सेवा का फल - रामनारायण उपाध्याय
दोस्तों, एक बार की बात है! एक छोटे-से गणपति महाराज थे। उन्होंने एक पुड़िया में चावल लिया, एक में शक्कर ली, बर्तन में दूध लिया और सबके यहां गये। बोले - कोई मुझे खीर बना दो।
किसी ने कहा - मेरा बच्चा रोता है तो किसी ने कहा - मैं स्नान कर रहा हूं फिर किसी ने कहा - मैं दही बना रही हूं।
एक ने कहा - तुम लौंदाबाई के घर चले जाओ। वे तुम्हें खीर बना देंगी।
वे लौंदाबाई के घर गये। बोले - बहन, मुझे खीर बना दो।
उसने बड़े प्यार से कहा - हां-हां, लाओ, मैं बनाये देती हूं।
उसने कड़छी में दूध डाला, चावल डाले, शक्कर डाली और खीर बनाने लगी तो कड़छी भर गई। तपेले में डाली तो तपेला भर गया, और बड़े बर्तन में डाली तो वो भी भर गया। एक-एक कर सब बर्तन भर गये। वह बड़े सोच में पड़ी कि अब क्या करूं ?
गणपति महाराज ने कहा - अगर तुम्हें किन्हीं को भोजन कराना हो तो उन्हें निमंत्रण दे आओ।
वह खीर को ढककर निमंत्रण देने गई। लौटकर देखा तो पांचों पकवान बन गये।
उसने सबको पेट भरकर भोजन कराया। लोग आश्चर्यचकित रह गये। पूछा - क्यों बहन, यह कैसे हुआ ?
उसने कहा - मैंने तो कुछ नहीं किया। सिर्फ अपने घर आये अतिथि को भगवान समझकर सेवा की, यह उसी का फल था। जो भी अपने द्वार आए अतिथि की सेवा करेगा, अपना काम छोड़कर उसका काम पहले करेगा, उस पर गणपति महाराज प्रसन्न होंगे।
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