संयोग से बनते जो रिश्ते।
नित्य वह पल्लवित और पुष्पित होते।
मन की बगिया में खुशबू विखेरते।
सदैव परिपूर्णता मिलती और परिमार्जित रहते।
ईश की अनुकम्पा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड गाते।
ऐसे अनुबंध में भला कौन खलल डालते।
अपनी डफ़ली अपना राग सभी जानते।
क़ातिल निगाहों पर करारा वार करते।
हम मधुर संबंधों को नया आयाम देते।
संयोग से बनते जो रिश्ते।
नित्य वह पल्लवित और पुष्पित होते।
मुकद्दर ने हमें मिलाया ऐसे, पिछले जन्म का कोई बंधन हो जैसे।
हम अनाथ,अबोध कैसे कैसे वज्रपात सहे।
तनिक भी न भान किसी को होने देते।
कितना सही कहा- आपने, सब भूल जाओ और साहित्य सृजन करो।
ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति करो।
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