
पद्मा सचदेव की लता जी से गहरी दोस्ती रही है। पिछली सदी के सातवें दशक में मुम्बई प्रवास के दौरान लता जी के परिवारिक सदस्य की तरह थीं। विख्यात गायक 'सिंह बंधु' के सरदार सुरिंदर सिंह पद्मा जी के पति हैं। वे भी लता जी के काफी निकट रहे हैं। वे उन दिनो मुंबई में सरकारी सेवा में थे। अपने मुम्बई प्रवास के दौरान पद्मा जी ने कुछ फिल्मों में गाने भी लिखे। ये बदरी कहाँ से आई हैं गाना काफी लोकप्रिय हुआ था। पद्मा सचदेव ने लता मंगेशकर के स्वर में डोगरी गीतों का तब एक कैसेट भी तैयार किया था। इसमें पद्मा जी का ही संगीत था।
मुंबई में गुजरे दिनों का यह निकट संबंध उनके बीच आज तक है। पद्मा जी ने 'बड़ी दीदी' शीर्षक से लता जी पर एक पुस्तक लिखी है जो जल्दी ही प्रकाशित होने वाली है।
लताजी और पद्मा जी के बीच पत्रों का सिलसिला आज भी जारी है। इन पत्रों से हम लता जी के व्यक्तित्व और उनके स्वभाव को बहुत करीब से जान पाते हैं। दोस्तों के लिए उनकी चिंताएं और व्यक्तिगत रुचियों के अलावा लताजी के व्यक्तित्व का एक और भी पक्ष उनके पत्रों से सामने आता है। वह पक्ष है उनका 'विट' जो उनके सार्वजनिक जीवन के बीच कभी सामने नहीं आता। लता जी लिखती है:
'पद्मा अगर तुम्हें बहुत परेशानी न हो तो आते समय 'डोयोडोस्टिव बिस्किट्स और स्प्रे ले आना।'.........
'आते वक्त मेरे लिए साड़ियां ले आना जो डॉट्स वाली हो। एक हल्का पीला और उसमें ऑरेंज ब्लू डॉट्स......... और एक वैसी ही लाइट ब्लू, गहरे ब्लू डॉट्स के साथ।.....' .. तुम्हारा न कोई पत्र आया न टेलिफोन, बड़ी चिंता हो गई। श्री सरदार जी की तबीयत अब कैसी है? चक्कर आने बंद हुए या नहीं? जरा लिख दोगी तो अच्छा होगा........'
............ 'सरदार जी का सर अच्छी तरह से धोना ताकि दिल्ली का भूत निकल जाए। उनको बंबई से इतनी नफरत क्यों है? उन से कहना कि अभी नौकरी छोड़ने की न सोचें। ऐसे दिन आ रहे हैं कि आगे बहुत मुश्किल होनेवाली है। गाना तो शौक की चीज है। उसे बिजनेस के साथ मिलाना फिलहाल ठीक नहीं............'
......... मैं तुम्हें बहुत मिस करती हूं। मेरे बेटे की भी बहुत याद आती है..............
...... बच्चों को प्यार देना। .... बिंगो बहुत बदमाश हुआ है। सुर में गाता है। .... बाकी सब बच्चे मजे में है.......
.... इस बार सारी तस्वीरें बहुत अच्छी आई है...... 'धर्मयुग' ने मेरी रंगीन तस्वीर ब्लैक एंड व्हाइट करके खराब कर दी.......
खत लिखना, तुम्हरी दीदी
पद्माजी के नाम लता मंगेशकर का पत्र
पंत ने सेंसर की थी ग्राम्या की भूमिका
अब पुनर्मूल्यांकन की जरूरत!
अब पुनर्मूल्यांकन की जरूरत!
भूमिका की वे पंक्तियां जो पंत ने ग्राम्या से हटा दीं
....... हमें
ग्रामों की दृष्टि से चरखे के आदर्शवाद का समूल विनाश करना है। .....
ग्राम्या और युगवाणी की विचारधारा पर एक विस्तृत भूमिका द्वारा प्रकाश
डालने की इच्छा थी, पर यह काम मैंने अपने अगले संग्रह
के लिए रख दिया है, तब वैसा करना और भी उपयुक्त होगा........
