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इस प्रबंध काव्य में संवत् 1802 से लेकर संवत् 1810 वि. के बीच सुजानसिंह द्वारा किए गए ऐतिहासिक युद्धों का विशद वर्णन किया गया है। 'सुजानचरित्र' में अध्यायों का नाम 'जंग' दिया गया है। यह ग्रंथ सात जंगों में समाप्त हुआ है। किन्हीं कारणों से सातवाँ जंग अपूर्ण रह गया है। कवि का उपस्थितिकाल (1802-1810 वि.) ही ग्रंथ-रचना-काल का निश्चय करने में सहायक हो सकता है। नागरीप्रचारिणी सभा, काशी से जो 'सुजानचरित्र' प्रकाशित हुआ है उसमें उसकी दो प्रतियाँ बताई गई हैं-एक हस्तलिखित और दूसरी मुद्रित। इसमें हस्तलिखित प्रति को और भी खंडित कहा गया है। मंगलाचरण के बाद इसमें कवि ने बंदना के रूप में 175 संस्कृत तथा भाषाकवियों की नामावली दी है। केशव की 'रामचंद्रिका' की भाँति ही इसमें भी लगभग 100 वर्णिक और मात्रिक छंदों का प्रयोग कर छंदवैविध्य लाने की कोशिश की गई है। ब्रजभाषा के अतिरिक्त अन्य अनेक भाषाओं का प्रयोग भी इसमें किया गया है।
अनुक्रम
ईश्वरी सिंह का पत्र
देषि देस को चाल ईसरी सिंह भुवाल नैं ।पत्र लिख्यौ तिहिकाल बदनसिंह ब्रजपाल कौ ।।
करी काज जैसी करी गुरुडध्वज महाराज ।
पत्र पुष्प के लेते ही थे आज्यौ ब्रजराज ।।
आयौ पत्र उताल सौं ताहि बांचि ब्रजयेस ।
सुत सरज सौं तब कहौ थामि ढुढाहर देस ।।
जाट सेना का जयपुर अभियान
- ईश्वरी सिंह की सहायता के लिए मुगल, मराठा एवं राजपूत सेना और से युद्ध करने हेतू जाट सेना का जयपुर अभियान का वर्णन
खंड खंड ने खुंटैल हैं, कबहु न भय मन में लहैं
चढि चाहि चाहर जोर दै, दल देसवार दरेरेदै
असवार होत अवारिया, जिन कितै वैर वादारिया
डर डारि डागुरि धाइयो, बहु भैनवार सु आइयौ
गुनवंत गूदर चट्ठियौ, सर सेल सांगन मट्ठियौ
सजियौ प्रचन्ड सुभोंगरे, जितवार जंगन के खरे
खिनवार गोधे बंक हैं, जिन किए राजा रंक हैं
सिरदार सोगरवार हैं, रन भुमि मांझ पहांर हैं
सिरदार सोरहते सजे, रन काज ते रन लै गज
सजि नौहवार निसंक हैं, रुतवार रावत बंक हैं
मुहिनाम याद इतेक हैं, बहु जाट जाति कितेक हैं
सबहि चढे भट आगरे, सबहि प्रताप उजागरे
गढ़ी नीमराणा युद्ध
गढ़ी नीमराणा में मीरबक्शी (शाहीसेनापति) से युद्ध हुआ। इस युद्ध में मुगल सेना का योद्धा हकीम खां मारा गया और रुस्तम खां जख्मी हुआ। जाट पुत्र शम्मू ने विशेष वीरता का परिचय दिया।तिहि देखि संभू कौ तनै, रिस ज्वाल उर अंतर सनै।
फटकार के लहि हाथ में, हय हांकियो अरि गथ्थ में।
सु हकीम खां लख आवतौ, जो हुतौ चाप चलावतौ।
तिहि कान लौं करिवान कौं, तकि दियौ ताकि भुजान कौं।
सर सौ लग्यो उन आय कै, छत परयौ श्रोन बहाय कै।
यह वीर तीरहि कढ़ि कै, इस रंग रुद्रहि बढ़ि कै।
हय हक्यौ गजदंत पै, मनु राखि कै अरि अंत पै।
ज्यों सिंह गजमद मन्द पै। हय लस्यौ यों करि दन्त पै।
फटकारि सेलहि उद्ध कौं, तकि अपनी अरि सुद्ध कौं।
वह सेल गज ग्रह भेदि कै, सु हकीम खाँ तन छेद कै।
तब ही सुतीरन बुहियो, सु हकीम खाँ रण रुट्ठियौ।
इक दयौ सर कटि तक्कि कै, वह लग्यों हरिनहि धक्कि कै।
तब ही सु संभू पूत नै, गहि तेग बल मजबूत नै।
गज कुम्भ दइय करकि कै, मनु परय विज्जु तरकि कै।
फिर धाय गज गद्दी दली, कसना विदारय भुज वली।
सु हकीम खाँ भुई पारियौ, गज पुट्ठि ते गहि डारियौ।
इमि गिरत लोग निहारियौ, मनु कान्ह कंस पछारियौ।
