गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

पृथ्वीराज चौहान की शौर्य गाथा

 *मत चूको चौहान*


वसन्त पंचमी का शौर्य


*चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण!*

*ता उपर सुल्तान है, चूको मत चौहान!!* 


वसंत पंचमी का दिन हमें "हिन्दशिरोमणि पृथ्वीराज चौहान" की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी इस्लामिक आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ बंदी बनाकर काबुल  अफगानिस्तान ले गया और वहाँ उनकी आंखें फोड़ दीं।


पृथ्वीराज का राजकवि चन्द बरदाई पृथ्वीराज से मिलने के लिए काबुल पहुंचा। वहां पर कैद खाने में पृथ्वीराज की दयनीय हालत देखकर चंद्रवरदाई के हृदय को गहरा आघात लगा और उसने गौरी से बदला लेने की योजना बनाई। 


चंद्रवरदाई ने गौरी को बताया कि हमारे राजा एक प्रतापी सम्राट हैं और इन्हें शब्दभेदी बाण (आवाज की दिशा में लक्ष्य को भेदनाद्ध चलाने में पारंगत हैं, यदि आप चाहें तो इनके शब्दभेदी बाण से लोहे के सात तवे बेधने का प्रदर्शन आप स्वयं भी देख सकते हैं। 


इस पर गौरी तैयार हो गया और उसके राज्य में सभी प्रमुख ओहदेदारों को इस कार्यक्रम को देखने हेतु आमंत्रित किया।


पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई ने पहले ही इस पूरे कार्यक्रम की गुप्त मंत्रणा कर ली थी कि उन्हें क्या करना है। निश्चित तिथि को दरबार लगा और गौरी एक ऊंचे स्थान पर अपने मंत्रियों के साथ बैठ गया। 


चंद्रवरदाई के निर्देशानुसार लोहे के सात बड़े-बड़े तवे निश्चित दिशा और दूरी पर लगवाए गए। चूँकि पृथ्वीराज की आँखे निकाल दी गई थी और वे अंधे थे, अतः उनको कैद एवं बेड़ियों से आजाद कर बैठने के निश्चित स्थान पर लाया गया और उनके हाथों में धनुष बाण थमाया गया।


इसके बाद चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज के वीर गाथाओं का गुणगान करते हुए बिरूदावली गाई तथा गौरी के बैठने के स्थान को इस प्रकार चिन्हित कर पृथ्वीराज को अवगत करवाया


‘‘चार बांस, चैबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण।

ता ऊपर सुल्तान है, चूको मत चौहान।।’’


अर्थात् चार बांस, चैबीस गज और आठ अंगुल जितनी दूरी के ऊपर सुल्तान बैठा है, इसलिए चौहान चूकना नहीं, अपने लक्ष्य को हासिल करो।


इस संदेश से पृथ्वीराज को गौरी की वास्तविक स्थिति का


आंकलन हो गया। तब चंद्रवरदाई ने गौरी से कहा कि पृथ्वीराज आपके बंदी हैं, इसलिए आप इन्हें आदेश दें, तब ही यह आपकी आज्ञा प्राप्त कर अपने शब्द भेदी बाण का प्रदर्शन करेंगे। 


इस पर ज्यों ही गौरी ने पृथ्वीराज को प्रदर्शन की आज्ञा का आदेश दिया, पृथ्वीराज को गौरी की दिशा मालूम हो गई और उन्होंने तुरन्त बिना एक पल की भी देरी किये अपने एक ही बाण से गौरी को मार गिराया।


गौरी उपर्युक्त कथित ऊंचाई से नीचे गिरा और उसके प्राण पंखेरू उड़ गए। चारों और भगदड़ और हाहाकार मच गया, इस बीच पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई ने पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार एक-दूसरे को 

कटार मार कर अपने प्राण त्याग दिये।


*"आत्मबलिदान की यह घटना भी 1192 ई. वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।"*


