मंगलवार, 13 जनवरी 2015

तमाशा ● / शहंशाह आलम






कैसा तमाशा है इन दिनों
दिखाई दे रहा
मेरे रोज़ो-शब में
तेरे दिन-रात में

जो तमाशा दिखा रहे
बेधड़क
बेहिचक
उन्हें कहाँ है फ़िक्र
मेरी या तेरी
उदासी की
भूख की
प्यास की
वे तो बस
हमारे लिए
बची घास तक को
बटोर ले जा रहे
जैसे मेरी-तेरी दुनिया
ख़ुशरंग न होकर
इतनी बदरंग ठहरी
इतनी बीमार ठहरी
इतनी लाचार ठहरी
कि वे
वे जो हमारे बादशाह
बने फिर रहे
इस देश से उस देश
इस झूले से उस झूले
इस नृत्य से उस नृत्य
इस बयान से उस बयान
एक झाड़ू के सहारे
हमारे कठिन दिनों को
ठीक-ठाक करने का
दिखा रहे तमाशा
आज का अफ़साना
यही है मेरे दोस्त
आज का तमाशा
यही है मेरे दोस्त
हमारे बादशाह
हमारे रहनुमा का
तोहफ़ा यही है
मेरे लिए
तेरे लिए
इस नए साल में
इस नए हाल में।
Li

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