तरस रही है जाने कब से, प्यार भरे दो बोल कहो।
तुम सचमुच कितनी सुंदर हो, बस इतना मुँह खोल कहो।।
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दिन भर खटती,लगी काम में अपनी सुध-बुध खोई सी।
थक कर चूर हुई फिर भी कुछ करती जागी-सोई सी।
कभी-कभी चेहरे से लगती हँसती भी कुछ रोई सी।
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पीछे सोना पहले जगना,क्या इस धुन का मोल कहो।
तुम सचमुच कितनी सुंदर हो- - - - - - - - - - - -
खाना खाते हुए कभी तो उसके मन में रह देखो।
हाथों में जादू है तेरे, इतना उससे कह देखो।
कभी-कभी छुट्टी के दिन उसकी दो बातें सह देखो।
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और नहीं कुछ करना तुम बातों में मिसरी घोल कहो।
तुम सचमुच कितनी सुंदर हो- - - - - - - - - - - -
उसकी ममता,उसकी सेवा से ही घर में सावन है।
उसके त्याग-समर्पण से ही महका घर का आँगन है।
उसके कारण ही घर,घर है,हर मौसम मनभावन है।
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चलो आज पिक्चर चलते हैं, कभी जमाकर धौल कहो।
तुम सचमुच कितनी सुंदर हो, बस इतना मुँह खोल कहो।।
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किशोर कुमार कौशल
बल्लभगढ़(फरीदाबाद)
03/01/2021
मोबाइलः9899831002
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 04 जनवरी 2021 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसचमुच ! अति सुन्दर ।
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