प्रस्तुति-- स्वामी शरण, किशोर प्रियदर्शी
लोहिया से बहादुर और सरल आदमी मुझे मालूम नहीं, वो अद्भुत मेघावी है।
-महात्मा गाँधी
डा0 लोहिया की चैखम्बा शासन व छोटे यन्त्रों पर
आधारित अर्थव्यवस्था की कल्पना अद्भुत है। उन्होंने अनोखी व स्वतंत्र
प्रज्ञा पाई है।
-अल्बर्ट आइन्स्टीन
राममनोहर लोहिया और उनके साथियों से बहुत उम्मीद है। लोहिया में इतिहास बनाने और इतिहास को गति देने की अलौकिक क्षमता है।
-नेताजी सुभाष चन्द्र बोस
जो डा0 लोहिया को नहीं जानता, वो खाक पाॅलिटिक्स
करेगा। एक ही तो नेता है जो जाति-पांति को तोड़कर समतामूलक समाज की स्थापना
करना चाहता है।
-डा0 भीमराव अम्बेडकर
डा0 लोहिया ने हमें विकेन्द्रीकरण का सबक
सिखाया है। स्वाधीनता के सही मायने को हमारे सामने उद्घाटित किया है। मुझे
लगता है कि विकासोन्मुख गाँधीवाद के सही-सही उत्तराधिकारी वे ही हैं।
- याशिका होशिनो (जापान)
डा0 लोहिया जैसा त्यागी जीवन बहुत कम लोग
जीते हैं। उस ज्योतिपुंज, इस अद्वितीय प्रतिभा, इस विप्लवकारी आत्मा को
प्रणाम।
‘‘राममनोहर लोहिया का उनके समकालीनांे ने बहुत ही विपर्यस्त रूप में समझा।
बहुधा उनके विचार इतने मौलिक थे कि पूर्णरूपेण उन विचारों को ग्रहण करना
कठिन हुआ है। उनकी स्पष्टवादिता के कारण भी कई नाराज थे जो उन्हें सत्य
प्रतीत हुआ, उसी रोशनी में उन्होंने भारतीय राजनीति को साकार करने का
प्रयत्न किया। यद्यपि बदनसीबी यह है कि जिस समय यह लग रहा था कि वे सफल हो
रहे हैं। ठीक उसी समय उनकी मृत्यु हो गई।’’
-लोकनायक जयप्रकाश नारायण
डा0 लोहिया ने हिन्दी की जितनी सेवा की, जितनी मजबूत
किया...... हमारे जैसे कई साहित्यकार मिलकर भी नहीं कर सके। ‘‘सन्’ 34
वाला लोहिया। युवक होते हुए भी विनयी और सुशील था, उनकी संसद मे आने वाले
प्रौढ़ लोहिया के भीतर मुझे क्रांति के स्फुलिंग दिखाई देते थे।.......
लोहिया साहब अच्छे वक्ता थे, मगर उनकी चिन्तन- प(ति का साथ देना अक्सर कठिन
होता था। क्यांेकि उनके तर्क निर्मोही और कराल होते थे।’’
तब भी माँ की कृपा, मित्र अब भी अनेक छाये हैं,
बड़ी बात तो यह कि लोहिया संसद में आये हैं,
बड़ी बात तो यह कि लोहिया संसद में आये हैं,
-राष्ट्रकवि डा0 रामधारी सिंह ‘दिनकर’
डा0 राममनोहर लोहिया को हमेशा गरीबों और कुचले हुए लोगो के नेता के रूप में याद किया जायेगा।
-कुमारास्वामी कामराज
डा0 राममनोहर लोहिया जितने बड़े राजनेता
हैं। उतने ही बड़े साहित्यकार भी। वे ‘सक्रिय करुणा’ हैं इसी सक्रिय करुणा
ने उन्हे क्रांतिदर्शी बनाया।
-महादेवी वर्मा
डा0 लोहिया पीडि़त मानवता के प्रवक्ता थे।
उनका रहन-सहन सादगीपूर्ण था। उन्हांेने हमेशा पिछड़े और गरीब वर्ग को
सार्वजनिक जीवन एवम् राजनीति में आगे बढ़ाया तथा लोक की महत्ता स्थापित की।
-जनेश्वर मिश्र
लोहिया जी से बहुत कुछ सीखने को मिलता था। वे बड़े मन और सोच के नेता थे।
-मकबूल फिदा हुसैन
महात्मा गाँधी के बाद डा0 लोहिया ही एक ऐसे
व्यक्ति थे जो स्वयं सर्वहारा यानी सब कुछ त्याग करने वाले थे। उन्होंने
हमेशा सरकार से अधिक सिद्धान्त को महत्व दिया।
-रवि राय (पूर्व लोकसभाध्यक्ष)
महात्मा गाँधी के बाद डा0 लोहिया एकमात्र
ऐसे नेता थे जिन्हें इतनी तीव्र निष्ठावाले अनुयायी और साथी मिले। जो भी
लोहिया जी के सम्पर्क में आया उसमें लोहिया के प्रति गहरी और तीव्र निष्ठा
पैदा हुई। वे कोई धर्म गरु नहीं थे और न ही सत्ता की जलेबियाँ बाँटने वाले
