एक क्रान्तिकारी पत्रकार और स्वतन्त्रता सेनानी
सय्यद मुज़म्मिलुद्दीन
अप्रेल 2004
अंग्रेजी भाषा की एक लोकप्रिय कहावत है कि कलम तलवार से अधिक शक्तिशाली है। मानव इतिहास में इस बात की पुष्टि उन अनगिनत चिंतकों से हुई जिन्होंने अपने लेखन से अपने समय की जनता के जीवन और चिन्तन में चमत्कारी परिवर्तन लाये। इसकी कई मिसालें हमारे स्वतन्त्रता आंदोलन में देखने में आइंर् जिनमें पत्रकारिता ने खास भूमिका का प्रदर्शन किया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने ' नवजीवन' और 'हरिजन' के द्वारा अंग्रेज़ सरकार के अत्याचारों के विरूद्ध आवाज़ उठाई और सामाजिक बुराइयों की रोकथाम का प्रयत्न किया जबकि मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने अपने समाचार पत्रों `` अल हिलाल'' और `` अलबलाग'़' के माध्यम से समस्त भारय् की जनता में स्वतन्त्रता आन्दोलन के प्रति एक नया जागरण शुस्र् किया।
यह कहना गलत नहीं होगा कि मौलाना आज़ाद की पत्रकारिता उनके राष्ट्रप्रेम और स्वतन्त्रता के सिद्धान्तों के प्रति उनके दृढ़ विश्वस का प्रतीक थी। १८९९ में मात्र ११ वर्ष की आयु में उन्होंने `` नैरंगे - आलम '' का प्रकाशन शुस्र् किया जिसमें उस समय के कवियों की रचनाएं शामिल होती थीं। १९०४ में मौलाना ने `` अलमिस्बाह'' नामक एक साप्ताहिक शुरू किया और साथ ही ``मख़ज़न'' और ``अहसनुल - अखबार'' में उनके निबंध छपने लगे।
मौलाना अबुलकलाम आज़ाद ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ``इण्डिया विन फ्रीडम'' में लिखा है कि १९०८ में वे मिस्त्र, इराक और तुर्की के आध्यात्मिक दौरे पर रवाना हुए। मिस्त्र में उनका संपर्क मुस्तफा कमाल पाशा के समर्थकों से हुआ जो वहां से एक साप्ताहिक निकाल रहे थे। मौलाना ने तुर्की में तुर्क नवयुवकों( यंग तुर्क्स) के आन्दोलन के नेताआें से मुलाक़ात की जिससे मौलाना के संबंध इन नेताआें से इतने गहरे हुए कि भारत वापसी के कई वर्ष बाद भी दोनों के दरमियान ख़तों का सिलसिला जारी रहा। इराक़ में मौलाना ने ईरानी क्रान्तिकारियों से मुलाकात़ की। इन मुलाक़ातों ने मौलाना के इस विश्वास को बढ़ावा दिया कि भारतीय मुसलमानों को अंग्रेज़ सरकार के विरूद्ध राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में बढ़कर भाग लेना चाहिये। कुछ समय सोच - विचार करने के बाद १९१२ में मौलाना ने ``अल - हिलाल'' जारी किया ताकि उसके माध्यम से मुसलमानों में क्रान्ति की विचारधारा प्रचलित हो। मौलाना की पत्रकारिता इतनी लोकप्रिय थी कि तीन महीनों के अन्दर ही ``अलहिलाल'' के सभी पिछले एडीशनों को दोबारा छापना पड़ा क्योंकि इस समाचारपत्र का हर नया खरीददार, हर एडीशन को रखने का इच्छुक था। ``अलहिलाल'' की लोकप्रियता अंग्रेज सरकार को बुरी लगी। उसने प्रेस एक्ट के तहत दो हज़ार स्र्पए की ज़मानत मांगी। मौलाना ने ज़मानत तो दे दी पर अपने समाचारपत्र की सरकार - विरोधी भाषा नहीं बदली। इस पर सरकार ने दस हज़ार रूपए की ताज़ा जमानत मांगी। मौलाना ने ताज़ा ज़मानत तो दे दी पर अपनी क्रान्तिकारी भाषा को नहीं दबने दिया। अम्तत: १९१५ में अलहिलाल प्रेस जब्त कर लिया गया। मौलाना आज़ाद का जन - जागरण का दृढ़ संकल्प इस कार्यवाही के बावज़ूद अटल रहा और उन्होंने पांच महीने के अन्दर ``अल - बलाग'़' के नाम से एक और समाचारपत्र जारी किया अंग्रेज़ सरकार पिछले अनुभवों की रोशनी में समझ गयी कि मौलाना पर प्रेस एक्ट के प्रावधानों का कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है। इसलिये उसने डिफेन्स ऑफ इण्डिया के तहत अप्रेल १९१६ में मौलाना को कलकत्ते से बाहर जाने को कहा। पंजाब, यूपी, दिल्ली और मुम्बई की सरकारों ने इसी कानून के तहत मौलाना के प्रवेश पर रोक लगा दी। अब बिहार ही एक सूबा था जहां मौलाना आज़ाद जा सकते थे। परन्तु जब मौलाना रांची पहुंचे ही थे कि उन्हें नज़रबन्द कर दिया गया। नज़रबंदी का सिलसिला ३१ दिसम्बर १९१९ तक रहा। पहली जनवरी १९२० को मौलाना रिहा कर दिये गये।
