उम्र गुजरी है मेरी भी इस शहर मे
है मुझे भी भान इसकी आदतों का
तैरती रंगीनिया किस-किस गली मे
और पैठी है कहाँ गहरी उदासी ,
एक मकतब है मेरी यादों का इसमे
एक तेरी शाम मेरे नाम की है
एक ही दरिया है इसकी सरहदों मे
है दफन जिसमे मेरी बेताबियाँ भी ,
एक है वो भी गली तेरे मकाँ की
एक मेरी खिड़कियों का मौन हिस्सा
लौटकर आने पे तेरे बेसबब ही
शोर करता था जो मेरी धडकनों मे ,
एक ही खुशबू है इस पूरे शहर मे
जो मेरे कपड़ों मे है महफूज अब तक
एक ही आहट सुनी है मैंने अब तक
एक ही स्पर्श है मेरी रगों मे ,
कुछ खयाल-ओ-ख्वाब भी है
कुछ इबादत भी कहीं है
एक लंबी नज़्म के टूटे से टुकड़े
तैरते हैं अब भी इस बाग-ए-चमन मे ,
और है हर रात की मायूसियाँ भी
एक आहट की अभी उम्मीद भी है
रात गहराने तलक जिंदा थीं सांसें
मौत की ख़्वाहिश दस्तावेज़ सी हैं ,
उम्र जो गुजरी है मेरी इस शहर मे
तेरे आँखों की नमी का सिलसिला है !!
अर्चना राज
उम्र गुजरी है मेरी भी इस शहर मे
है मुझे भी भान इसकी आदतों का
तैरती रंगीनिया किस-किस गली मे
और पैठी है कहाँ गहरी उदासी ,
है मुझे भी भान इसकी आदतों का
तैरती रंगीनिया किस-किस गली मे
और पैठी है कहाँ गहरी उदासी ,
एक मकतब है मेरी यादों का इसमे
एक तेरी शाम मेरे नाम की है
एक ही दरिया है इसकी सरहदों मे
है दफन जिसमे मेरी बेताबियाँ भी ,
एक है वो भी गली तेरे मकाँ की
एक मेरी खिड़कियों का मौन हिस्सा
लौटकर आने पे तेरे बेसबब ही
शोर करता था जो मेरी धडकनों मे ,
एक ही खुशबू है इस पूरे शहर मे
जो मेरे कपड़ों मे है महफूज अब तक
एक ही आहट सुनी है मैंने अब तक
एक ही स्पर्श है मेरी रगों मे ,
कुछ खयाल-ओ-ख्वाब भी है
कुछ इबादत भी कहीं है
एक लंबी नज़्म के टूटे से टुकड़े
तैरते हैं अब भी इस बाग-ए-चमन मे ,
और है हर रात की मायूसियाँ भी
एक आहट की अभी उम्मीद भी है
रात गहराने तलक जिंदा थीं सांसें
मौत की ख़्वाहिश दस्तावेज़ सी हैं ,
उम्र जो गुजरी है मेरी इस शहर मे
तेरे आँखों की नमी का सिलसिला है !!
अर्चना राज
एक तेरी शाम मेरे नाम की है
एक ही दरिया है इसकी सरहदों मे
है दफन जिसमे मेरी बेताबियाँ भी ,
एक है वो भी गली तेरे मकाँ की
एक मेरी खिड़कियों का मौन हिस्सा
लौटकर आने पे तेरे बेसबब ही
शोर करता था जो मेरी धडकनों मे ,
एक ही खुशबू है इस पूरे शहर मे
जो मेरे कपड़ों मे है महफूज अब तक
एक ही आहट सुनी है मैंने अब तक
एक ही स्पर्श है मेरी रगों मे ,
कुछ खयाल-ओ-ख्वाब भी है
कुछ इबादत भी कहीं है
एक लंबी नज़्म के टूटे से टुकड़े
तैरते हैं अब भी इस बाग-ए-चमन मे ,
और है हर रात की मायूसियाँ भी
एक आहट की अभी उम्मीद भी है
रात गहराने तलक जिंदा थीं सांसें
मौत की ख़्वाहिश दस्तावेज़ सी हैं ,
उम्र जो गुजरी है मेरी इस शहर मे
तेरे आँखों की नमी का सिलसिला है !!
अर्चना राज
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