शनिवार, 13 जून 2020

सीमा मधुरिमा की कुछ रचनाएँ






पत्रकार ..

पिछले तीन हफ्ते से वो सड़को पर लगातार पैदल चल रहे मजदूरों का दर्द शूट कर रहा था ....रोज ही नई नई खबरें ...उसके भेजे गए वीडियो और तस्वीरों से उसके समाचार की माँग बढ़ने लगी l
आज ही उसके एक उच्च अधिकारी ने बताया की उसके प्रमोशन की बात चल रही l वो बहुत खुश हुआ और चल दिया इस ख़ुशी को बांटने अपनी सबसे नई महिला मित्र के पास l रास्ते में उसे कुछ रोते हुए लोग मिले ....वो अपनी बड़ी गाड़ी से निचे उतरा और उनका हाल पूछा ..पता चला तीन दिनों से रोटी का एक भी टुकड़ा नहीं मिला ....अब और पैदल नहीं चला जाता इसलिए वो वहीं बैठ गए ....उसने अपना कैमरा निकाला कुछ तस्वीरें खींची एक दो लोगों का इंटरव्यू लिया और अपने बड़े अफसरों को भेज दिया l  उसका मन तो हुआ की कुछ मदद कर दे इनलोगों की ...लेकिन तभी उसे याद आया कि वो पत्रकार है और जो इनलोगों के लिए कर सकता था वो उसने कर लिया है l  तभी उसे याद आया कि वो तो अपनी नई महिला मित्र के यहाँ जा रहा था ...वो अपनी बड़ी गाड़ी में दाखिल हुआ और बढ़ गया l उसकी बड़ी गाड़ी के चारों तरफ स्टिकर लगे थे कोरोना आपातकाल सेवा पत्रकार !!"




कुछ स्त्रियाँ ऐसी भी होती हैँ ---



कुछ लड़कियाँ ऐसी भी होती हैं
जो अपनी सीमायें कभी नहीं सीमित करतीं --
हर वो चीज छिनती हैं जिसपर अपना हक समझती हैं --
हाँ ऐसी ही कुछ लड़कियाँ
मल देती है कलंक लड़कियों के नाम पर भी --
ज़ब दिल दे बैठती किसी पुरुष को
और उस पुरुष से मिलता इंकार ..
उस समय ये कुछ लड़कियाँ दिखलाती हैं क्रोध ..
और ये क्रोध अक्सर शांत होता एसिड अटैक के बाद --
बदल देती उस पुरुष का रूप रंग जिसपर मोहित होती हैं ...
हाँ ये सच हैं एसिड अटैक
बिगड़े लड़के ही नहीं करते
बिगड़ी और तिलमिलाई
लड़कियाँ भी करती हैं ...
और तब शर्मसार होती है प्रकृति भी
क्योंकि प्रकृति ने लड़की को प्रकृति सा ही बनाया है सृजन करने को -=-
पर ऐसी बिगड़ी लड़कियाँ लांघ जाती हैँ बंदिशें और बन बैठती हैं राक्षसी lll




 कुछ क्षणिकाएँ ......

( 1 )भूख -

वो भूखी थी
भटक रही थी रोटी की तलाश में
मुझे विषय मिल गया
और मैंने लिख दी एक बहुत मार्मिक कविता ..
उधर वो रोटी के लिए भटकती रही
इधर मेरी कविता की वाह वाही से मेरी आत्मा की भूख शांत होती रही --
मैंने अपना लेखकीय धर्म निभा लिया था ll

( 2 )प्यास .....

वो प्यासी थी
उसने पानी माँगा ...
उसकी आँखें आशान्वित थीं
उसे विश्वास था मुझसे पानी मिलने का ...
मैंने लिखी एक बड़ी मार्मिक कविता उसकी प्यास पर ..
वो ताकती रही ..मेरी कविता लिखने की प्यास बुझती रही l

( 3 ) छत

बहुत तेज धूप थीं ..
उसे छाया चाहिए थीं
सर पर एक छतनुमा जिससे उसे सुकूँ मिल सकता था ...
मैंने लिख डाली एक छतनुमा कविता ..
मेरी कविता की छत ने जाने कितनों को छत दे दिया ..
उसका मेरी ओर ताकना तब भी जारी था ..
जाने क्यों हरबार वो मुझे ही ताकती है  lll

सीमा" मधुरिमा"
लखनऊ !!!

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