मन
की देहरी पर गहन आत्मीयता के साथ कह जाना युवा कवि सुरेश कुमार वशिष्ठ की
खासियत है। इनकी कविताएं पढ़कर संबंधों के प्रति लगाव का एहसास होता है।
युवा कथाकार आकांक्षा पारे काशिव के शब्दों में, "सुरेश की कविताएं पढ़कर
लगता है कि अभी कविता के दिन बाकी हैं।"
सच में सुरेश ने कविता को न सिर्फ रचा है बल्कि उसे अपने तरीके से हमारे
सामने रखा है-- गुनगुनी धुप में घास पर चमकते ओस की ताज़गी हर शब्द में है।
जैसे बरस चुके बरसात के बाद मौसम की अंगराई, नरम माटी, गीले पत्ते और पेड़ों
से उसकी तरुणाई की कच्ची कुवारी गंध। शब्द कभी बेजान नहीं लगते।
Suresh Kumar Vashishth, आमोद महेश्वरी, Rajkamal Prakashan Samuh, Suraj Kumar, Nalin Chauhan, Pramod Chauhan
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