बुधवार, 19 नवंबर 2014

लोक साहित्यकार देवेन्द्र सत्यार्थी







देवेन्द्र सत्यार्थी (28 मई 1908) हिंदी, उर्दू और पंजाबी भाषाओं के विद्वान तथा साहित्यकार हैं। उनका मूल नाम देवइंडर बत्ता है। श्री सत्यार्थी लोकगीत अध्ययन के प्रणेताओं मे से रहे हैं। उन्होंने देश के कोने-कोने की यात्रा कर वहां के लोकजीवन, गीतों और परंपराओं को आत्मसात किया और उन्हें पुस्तकों और वार्ताओं में संग्रहीत कर दिया जिसके लिये वे 'लोकयात्री' के रूप में जाने जाते हैं।
देवेन्द्र सत्यार्थी ने लोकगीतों का संग्रह करने हेतु देश के विभिन्न क्षेत्रें की यात्रायें की थीं तथा इन स्थानों के संस्मरणों को भावात्मक शैली में उन्होंने लिखा है। "क्या गोरी क्या साँवली" तथा "रेखाएँ बोल उठीं" सत्यार्थी के संस्मरणों के अपने ढंग के संग्रह हैं।
श्री सत्यार्थी का जन्म 28 मई 1908 को पटियाला के कई सौ साल पुराने भदौड़ ग्राम (जिला संगरूर) में जन्म। 1977 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित।

कृतियाँ

हिन्दी में लोकयान 'धरती गाती है' का प्रकाशन हुआ 1948 में। 'बेला फूले आधी रात'-1949, 'बाजत आवे ढोल'-1950, 'चित्रों में लोटियां'-1951 में प्रकाशित हुईं।
हिन्दी में आपके संग्रह हैं : 'चट्टान से पूछ लो' (1949), 'चाय का रंग' (1949), 'नए धान से पहले'(1950), 'सड़क नहीं बंदूक' (1950)। उपन्यासों में 'रथ के पहिए' (1950), 'कठपुतली, (1951), 'दूध गाछ' (1954), 'ब्रह्‌मपुत्र' (1955), 'कथा कहो, उर्वशी' (1956) और 'तेरी कसम सतलुज' (1989) प्रमुख हैं।
आत्मकथात्मक लेखन हिन्दी में : 'चांद-सूरज के वीरन' (1954), 'नीलयक्षिणी' (1986) और 'सफरनामा पाकिस्तान' (1989) हैं।
निबंध व रेखाचित्र : 'हिन्दीः एक युग, एक प्रतीक' (1949),' रेखाएं बोल उठीं (1949), 'क्या गोरी क्या सांवरी' (1950), 'कला के हस्ताक्षर' (1955) विविध महत्वपूर्ण ग्रंथों का संपादन भी आपने किया।

बाहरी कड़ियाँ

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

महेंद्र अश्क़ की आहट पर कान किसका है?

 मैंने कानों से मयकशी की है,  जिक्र उसका शराब जैसा है Il महेंद्र अश्क़ की शायरी का संसार ll  देवेश त्यागी  नितांत निजी और सामाजिक अनुभूतियां ...