यूँ ही........(सावन में जब याद तुम्हारी आई)
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यूँ ही....सावन में जब याद तुम्हारी आई
बेताबी थी
तुम आओगी
बढ़ती गई परछाईं
तुम नहीं आई ।
एक सुगंध
जो पहचानी थी
मिलने हम से आई
तुम नहीं आई ।
आम्र पत्तियां
द्वारे लटकीं
वन्दनवार पर
आंखें अटकीं
अभिनन्दन की
ऋचा भी गाई
तुम नहीं आई ।
विस्मृतियों के
पृष्ठों पर बिखरी
छवि सामने
फिर से उतरी
मन प्रांतर में
झंकृत हो गई
मीठी सी शहनाई
तुम नहीं आई ।
तुलसी हँसी
नीम हर्षाया
प्रथम प्रहर
कागा चिल्लाया
दांयीं पलक लेती रह गई
बार-बार अंगड़ाई
तुम नहीं आई ।
पाहुन घर आएगा अपने
आंखों में उतरे सब सपने
मरी पड़ी आशाओं में
चेतनता लहराई
तुम नहीं आई ।
विश्वास नहीं कि
छल जाओगी
बोला था कि
कल आओगी
बुरा समय आया तुम
नहीं पड़ीं दिखलाई
तुम नहीं आई!!!!
सुधेन्दु ओझा
9868108713/7701960982
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