सुमित्रानंदन पंत की पुस्तक ग्राम्या (1940) उनका छायावादोत्तर काव्य है।
इसमें भारतीय ग्राम समाज के यथार्थ चित्रों से उनका लगाव उनकी छायावादी
काव्य संरचना से बिल्कुरल अलग है। भारतीय ग्राम जीवन की विडम्बनाओं से वे
बेहद आहत थे। यही वजह थी कि उस समय के सघन गांधीवादी माहौल के बीच उन्होंने
कुटीर उद्योग के स्तर पर तो चरखे को स्वीकृति दी लेकिन चरखे के आदर्शवाद
को समूल विनाश करने का आह्वान किया। पंत जी ने यह आह्वान अचानक नहीं किया
था। 1936 के बाद वे प्रगतिशील लेखक संघ के संपर्क में थे। 1938 में
प्रगतिशील विचारधारा की साहित्यिक पत्रिका
रूपाभ निकाली थी। इसमें प्रगतिशील नरेंद्र शर्मा और शमशेर
बहादुर सिंह उनके साथ थे। इसी दौरान ग्राम्या की कविताएं लिखी गईं। 1940
में ग्राम्या संग्रह तैयार करने के बाद पंत ने निवेदन शीर्षक से उसकी
भूमिका लिखी और उसमें चरखे के आदर्शवाद को समूल नष्ट करने की बात कही।
लेकिन जब भूमिका प्रेस में जाने लगी तो पंत जी ने वह बात हटा दी। यह बात भी
हटा दी कि अगले संग्रह की भूमिका में इस मुद्दे पर विस्तार से लिखेंगे।
कुछ वर्ष बाद पंत जी प्रगतिशील दुनिया से किनारा करके अरविंदवादी हो गए।
स्वर्ण किरण - स्वर्ण धूलि के आध्यात्मिक संसार में खो गए.....। लेकिन
उत्तर-पंत की इस नियति से अलग मध्य-पंत की यथार्थवादी दृष्टि एक बार फिर
हमें उनके नए मूल्यांकन के लिए प्रेरित करती है। पंत की उपर्युक्त पंक्ति
से कम से कम इतना तो साबित हो ही जाता है कि चरखे के आदर्शवाद के बारे में
यह सोच उस समय के प्रगतिशील लेखकों की सामूहिक चेतना का अनिवार्य
प्रतिबिम्ब थी।
कहने की जरूरत नहीं कि ग्राम्या की भूमिका से हटाई गई यह पंक्ति पंत के
वैचारिक आत्मसंघर्ष का जीवंत दस्तावेज है।
ऐसा भी हुआ था...
पिछले दिनों महत्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में देश भर
से युवा कथाकार जुटे और उन्होंने कहानी के सामाजिक यथार्थ पर चर्चा की। इन
कथाकारों में से कुछ ने संग्रहालय को अपनी रचनाओं की पांडुलिपियाँ और
यदगार तस्वीरें भेंट की। संग्रहकर्ता महेश वाजपेयी ने माननीय कुलपति विभूति
नारायण राय को संग्रहालय के लिए महादेवी वर्मा की एक दुर्लभ तस्वीर भेंट
की। पहले चित्र में महादेवी प्रसिद्ध गांधीवादी विश्वम्भरनाथ पांडेय की
बेटी के विवाह में पुरोहित की भूमिका निभा रही हैं। बांई ओर महेश वाजपेयी
बैठे हैं। दूसरे चित्र में दो महिलाओं ने बाबा नागार्जुन को छेड़ते हुए उनके
कान पकड़ रखे हैं। इनमें से बांई ओर हैं बाबा की बहू (शोभाकांत की पत्नी)
और दूसरी ओर हैं कथाकार धीरेंद्र अस्थाना की पत्नी ललिता अस्थाना। तस्वीर
बताती है कि बाबा नागार्जुन स्नेह देने और पाने के कितने तरीके अपनाते थे!
पुरोहित बनीं महादेवी
बाबा नागार्जुन की ‘कनपकड़ी’
हिंदी विश्वविद्यालय में पांच करोड़ का बनेगा संग्रहालय
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय ने घोषणा की है कि विश्वविद्यालये में पांच करोड़ की लागत से अलग संग्रहालय बनेगा। संग्रहालय के अंतर्गत साहित्य के अलावा मानव शास्त्र, संस्कृति तथा अनेक विषयों से सम्बद्ध संभाग होंगे। कुलपति राय ने यह बात स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय में शुक्रवार को हुए एक आयोजन में कही। वे विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय कथा सम्मेलन में आए कथाकारों को संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर कुलपति राय को प्रसिध्द संग्राहक महेश वाजपेयी ने महादेवी वर्मा की एक दुर्लभ तस्वीर संग्रहालय के लिए भेंट की। इस तस्वीर में महादेवी एक शादी में पुरोहित की भूमिका निभा रही हैं। कथाकार धीरेंद्र अस्थाना और कैलाश बनवासी ने उन्हें अपनी पांडुलिपियां संग्रहालय के लिए सौंपी। कुलपति राय ने कहा कि पांडुलिपियों में अनेक नए तथ्य ऐसे मिलते हैं जिनके आधार पर सम्बद्ध लेखकों के कृतित्व का नए सिरे से मूल्यांकन किया जा सकता है। पंत ने ‘ग्राम्या’ की भूमिका की पांडुलिपि में लिखा