गुरुवार, 11 सितंबर 2025

हिंदी दिवस लेख श्रृंखला 2/3 अतुल प्रकाश

अतुल प्रकाश 


हिंदी निबंध श्रृंखला: हिंदी दिवस पखवाड़ा-२


*हिन्दी के सबसे विवादास्पद शब्द : नीच से गोदी मीडिया तक, शब्दों की समय-यात्रा-

अतुल प्रकाश*

शब्द सिर्फ़ आवाज़ नहीं, ये समय की परतें हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि जिन शब्दों को आप गाली समझते हैं, उनका जन्म किस अर्थ में हुआ था?

हम हिंदी के सबसे विवादास्पद और शक्तिशाली शब्दों की यात्रा पर निकलेंगे। हम जानेंगे कि कैसे 'नीच' एक सामाजिक वर्गीकरण से अपमानजनक गाली बन गया और कैसे 'हरामज़ादा' सिनेमाई इतिहास का हिस्सा बना। हम 'शूद्र' और 'यवन' जैसे प्राचीन शब्दों के बदलते अर्थों को समझेंगे और देखेंगे कि कैसे 'फिरंगी', 'गुलाम' और 'कुली' जैसे शब्द उपनिवेशवाद के प्रतीक बन गए।


आज के दौर के शब्दों, जैसे 'गोदी मीडिया' और 'अर्बन नक्सल' की उत्पत्ति और उनके पीछे छिपी राजनीति को भी समझेंगे। इसके साथ ही, हम 'कमीना', 'लफ़ंगा' और 'भड़वा' जैसे शब्दों की चौंकाने वाली व्युत्पत्ति को भी जानेंगे।

जब आप  भाषा की शक्ति, उसके बदलाव और हमारे जीवन पर उसके प्रभाव के बारे में सोचते हैं तो एक अजीब सा प्रश्न उठता है कि आखिर इन शब्दों की उत्पत्ति कैसे हुई होगी।

👉 चर्चा के मुख्य बिंदु :


*१. विवादित शब्दों की व्युत्पत्ति और इतिहास: 'नीच', 'हरामज़ादा', 'शूद्र', 'यवन'*

*२.उपनिवेशवाद का शब्दों पर प्रभाव: 'फिरंगी', 'गुलाम', 'कुली', 'नेटिव'*

*३. आधुनिक राजनीतिक शब्दों का विश्लेषण: 'गोदी मीडिया', 'अर्बन नक्सल'*

*४.आम बोलचाल की गालियों का मूल: 'गाली', 'भड़वा', 'कमीना', 'लफ़ंगा'*

शब्दों का अर्थ क्यों बदलता है? शब्द सिर्फ़ बोलते नहीं, वे हमारा इतिहास, हमारी सोच और हमारी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य भी तय करते हैं।


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अतुल प्रकाश


 हिंदी निबंध श्रृंखला: हिंदी दिवस पखवाड़ा -3


*दो भाषाओं के मिलावट से बने हिंदी के शब्द -अतुल प्रकाश*


*भाषा का मामला भी तो ‘बहता नीर’ ठहरा। बहने दीजिए, देखिए कहाँ जाकर रुकता है। ज़माना फ्यूज़न का है भाई, मिलावट कहाँ नहीं है!* 

हिंदी में बहुत से शब्द ऐसे भी हैं जो समझ-बूझकर आवश्यकतानुसार दो भाषाओं के मेल-मिलाप से बना लिए गए हैं और प्रचलित हैं। उदाहरण के लिए ‘डबलरोटी’, ‘रेलगाड़ी’ और ‘नौकर-चाकर’ जैसे शब्दों पर ध्यान दीजिए। शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा मिले जिसकी ज़ुबान पर ये शब्द न आए हों। हमारे रोज़मर्रा के व्यवहार में गहरे तक रचे-बसे हुए हैं ये। लेकिन, क्या कभी आपने ध्यान दिया कि इन शब्दों के मूल में आख़िर भाषा कौन सी है। ध्यान देंगे तो पता चलेगा कि अँग्रेज़ी के ‘डबल’ के साथ हिन्दी की ‘रोटी’, बड़े आराम से हजम की जाने लगी और अँग्रेज़ी की ‘रेल’ के साथ हिन्दी की ‘गाड़ी’ चल निकली। तुर्की के ‘नौकर’ के साथ फ़ारसी का ‘चाकर’ भी हिन्दी में बड़े आराम से गलबहियाँ करने लगा।


