ll हड़बड़ी ।। शोक प्रस्ताव ll
दोस्त ने कहा-
इतनी हड़बड़ी में क्यों हो
क्यों नहीं करते हो
मन लगाकर कोई एक काम
कुछ नहीं होना है दुनिया का
उससे अलग, जो कुछ होता चल रहा है
फिर काहे की हड़बड़ी!
दोस्त ने कहा-
तुम्हारे चारो खाना चित हो जाने से भी
कुछ नहीं होना है दुनिया का
यही है दुनियादारी का तकाजा
इसे समझो
और मन लगाकर करो
कोई एक काम!
मगर कहां गई हड़बड़ी!
दोस्त ने कहा-
यह जाती भी तो नहीं है, कम्बख्त!
- अरविंद चतुर्वेद
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।। शोक प्रस्ताव।।
सज्जनो,
काफी हड़बड़ी और अफरातफरी में
वह जो मर गया
दफ्तर की सीढ़ियां चढ़ते-उतरते
भरी दोपहरी में
इस शहर में एक भला आदमी था
और अपने बीच एक जिम्मेदार कर्मचारी
मैं कहना चाहूंगा
वैसे भी अब जिंदगी में इत्मीनान है ही कहां!
साथियो,
काम और गृहस्थी के बोझ से
वह इधर चार-पांच सालों में
थोड़ा चिड़चिड़ा हो चला था जरूर
पर स्वभाव का वह बुरा नहीं था
मुझे तो याद आता है
जब नया-नया उसने ज्वाइन किया था यह दफ्तर
तो कितना खुशमिजाज आदमी था
जो नये-नये आए हैं दो-तीन सालों में इधर
उन्हें ताज्जुब होगा कि एक जमाने में वह शख्स
कितना मजाकिया था और क्या ठहाके लगाता था!
बहरहाल, पांच साल से बेरोजगार चल रहे बेटे
और अनब्याही बेटी के बाप को
मरना था इसी तरह शायद
पर मुझे तो याद आती है बार-बार उसकी शालीनता
कभी नहीं देखा होगा आपने
कि कैंटीन में या किसी होटल-रेस्टोरेंट में
गंदी प्लेट-चम्मच तक की शिकायत की हो उसने
भला तो इतना कि
पानी के गिलास में पड़ गया हो कुछ गंदा
इसके लिए भी कभी लड़ा नहीं बेयरे से
चुपचाप वह पीता रहा जिंदगी भर चाय और पानी
दोस्तो,
मुझे तो शक होता था कि
वह जरूर मरेगा गंदी प्लेट-चम्मच
या गंदा पानी पीने की वजह से
खैर, उसे मरना था इसी तरह-
हड़बड़ी और अफरातफरी में
सीढ़ियां चढ़ते-उतरते
हम कर भी क्या सकते थे मित्रो,
कहते हैं मौत किसी के वश में नहीं
पर मैं तो कहूंगा
जिंदगी पर ही किसका वश चलता है!
खैर, उसकी आत्मा की शांति के लिए
खड़े होकर अब हम रखते हैं दो मिनट का मौन
हालांकि दो मिनट के लिए भी
कहां थमता है महानगर का शोर!
ईश्वर सबकी आत्मा को शांति दे।
- अरविंद चतुर्वेद
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