है कि हमें चरखा के आदर्शवाद को समूल नष्ट करना है! उनके इस कथन के आलोक में उनके कृतित्व को देखें तो नए निष्कर्ष सामने आते हैं। उन्होंने कहा कि भारत में अपने इतिहास और परंपरा के पदचिन्हों को संजोने का अभाव है। बडे़-बडे़ कवि-लेखकों की पांडुलिपियां उपेक्षित पड़ी हैं। उन्हें सुरक्षित किया जाना चाहिए। संग्रहालय के प्रभारी सुरेश शर्मा ने नए लेखकों से भी अपनी प्रसिद्ध रचनाओं की पांडुलिपियां देने की अपील की। प्रति कुलपति ए. अरविंदाक्षन ने लेखकों से कहा कि अपने संपादन में निकली पत्रिका का पहला अंक वे संग्रहालय को जरूर भेंट करें। इस अवसर पर शिवमूर्ति, वंदना राग, विजेंद्र नारायण सिंह, शैलेन्द्र सागर सहित विश्वविद्यालय के प्रो. रामशरण जोशी, से. रा. यात्री, प्रो. सूरज पालीवाल आदि प्रमुखता से उपस्थित थे। समारोह का संचालन प्रभारी सुरेश शर्मा ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रतिकुलपति प्रो. अरविंदाक्षन ने किया।
हिंदी विश्वविद्यालय में स्थापित हुआ
स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय
स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय
उद्घाटन के दृश्य : अमूल्य धरोहर को बचाइए
प्रो. नामवर सिंह ने पहले स्वामी सहजानंद सरस्वती की मूर्ति पर फूल अर्पित किए उसके बाद अपने व्याख्यान में इस संग्रहालय की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। नामवर जी ने कहा कि कुलपति विभूति नारायण राय ने स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय स्थापित करके ऐतिहासिक कार्य किया है। इन पांडुलिपियों के अध्ययन से लेखकों के व्यक्तित्व के अनेक अज्ञात पहलू सामने आएंगे। पुराने लेखकों की पांडुलिपियों के संकलन के साथ ही नए लेखकों की पांडुलिपियां भी संकलित की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि पांडुलिपियों के आधार पर सम्बद्ध रचनाकारों के विवेचन विश्लेषण से आलोचना का एक नया रूप सामने आएगा। नामवर जी ने कहा कि संग्रहालय योजना बना कर हिंदी लेखकों की पांडुलिपियों का संकलन करे। यह बेहद जरूरी है। इस संग्रहालय में पत्रकारों की पांडुलिपियां भी रखी जानी चाहिए।
विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय ने कहा कि इन पांडुलिपियों के अध्ययन से नए तथ्य सामने आएंगे। आलोचना को नई दिशा मिलेगी, इसलिए हम संग्रहालय का बडे पैमाने पर विस्तार करना चाहते है। ये पांडुलिपियां हमारे साहित्य की अमूल्य निधि हैं। हमारे पास सुमित्रानंदन पंत लिखित ‘ग्राम्या’ की हस्तलिखित भूमिका है। ध्यान से देखेंगे तो आप पाएंगे कि उस भूमिका के एक अंश को पंत जी ने काट दिया है। उस कटे हुए अंश मे उन्होंने लिखा था: ‘हमें चरखा की उपयोगिता समझनी चाहिए लेकिन उसके आदर्शवाद को हमें समूल नष्ट कर देना है।’ यह पंक्ति पंत जी ने किन दबावों में हटाई होगी, उसकी खोज की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि संग्रहालय के माध्यम से शोध को नई दिशा मिलेगी। मानव शास्त्र से जुड़ी सामग्री का संकलन भी जरूरी है।
विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति ए. अरविंदाक्षन ने कहा कि इस संग्रहालय में समाज चिंतकों की पांडुलिपियां भी होनी चाहिए।
संग्रहालय के प्रभारी और विश्वविद्यालय के अतिथि लेखक सुरेश शर्मा ने कहा कि वे इन पांडुलिपियों का पोर्टल बनाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि इन अमूल्य पांडुलिपियों को डिजिटाइज्ड कर के लम्बें समय तक सुरक्षित रखने की व्यवस्था की जानी चाहिए। श्री शर्मा ने कहा कि पांडुलिपियों के आधार पर रचनाकारों के मूल्यांकन से आलोचना का एक नया रूप सामने आएगा। उन्होंने सुझाव दिया कि संग्रहालय द्वारा एक हिंदी लेखक कोश का निर्माण भी किया जाना चाहिए।
मान्यवर, यदि डॉ. रामकुमार वर्मा जी की हस्तलिपि /उनके हस्ताक्षर उपलब्ध हों तो कृपा कर मेरे मेल पर उपलब्ध कराने का कष्ट करे। dr.npsanjay@gmail.com
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