बुधवार, 8 फ़रवरी 2023

अहमद फ़राज़

 अब के रुत बदली तो ख़ुशबू का सफ़र देखेगा कौन

ज़ख़्म फूलों की तरह महकेंगे पर देखेगा कौन


देखना सब रक़्स-ए-बिस्मल में मगन हो जाएँगे

जिस तरफ़ से तीर आयेगा उधर देखेगा कौन


वो हवस हो या वफ़ा हो बात महरूमी की है

लोग तो फल-फूल देखेंगे शजर देखेगा कौन


हम चिराग़-ए-शब ही जब ठहरे तो फिर क्या सोचना

रात थी किस का मुक़द्दर और सहर देखेगा कौन


आ फ़सील-ए-शहर से देखें ग़नीम-ए-शहर को

शहर जलता हो तो तुझ को बाम पर देखेगा कौन


अहमद फ़राज़

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