हिन्दी के साथ संस्कृत का गहरा नाता है, इसलिए इन दोनों भाषाओं के शब्द एक साथ सङ्गति बैठाते ज़्यादा दिखाई देंगे। ‘अणुबम’, ‘उपबोली’, ‘गुरुभाई’, ‘परमाणु बम’, ‘आवागमन’, ‘खेती-व्यवस्था’, ‘घर-द्वार’, ‘समझौता-प्रेमी’ जैसे शब्दों में ‘अणु’, ‘उप’, ‘गुरु’, ‘परमाणु’, ‘गमन’, ‘व्यवस्था’, ‘द्वार’, ‘प्रेमी’, संस्कृत के तत्सम शब्द हैं तो ‘बम’, ‘बोली’, ‘भाई’, ‘आवा’, ‘खेती’, ‘घर’, ‘समझौता’ जैसे शब्द हिन्दी के अपने हैं। 

इसके अलावा भाषा के विकास क्रम में समय-समय पर अँग्रेज़ी, फ़ारसी, अरबी और तुर्की बोलने वालों के साथ हिन्दीवालों का लेना-देना काफ़ी रहा है तो इन भाषाओं के मेल से शब्द निर्माण की भी एक प्रक्रिया निरन्तर चलती रही है। ‘खानापूरी’ और ‘पेशाबघर’ जैसे शब्द हम अकसर प्रयोग करते हैं। ‘खाना’ और ‘पेशाब’ फ़ारसी के हैं तो ‘पूरी’ और ‘घर’ हिन्दी के। इसी तरह ‘धन-दौलत’, ‘समझौता-परस्त’, ‘काम-धन्धा’, ‘गुलाब-जामुन’, ‘खेल-तमाशा’, ‘चोर-बाज़ार’, ‘दाना-पानी’, ‘बाल-बच्चे’, ‘तन-बदन’, ‘सीधा-सादा’ जैसे संयुक्त शब्दों में पूर्वार्ध हिन्दी है तो उत्तरार्ध फ़ारसी। अरबी के ‘अख़बार’, ‘किताब’ और ‘माल’ में हिन्दी के ‘वाला’, ‘घर’ और ‘गाड़ी’ मिले तो बन गए ‘अख़बारवाला’, ‘किताबघर’ और ‘मालगाड़ी’। ‘टिकटबाबू’, ‘पॉकेटमार’, ‘पार्सल-घर’, ‘पुलिसवाला’, ‘मोटरगाड़ी’, ‘ठलुआ-क्लब’ में हम आसानी से समझ सकते हैं कि ‘टिकट’, ‘पॉकेट’, ‘पार्सल’, ‘पुलिस’, ‘मोटर’ और ‘क्लब’ अँग्रेज़ी के हैं तो ‘बाबू’, ‘मार’, ‘घर’, ‘वाला’, ‘गाड़ी’, ‘ठलुआ’ हिन्दी के। संस्कृत और अँग्रेज़ी के मेल से भी हिन्दी के शब्द बने हैं। उदाहरण के लिए ‘अधिकारी-क्लब’, ‘क्रास-मुद्रा’ ‘प्रेस-सम्मेलन’, ‘प्रेस-वार्ता’ आदि। संस्कृत-फ़ारसी का मेल देखना हो तो ‘छायादार’, ‘विज्ञापनबाज़ी’, ‘गुलाब-वाटिका’, ‘मजदूर-संघ’ जैसे शब्दों पर गौर फ़रमाइए। ‘छाया’, ‘विज्ञापन’, ‘वाटिका’ और ‘सङ्घ’ संस्कृत के हैं तो ‘दार’, ‘बाज़ी’, ‘गुलाब’ और ‘मजदूर’ फ़ारसी के।


ऐसे ही तुर्की की ‘तोप’ में हिन्दी की ‘गाड़ी’ लगाकर ‘तोपगाड़ी’ चलाई गई। इस ‘तोप’ को संस्कृत के ‘सैनिक’ चलाते हैं तो ‘तोप सैनिक’ बन जाते हैं। ‘धन-दौलत’ में संस्कृत के ‘धन’ के साथ अरबी की ‘दौलत’ दिखाई देती है। संस्कृत के ‘विवाह’ में अरबी का ‘ख़र्च’ ‘विवाह-ख़र्च’ की व्यवस्था करता है। किसी ‘शक्कर मिल’ तक आप पहुँचें तो फ़ारसी की ‘शक्कर’ अँग्रेज़ी की ‘मिल’ में ही दिखाई देगी। ‘पॉकेट-ख़र्च’ का इन्तज़ाम अँग्रेज़ी और अरबी मिलकर करते हैं। ‘गोलची’ की कामयाबी भी अँग्रेज़ी के ‘गोल’ और तुर्की के ‘ची’ में है।