सिंहासनधारी या मठाधीश थे। उनके पास था देने के लिए नया विचार, ताजा और
टटका विचार जो किसी के दिमाग की तंत्रियों को छू लेता था और बेचैन कर देता
था।
-मोरारजी देसाई (पूर्व प्रधानमंत्री)
डा0 राममनोहर ऐसा जैसा विद्यार्थी पाकर कोई भी स्वयं को धन्य समझेगा।
-प्रो0 शुमाकर
महात्मा गाँधी के बाद लोहिया से बड़ा संवाददाता हिन्दुस्तान ने पैदा नहीं किया।
-रघुवर सहाय
डा0 राममनोहर लोहिया दर्शन, कला, समाजशास्त्र, और अर्थशास्त्र के पुस्तकों का संग्रहालय हैं।
-रेजिनाल्ड़ सोरेनसेन (सीनेटर)
डा0 लोहिया एक सृजनशील एवं दूरदर्शी व्यक्तित्व के धनी और महान व्यक्ति थे।
- बी. सत्यनारायण रेड्डी
‘‘ डा0 लोहिया सल्तनतों को भस्म करने की शक्ति रखता था। इस देश में अनेक नेता हुए, लेकिन लोहिया केवल एक हुआ।’’
-डा0 नीलम संजीव रेड्डी
‘‘डा0 लोहिया मेरे परिवार के व्यक्ति थे। लोहिया में जितना आवेश था, उतनी ही कोमलता थी।’’
-आचार्य जे.बी. कृपलानी
‘‘डा0 लोहिया पद-दलितों के प्रवक्ता थे। डा0 लोहिया
भारतीय राजनीति के क्रुद्ध युवक थे, लेकिन उनका क्रोध कभी भी व्यक्तिगत्
द्वेष पर आधारित नहीं था। उनके पीछे करुणा थी, जो देश की गरीबी के प्रति
संवेदनशील लोगों के मन पैदा होती है। संसद में हम उनके क्रोध को सहन करते
थे- कर्तव्यवश उनका उत्तर भी देना पड़ता था। अब संसद मे एक जगह खाली रहेगी,
जो दिल को चुभेगी। लोकसभा उनके बिना सूनी रहेगी।’’
-यशवन्त राव चव्हाण
‘‘डा0 लोहिया समूचे देश के नेता थे । उनकी मान्यता थी, जो देश के हितों के विरुद्ध है, वह अपने हितों के भी विरुद्ध है’’
-श्रीधर महादेव जोशी
‘‘लोहिया अंशकालिक या फुर्सत के समय के
क्रांतिकारी नहीं थे। वे पूरे समय के क्रांतिकारी थे--चैबीसों घण्टे के!
राजनीतिक सभाओं, आन्दोलनांे, बहसों में ही नहीं, रास्ते चलते, साथियों के
साथ उठते-उठते, वे क्रांतिकारी सोच और कर्म मंे जीते थे’’
-लाडली मोहन निगम
‘‘लोहिया मे बुद्ध की करुणा थी, लोहिया में पैगम्बर का प्यार था। लोहिया में शंकर का क्रोध था।’’
-लेखक ओंकार शरद
‘‘गाँधी जी की मृत्यु के पश्चात मुझे लोहिया में ‘बहुत-कुछ ‘गाँधी’ दिखा।’’
-श्रीपाद केलकर
‘‘बड़ों का नकलची बनने के बजाय गरीबों से एकाकार होना पड़ेगा-यही लोहिया की दृष्टि थी’’
-रघु ठाकुर
‘‘ डा0 लोहिया की राजनीति को अमानुषिकता के
विरुद्ध मनुष्यता की राजनीति कहना ज्यादा सही होगा। डा0 लोहिया शासक
पार्टी को घेरते नहीं थे, उस पर सीधे-सीधे हमला करते थे।’’
-डा0 श्रीकान्त वर्मा
वे न तो गाँधी की तरह संत-योद्धा थे, न ही
नेहरू की तरह सपनों के सौदागर थे और न ही जयप्रकाश नारायण की तरह राजनीतिक
विचारों के मामले में अस्थिर और जल्दबाज थे। वे सिर्फ लोहिया थे, एक
योद्धा, जिसे संघर्ष मंे मजा आता था, जो आजादी मिलने के बाद पनप रही
नीतिहीन राजनीति के विरुद्ध आन्दोलन की आग में खरे सोने की तरह तप रहे थे,
पर उनके संघर्ष में न घृणा थी, न ही संवादहीनता।’’
- उदयन शर्मा
‘‘मै अनेक बार बड़े राजनेताओं से मिला हूँ-
नेहरू जी से,.... राष्ट्रपति सुकार्णाे से, राष्ट्रपति डा0 लियोपोल्ड से
शेख मुजीब से प्रभावित हुआ हूँ, अभिभूत हुआ हूँ, पर लोहिया जी से मिलने के
बाद की जो अनुभूति थी, वह बड़ी अजीब थी। मैं अपने-आप में जैसे सहज हो आया
था, जैसे लगा था कि किसी चीज को कभी इतना बड़ा नही माना की उसके सामने
तुम्हारा छोटापन तुम्हे कचोटने लगे-एक निर्भयता का भाव!’’
