सोमवार, 8 जून 2020

दादी सास का नया चेहरा / अभिलाषा






दादी सास का नया चेहरा


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शहर में रहती थी। मेरे पापा बहुत पैसे वाले तो नहीं थे, फिर भी इतना तो कमा ही लेते थे कि हम तीनों भाई - बहन और मम्मी- पापा आराम से रह सकें।
एक दिन पापा के रिश्ते की बुआ घर आईं। वो एक रिश्ता लाई थीं मेरे लिए। छोटा परिवार और लड़का बैंक में नौकरी करता था।पापा तो अभी शादी नहीं करना चाहते थे क्यों कि मैंने अभी ही बारहवीं की परीक्षा दी थी। फिर भी घर वालों की इच्छा पापा से लड़के और उनके घर वालों से मिले। पापा को सब अच्छे ही लगे। फिर भी उनको मेरी पढ़ाई की चिंता थी।
जब इस बात को उन्होंने लड़के वालों के सामने रखा तो लड़के और उनके पिता ने कहा "घबराइए नहीं, हमलोग भी चाहते हैं कि मेरे घर की बहू पढ़ी लिखी हो, और ऐसा नहीं है कि हम रानी की पढ़ाई छुड़वा कर उससे सिर्फ घर के काम करवाएंगे। आप निश्चिंत होकर ये शुभ कार्य करें।"
पापा को यह सुनकर बहुत संतोष हुआ, फिर भी उन लोगों का घर गांँव में था। "मैं गांँव में कैसे रहूंगी"? ये सोचकर पापा घबरा गए थे। फिर भी शायद मेरी किस्मत में गांँव का ही घर लिखा था, और मैं शादी करके एक  गांँव में आ गई। दिन में तो फिर भी ठीक लगता क्यों कि दिन भर गांँव की औरतें मुझे घेरे रहतीं।पर रात को अजीब सन्नाटा लगता। वहांँ मैं घूंँघट में रहती थी। सब मेरा घूंँघट उठा कर मुझे देखती और हंँसती। शहर की बातें पूछतीं।
मैंने देखा कि मेरी दादी सास बहुत कड़क मिजाज की हैं। घर में सब उनसे डरते हैं और कोई काम उनसे बिना पूछे नहीं होता।
ये तो मुझे यहांँ छोड़ कर शहर चले गए। क्योंकि ये एक कमरे में अपने मित्र के साथ रहते थे। इन्होंने कहा कि "जैसे ही अच्छा घर ले लूंगा तुम्हें शहर ले चंलुगा।"तब तक अभी यहीं रहना था। मैं सारे काम करती, फिर भी दादी सास को  खुश नहीं कर पाती। वो मेरे हर काम में कमी निकाल देती और मेरा मन मायूस हो जाता।
एक महीने बाद ये आकर मुझे शहर ले गए और मेरा दाखिला कॉलेज में करवा दिया।
कुछ दिनों बाद मैं मांँ बनने वाली थी। बाकी समय तो मैं इनके साथ शहर में ही रही। वहांँ से मायके भी कभी कभी चली जाया करती।पर जैसे ही डिलीवरी हुई,इन्होंने मुझे गांँव पहुंचा दिया। अब तो मुझे बहुत डर लगता कि "कैसे यहांँ रहूंगी"?
मेरी सासू मांँ मेरा ध्यान रखती थीं। वो बहुत छुआछूत मानने वाली महिला थीं , नहाने के बाद  मुझे या मेरे बच्चे को नहीं छुती।
एक दिन तेल लगाने वाली दाई नहीं आई। मेरा कमर दर्द के मारे फटा जा रहा था और मेरा बच्चा भी बहुत रो रहा था। मेरी सासू मांँ ने कहा "हमलोग भी ऐसी स्थिति से गुजर चुके हैं। एक दिन तेल नहीं लगेगा तो क्या होगा? बच्चे को लेकर कमरे में जाकर आराम करो।" कहकर वो बाहर चली गईं।
