रविवार, 28 जून 2020

साथ साथ




सुबह सुबह एक जाहिल किस्म का मित्र आ गया।

कुछ देर बात करते करते बात चाइना और चाइनीज सामान के बहिष्कार पर आ गई।

उसने भी बाकी सारे जाहिल मूर्खो की तरह एक ही कुतर्क दिया - सरकार से कहो आयत बंद कर दो, हमको सस्ता मिलेगा तो हम लेंगे, जब इतना ही बुरा है तो बाजार में बिकता क्यों है ?

मैं जवाब देने के बदले मुस्कुराया और बोला चल हल्दी राम का समोसा खिलाता हूँ गाडी में बिठाया और एक बहुत छोटे से खोमचे/ ठेले के सामने गाड़ी रोक दिया।

वहां की गंदगी देख कर वो भिनभिनाने लगा।

मित्र - ये कहा ले आया, चल हल्दी राम के यहाँ चल न....

मैं - भाई ये सस्ता है, यहाँ समोसा 5 रुपये में मिलता है।

मित्र ने कहा - सस्ता है तो क्या हुआ भाई, देख नहीं रहा कितनी गंदगी है, तबियत ख़राब हो जाएगी।

मैंने कहा - भाई अगर इतना बुरा है तो नगरपालिका / खाद्य विभाग वाले बंद क्यों नहीं कराते।

मित्र - भाई कोई किसी को अपना ठेला लगाने से कैसे रोक सकता है, अपनी सेहत का ख्याल तो खुद को ही रखना होगा न।

मैंने भी फाइनली वाला ज्ञान दिया - वाह बेटा अपनी सेहत की बारी आई तो लगभग आधी कीमत में मिल रहे समोसे से इंकार , और देश की अर्थव्यवस्था की सेहत के समय मुझे तो चीन का माल सस्ता मिल रहा है कहते हो।

मत भूलो तुम भी इस देश की अर्थव्यवस्था के एक अंग हो, आज नहीं तो कल सेहत पर असर तुम्हारे भी आएगा, और रही बात सरकार के रोकने की, तो ये खुला बाजार है, जैसे नगरपालिका ऐसे ठेला लगाने से नहीं रोक सकती वैसे सरकार भी किसी को माल बेचने से नहीं रोक सकती....

पर एक भारतीय होने के कारण अपनी और देश की सेहत का ख्याल तुम को खुद रखना होगा।

कसम से वो अर्जुन सा नतमस्तक हो कर मुझे श्री कृष्ण सी फीलिंग दे रहा था।

मैंने भी जोश जोश में कह दिया - चलो पार्थ अब हल्दी राम के ही समोसे खिलाता हूँ।
🙏
*जय हिंद

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किशोर कुमार कौशल की 10 कविताएं

1. जाने किस धुन में जीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।  कैसे-कैसे विष पीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।।  वेतन के दिन भर जाते हैं इनके बटुए जेब मगर। ...