जहाँ रहो, महकते रहो : महात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की प्रपौत्री नीलम पारिख ने बापू के पत्रों के संग्रह पर आधारित पुस्तक ‘जहाँ रहो, महकते रहो’ में कहा कि तमाम व्यस्तताओं के बावजूद गाँधी जी अपने पत्रों के माध्यम से अपने बेटों और बहुओं का मार्गदर्शन करते थे और उन्हें अपने बहुमूल्य सुझाव देते थे।
गाँधी पत्र व्यवहार के जरिये नियमित रूप से बच्चों से सम्पर्क में रहते थे और वह बच्चों से भी पत्र की उम्मीद रखते थे।
बापू ने अपने विद्रोही पुत्र हरिलाल को लिखा 'तुम्हारा पत्र कोई नहीं पढ़े, ऐसी तुम्हारी इच्छा ठीक है लेकिन पत्रों में कुछ भी गुप्त नहीं होता है। तुम्हारे बारे में सब लोग जानना चाहेंगे तो आश्रम के लोगों के लिए एक ऐसा पत्र तुम्हें जरूर लिखना चाहिए।'
उन्होंने आगे लिखा 'मैं चाहे कितना भी नाखुश क्यों न होऊँ तो भी तुम लोगों के पत्रों की प्रतीक्षा तो करता ही रहता हूँ। मुझे माह में एक पत्र लिखने और एक पत्र पाने का हक है।' बापू लिखते हैं, 'मेरे प्रयोग की बलि जैसे मैं हुआ वैसे तुम और ‘बा’ हुए। बा समझ गई, इसलिए बा ने जो पाया वह अन्य स्त्री ने नहीं पाया। तुम अब तक सारी बात नहीं समझ सके इसलिए तुम्हें गुस्सा आता है।' पत्र व्यवहार के माध्यम से बापू ने जीवन के गूढ़ सिद्धांतों पर एक श्वसुर और पिता की हैसियत से पुत्रवधुओं का भी मार्गदर्शन किया और छोटी से छोटी बातों में दिलचस्पी ली।
पुत्रवधु को लिखे पत्र में बापू ने कहा 'हिन्दू संसार में तो कन्या का व्यवस्थित पालन-पोषण और विकास शादी के बाद ही पूर्ण होता है। रामदास, देवदास की पढ़ाई ठीक से होती होगी। क्या रामदास का कफ ठीक हो गया है?‘‘तुम्हारी मंगवाई हुई किताबें भेज दी है। उनके पैसे तुरंत भेज देना। आश्रम में उधार के खाते नहीं रहने चाहिए क्योंकि उनके पास निजी मिल्कियत नहीं है। अपना खर्च और सजधज ऐसी न रखना कि दूसरों की ईर्ष्या का पात्र बन जाओ।' खानपान का नियमित ध्यान रखना। दूध और साबूदाने की काँजी नियमित रूप से लेना।'
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परिवार के वारिस के बारे में बापू ने लिखा 'तुममें ऐसा अभिमान होना चाहिए कि तुम अपने पिता की विरासत को आगे न बढ़ा सको तो बर्बाद नहीं करोगे। वैसे सच्चा वारिस वह है जो विरासत में वृद्धि करे।'
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