मंगलवार, 9 सितंबर 2025

हिंदी दिवस पखवाड़ा धारावाहिक-०१

 

*हिंदी के राह के रोड़े -

अतुल प्रकाश*


आज आपको हिन्दी दिन-दूनी रात-चौगुनी गति से प्रगति पथ पर बढ़ती हुई दिखाई दे सकती है। हालाँकि, एक अर्थ में यह ग़लत भी नहीं हैं। निश्चित रूप से हिन्दी का संसार विस्तार कर रहा है। राष्ट्र की सीमाएँ पार कर विदेशी धरती पर भी इसने अपनी हैसियत साबित की है। सरहदों के पार निगाह दौड़ाएँगे तो हिन्दी को सम्भावनाओं के संसार में सरपट दौड़ लगाते और सम्भावनाओं का ख़ुद का एक नया संसार रचते हुए पाएँगे। यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि भारतीय बाज़ार में पैठ की लालसा पाले विदेशी भी अब हिन्दी सीखने को आतुर हैं। 

यदि मॉरीशस, त्रिनिदाद, दक्षिण अफ्रीका, गुयाना, सूरीनाम तथा फीजी जैसे देशों में प्रवासी भारतीय अपनी विरासत के तौर पर इस भाषा को पाल-पोस रहे हैं तो अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, जर्मनी, पोलैण्ड, रूस, चीन, जापान, कोरिया जैसे अन्यान्य देशों के लिए यह बाज़ार की ज़रूरत बन रही है। यह सोचना भी कम अच्छा नहीं लगता कि दुनिया के डेढ़ सौ से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जाने लगी है। और तो और, हिन्दी फिल्में सीमा के पार भी अपना बाज़ार बना रही हैं और हिन्दी गाने अहिन्दीभाषियों के कानों में रस घोलने लगे हैं। ऐसे में, जब हमारी हिन्दी विश्वपटल पर एक बड़ी भूमिका में आने को तैयार दिखाई दे रही हो, तब कोई भी यह सवाल कर ही सकता है कि हमारे जैसे लोग हिन्दी के हाल पर आख़िर क्यों इतने बेहाल हुए जा रहे हैं?

इसी देश में अँग्रेज़ी माध्यम के ऐसे विद्यालय खड़े हो रहे हैं, जहाँ हिन्दी बोलने पर अघोषित सेंसर है। ‘पापा-मम्मी’ के रूप में काफ़ी हद तक हमारे नौनिहालों का संस्कृतीकरण हो चुका है। अब गाँवों में भी ‘माई’, ‘बाबू’, ‘काका’ बोलना दकियानूसी और शर्म का विषय बनने लगा है। जिस गति से कानवेण्टीकरण चल रहा है, उसमें ‘कुकुरमुत्ते’ वाला मुहावरा भी बहुत पीछे छूट गया है।


हिन्दी का हाल हिन्दुस्तान में कैसा है, बयान कर पाना आसान नहीं। उम्मीदों से ज़्यादा आशङ्काएँ हैं। हिन्दी का खा-खाकर मुटिया रहे लोग भी जब अँग्रेज़ी के ढोल-ताशे बजाने लगें तो फिर कहने को रह ही क्या जाता है? आज़ादी के इतने बरस बाद गुलाम मानसिकता घटने की कौन कहे, जैसे दिनोंदिन बढ़ ही रही है। कभी फादर कामिल बुल्के ने कहा था—‘‘संस्कृत माँ, हिन्दी गृहिणी और अँग्रेज़ी नौकरानी है।’’ बेल्जियम से आकर हिन्दी के लिए ख़ुद को समर्पित कर देने वाले फादर ने यह कहते हुए इस बात को गहरे तक महसूस किया था कि इस देश की असल भाषाई ज़रूरत क्या है। वास्तव में उन्होंने संस्कृत, हिन्दी और अँग्रेज़ी के लिए जिन जगहों को रेखाङ्कित किया था, उनकी प्रासङ्गिकता आज भी वैसी-की-वैसी है। लेकिन, दुर्भाग्य कि हमारे सत्ताधीश निरन्तर जैसी परिस्थितियाँ बना रहे हैं उसमें नौकरानी राजरानी बन गई है और माँ और गृहिणी को हर दिन लतियाती-धकियाती हुई दिखाई दे रही है।