*ये गौरवगाथा अपने बच्चों को अवश्य बताईये*

बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

रेणु संदर्भ भारत यायावर / विजय केसरी

 एक लेखक सतत विरोध झेल कर भी गतिशील रहता है/ विजय केसरी 


प्रख्यात साहित्यकार कवि, संपादक, आलोचक भारत यायावर ने महान कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु के संपूर्ण लेखकीय जीवन को आधार बनाकर लेखकों के संदर्भ में एक बड़ी बात कही थी। उन्होंने दर्ज किया था कि 'रेणु की जीवनी का सबसे प्रेरक तत्व यह है कि कैसे एक लेखक पद और लिप्सा से विरत रहकर रत रहता है और नित नूतन संधान में लगा रहता है। लेखक भौतिक उपलब्धियों को ठुकरा कर रचनाशीलता को ही अपना जीवन सौंप देता है और सतत विरोध झेल कर भी गतिशील रहता है।" उपरोक्त दो वाक्यों के माध्यम से भारत यायावर ने यह बताने की कोशिश की थी कि एक लेखक सतत विरोध झेल कर भी गतिशील रहता है। लेखक कोई बाहर के व्यक्ति नहीं होता है बल्कि हमारे ही आसपास रहता है। वह हमारे दैनंदिन जीवन के सुख - दुख को ही आधार बनाकर अपनी कहानियों और कविताओं में बातों को दर्ज करता है। वह हमारे रहन -सहन, भाषा, रीति - रिवाज, संस्कृति  को गहराई से अध्ययन कर कुछ ऐसा रच डालता हैं, जिसे हम सब उनकी कृति  को पढ़े बिना नहीं रह पाते हैं। उनकी कृति में गहरी अर्थवत्ता छुपी रहती है। गहरा संदेश होता है। उनकी कृति समाज को संघर्ष करने की एक नई ऊर्जा प्रदान करती है।

 एक लेखक के गहरे अनुसंधान के बाद रचना के रूप में चंद पंक्तियां उत्पन्न होती हैं। यही कारण है कि इन पंक्तियों की गूंज सदियों तक बनी रहती हैं। यह तभी संभव हो पाता है, जब लेखक पूरी तन्मयता के साथ अपनी साधना में रत होता है।  इस संदर्भ में यह विचार करना  जरूरी हो जाता है कि एक लेखक और आम आदमी में क्या फर्क है ? उदाहरण स्वरूप एक दृश्य को सभी लोग देखते जरूर हैं, लेकिन उसी दृश्य को  एक लेखक  अपने वैचारिक दृष्टिकोण से देखता है। वह उस पर गंभीरता से विचार करता है।  उस दृश्य के कारणों तक जाता है। उस दृश्य के मर्म,  पीड़ा और संवेदना को समझने की कोशिश करता है। तब वह लेखक कुछ पंक्तियों में अपनी बातों को प्रस्तुत कर पाता है। वह दृश्य उस लेखक को वैचारिक रूप से झकझोर कर रख देता है। उस लेखक के मन में कई तरह की बातें उठती हैं। वह गहन शोध में रत हो जाता है । यही भूमिका उसे आम आदमी से अलग करता है। आम आदमी के लिए वह दृश्य एक सामान्य घटना के समान होती है।

  भारत यायावर  ने रेणु के माध्यम से यह बताने की कोशिश की  कि कैसे एक लेखक पद और लिप्सा से विरत रहकर अपनी लेखकीय साधना में रत रहता है। अगर लेखक पद और धन की लिप्सा में दौड़ना प्रारंभ कर दे, तो वह अपनी लेखकीय साधना से विरत हो जाता है।  ऐसी परिस्थिति में वह चाह कर भी महत्वपूर्ण रचनाओं को उत्पन्न नहीं कर पाता है। एक लेखक की रचना समाज के लिए कितना महत्वपूर्ण है ? यह बड़ा सवाल है। कई लेखक गण निरंतर लिख रहे हैं। लेकिन उनकी रचनाएं  समाज में कोई असर पैदा कर नहीं पा रही हैं । ऐसा क्यों ? इस सवाल पर समाज के बुद्धिजीवियों को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।

   उसी लेखक की रचना महत्वपूर्ण होती है, जो समाज को एक नई दिशा व रौशनी प्रदान कर सके। महान कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु का संपूर्ण जीवन हिंदी साहित्य की साधना में बीता था।  अगर रेणु चाहते तो कई सरकारी पदों पर विराजमान हो सकते थे।  उनकी प्रसिद्धि देश और देश के बाहर तक  फैली हुई थी। वे धन का अंबार लगा सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया था। उन्होंने  कलम की साधना को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। वे  जीवन के अंतिम क्षणों तक अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते ही रहे थे। वे नित  नूतन संधान में रत होते थे। तभी उनकी रचनाएं कालजई बन पाई।

    आज की बदली परिस्थिति में अधिकांश लोगों एवं  लेखकों की  पद प्राप्ति और कई पीढ़ियों के लिए धन संग्रह करने की लालसा ने समाज का रूप ही बदल कर रख दिया है। क्या पद, धन और विलासिता  के बीच  कोई  लेखक अपनी लेखकीय संवेदना को बनाए रख सकता है ? यह यक्ष प्रश्न है। धन के पीछे भागने वाला लेखक क्या धन के अभाव को समझ सकता है ? क्या  पद पर आसीन वह लेखक गरीब, असहाय, मजबूर, बेसहारा दलित लोगों की पीड़ा को महसूस कर सकता है ? क्या विलासिता का जीवन जीने वाला  लेखक समाज में घट रही घटनाओं पर निष्पक्ष होकर रचना कर्म कर सकता है ?

