मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

तुलसी-कबीर को भी कम चुनौतियां नहीं मिली थीं-- डा. माधोसिंह इंदा

फालना : साहित्य को किसी प्रवृत्ति या परिर्वतन से विचलित होने की जरूरत नहीं है। ग्लोबलाइजेशन ने हमारे पारंपरिक समाज को उदार और खुला बनाने में जरूरी भूमिका का निर्वाह किया है। यह विचार सिरोही के पूर्व विधायक संयम लोढ़ा ने 'साहित्य के समक्ष ग्लोबलाइजेशन और मीडिया की चुनौतियां' विषय पर एस.पी.यू. कालेज फालना में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए व्यक्त किए। लोढ़ा ने कहा कि तुलसीदास और कबीर को भी अपने समय में कम चुनौतियां नहीं मिली थी। लेकिन आज भी वे हमारे सांस्कृतिक मूल्य बोध के अंग हैं। मीडिया की सकारात्मक भूमिका को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि चयन की ऐसी स्वतंत्रता पहले कहाँ थी। उन्होंने कहा कि जेसिका लाल और आरुषि प्रसंगों में मीडिया ने गौरवपूर्ण भूमिका निभाई है। इससे पूर्व कालेज प्राचार्य डॉ. सुरेशचंद्र अग्रवाल ने अतिथियों का स्वागत किया। सेमीनार में दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ. पल्लव ने कहा कि साहित्य का संबंध संवेदना से है और संवेदना व्यवस्था के प्रतिपक्ष का निर्माण करती है।




उन्होंने कहा कि भूमण्डलीकरण को अब उल्‍टा नहीं जा सकता लेकिन इसका अधिक मानवीय और उदार स्वरूप निर्मित किया जा सकता है। पल्लव ने बताया कि मीडिया सनसनी और उत्तेजना इसलिए चाहता है कि उनके लिए कई बार खबर एक उत्पाद का रूप ले लेती है। उन्होंने इन्टरनेट की जनपक्षधर्मी भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि माध्यम की चुनौती स्वीकार कर इसका उपयोग हमें साहित्य और संस्कृति के पक्ष में करना होगा। सिरोही महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. माधव हाडा ने कहा कि साहित्यकार मीडिया का उपभोक्ता है इसलिए अनजाने ही उसकी कल्पनाशीलता इससे प्रभावित होती है। इसके अनुसार उसका अनुकूलीकरण होता है। खास तौर पर टीवी के कारण साहित्य की प्रविधि और शिल्प में जबर्दस्त बदलाव हुए हैं। दूरदर्शन के कार्यक्रम अधिकारी वीरेंद्र परिहार ने दृश्य मीडिया की नई भूमिका का उल्लेख किया। बिग्रेडियर करण सिंह सिंह चौहान ने इलियट की चर्चित कृतियों का उल्लेख कर साहित्य की मूल स्थापना की याद दिलाई। संगोष्ठी में महाविद्यालय की प्रबंध समिति के सचिव शांतीलाल सुराणा, सदस्य एवं पूर्व एडवोकेट इन्द्र राज भंडारी, नगरपालिका अध्यक्ष खंगार राम बावल, सोमेन्द्र गुर्जर, रतन पुनाडिया सहित नगर के बुद्धिजीवी उपस्थित थे।


दूसरे दिन आयोजित समापन समारोह की अध्यक्षता कर रहे मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय, उदयपुर के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं वरिष्ठ आलोचक प्रो. नवल किशोर ने कहा कि ग्लोबलाइजेशन के युग में साहित्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए तथा वैश्वीकरण से आयातित अच्छाइयों को आत्मसात भी करना चाहिए । इस मौके पर उपखण्ड अधिकारी बाली चैनाराम चौधरी ने कहा कि साहित्य के क्षेत्र में इस तरह की राष्ट्रीय संगोष्ठियां शोध के लिए बहुत उपयोगी साबित होती है ।  विशिष्ट अतिथि विद्यावाड़ी संस्थान के निदेशक डॉ. नारायणसिंह राठौड़ ने वैश्वीकरण के आयामों पर प्रकाश डाला । कार्यक्रम में सुलेमान टांक, डॉ. गौतम शर्मा ने विचार रखे।


शोध -पत्र प्रस्तुत किए : प्रचार प्रसार समिति के प्रभारी विनिश अरोड़ा ने बताया कि रविवार के सत्र में शिवगंज प्राचार्या प्रो. नीरा जैन की अध्यक्षता में आबूरोड के जगदीश गिरी , उदयपुर की डॉ. सरला शर्मा एवं कीर्ति चूंडावत, कुशलगढ़ के भानू प्रकाश शर्मा , पाटन के रमेश कुमार , बाड़मेर की डॉ. अरुणा , मुंडारा के डॉ. किरण कुमार , उदयपुर के डॉ. मदनपुरी गोस्वामी , बाल गोपाल शर्मा , फालना के अरविंद सिंह चौहान ने विभिन्न विषयों पर अपने शोध -पत्र प्रस्तुत किए। सत्र का संचालन आबूरोड के दिनेश चारण ने किया।  कवि गोष्ठी के आयोजन सचिव डॉ. माधोसिंह इंदा ने बताया कि शनिवार शाम के सत्र में एक कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया । जिसमें मुख्य अतिथि कवयित्री डॉ. कविता किरण ने गीतों की प्रस्तुतियां देकर सभी श्रोताओं का मन मोह लिया। इस अवसर पर कवि रतन सिंह पुनाडिय़ा ने भी राजस्थानी भाषा में सुंदर प्रस्तुतियां दी। संस्था सचिव शांतीलाल सुराणा ने भी अपनी मौलिक रचना प्रस्तुत की।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

जरा गांव में कुछ दिन ( या घर लौटकर ) तो देखो 😄😄

 गांव का मनोरंजन  डेढ़ महीना गांव में ठहर जाओ,तो गाँववाले बतियाएंगे "लगता है इसका नौकरी चला गया है सुबह दौड़ने निकल जाओ तो फुसफुसाएंगे ...