 माँ (संस्कृत) को तो इस हाल में लाकर छोड़ दिया गया है कि भूले से भी आप उसके पक्ष में कोई बात करते दिखाई दे जाएँ तो बिना किसी किन्तु-परन्तु के दकियानूसी, मनुवादी, पोंगापन्थी आदि-आदि की चिप्पी आप पर चिपका दी जाएगी। हिन्दी की हालत ज़रूर अभी इतनी दयनीय नहीं है, पर आने वाले कुछ वर्षों में इसका भी हाल वही हो जाय और यह भी विलुप्त होने के कगार पर पहुँचा दी जाए तो आश्चर्य नहीं।


कुछ लोग मेरी बात पर हँस सकते हैं और कह सकते हैं कि मैं बेवजह का स्यापा कर रहा हूँ।


सोमवार, 8 सितंबर 2025

हिंदी पाक्षिक महोत्सव /अतुल प्रकाश

 

हिंदी दिवस पखवाड़ा-१०


*हिंदी भाषा के लिए प्रयुक्त होने वाला शब्द 'हिंदी' भारतीय शब्द नहीं है-


अतुल प्रकाश*


(हिंदी शब्द की उत्पत्ति) 


अधिकांश लोग यह नहीं जानते कि *'हिंदी'* शब्द भारतीय शब्द नहीं है बल्कि एक विदेशी शब्द है । आईए अब हम जानते हैं कि हिंदी शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई? 

हिन्दी शब्द का संबंध 'सिन्धु' (मानक हिन्दी : सिंधु) से माना जाता है। 'सिंधु', सिंधु नदी को कहते थे और उसी आधार पर उसके आस-पास की भूमि को सिंधु कहने लगे। यह सिंधु शब्द ईरानी में जाकर ‘हिन्दू’, हिन्दी और फिर ‘हिन्द’ हो गया। बाद में ईरानी धीरे-धीरे भारत के अधिक भागों से परिचित होते गए और इस शब्द के अर्थ में विस्तार होता गया तथा हिन्द शब्द पूरे भारत का वाचक हो गया। इसी में ईरानी का ईक प्रत्यय लगने से (हिन्द+ईक) ‘हिन्दीक’ बना जिसका अर्थ है ‘हिन्द का’। यूनानी शब्द ‘इंडिका’ या लातिन 'इंडेया' या अंग्रेज़ी शब्द ‘इण्डिया’ आदि इस ‘हिन्दीक’ के ही दूसरे रूप हैं। 

*हिन्दी भाषा के लिए इस शब्द का प्राचीनतम प्रयोग शरफुद्दीन यज्दी’ के ‘जफरनामा’(१४२४) में मिलता है। प्रमुख उर्दू लेखक १९वीं सदी तक अपनी भाषा को हिन्दी या हिन्दवी ही कहते थे।*


प्रोफेसर महावीर सरन जैन ने अपने "हिन्दी एवं उर्दू का अद्वैत" शीर्षक आलेख में हिन्दी की व्युत्पत्ति पर विचार करते हुए कहा है कि *ईरान की प्राचीन भाषा अवेस्ता में 'स्' ध्वनि नहीं बोली जाती थी बल्कि 'स्' को 'ह्' की तरह बोला जाता था। जैसे संस्कृत शब्द 'असुर' का* अवेस्ता में सजाति समकक्ष शब्द 'अहुर' था। अफ़ग़ानिस्तान के बाद सिंधु नदी के इस पार हिन्दुस्तान के पूरे इलाके को प्राचीन फ़ारसी साहित्य में भी 'हिन्द', 'हिन्दुश' के नामों से पुकारा गया है तथा यहाँ की किसी भी वस्तु, भाषा, विचार को विशेषण के रूप में 'हिन्दीक' कहा गया है जिसका मतलब है 'हिन्द का' या 'हिन्द से'। यही 'हिन्दीक' शब्द अरबी से होता हुआ ग्रीक में 'इंडिके', 'इंडिका', लातिन में 'इंडेया' तथा अंग्रेज़ी में 'इण्डिया' बन गया। दूसरा एक भावना के मुताबिक, अरबी हिन्दीया लफ्ज के साधारण लातिनी कृत रूप है इण्डिया ।  

