New post on गहराना |
by AishMGhrana |
महीनों पहले
लंबी सड़क के बीच
दरख्तों के सहारे
चलते चलते
तुमने कहा था
भूल जाओगे एक दिन
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याद आते हो आज भी
साँसों में सपनों में
गलीचों में पायदानों में
रोटी के टुकड़ों में
चाय की भाप में
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तुम आज भी
हर शाम कहते हो
भूल गया हूँ मैं तुम्हें
हर रात गुजर जाती है
मेरे शर्मिंदा होने में
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हर सुबह याद आता है
तुम्हें भूल चूका हूँ मैं
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कुछ भूल तो है मेरी..
ऐश्वर्य मोहन गहराना
(१८ जनवरी २०१३ – सुबह
जागने से कुछ पहले
अचानक मन उदास सा था
करवटें बदलते बदलते
तुम्हारी याद में)
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