मणिपुर की घटना ने क्या बीजेपी के केरल मंसूबे पर पानी फेर दिया है?

25 जून को कोच्चि में थेवारा सेंट जोसेफ़ चर्च से शांति मार्च निकालते हुए.

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25 जून को कोच्चि में थेवारा सेंट जोसेफ़ चर्च से शांति मार्च निकाला गया.

  • Author,इमरान क़ुरैशी
  • पदनाम,बेंगलुरु से, बीबीसी हिंदी के लिए

पिछले 13 हफ़्तों से मणिपुर में बेलगाम हिंसा का राजनीतिक असर देश के बाक़ी हिस्सों में क्या होगा, इसका आकलन अभी किया जाना बाक़ी है.

लेकिन ऐसा लगता है कि केरल में इसका ख़ासा असर पड़ा है, जहाँ भारतीय जनता पार्टी ईसाई समुदाय का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रही है.

वे पादरी और धर्मगुरु जो सार्वजनिक रूप से बीजेपी के साथ दोस्ताना दिख रहे थे, अचानक चुप हो गए हैं.

और वो लोग, जिन्हें समुदाय के नेताओं के ये कहने से कोई आपत्ति नहीं थी कि बीजेपी से अल्पसंख्यकों को कोई दिक्क़त नहीं है, उनका भी सुर बदल गया है.

पिछले कुछ हफ़्तों से इस समुदाय के लोग मणिपुर में हो रहे हमलों, हत्याओं और चर्चों को जलाए जाने के ख़िलाफ़ धरना प्रदर्शन कर रहे हैं और कुछ की अगुवाई तो पादरियों ने की.

राज्य में चर्चों का प्रशासन देखने वाली संस्था केरला कैथलिक बिशप्स काउंसिल (केसीबीसी) ने तो यहां तक कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्यों चुप्पी साध रखी है?

केसीबीसी के प्रवक्ता फ़ादर जैकब पलाकाप्पिल्ली ने बीबीसी को बताया, “मणिपुर लोग इसी भारत के सम्मानित नागरिक हैं. उनके घर जला दिए गए हैं और अब दिखाने के लिए उनके पास कोई रिकॉर्ड नहीं बचा है कि वे भारतीय हैं. वे अपनी पहचान कैसे साबित करेंगे? अपने ही ज़मीन पर हम बाहरी हो गए हैं.”

हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ईसाई समुदाय में कांग्रेस नीत यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ़्रंट (यूडीएफ़) के मज़बूत आधार में सेंध लगाने के लिए बीजेपी के मेलजोल कार्यक्रम को ‘तगड़ा झटका’ लगा है.

राज्य में अल्पसंख्यकों की आबादी लगभग 46% है, जिसमें 26.56% मुसलमान और 18.38% ईसाई हैं.

एक ऐसा भी समय रहा है, जब सीपीएम नीत लेफ़्ट डेमोक्रेटिक फ़्रंट (एलडीएफ़) इन दोनों समुदायों से वोट हासिल करने में सफल रहा. लेकिन आम तौर अल्पसंख्यकों का वोट यूडीएफ़ के साथ ही रहा है. इस आधार पर में सेंध बीजेपी के लिए प्रोत्साहन होगा.

राजनीतिक विश्लेषक एमजी राधाकृष्णन ने बीबीसी हिंदी से कहा, “मणिपुर निश्चित रूप से बीजेपी के लिए एक झटका है, जो कि ईसाई वोटरों को रिझाने की कोशिश करती रही है. पिछले कुछ समय से वे इस ओर अच्छी ख़ासी सफलता भी हासिल कर रहे थे.”

थ्रिसूर में कैथोलिक यूथ नाइट का मार्च.

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थ्रिसूर में कैथोलिक यूथ नाइट का मार्च.

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एमजी राधाकृष्णन कहते हैं, “अभी पिछले ईस्टर में ही कार्डिनल जॉर्ज एलेनचेरी ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि बीजेपी बहुत अच्छी है और अल्पसंख्यकों को इस पार्टी से कोई दिक्क़त नहीं है. इससे पहले एक और बिशप ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि अगर केंद्र सरकार रबर की सही क़ीमत दिलाए तो केरल से एक बीजेपी सांसद भेजा जा सकता है.”

ईसाई समुदाय को अपनी तरफ़ लाने के अभियान की बागडोर ख़ुद प्रधानमंत्री ने अपने हाथ में ले रखी थी. चाहे वो पोप फ़्रांसिस को भारत आमंत्रित करना हो या मलांकारा चर्च में 400 साल पुराने विवाद को हल करने की कोशिश हो या इसी साल अप्रैल में केरल में आठ प्रमुख चर्चों के प्रमुखों के साथ डिनर हो. इसी डिनर में भारत के सबसे बड़े सायरो मालाबार चर्च के प्रमुख कार्डिनल एलेनचेरी ने प्रधानमंत्री की भूरि भूरि प्रशंसा की थी.

इसके बाद ही एक के बाद एक बिशप ने विवादास्पद बयान दिए थे. एक बिशप ने ईसाइयों को ‘नार्को टेररिज़्म’ के भ्रम में फँसने को लेकर चेताया था जबकि दूसरे ने लव जिहाद को लेकर सावधानी बरतने की बात कही थी.

एक अन्य बिशप ने कहा था कि अगर रबर की ऊंची क़ीमत सुनिश्चित करे तो बीजेपी केरल से अपना पहला सांसद जिता सकती है.