*साहित्य में भारत (हिन्द) में बोली जाने वाली भाषाओं के लिए 'जुबान-ए-हिन्दी' पद का उपयोग हुआ है।* 

भारत आने के बाद अरबी-फ़ारसी बोलने वालों ने 'जुबान-ए-हिन्दी', 'हिन्दी जुबान' अथवा 'हिन्दी' का प्रयोग दिल्ली-आगरा के चारों ओर बोली जाने वाली भाषा के अर्थ में किया।



रविवार, 7 सितंबर 2025

हिंदी दिवस पर विशेष

: हिंदी दिवस पखवाड़ा-

08092025


*भारतीय पुरुषों की  आन- बान और शान का प्रतीक 'मूंछ' स्त्रीलिंग होती है तथा भारतीय औरतों की पहचान का प्रतीक 'सिंदूर' स्त्रीलिंग होता है?-


अतुल प्रकाश* 


*(हिंदी शब्दों के लिंगभेद परंपरा और सिद्धांत)*


इस मजे की बात शुरुआत करते हैं भारतीय पुरुषों की आन बान और शान का प्रतीक *"मूंछ"* एक स्त्रीलिंग शब्द है और भारतीय महिलाओं का प्रतीक ' *सिंदूर*' एक पुल्लिंग शब्द है। ऑपरेशन सिंदूर की तो चर्चा आपने सुनी ही होगी। खैर छोड़िए इन सब बातों को अब हम चर्चा करते हैं हिंदी शब्दों के *लिंग भेद* यानी स्त्रीलिंग-पुलिंग विवेचना के संबंध में परंपरा और सिद्धांत के विषय में।

जहां तक मेरी जानकारी है *हिंदी में स्त्रीलिंग-पुलिंग के भेद को परंपरा और सिद्धांत दोनों के अनुसार प्रयोग किया जाता है।* 

अब हम परंपरा की बात करते हैं हिंदी की जननी भाषा संस्कृत में तीन लिंग होते हैं स्त्रीलिंग , पुलिंग तथा नपुंसक लिंग परंतु हिंदी में मात्र दो ही लिंग होते हैं स्त्रीलिंग और पुल्लिंग और प्रश्न उठता है कि नपुंसक लिंग वाले शब्दों की विवेचना कैसे की जाए तो यहां समझना जरूरी है की हिंदी में भी नपुंसक लिंग के शब्द होते हैं। 


*नपुंसक शब्द:* - 

हिंदी व्याकरण में, नपुंसक शब्द वे होते हैं जो न तो स्त्रीलिंग होते हैं और न ही पुल्लिंग। ये शब्द अक्सर निर्जीव वस्तुओं, भावनाओं, या अमूर्त चीजों को दर्शाते हैं।


नपुंसक शब्द की विशेषताएं


- *लिंग*: नपुंसक शब्द किसी विशिष्ट लिंग (स्त्री या पुरुष) से संबंधित नहीं होते।

- *उदाहरण*: पानी, दूध, ज्ञान, प्रेम, सुख, दुख।

- *प्रयोग*: इन शब्दों के लिए विशेष लिंग चिह्न नहीं होते, और ये अक्सर एकवचन या बहुवचन में प्रयोग होते हैं।

नपुंसक शब्द हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और ये विशिष्ट लिंग वर्गीकरण से अलग होते हैं। ये शब्द अक्सर वस्तुओं, भावनाओं, या अमूर्त अवधारणाओं को दर्शाते हैं।

*हिंदी में लिंग भेद-* 

हिंदी  में शब्द दो लिंगों के होते हैं: *पुल्लिंग और स्त्रीलिंग।*

 *पुल्लिंग*

- हिंदी के वैसे शब्द जिससे पुरुष जाति का बोध हो (जैसे छात्र, शेर) और *स्त्रीलिंग* वह संज्ञा है जिससे स्त्री जाति का बोध हो (जैसे छात्रा, शेरनी)।

कभी-कभी सिद्धांत के विपरीत भी परंपरा अनुसार स्त्रीलिंग-पुलिंग का भेद किया जाता है। ऐसे कई उदाहरण आप सभी को हिंदी में मिल जाएंगे।