१९२१ में मौलाना आज़ाद ने ``पैगा़म'' नाम का एक साप्ताहिक शुस्र् किया जिसपर अंग्रेज़ सरकार ने उसी साल प्रतिबंध लगा दिया और मौलाना को कुछ समय के लिए हिरासत में ले लिया।
१९२७ में मौलाना आज़ाद ने दोबारा ``अल - हिलाल'' का प्रकाशन शुस्र् किया और ये सिलसिला उस वर्ष की समाप्ति तक जारी रहा।
एक पत्रकार और समाजसुधारक के रूप में मौलाना आज़ाद ने कई सफलताएं प्राप्त कीं। उन्होंने उर्दू पत्रकारिता को पहली बार अच्छी लिथोग्राफिक छपाई और हाफटोन चित्रों से परिचित किया। उन्होंने अपने समाचारपत्रों से पूरे देश की जनता को विशेष रूप से मुसलमानों को स्वतन्त्रता आन्दोलन के प्रति जागृत किया जिसके कारण उन्हें जेल की मुसीबतें झेलना पड़ीं थीं। स्वतन्त्र भारत में वे पहले शिक्षा मंत्री बने। शिक्षा मंत्री के रूप में मौलाना आज़ाद ने कई काम किए। वैज्ञानिक शिक्षा को प्रोत्साहन, कई विश्वविद्यालयों की स्थापना, उच्च शिक्षा और खोज को प्रोत्साहन मौलाना के में ही व्यापक स्तर पर शुस्र् हुए।
मौलाना अबुलकलाम आज़ाद के जन्म दिन को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में घोषित किया जाना और हैदराबाद में उन्हीं के नाम पर मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू युनिवर्सिटी स्थापित होना राष्ट्र की ओर से एक स्वतन्त्रता सेनानी, क्रान्तिकारी, पत्रकार, समाजसुधारक, शिक्षा विशेषज्ञ तथा अबूतपूर्व शिक्षा मंत्री को भेंट की जाने वाली सच्ची श्रद्धान्जली है।
अप्रेल 2004
अंग्रेजी भाषा की एक लोकप्रिय कहावत है कि कलम तलवार से अधिक शक्तिशाली है। मानव इतिहास में इस बात की पुष्टि उन अनगिनत चिंतकों से हुई जिन्होंने अपने लेखन से अपने समय की जनता के जीवन और चिन्तन में चमत्कारी परिवर्तन लाये। इसकी कई मिसालें हमारे स्वतन्त्रता आंदोलन में देखने में आइंर् जिनमें पत्रकारिता ने खास भूमिका का प्रदर्शन किया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने ' नवजीवन' और 'हरिजन' के द्वारा अंग्रेज़ सरकार के अत्याचारों के विरूद्ध आवाज़ उठाई और सामाजिक बुराइयों की रोकथाम का प्रयत्न किया जबकि मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने अपने समाचार पत्रों `` अल हिलाल'' और `` अलबलाग'़' के माध्यम से समस्त भारय् की जनता में स्वतन्त्रता आन्दोलन के प्रति एक नया जागरण शुस्र् किया।
यह कहना गलत नहीं होगा कि मौलाना आज़ाद की पत्रकारिता उनके राष्ट्रप्रेम और स्वतन्त्रता के सिद्धान्तों के प्रति उनके दृढ़ विश्वस का प्रतीक थी। १८९९ में मात्र ११ वर्ष की आयु में उन्होंने `` नैरंगे - आलम '' का प्रकाशन शुस्र् किया जिसमें उस समय के कवियों की रचनाएं शामिल होती थीं। १९०४ में मौलाना ने `` अलमिस्बाह'' नामक एक साप्ताहिक शुरू किया और साथ ही ``मख़ज़न'' और ``अहसनुल - अखबार'' में उनके निबंध छपने लगे।
