रविवार, 2 दिसंबर 2012

इस शहर में / अर्चना राज








उम्र गुजरी है मेरी भी इस शहर मे
है मुझे भी भान इसकी आदतों का
तैरती रंगीनिया किस-किस गली मे
और पैठी है कहाँ गहरी उदासी ,

एक मकतब है मेरी यादों का इसमे
एक तेरी शाम मेरे नाम की है
एक ही दरिया है इसकी सरहदों मे
है दफन जिसमे मेरी बेताबियाँ भी ,

एक है वो भी गली तेरे मकाँ की
एक मेरी खिड़कियों का मौन हिस्सा
लौटकर आने पे तेरे बेसबब ही
शोर करता था जो मेरी धडकनों मे ,

एक ही खुशबू है इस पूरे शहर मे
जो मेरे कपड़ों मे है महफूज अब तक
एक ही आहट सुनी है मैंने अब तक
एक ही स्पर्श है मेरी रगों मे ,

कुछ खयाल-ओ-ख्वाब भी है
कुछ इबादत भी कहीं है
एक लंबी नज़्म के टूटे से टुकड़े
तैरते हैं अब भी इस बाग-ए-चमन मे ,

और है हर रात की मायूसियाँ भी
एक आहट की अभी उम्मीद भी है
रात गहराने तलक जिंदा थीं सांसें
मौत की ख़्वाहिश दस्तावेज़ सी हैं ,

उम्र जो गुजरी है मेरी इस शहर मे
तेरे आँखों की नमी का सिलसिला है !!

अर्चना राज

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