: *हिंदी में लिंग के प्रकार-* 

*1. पुल्लिंग:*

जिस संज्ञा शब्द से पुरुष जाति का बोध होता है, वह पुल्लिंग कहलाता है।

उदाहरण: लड़का, राजा, शिक्षक, छात्र, शेर।

*2. स्त्रीलिंग:*

जिस संज्ञा शब्द से स्त्री जाति का बोध होता है, वह स्त्रीलिंग कहलाता है।

उदाहरण: लड़की, रानी, शिक्षिका, छात्रा, शेरनी।

लिंग भेद के सिद्धांत (नियम)


*लिंग निर्धारण के कई सिद्धांत हैं:* 

*पुरुष और स्त्री जाति का बोध:*

पुरुषों के लिए प्रयुक्त होने वाले शब्द पुल्लिंग होते हैं (जैसे - चाचा, नौकर)। 

स्त्रियों के लिए प्रयुक्त होने वाले शब्द स्त्रीलिंग होते हैं (जैसे - चाची, नौकरानी)। 

*प्राकृतिक लिंग:*

कुछ शब्दों का लिंग प्राकृतिक होता है, जैसे – पर्वत, समुद्र, ग्रह आदि प्रायः पुल्लिंग होते हैं (जैसे हिमालय, हिंद महासागर), जबकि नदी, पृथ्वी आदि प्रायः स्त्रीलिंग होती हैं (जैसे गंगा)। 

*प्रत्यय के आधार पर:*

*आमतौर पर 'आ' और 'इ' में समाप्त होने वाले संज्ञा शब्द पुल्लिंग होते हैं।"*


*'ई' से समाप्त होने वाले शब्द अक्सर स्त्रीलिंग होते हैं, जैसे - भाषा, आशा।* 

*कुछ प्रत्यय लगाकर स्त्रीलिंग* बनाया जाता है, जैसे 'लड़का' से 'लड़की', 'बंदर' से 'बंदरिया'। 

*निर्जीव वस्तुओं का लिंग:*

कई निर्जीव वस्तुएँ भी व्याकरणिक रूप से पुल्लिंग या स्त्रीलिंग होती हैं। 

पुल्लिंग के उदाहरण: घर, शहर, बगीचा, बंगला, दूध, चावल। 

स्त्रीलिंग के उदाहरण: भाषा, आशा, किताब, मिठाई, रोटी, दाल, दाल। 

*कुछ महत्वपूर्ण समूह:*

धातुएँ: पारा, पीतल, सोना, तांबा पुल्लिंग होते हैं, अपवाद स्वरूप चाँदी स्त्रीलिंग है। 

रत्न: नीलम, पुखराज, मोती पुल्लिंग होते हैं। 

*पर्वत और देशों के नाम:* पर्वतों के नाम प्रायः पुल्लिंग होते हैं, जैसे हिमालय, भारत। 

नदियों के नाम: ये प्रायः स्त्रीलिंग होते हैं, जैसे गंगा, यमुना परंतु सोन नदी और ब्रह्मपुत्र नदी पुलिंग है।


: *हिंदी के प्रशासनिक शब्दों का लिंगनिर्णय-* 


हिंदी में प्रयुक्त होने वाले प्रशासनिक शब्द जैसे- राष्ट्रपति , उपराष्ट्रपति, न्यायाधीश, अधिवक्ता, प्रधानमंत्री, उप प्रधानमंत्री, मंत्री, उपमुख्यमंत्री , जिलाधिकारी, समाहर्ता, उपसमाहर्ता, आरक्षी अधीक्षक आदि:-आदि शब्द हिंदी में पुलिंग होते हैं और वे रूढ़ होते हैं अर्थात  उनके अर्थ तथा लिंग में परिवर्तन नहीं किया जा सकता।


*निष्कर्ष-* 

हिंदी शब्दों  के प्राकृतिक या व्याकरणिक लिंग के अनुसार क्रिया, विशेषण और सर्वनाम बदलते हैं, जिससे वाक्य में एकरूपता आती है।

हिंदी दिवस लेख श्रृंखला 2/3 अतुल प्रकाश

अतुल प्रकाश  हिंदी निबंध श्रृंखला: हिंदी दिवस पखवाड़ा-२ *हिन्दी के सबसे विवादास्पद शब्द : नीच से गोदी मीडिया तक, शब्दों की समय-यात्रा- अतुल ...