मौलाना अबुलकलाम आज़ाद ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ``इण्डिया विन फ्रीडम'' में लिखा है कि १९०८ में वे मिस्त्र, इराक और तुर्की के आध्यात्मिक दौरे पर रवाना हुए। मिस्त्र में उनका संपर्क मुस्तफा कमाल पाशा के समर्थकों से हुआ जो वहां से एक साप्ताहिक निकाल रहे थे। मौलाना ने तुर्की में तुर्क नवयुवकों( यंग तुर्क्स) के आन्दोलन के नेताआें से मुलाक़ात की जिससे मौलाना के संबंध इन नेताआें से इतने गहरे हुए कि भारत वापसी के कई वर्ष बाद भी दोनों के दरमियान ख़तों का सिलसिला जारी रहा। इराक़ में मौलाना ने ईरानी क्रान्तिकारियों से मुलाकात़ की। इन मुलाक़ातों ने मौलाना के इस विश्वास को बढ़ावा दिया कि भारतीय मुसलमानों को अंग्रेज़ सरकार के विरूद्ध राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में बढ़कर भाग लेना चाहिये। कुछ समय सोच - विचार करने के बाद १९१२ में मौलाना ने ``अल - हिलाल'' जारी किया ताकि उसके माध्यम से मुसलमानों में क्रान्ति की विचारधारा प्रचलित हो। मौलाना की पत्रकारिता इतनी लोकप्रिय थी कि तीन महीनों के अन्दर ही ``अलहिलाल'' के सभी पिछले एडीशनों को दोबारा छापना पड़ा क्योंकि इस समाचारपत्र का हर नया खरीददार, हर एडीशन को रखने का इच्छुक था। ``अलहिलाल'' की लोकप्रियता अंग्रेज सरकार को बुरी लगी। उसने प्रेस एक्ट के तहत दो हज़ार स्र्पए की ज़मानत मांगी। मौलाना ने ज़मानत तो दे दी पर अपने समाचारपत्र की सरकार - विरोधी भाषा नहीं बदली। इस पर सरकार ने दस हज़ार रूपए की ताज़ा जमानत मांगी। मौलाना ने ताज़ा ज़मानत तो दे दी पर अपनी क्रान्तिकारी भाषा को नहीं दबने दिया। अम्तत: १९१५ में अलहिलाल प्रेस जब्त कर लिया गया। मौलाना आज़ाद का जन - जागरण का दृढ़ संकल्प इस कार्यवाही के बावज़ूद अटल रहा और उन्होंने पांच महीने के अन्दर ``अल - बलाग'़' के नाम से एक और समाचारपत्र जारी किया अंग्रेज़ सरकार पिछले अनुभवों की रोशनी में समझ गयी कि मौलाना पर प्रेस एक्ट के प्रावधानों का कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है। इसलिये उसने डिफेन्स ऑफ इण्डिया के तहत अप्रेल १९१६ में मौलाना को कलकत्ते से बाहर जाने को कहा। पंजाब, यूपी, दिल्ली और मुम्बई की सरकारों ने इसी कानून के तहत मौलाना के प्रवेश पर रोक लगा दी। अब बिहार ही एक सूबा था जहां मौलाना आज़ाद जा सकते थे। परन्तु जब मौलाना रांची पहुंचे ही थे कि उन्हें नज़रबन्द कर दिया गया। नज़रबंदी का सिलसिला ३१ दिसम्बर १९१९ तक रहा। पहली जनवरी १९२० को मौलाना रिहा कर दिये गये।
१९२१ में मौलाना आज़ाद ने ``पैगा़म'' नाम का एक साप्ताहिक शुस्र् किया जिसपर अंग्रेज़ सरकार ने उसी साल प्रतिबंध लगा दिया और मौलाना को कुछ समय के लिए हिरासत में ले लिया।
१९२७ में मौलाना आज़ाद ने दोबारा ``अल - हिलाल'' का प्रकाशन शुस्र् किया और ये सिलसिला उस वर्ष की समाप्ति तक जारी रहा।
एक पत्रकार और समाजसुधारक के रूप में मौलाना आज़ाद ने कई सफलताएं प्राप्त कीं। उन्होंने उर्दू पत्रकारिता को पहली बार अच्छी लिथोग्राफिक छपाई और हाफटोन चित्रों से परिचित किया। उन्होंने अपने समाचारपत्रों से पूरे देश की जनता को विशेष रूप से मुसलमानों को स्वतन्त्रता आन्दोलन के प्रति जागृत किया जिसके कारण उन्हें जेल की मुसीबतें झेलना पड़ीं थीं। स्वतन्त्र भारत में वे पहले शिक्षा मंत्री बने। शिक्षा मंत्री के रूप में मौलाना आज़ाद ने कई काम किए। वैज्ञानिक शिक्षा को प्रोत्साहन, कई विश्वविद्यालयों की स्थापना, उच्च शिक्षा और खोज को प्रोत्साहन मौलाना के में ही व्यापक स्तर पर शुस्र् हुए।
मौलाना अबुलकलाम आज़ाद के जन्म दिन को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में घोषित किया जाना और हैदराबाद में उन्हीं के नाम पर मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू युनिवर्सिटी स्थापित होना राष्ट्र की ओर से एक स्वतन्त्रता सेनानी, क्रान्तिकारी, पत्रकार, समाजसुधारक, शिक्षा विशेषज्ञ तथा अबूतपूर्व शिक्षा मंत्री को भेंट की जाने वाली सच्ची श्रद्धान्जली है।
सय्यद मुज़म्मिलुद्दीन
अप्रेल 4
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