मंगलवार, 19 सितंबर 2023

जात बीच में आ जाती हैं / वीणा शर्मा सागर

 उगने छिपने वाले इस काम तलक़ जाते जाते

सूरज बुढिया जाता है शाम तलक़ जाते जाते ।


यूँ तो इश्क़ उन्हें इकदूजे से है परले दर्जे का

ज़ात बीच मे आ जाती है नाम तलक़ जाते जाते ।


शुरु करी तूने लेकिन सब बेकाबू हो जायेंगी

इतनी बिगड़ेंगी बातें अंज़ाम तलक़ जाते जाते ।


आग लगाने निकले थे कि राख करेंगे पलभर में

नीयत बदली बस्ती-ए- बदनाम तलक़ जाते जाते ।


भाईचारा पलभर में ही दंगे में तब्दील हुआ

अल्लाहु अकबर से लेकर राम तलक जाते जाते ।


साधू बनकर बैठे थे वो ज्ञानपीठ के आसन पर

साधू से शैतान हुये हैं धाम तलक जाते जाते ।


प्यास सहारा बनती तो है जीने का लेकिन 'सागर'

दमघोटू हो जायेगी ये बाम तलक़ जाते जाते ।


🖋️साभार 


वीणा शर्मा 'सागर'

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