रविवार, 3 दिसंबर 2023

रंगारंग कार्यक्रम की रंगीन यादें

 प्रिय साथियो,

नमस्कार। अच्छी खासी ठंड शुरू हो गई है। आपसे २८ नवंबर, मंगलवार की एक रंगारंग शाम का अनुभव साझा कर रही हूँ जो हमारे भारतीय भाषा संस्कृति संस्थान–भाषा भवन, गुजरात विद्यापीठ का स्नेह मिलन और फूड फेस्टिवल था।

हमारे इस संस्थान में २३ भाषाएँ पढ़ाई जाती हैं जिसमें देसी और विदेशी भाषाएँ हैं। पूरे भारत में अपनी तरह का यह एक अलग ही भाषा भवन है जिसकी परिकल्पना गांधी जी ने की थी।

कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ.हर्षद भाई पटेल जी थे जो गुजरात विद्यापीठ के ट्रस्टी तथा मंत्री एवं आईआईटीई (IITE) और चिल्ड्रन यूनिवर्सिटी गांधीनगर के वाइस चांसलर हैं।  कार्यक्रम के अतिथि विशेष गुजराती भाषा के प्रसिद्ध कहानी लेखक तथा निवृत्त कलेक्टर श्री किरीट दुधात जी थे। 

प्राध्यापक डॉ.मिहिर उपाध्याय ने सरस्वती वंदना की और मेहमानों ने द्वीप प्रज्वलित किया। गुजरात विद्यापीठ की परंपरा के अनुसार सूत की माला के साथ महमानों का स्वागत किया गया। डॉ.सलमा शेख ने महमानों का परिचय दिया। डॉ.उषा उपाध्याय जो हिंदी भवन और भारतीय भाषा संस्कृति संस्थान की निदेशक हैं, उन्होंने स्वागत प्रवचन किया और संबोधन में कहा कि “मातृभाषा का क्या महत्व है इस बारे में गांधी जी ने ‛हरिजन’ न्यूज़लेटर में लिखा था कि हर एक व्यक्ति को अपनी भाषा पूर्ण रूप से आनी चाहिए और दूसरी भाषा के साहित्य का हिंदी के माध्यम से प्रसार होना चाहिए”।

अतिथि विशेष श्री किरीट दुधात जी ने बहुत सुंदर प्रवचन किया और मातृभाषा का क्या महत्व है उस बारे में एक छोटी सी कहानी कहकर श्रोताओं का मन जीत लिया। उन्होंने कहा “दो पड़ोसी महिलाएँ झगड़ा कर रही थीं तो एक ने दूसरी को श्राप दिया कि तेरा जो एक दांत दुखता है उसके अलावा सभी दांत गिर जाएँ, तो दूसरी ने भी क्रोध में उसे श्राप दिया कि तू अपनी मातृभाषा भूल जाए”। कोई अपनी मातृभाषा ही भूल जाए तो उसकी क्या पहचान रहेगी? क्या श्राप है!

डॉ.हर्षद पटेल जी ने नई शिक्षा नीति की चर्चा की और ‛एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की परिकल्पना में जो काम भाषा के लिए हो रहा है उसे बताया। भाषा भवन के दो प्राध्यापक - मैं, डॉ.अंजना संधीर, हिंदी और अंग्रेजी की प्राध्यापक तथा डॉ.मिहिर उपाध्याय, संस्कृत के प्राध्यापक को उनकी इस वर्ष विशेष उपलब्धियोँ के लिए सम्मानित किया गया जो हम दोनों के लिए ही आश्चर्य चकित करने वाला था क्योंकि हमें इस बारे में जरा भी जानकारी नहीं थी। यह कमाल भवन की निदेशक डॉ.उषा उपाध्याय जी का था।

तत्पश्चात छोटा सा सांस्कृतिक कार्यक्रम था जिसमें अरबी भाषा के छात्र ने सूफी गीत अरबी में सुनाया, उर्दू के विद्यार्थियों ने चार बैंत यानी अंताक्षरी के समान खेल शेर सुनाकर सबका मन जीत लिया, एक छोटी छात्रा द्वारा मलयालम भाषा में कविता सुनाई गई, फ्रेंच के छात्रों ने छोटा सा नाटक प्रस्तुत किया फ्रेंच भाषा के महत्व के बारे में, अंग्रेज़ी के छात्रों ने ‛वि शॉल ओवर कम’ (We Shall Overcome) विश्व शांति का गीत गाया जिसे मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने अंग्रेजी में लिखा है और यूएनओ (UNO) में इसे विश्व शांति का गीत माना गया है। विश्व की सारी भाषा में इसका अनुवाद हो चुका है लेकिन यह ओरिजिनल अंग्रेज़ी में ही लिखा गया था जिसे हम सब ‛हम होंगे कामयाब’ के नाम से गाते हैं। इसके बाद संस्कृत के छात्र ने वेद गान प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का सफल संचालन संस्कृत के प्राध्यापक डॉ.मिहिर उपाध्याय ने किया और आभार दर्शन डॉ.अंजना संधीर ने किया। तत्पश्चात सभी ने प्राध्यापकों द्वारा तैयार किये गए विभिन्न व्यंजनों का आनंद उठाया। कुछ पुराने छात्र भी कार्यक्रम में शामिल थे।

भाषा के साथ संस्कृति जुड़ी है और जुड़ा है उस संस्कृति का भोजन जिसका बढ़िया आयोजन था, जिसकी आयोजन व्यवस्था मुझ पर थी, आनंद आया। आप देखिए कुछ तस्वीरें और वीडियोस और आइये सीखने १३ भारतीय और १० विदेशी भाषाएँ। ‛एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की मिसाल का हिस्सा भी बने।

शुभकामनाओं सहित,

–डॉ.अंजना संधीर

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