तब हि तु औरन दोरिकै, लिए रुस्तमा झकझोर कै।
करि एक एकहि चोट सौ, राख्यौ हकीमहि जोट सौ।
महाराजा सूरजमल का रणक्षेत्र में युद्धवर्णन
गरद मसान किरान बरछा बानन तें,रुस्तम खान घमसान घोर करतौ।
कछूं रेह मुण्ड कहूँ तुण्ड भुजदण्ड झुण्ड,
कहूँ पाइ काइ फर मण्डल का भरतौ।
सेल साँग सिप्पर सनाह सर श्रौणित मैं,
कोट-काट डारे धर पाइ तौ सौ धरतौ।
हरतौ हरीफ मान तरतौ समुद्ध जुद्ध,
कुद्ध ज्वाल जरतौ अराकनि सौं अरतौ।।
गरद गुवार मैं अपार तरवार धार,
मारौ निहार मैं किरनि भीर भानकी।
कहरि लहरि प्रलै सिन्धु मैं अधीर (अधीन) मीन,
मानौ धुरवान मैंत तक तड़ितान की।।
दावानल ज्योतिन को ज्वाल है कि ज्वाला को अचल चल,
ऐसी जंग देखी जहाँ प्रबल पठान की।
भृकुटी भयान की भुजान की उभय की सान,
मंगल समान भई मूर्ति सुजान की ।।
गेंदा से गुलफ गुलमेंहदी से अन्तभार,
कुण्य कलित तास खोपरी सुभाल की।
नासा गुलबासा मुख सूरजमुखी से भुज,
कलगा बधूक ओठ जीव दुतिलाल की।।
कोक नद कर ज्यौं करन गुल कोकन से,
इंदीवर नैन बाल जाल अलि माल की।
पानी किरवानी सौं हरयानी कर सूरज कै,
पर भूमि फूली फुलवारी मानौ काल की।।
दंतिन सौं दिग्गज दुरंदर दबाई दीन्हे,
दीपति दराज चारु घंटन के नद्द हैं।
सुंडन झपट्टि कै उलट्टत उदग्ग गिरि,
पट्टत समुद्द बल किम्मति विहद्दहैं।।
सूदन भनत सिंह-सूरज तिहारे द्वार,
झूमत रहत सदा ऐसे बझकद्द हैं।
रद्द करि कज्जल जलैद्द से समद्द रूप,
सोहत दुरद्द जे परद्दल दलद्द हैं।।
एकै एक सरस अनेक जे निहारे तन,
भारे लाज भारे स्वामि काम प्रतिपाल के।
चंग लौ उड़ायौ जिन दिल्ली को बजीर भीर,
पारी बहु मीरनु किए हैं बेहवाल के।।
सिंह बदनेस के सपूत श्री सुजानसिंह,
सिंह लौं झपटि नख करवाल के।
बेटे पटनेरे सेलु सांगन खखेटे भूरि,
धूरि सौं लपेटे लेटे भेटे महाकाल के।।
सेलन धकेला ते पठानमुख मैला होत,
केते भट मैला है भजयि भ्रुव भंग में।
तेग के कसे ते तुरकानी सब तंग कीन्ही,
दंग की दिली औ दुहाई देत बंग में।।
सूदन सराहत सुजान किरवान गहि,
धायो धीर वीरताई की उमंगमें।
दक्खिनी पछेला करि खेला तैं अजब खेल,
हेला करि गंग में रूहेला मारे जंग में।।
धरि चारि डेरा लूटे, कटे तुरक बेहाल।
जट्ट जट्ट कहते फिरें, सबने जान्यो काल।।
मराठा फौज के अत्याचार
मराठा फौज के अत्याचारों से पीड़ित भागकर भरतपुर आयी जनता को खान-पान एवं सुरक्षाकी व्यवस्था आघापुर के जंगल में की गयी।भाजि देश उतकौ इत आयौ, ताहि बासु बन बीच बसायौ।
बीच-बीच अटवी चहु छाई, जोर मोरचे बुर्ज बनाई।।
रुख-रुख तरु हैं नर नारी, जोति वंत मुख चन्द उजारी।
कुन्ज-कुन्ज सरु हाट विराजैं, ज्यों सुरेश मय देव समाजें।।
नग्र रूप सब कानन कीनों, आस पास परीखा करि दीनों।
फेरि दुग्ग सिरदारु सुथापे, थानु थानु तिनके करि राखे।।
दै दिवान पद थामि सुचैना, धर्म पूत मनुसा रन लैना।।
सूदन के समकालीन कवि
सूदन कवि ने तत्कालीन सुप्रसिद्ध कवियों का वर्णन इस प्रकार किया है।सोमनाथ, सूरज, सनेही, शेख, श्यामलाल,
साहेब, सुमेरू, शिवदास, शिवराम हैं।
सेनापति, सूरति, सरबसुख, सुखलाल,
श्रीधर, सबलसिंह, श्रपति सुनामहैं।।
हरिपरसाद, हरिदास, हरिवंश, हरि
हरीहर, हीरा से हुसेन, हितराम है।
जस के जहाज जगदीश के परमपति,
सूदन कविंदन को मेरी परनाम है।।
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