     भारत यायावर ने अपनी पंक्तियों के माध्यम से यह बताने की कोशिश की कि एक लेखक का जीवन सिर्फ और सिर्फ साहित्य साधना में रत होना चाहिए । पद, धन और विलासिता का जीवन उनके स्वतंत्र विचार व संवेदना के पंखों को कतर कर रख देता है।  देश के महान कवि निराला जी ने इलाहाबाद एक मोड़ पर  तपती धूप में एक महिला को पत्थर को तोड़ते हुए देखा था । उसके बाद कुछ पंक्तियां उनकी कलम से पैदा होती है। यह पंक्तियां कालजई बन जाती है । यह उनकी सतत साधना का प्रतिफल था। आज भी उनकी पंक्तियां पढ़ी जाती है । उनकी पंक्तियों में  पसीने से लथपथ, पत्थर तोड़ती महिला की तस्वीर साफ उभर कर सामने आ जाती है।

      फणीश्वर नाथ रेणु की कहानियां  समय के साथ संवाद करती नजर आती है । उनकी कहानियों  जितनी बार भी पढ़ी जाती है ,  कुछ न कुछ नूतन विचार प्रकट होते रहते हैं।  कई नई बातें निरंतर उभरकर सामने आती रहती है । यह इसलिए हो पाता है कि रेणु  पद और लिप्सा से पूरी तरह विरत होकर अपनी साहित्य साधना में रत थे ।   एक लेखक का जीवन कैसा होना चाहिए ? इस विषय पर यायावर ने बहुत ही मंथन के बाद यह दर्ज किया कि एक लेखक को भौतिक उपलब्धियों से मुक्त होना चाहिए और रचनाशीलता को ही अपना जीवन सौंप देना चाहिए । तभी कुछ बातें उत्पन्न होती है। अगर  लेखक भौतिक उपलब्धियों को ही बटोरने में लगा रहेगा, तब वह चाह कर भी लेखकीय साधना से रत नहीं हो पाएगा। लेखक का जीवन सहज, सरल और संवेदना से भरी होनी चाहिए । 

      फणीश्वर नाथ रेणु की तमाम रचनाएं एक नई बात कहती नजर आती हैं। एक नया संदेश देता नजर आता है। उनका व्यक्तिगत जीवन बहुत ही सहज  और सरल था। उनका जीवन कभी भी भौतिक उपलब्धियों को प्राप्त करने में नहीं लगा ।   फणीश्वर नाथ रेणु अपना संपूर्ण जीवन रचनाशीलता को समर्पित कर दिया था। भारत यायावर नए लेखकों को फणीश्वर नाथ रेणु के माध्यम से यह बताना चाहते थे कि चंद रचनाएं लिख कर, छप कर कोई महान लेखक नहीं बन सकता है। उन्होंने साफ शब्दों में दर्ज किया कि एक लेखक सतत विरोध झेल कर भी साहित्य साधना में रत रहता है। 

  अब विचारणीय बात यह है कि आज के लेखक कितना विरोध झेल कर अपनी साधना में रत हैं ?  थोड़ी सी परेशानी आने पर कई भाग खड़े होते हैं । क्या रेणु  अपनी परेशानियों से कभी भागे ? अगर वे भाग खड़े होते तो उनकी रचनाएं समय से संवाद करती नजर नहीं आती। लेखक का जीवन निश्चित तौर पर सतत विरोध झेल कर भी साधना में रत रहने वाला होता है । तभी वह कुछ महत्वपूर्ण रच पाता है। आज की बदली परिस्थिति में जहां चंहुओर  लोग धन के पीछे भाग रहे हैं। पद के पीछे भाग रहे हैं । भाई भतीजावाद के पीछे भाग रहे हैं । समाज जाए भाड़ में । 

   इन विषम परिस्थितियों में एक सच्चे लेखक का उत्पन्न होना भी अपने आप में बड़ी बात है । मैंने पूर्व में दर्ज किया है कि लेखक हमारे ही समाज के बीच के होते हैं । जब सब लोग धन और पद के पीछे भाग रहे हैं, तो कैसे कोई  खुद को इन विकृतियों से बचा पाएगा । इन्हीं  परिस्थितियों और लोगों के बीच एक सच्चा लेखक जन्म लेता है, जो भौतिक उपलब्धियों को ठुकरा कर रचनाशीलता को ही अपना जीवन सौंप देता है। वह लेखक सतत विरोध झेल कर भी वह  गतिशील रहता है।


विजय केसरी

(कथाकार / स्तंभकार),

पंच मंदिर चौक, हजारीबाग - 825 301

मोबाइल नंबर : 92347 99550,

गुरुवार, 9 जनवरी 2025

निंदा का फल"


प्रस्तुति - कृष्ण मेहता 


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एकबार की बात है की किसी राजा ने यह फैसला लिया के वह प्रतिदिन 100 अंधे लोगों को खीर खिलाया करेगा !


