सोमवार, 24 जनवरी 2011



सोमवार, २४ जनवरी २०११

kam kamta pd. singh kam कामता प्रसाद सिंह काम को याद करते हुए


काम की याद में

 कामता प्रसाद सिंह काम यानी औरंगाबाद (बिहार) जिले के एक कस्बानुमा भास्कर नगरी  देव के इंट्री गेट से ठीक पहले गांव भवानीपुर का वो सितारा जिसका सूरज 1963 में डूब जाने के बाद भी काम की प्रतिष्ठा, का सूरज आज तक चमक रहा है। कामता जी से मेरा कोई नाता नहीं है। बिहार में चमकते दमकते कामता बाबू की शान में और इजाफा करने वाले देव के दूसरे सूरज शंकर दयाल सिंह ने एक योग्य पुत्र की तरह कामता बाबू की याद में कामता सेवा केंद्र की स्थापना की थी। शायद कामता बाबू को जानने का यह मेरा पहला मौका था। कामता सेवा केंद्र की स्थापना के मौके पर मेरी उम्र शायद 12-13 की रही होगी, मगर दिग्गज नेताओ की मंड़ी लगाकर देव की शान को चार चांद लगाने वाले पितातुल्य शंकर दयाल जी से मैं कब घनिष्ठ हो गया , इसकी कोई याद नहीं है।
बाबा की तरह दिल में जगह रखने वाले कामता बाबू को जानने वाले अधिकतर लोगों ने कामताजी और शंकर दयालजी में केवल एक ही अंतर बताया था कि कामता बाबू के चेहरे पर नुकीले  मूंछों की चमक होती थी, जो शंकर बाबू के चेहरे पर नहीं है। समानता की बात करें तो उन्मुक्त ठहाके लगाने में कोई अंतर नहीं था। दोनों की दरियादिली भी एक समान थी। पिता पुत्र की यह एक ऐसी जो़ड़ी थी कि काम में शंकर साकार थे तो शंकर बाबू में कामता बाबू की सूरत और सीरत की झलक दिखती थी। एक दूसरे में पिता पुत्र की अनोखी झलक और समानता का यह संगम दूसरों को हमेशा शंकर दयाल में काम बाबू याद दिलाती थी।
एक दूसरे में साकार कामता शंकर की यह जोड़ी अब संसार में नहीं है, मगर देहलीला छोड़ने के बाद भी यादों का ऐसा खजाना छोड़ गए है कि लोग पीढि़यां गुजर जाने का बाद भी कामता शंकर की यादों को लोकगाथा की तरह याद करके खुद को सम्मानित महसूसते है। फिर इस इलाके के लोगों के पास खुद को औरों से बेहतर महसूसने के लिए भी तो नायकों के नाम पर यहीं एक पिता-पुत्र की जोड़ी शेष बचती है, जिसके गुणों और कामयाबियों की आंच से लोग अपने आप को दमकते हुए पाते हैं। नायकों की लगातार कम होती तादाद में सूरज नगरी देव के सबसे बड़े नायकों की कतार में कामता बाबू, शंकर दयाल बाबू के बाद ही देव के राजा जगन्नाथ प्रसाद सिंह किंकर को करीब पाते हैं। यह सुनकर आज भी अंचंभा होता है कि उस जमाने में भी करीब 75-80 साल पहले मूक फिल्म बनाने और कई नाटकों के लेखक हमारे राजाजी की कोई भी लेखन धरोहर की विरासत हमारे पास मौजूद नहीं है। एक कलाकार और संवेदनशील राजा जैसा ही उदार दिल के धनी कामता बाबू की गाथा को सुनकर कभी कभी तो लगता है कि काश, काम बाबू से हम भी मिले होते। मगर शंकर दयाल बाबू से मिलकर मन पूरी तरह शांत और भर सा जाता रहा कि शायद कामता बाबू भी उतना ही प्यार करते , जितना शंकर दयाल जी ने किया।
अभी रात के साढ़े 11 बज चुके है, और थोड़ी ही देर में 25 जनवरी यानी बाबा की 48वीं पुण्यतिथि का पावन मौका भी आ जाएगा। 25 जनवरी से पहले बाबा पर एक टिप्पणी लिखने का लालच मन में आया।  दिल्ली से बाहर होने की वजह से रंजन भैय्या से भी कुछ नहीं लिखवाने का मलाल रहा। कामता सेवा केंद्र ब्लाग के जरिए अपनी जन्मभूमि के दो दो सूरज को नमन करने का सौभाग्य मिला है। बाबा की यादों को मैं देर तक और दूर तक ले जाने में सफल रहूं, यहीं मेरी कामना है। रंजन भैय्या समेत कभी नहीं देखने के बावजूद राजेश भैय्या और रशिम बहन से हर कदम पर सहयोग की अपेक्षा रहेगी, क्योंकि इनलोगों के रचनात्मक मदद के बगैर तो एक कदम भी चलना नामुमकिन है। एक बार फिर देव की पावन धरती और भवानीपुर शंकर दयाल चाचा के सुपुत्रों को पुकार रही है। कामता सेवा केंद्र में स्थापित बाबा की प्रतिमा भी इनकी राह देख रही होगी। हम सब मिलकर बाबा और पिता की प्रतिष्ठा को नया आयाम देने की पहल करें शायद बाबा के प्रति यही हमारी और हम सबकी सबसे सच्ची और सही आदर श्रद्धाजंलि होगी, जिसके लिए हमें बेकरारा होने की जरूरत है। अपनी जन्मभूमि देव के इन सुपुत्रों को आदर श्रद्धा के साथ याद करते हुए उनके अधूरे सपनों को पूरा करने का संकल्प लेना ही शायद रंजन भैय्या को भी भला लगेगा।
अनामी शरण बबल / सोमवार 24 जनवरी 2011/ 23.54 बजे
 Anami Sharan Babal   0 टिप्पणियाँ  

रविवार, २३ जनवरी २०११

कामता प्रसाद सिंह काम की 48वी पुण्य तिथि 25 जनवरी पर पुण्य दिवस पर याद करते हुए


 Anami Sharan Babal   0 टिप्पणियाँ  

बृहस्पतिवार, २० जनवरी २०११


 


शनिवार, ८ जनवरी २०११







कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किशोर कुमार कौशल की 10 कविताएं

1. जाने किस धुन में जीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।  कैसे-कैसे विष पीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।।  वेतन के दिन भर जाते हैं इनके बटुए जेब मगर। ...