शंकर दयाल सिंह को याद करते हुए
1.शंकर दयाल सिंह का व्यकित्तत्व निरंतर निरंतर बहते रहने वाला था। वह कभी ठहरा नही। इसे प्रकृति का एक संयोग ही कहा जाना चाहिए कि इस यात्री ने अपने इस जीवन की महायात्रा पर इस समय महाप्रयाण किया , जबकि वह स्वंय यात्रा पर था। उनकी आयु अभी ऐसी नहीं थी कि उन्हें इस यात्रा पर जाना चाहिए था। उन्हें अभी अनेक काम करने थे। लेकिन ईश्वर को यह शायद स्वीकार नहीं था।
डा. शंकर दयाल शमाँ
पूवँ राष्ट्रपति
2. मानवता जब महामानव के स्तर पर आचरण करता है तो वह पूज्य हो जाता है। भाई शंकर दयाल इसी कोटि के महामानव थे। मेरे मित्र थे, मुझे गुरूवत मानते थे। मैं उन्हें सदा स्मरण करता रहूंगा, क्योंकि वे प्रातः बनकर चले गए। भविष्य में भी भारत के सुपुत्रों में उनका नाम अमर रहेगा।
डा. विजयेंद्र स्नातक
3. क्या हो गया। ईश्वर को क्या कहा जाए। वीर, उत्साही, गरिमावान, भाई गया। भारत की राजनीति तथा उसकी पत्रकारिता एंव उसका साहित्य और भी गरीब हो गया
राजमोहन गांधी
4 शंकर दयाल सिंह – एर ऐसा व्यकि्त जो मानवीय गुणों से भरा रहा। भारतीयता की निरंतर निष्ठा से सेवा की और हिंदी साहित्य के रूप में ग्लोबल ख्याति प्राप्त की। भारत का मान बढ़ाया। बिहार का एक ऐसा सपूत जिसने राजनीति में रहते हुए दलीय सीमा से उठकर मानवता की सेवा की तछा भाईचारा व मित्रता की ऐसी परंपरा बनाई, जो हम सबके लिए निरंतर प्रेरणा देती रहेगी। मैं वयकि्तगत रूप से आहत हूं।
डा. जगन्नाथ मिश्र
पूवँ मुख्यमंत्री
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