एकदिन खीर वाले दूध में सांप ने मुंह डाला और दूध में विष डाल दी और ज़हरीली खीर को खाकर 100 के 100 अंधे व्यक्ति मर गए !

राजा बहुत परेशान हुआ कि मुझे 100 आदमियों की हत्या का पाप लगेगा ! राजा परेशानी की हालत में अपने राज्य को छोड़कर जंगलों में

भक्ति करने के लिए चल पड़ा ताकि इस पाप की माफी मिल सके !


रास्ते में एक गांव आया ! राजा ने चौपाल में बैठे लोगों से पूछा कि क्या इस गांव में कोई भक्ति भाव वाला परिवार है ? ताकि उसके घर रात काटी जा सके !


चौपाल में बैठे लोगों ने बताया कि इस गांव में दो बहन भाई रहते है जो खूब बंदगी करते है !राजा उनके घर रात ठहर गया !


सुबह जब राजा उठा तो लड़की सिमरन पर बैठी हुई थी ! इससे पहले लड़की का रूटीन था की वह दिन निकलने से पहले ही सिमरन से उठ जाती थी और नाश्ता तैयार करती थी ! लेकिन उस दिन वह लड़की बहुत देर तक सिमरन पर बैठी रही !


जब लड़की सिमरन से उठी तो उसके भाई ने कहा कि बहन तू इतना लेट उठी है अपने घर मुसाफिर आया हुआ है !


इसने नाश्ता करके दूर जाना है तुझे सिमरन से जल्दी उठना चाहिए था !


तो लड़की ने जवाब दिया कि भैया ऊपर एक ऐसा मामला उलझा हुआ था !


धर्मराज को किसी उलझन भरी स्थिति पर कोई फैसला लेना था और मैं वो फैसला सुनने के लिए रुक गयी थी इसलिए देर तक बैठी रही सिमरन पर ?


उसके भाई ने पूछा ऐसी क्या बात थी तो लड़की ने बताया कि फलां राज्य का राजा अंधे व्यक्तियों को खीर खिलाया करता था ! लेकिन सांप के दूध में विष डालने से 100 अंधे व्यक्ति मर गए !

अब धर्मराज को समझ नही आ रही कि अंधे व्यक्तियों की मौत का पाप राजा को लगे सांप को लगे या दूध नंगा छोड़ने वाले रसोईए को लगे !


राजा भी सुन रहा था ! राजा को अपने से संबंधित बात सुन कर दिलचस्पी हो गई और उसने लड़की से पूछा कि फिर क्या फैसला हुआ ?


लड़की ने बताया कि अभी तक कोई फैसला नही हो पाया था !


राजा ने पूछा कि क्या मैं आपके घर एक रात के लिए और रुक सकता हूं ?


दोनों बहन भाइयों ने खुशी से उसको हां कर दी !

राजा अगले दिन के लिए रुक गया, लेकिन चौपाल में बैठे लोग दिन भर यही चर्चा करते रहे कि ....


कल जो व्यक्ति हमारे गांव में एक रात रुकने के लिए आया था और कोई भक्ति भाव वाला घर पूछ रहा था ?


उस की भक्ति का नाटक तो सामने आ गया है ! रात काटने के बाद वो इस लिए नही गया क्योंकि जवान लड़की को देखकर उस व्यक्ति की नियत खोटी हो गई !


इसलिए वह उस सुन्दर और जवान लड़की के घर पक्के तौर पर ही ठहरेगा या फिर लड़की को लेकर भागेगा !


दिनभर चौपाल में उस राजा की निंदा होती रही !


अगली सुबह लड़की फिर सिमरन पर बैठी और रूटीन के टाइम अनुसार सिमरन से उठ गई !

राजा ने पूछा .... "बेटी अंधे व्यक्तियों की हत्या का पाप किसको लगा ?"


लड़की ने बताया कि .... "वह पाप तो हमारे गांव के चौपाल में बैठने वाले लोग बांट के ले गए !"


निंदा करना कितना घाटे का सौदा है ! निंदक हमेशा दुसरों के पाप अपने सर पर ढोता रहता है ! और दूसरों द्वारा किये गए उन पाप- कर्मों के फल को भी भोगता है ! अतः हमें सदैव निंदा से बचना चाहिए !

             

भक्त कबीर जी ने कहा है ....


जन कबीर को नींद सार !

निंदक डूबा हम उतरे पार !!

पृथ्वीराज चौहान की शौर्य गाथा

 *मत चूको चौहान* वसन्त पंचमी का शौर्य *चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण!* *ता उपर सुल्तान है, चूको मत चौहान!!*  वसंत पंचमी का दिन हमें ...