गुरुवार, 20 मार्च 2014

खुशवंत परिवार का ब्लैक फेस





अनामी शरण बबल

खुशवंत ने लेखन में गाली यौनसुख और बोल्डनेस के नाम पर एक औरत को सेक्समशीन की तरह देखा जिससे जम कर केवल बिस्तरानंद हो सके। कामसूत्र के 84 आसन से भी बढ़ चढ़ कर कई शीर्षासनों वाले सेक्स पोजिशन की खोज करने वाले सरदार जी ने औरतों का अपने शरीर के सभी सभी अंगों से रसास्वादन किया है। सरदार ने संपादक पत्रकार लेखक नौकरशाह के रूप में धाक जमाई है।, मगर इनके पिता दिवंगत श्री शोभा सिंह शामली सहारनपुर के शादीराम के साथ मिलकर अंग्रेजों की चापलूसी करते हुए शहीदे आजम भगत सिंह राजगुरू और सुखदेव के खिलाफ झूठी गवाही दी थी। जिसके बिना पर ही भगत सिंह राजगुरू और सुखदेव को फांसी पर लटकाया गया था। देश के साथ गद्दारी करने वाले इन दो गद्दारों में शादीराम को तो पूरे पश्चिमी यूपी में बॉयकाट का सामना करना पड़ा. लोगों में सर शादीराम के खिलाफ इतनी नफरत थी कि शादीराम के मरने के बाद सहारनपुर से लेकर बागपत तक कहीं भी किसी दुकानदार ने कफन नहीं दी। हार कर परिवार वालों को दिल्ली में आकर कफन से शादीराम की नंगई और बदनामी पर पर्दा डाला। वहीं अपनी गद्दारी के बाद अंग्रेजों के और भी ज्यादा प्यारे राजदुलारे होकर शोभा सिंह और खुशवंत के दादा सुजान सिंह ने जमकर मलाई काटी। क्नाट प्लेस को बनाने का ठेका सुजान और शोभा को मिला और देखते ही देखते उस जमाने में यह सिंह परिवार करोड़पति हो गया। आजादी के बाद भी सिगार पीते हुए सरकारी दफ्तरों में सबसे ज्यादा रसूखदारो में शोभा ही माने जाते थे.। हालांकि अपने आप को सलीके के साथ नंगा दिखाते हुए भी सरदार जी अपने पिता की एक समाजसेवी इमेजीको ही हाई क्लास सोसायटी में परोसा । देश के पीएम मनमोहन सिंह को चुनाव के लिए दो लाख बतौर कर्ज या दान देने वाले खुशवंत ने कभी भी यह खुलासा नहीं किया कि मनमोहन सिंह ने फिर क्या दो लाख रूपए लौटाए थे ? मनमोहन सिंह पर खुशवंत सिंह ने इतना प्रेशर बनाया कि पीएम साहब क्नॉट प्लेस एरिया के विंडसर प्लेस का नाम बदल कर सर शोभा सिंह प्लेस करने का मन बना लिया था। हो सकता है कि मनमोहन एक ही झटके में खुशवंत के तमाम अहसानों को उतारना चाहते हो । इस बाबत मनमोहन जी ने दिल्ली की सीएम शीीला दीक्षित को एक पत्र भेजा और इस बाबत सलाह मांगी। यहां पर बुरा हो उन गुप्तचरों को कि शीला के पास मनमोहन जी का भेजा लेटर लीक हो गया और जब तक शीला अफने पीएम को कोई सलाह देती , उससे पहले कि इस आशय की खबरे अखबारों मे छपने लगी. कांग्रेसी नजर में लानत मलानत हो उस बेचारे मनिंदर जीत सिंह बिट्टा की , जिन्होने खुशवंत और मनमोहन के खिलाफ मामले को आसमान से सिर पर उठा लिया, और बेचारे मनमोहन अपने परम प्रिय मित्र की इकलौती इच्छा पूरी नहीं कर सके।. शायद इसका मलाल आज भी पीएम साहब को हो ? एक गद्दार शोभा के पुत्र से भला मुझे क्यों कोई शिकायत हो और क्यों हो ? इसके बावजूद खुशवंत पर कुछ और खट्टी मीठी यादों को बाद में लिखा जाएगा।फिलहाल जब पूरा देश इनको नमन कर रहा है तो भला खिलाफ हवा से गुजरने का साहस और हैसियत मेरी कहां है,और ना होगी . इसके बावजूद लोग खुशवंत वंदना करते हुए यह ना भूले कि खुशवंत परिवार ही वह गद्दार परिवार है जिसकी वजह से तीन क्रांतिकारी बेमौत मारे गए थे। शायद अरबों की संपति रखने वाला यह रईस परिवार अपने उपर लगे इस कलंक कथा से कभी भी खुद को बाहर नहीं कर पाएगा।हां महानगर दिल्ली में रहने वाले इस परिवार को सर शादीराम जैसी जलालत का सामना कभी ना करना पड़ा, शायद यहीं धन दौलत रसूख चमक दमक प्रभाव की महिमा है। एक दूसरे से अनजान महानगरीय त्रासदी का यहीं आनंद है कि लोग एक साथ एक ही फ्लैट कॉलोनी अपार्टमेंट में साथ साथ रहते हुए भी एक दूसरे से अनजान और बेपरवाह होते है।और खुशवंत परिवार को दिल्ली ने कलंकित होने की पीड़ा से दूर रखा। तमाम शिकायतों के बाद भी इस मरदूद की एक ही खासियत रही कि चाहे जो भी लिखा, मगर उन्हें चाहने वाले और पढने वाले बेशुमार लोगों की भीड़ से मैं भी खुद को कभी अलग नहीं रख सका। 99 साल में दुनिया को अलबिदा करने वाले खुशवंत को नमन.

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