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सुदामा पाण्डेय धूमिल हिंदी की समकालीन कविता के दौर के मील के पत्थर सरीखे कवियों में एक है. उनकी कविताओं में आजादी के सपनों के मोहभंग की पीड़ा और आक्रोश की सबसे सशक्त अभिव्यक्ति मिलती है. व्यवस्था जिसने जनता को छला है,उसको आइना दिखाना मानों धूमिल की कविताओं का परम लक्ष्य है.
धूमिल का जन्म वाराणसी के पास खेवली गांव में हुआ था| उनका मूल नाम सुदामा पांडेय था| धूमिल नाम से वे जीवन भर कवितायें लिखते रहे| सन् १९५८ मे आई टी आई (वाराणसी) से विद्युत डिप्लोमा लेकर वे वहीं विदयुत अनुदेशक बन गये| ३८ वर्ष की अल्पायु मे ही ब्रेन ट्यूमर से उनकी मृत्यु हो गई|
सन १९६० के बाद की हिंदी कविता में जिस मोहभंग की शुरूआत हुई थी, धूमिल उसकी अभिव्यक्ति करने वाले अंत्यत प्रभावशाली कवि है| उनकी कविता में परंपरा, सभ्यता, सुरुचि, शालीनता और भद्रता का विरोध है, क्योंकि इन सबकी आड् मे जो ह्र्दय पलता है, उसे धूमिल पहचानते हैं| कवि धूमिल यह भी जानते हैं कि व्यवस्था अपनी रक्षा के लिये इन सबका उपयोग करती है, इसलिये वे इन सबका विरोध करते हैं| इस विरोध के कारण उनकी कविता में एक प्रकार की आक्रामकता मिलती है| किंतु उससे उनकी उनकी कविता की प्रभावशीलता बढती है| धूमिल अकविता आन्दोलन के प्रमुक कवियों में से एक हैं| धूमिल अपनी कविता के माध्यम से एक ऐसी काव्य भाषा विकसित करते है जो नई कविता के दौर की काव्य- भाषा की रुमानियत, अतिशय कल्पनाशीलता और जटिल बिंबधर्मिता से मुक्त है। उनकी भाषा काव्य-सत्य को जीवन सत्य के अधिकाधिक निकट लाती है।
धूमिल के तीन काव्य-संग्रह प्रकाशित हैं – संसद से सड़क तक, कल सुनना मुझे और सुदामा पांडे का प्रजातंत्र। उन्हें मरणोपरांत १९७९ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
धूमिल की कुछ सबसे उल्लखनीय कवितायेँ हैं- मोचीराम, बीस साल बाद आदि.
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