-डा0 धर्मवीर भारती
‘‘द्रौपदी को आदर्श बताने वाले डा0 लोहिया
‘ईश्वर’ और ‘औरत’ को जीवन में सबसे महत्वपूर्ण मानते थे। गाँधी के
‘रामराज्य’ के स्थान पर ‘सीतारामराज्य’ की कल्पना की। राधा के चरित्र के
नये व्याख्याकार, मीरा की सात्विक सौन्दर्य भक्ति से प्रभावित! हिन्दी के
नये शब्दों-मुहावरों के प्रणेता। उस दौर की पूरी की पूरी सृजनशील पीड़ी को
झकझोरने वाले। ‘कल्पना’, ‘जन’, ‘मैनकांइड और दिनमान के माध्यम से हिन्दी
जगत को वैचारिक रूप से उद्वेलित करने वाले लोहिया।’’
-हरिवंश
‘‘डा0 साहब के संस्कारों से हम मजबूत
समाजवादी बनते चले गये। डा. लोहिया कार्यकत्र्ताओं के बीच बैठते, तो ऐसा
नहीं लगता था कि कोई नेता बैठा है, बल्कि लगता था कि अभिन्न मित्र हैं।
उन्हें कोई कुछ भी कह दे, वह बुरा नहीं मानते थे। नेताओं वाला अहम उन्हें
छू भी नहीं सकता था। दरअसल डा0 लोहिया पिछड़े लोगों में आत्मविश्वास जगाना
चाहते थे, इसीलिए उन्होंने एक मेहतरानी को महारानी के मुकाबले में खड़ा कर
दिया था।’’
-मामा बालेश्वर दयाल
‘‘डा0 राम मनोहर लोहिया का व्यक्तित्व
अनूठा और महान् था। मैं उनकी गणना महान् चिंतकों में करता हूँ। चिंतक भी
मौलिक चिंतक। वे प्रसिद्ध समाजवादी थे, लेकिन व्यक्ति की गरिमा और स्वधीनता
में उनका अटूट विश्वास था। लोकतंत्र की बलि चढ़ाकर लाए गए समाजवादी के वे
विरुद्ध थे। वे लोकतंत्र और समाजवाद, दोनों का मेल बैठाने के पक्ष में थे।
समाजवाद में भी सामाजिक न्याय पर उनका विशेष बल था।
डा0 लोहिया फक्कड़ और मस्तमौला थे। उनमें एक मजबूती थी, जिसका वह दूसरों
में भी संचार करते थे। वे जिन मान्यताओं को स्वीकार नहीं करते थे, उनसे
समझौता भी नहीं करते थे। उनमें देश की मिट्टी से प्यार और संस्कृति के बारे
में अभिमान था’’
-अटल बिहारी बाजपेई (पूर्व प्रधानमंत्री)
देश में अनेक नेता हुए लेकिन लोहिया केवल एक हुए।
-नीलम संजीव रेड्डी
एक महान देशभक्त आदर्शवादी और जीवन पर्यन्त विद्रोही डा0 लोहिया ने अपना जीवन गरीबों की सेवा में उत्सर्ग किया।
-डा0 जाकिर हुसैन
अपने आप का एक अनोखा उदाहरण-
लोहिया साधारणजीवी होते हुए भी असाधारण।
एक ही वीर यहाँ सीना रहा तान है, लोहिया महान है,
-डा0 रामप्रसाद मिश्र
‘‘एक बार नरेन्द्र मोहनजी (दैनिक जागरण के
संपादक) ने मुझे लोहिया की एक किताब दी, जिसमें भारत में व्याप्त सामाजिक
उत्पीड़न और औरतों के साथ चले आ रहे अपमानजनक और नाबराबरी के व्यवहार पर
आधारित लेख थे। उनका यह कथन मुझे आज भी याद है कि अगर इस देश को समझना है,
तो लोहिया को पढ़ो। तुम लोगों के माक्र्स बाबा से ज्यादा वे इस देश और इसकी
सामाजिक बनावट को समझते थे।’’
-सुभाषिनी अली (पूर्व सांसद)
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