फ़ादर जैकब पलाकाप्पिल्ली कहते हैं, “वो मुद्दा (रबर) इसलिए उठाया गया क्योंकि लोग हताश हो गए थे और किसी ने भी रबर की क़ीमत बढ़ाने की कोई कोशिश नहीं की. इसी वजह से बीशप ने ये बात कही. यूडीएफ़ और एलडीएफ़ के स्थानीय नेताओं ने इस ओर ज़्यादा कुछ किया नहीं. इस बयान का राजनीति से कोई लेना देना नहीं है.”

लेकिन एमजी राधाकृष्णन ने कहा कि समुदाय में बीजेपी समर्थक रवैया दिखाई देता रहा है. समुदाय के ख़ासकर संपन्न लोगों में सोशल मीडिया पर इस्लामोफ़ोबिया अभियान चल रहा है और समाज में बीजेपी के प्रति नरम रुख़ साफ़ दिखता है.

वो कहते हैं, “कुल मिलाकर बीजेपी बहुत आरामदायक स्थिति में थी. लेकिन अब मणिपुर की घटना ने उन्हें झटका दिया है, चर्च सत्तारूढ़ पार्टी के ख़िलाफ़ खुलकर सामने आ गए हैं. इस रिश्ते में अब बड़ी बाधा खड़ी हो गई है.”

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झटका

राजनीतिक विश्लेषक केजे जैकब ने बीबीसी को बताया, “इस हालात में ईसाई समुदाय में बीजेपी का प्रसार ठप पड़ सकता है क्योंकि ईसाई नेतृत्व सार्वजनिक रूप से बीजेपी का समर्थन करने का बहाना नहीं ढूंढ पाएंगे.”

जैकब कहते हैं, “मणिपुर की घटनाओं से अब एक जटिल स्थिति पैदा हो गई है. एक छोटा समूह था जो बीजेपी की ओर झुकाव रख रखा था. अब उन्हें फिर से अपना मन बनाना पड़ेगा कि वो बीजेपी के साथ हैं या नहीं. जो हिस्सा अपना समर्थन जारी रखने की बात कहता है, यही बीजेपी की उपलब्धि होगी.”

लेकिन एमजी राधाकृष्णन कहते हैं, “चर्च जिस तरह राजनीतिक अवसरवाद करते आए हैं, उसे देखते हुए ये एक अस्थायी झटका साबित होगा. लेकिन फ़िलहाल तो ये भारी झटका है.”

लेखक और एकेडमिक केएस राधाकृष्णन भी एमजी राधाकृष्णन की बात से सहमति जताते हैं.

केएस राधाकृष्णन कहते हैं कि “ईसाई समुदाय के पास किसी भी संगठन या विचारधारा के साथ स्थायी राजनीतिक वफ़ादारी नहीं है. वे अपने हित देखते हैं. अगर वे सोचते हैं कि बीजेपी उनका शुभचिंतक है तो वे उसका समर्थन कर देंगे. अगर ये उनके लिए फ़ायदेमंद होगा तो वो बीजेपी के साथ चले जाएंगे.”

उनके मुताबिक, “ईसाई समुदाय कांग्रेस और एलडीएफ़ दोनों का समर्थन कर चुका है. लेकिन इनमें से अधिकांश ने कांग्रेस को ज्वाइन नहीं किया.”

केएस राधाकृष्णन के अनुसार, “मणिपुर के घटनाक्रम का ईसाई समुदाय से कोई वास्ता नहीं है. ये दो समूहों के बीच जारी टकराव है. इस तरह के मुद्दों को हल करना आसान नहीं है. इसी तरह की चीजें मिज़ोरम और नागालैंड जैसे पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी हुई थीं.”

ये पूछने पर कि ईसाई समुदाय में सेंध लगाने की बीजेपी की क्या योजना है, केएस राधाकृष्णन ने कहा, “हमारे पास अपनी रणनीति है, जिसे अभी नहीं बताया जा सकता.”

केरल बीजेपी अध्यक्ष के सुरेंद्रन से संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन वो इस सवाल का जवाब नहीं देना चाहते थे.

उन्होंने कहा कि वो एक मीटिंग में हैं और वो फ़ोन करेंगे. दोबारा फ़ोन करने पर भी संपर्क नहीं हो सका. उनकी प्रतिक्रिया मिलने पर रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.

इन सबके बीच कांग्रेस परिस्थितियों पर बारीक़ नज़र बनाए हुए है.

अर्नाकुलम से कांग्रेस के सांसद हिबी इडेन ने कहा, “मणिपुर के बाद, बीजेपी का समर्थन करने वाले कुछ ईसाई नेता समझ गए कि उस पार्टी का अल्पसंख्यकों के प्रति यही बुनियादी बर्ताव है.”

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क्या 2024 में कुछ बदलेगा?

एमजी राधाकृष्णन का कहना है कि ईसाई समुदाय में बीजेपी समर्थक कूटनीतिक रूप से कम मुखर रहेंगे. जब मणिपुर मुद्दा ख़त्म हो जाएगा, वे बीजेपी के साथ जाने का कोई और बहाना ढूंढ लेंगे. लेकिन 2024 के लिए तो ये मुश्किल होगा क्योंकि अब बहुत समय बचा नहीं है. इसलिए सार्वजनिक रूप से वो कोई पक्ष नहीं लेंगे.

फ़ादर जैकब पालाकाप्पिल्ली कहते हैं, “मणिपुर के हालात के बारे में हम बहुत दुखी और सदमे में हैं. प्रधानमंत्री ने पीड़ितों को ढांढस तक नहीं बंधाया. शांति के लिए हम किससे कहेंगे.”

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