उसी समय दादी सास खेतों की तरफ जा रही थी। उन्होंने रामू (घर का नौकर) को बुलाया और खेत की तरफ चलने को कहा। मैने सुना और मैं अपने कमरे में अा गई।
अब तो मुझे रोना आ गया। किसी तरह बच्चे को बिस्तर पर रखा और रोने लगी। फिर चुप हो गई।क्या करूंँ कि ये दर्द कम हो,ये सोचने लगी। लगभग आधे घंटे बाद मेरे दरवाजे पर दस्तक हुई। मैंने देखा कि दादी सास खड़ी हैं। उनको देख कर मेरी हालत खराब होने लगी क्यों कि वो मेरे बेटे की जरा सी रुलाई नहीं सुन सकतीं और अभी तो वो बहुत देर से रो रहा था। उन्होंने मेरे हाथ से बच्चे को ले लिया। मैं आश्चर्यचकित होकर उनको देखने लगी क्यों कि पूजा के बाद वो भी मेरे बच्चे को नहीं छूती थीं।
बाहर ले जाकर बच्चे को चुप करा कर उन्होंने बच्चे को मेरी सास के गोदी में दे दिया।उनको भी आश्चर्य हुआ कि ये क्या हो रहा है? दादी सास फिर मेरे पास आईं। अब तो मेरी खैर नहीं"। सोच कर मैं पसीने पसीने हो गई।
तभी मैंने देखा कि दादी एक कटोरी में गर्म सरसों तेल लेकर आईं हैंऔर मुझसे कहा "चुपचाप लेट जा, मैं तेल लगा देती हूं"।
और फिर मेरे लाख मना करने के बाद भी उन्होंने मेरे पूरे शरीर पर मालिश की और उसी दौरान बताया कि "पहले के समय में बहूएं ऐसे ही तकलीफ सहतीं थी और घर का वातावरण ऐसा होता था कि सास बहू की सेवा करने में हिचकती थी। मैंने भी तेरी सास के साथ वैसा ही व्यवहार किया था,जैसा वो तेरे साथ कर रही है। तेरी सास की तकलीफ़ नहीं समझी कभी भी । इसलिए वो तेरी तकलीफ़ नहीं समझ रही।"बड़ी हिम्मत करके मैंने पूछा कि"आज आपको मेरी तकलीफ़ क्यों दिखी?"उन्होंने बताया कि अभी गांव में ही एक तेरे जैसी प्रसूता दर्द से छटपटा रही थी और उसको देखने वाला कोई नहीं था। मैं रामू के साथ उसी रास्ते से खेतों की तरफ जा रही थी, तब मैंने उसका करुण रुदण सुना तो रामू से पूछा कि इतना विहृवल होकर कौन रो रहा है? उसने ही बताया कि कल्लू काका के घर भी तेरी तरह एक प्रसूता है, जिसकी देखभाल कोई नहीं करता क्योंकि वो घर की बहू हैं।"तभी मुझे तेरा मासुम चेहरा याद आ गया और मैं सोचने लगी कि तू भी तो वैसे तड़प रही होगी। मैंने मन में सोचा कि जो तेरे सास के साथ हुआ तेरे साथ नहीं होने दूंँगी।"
मैं सब समझ गई। उन्होंने इतनी अच्छी मालिश कर दी कि मैं रात भर आराम से तक सोती रही। मेरी सासू मांँ बच्चे के साथ खेल रही थी।वैसे भी वो बोतल से दूध पीता था। इसलिए उसको रखने में कोई परेशानी नहीं थी।
मैं देर तक सोती रही। किसी ने मुझे नहीं जगाया।
जब मेरी नींद खुली तो मैं डरते डरते अपने कमरे से बाहर निकल कर आई तो मैंने देखा "मेरी दोनों सास नहाने और पूजा करने के बाद भी मेरे बच्चे के साथ खेल रही हैं।
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             स्वरचित कथा
                "आभा"


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