गुरुवार, 16 जून 2011

प्रेमचंद पर गोष्ठी

मुंशी प्रेमचंद जयन्ती पर कार्यक्रम



उदयपुर।
राजस्थान साहित्य अकादमी की ओर से कथा सम्राट �मुंशी प्रेमचन्द जयन्ती� के अवसर पर �प्रेमचन्द होने का अर्थ  � विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि प्रो. नंद चतुर्वेदी ने कहा कि प्रेमचन्द होने का अर्थ विस्तृत और महत्त्वपूर्ण प्र्रेमचन्द इसलिए पसन्द किए जाते हैं कि वे एक सजग, जागरूक लेखक थे। आर्थिक, सामाजिक, सांस्*तिक, धर्म, राजनीतिक सभी पहलुओं पर सजगता के साथ उन्होंने अपनी कलम चलाई। वही सच्चा लेखक है जो अपने समय को जानने की कोशिश करता है, अपने समय को नहीं समझने वाला लेखक किनारे कर दिया जाता है। विशिष्ट अतिथि डॉ. के.के. शर्मा ने कहा कि प्रेमचन्द का लेखन समाज के दुख-सुख से एकाकार करता है। वे वृहत्तर समाज से जुडने के लिए उर्दू से हिन्दी जगत् में आये, ईमानदारी और सजगता इनके साहित्य की विशेषता है। डॉ. राजेन्द्र मोहन भटनागर ने कहा कि प्रेमचन्द का लेखन देश ही नहीं समूचे विश्व को शोषण मुक्ति का संदेश देता है, आदर्शवाद की स्थापना करता है। प्रेमचन्द की 312 कहानियों में 52 जीवन संघर्ष की कहानियाँ हैं। मुख्य वक्ता डॉ. नवलकिशोर ने कहा कि प्रेमचन्द के साहित्य में सामाजिक कुप्रथा, अंधविश्वास और राजनीतिक सामन्तवाद का विरोध है और स्वतंत्र्ता संग्राम की लडाई है।
युवा लेखक डॉ. पल्लव ने कहा कि युवाओं में पढने- पढाने का अभाव लगता है और प्रेमचन्द के सभी वारिस तो बनना चाहते हैं, किन्तु उनकी परम्परा निर्वाह करने की किसी में न क्षमता है और न ही कोशिश। डॉ. लक्ष्मीनारायण नंदवाना ने प्रेमचन्द को सर्वहारा वर्ग की आवाज बताया। डॉ. रजनी कुलश्रेष्ठ ने प्रेमचन्द को अन्याय, शोषण के खिलाफ लडने की ताकत देने वाला लेखक बताया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. घनश्याम शलभ ने कहा कि प्रेमचन्द जमीनी हकीकत के लेखक हैं, उनके साहित्य के पात्रें में विशालता, जीवन दर्शन है, आध्यात्मिक जीवन दर्शन ही नहीं, उनके साहित्य में जन समाज है, वह चरित्रें के साथ आत्मसात् होते हैं।
गोष्ठी का संचालन अकादमी सचिव डॉ. प्रमोद भट्ट ने किया। संगोष्ठी में सर्वश्री इकबाल हुसैन �इकबाल�, नवीन नंदवाना, डॉ. राजेन्द्र बारहठ, शिवदान सिंह जोलावास, खुर्शीद नवाब, गिरीश नाथ माथुर, पुरुषोत्तम पल्लव, श्रीरतन मोहता, रामदयाल मेहर, रमेश कोठारी, दिनेश अरोडा, प्रकाश नेभनानी, राजेश मेहता, डॉ. ज्योतिपुंज, विष्णु पालीवाल, जयप्रकाश भटनागर आदि की सार्थक उपस्थिति रही। प्रारम्भ में अतिथियों ने माँ सरस्वती एवं मुंशी प्रेमचन्द के चित्र् पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित किया। अन्त में धन्यवाद ज्ञापन अकादमी पुस्तकालयाध्यक्ष श्री दुर्गेश नंदवाना ने किया।
प्रस्तुति ः रामदयाल मेहर, उदयपुर
श्रीडूंगरगढ। राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति के सभाकक्ष में प्रेमचन्द जयन्ती मनाई गई। संगोष्ठी को संबोधित करते हुए साहित्यकार श्याम महर्षि ने कहा कि प्रेमचन्द का साहित्य उनके समय का ही नहीं, अपितु भविष्य में भी सदैव समसामयिक बना रहेगा। चेतना के बिन्दुओं को झकझोरने में उनका साहित्य अपने आप में अनूठापन लिए हुए है। कवि सत्यदीप ने कहा कि प्रेमचन्द भारतीय ग्रामीण परिवेश में व्याप्त शोषण एवं यातना के क्षणों में रचनाओं के माध्यम से पाठक को ले जाने में सक्षम रहे। प्रेमचन्द आम आदमी के लेखक एवं स्वतंत्र्ता पूर्व भारत की ग्राम्य परिवेश की क्रूरतम सच्चाई को प्रकट करने वाले लेखक थे। नवरतन सोनी ने अपने पत्र्वाचन के माध्यम से बताया कि उनकी रचनाओं में सांस्*तिक पुनर्जागरण एवं सुधारवादी प्रबल चेतना मौजूद है। संगोष्ठी में भंवर भोजक, रामकिशन उपाध्याय, बजरंग शर्मा, महेश जोशी, महावीर सारस्वत, वैद्य रमेशचन्द्र शर्मा ने अपने विचार रखे।
प्रस्तुति ः श्याम महर्षि, श्रीडूंगरगढ
जालोर। जालोर जिले के महावीर मूक-बधिर विद्यालय में उपन्यास सम्राट् मुंशी प्रेमचन्द की 129वीं जयन्ती के मौके पर साहित्य संवेदना की मार्मिकता स्वतः प्रस्फुटित हुई। मुख्य अतिथि जिला कलेक्टर एस.एस. बिस्सा ने पंजाबी की ख्यातनाम लेखिका, अमृता प्रीतम की रचना �धरती एक सुंदर किताब...� की चर्चा करते हुए कहा कि जिसने प्रेमचन्द का साहित्य नहीं पढा उसने बहुत कुछ खो दिया। उन्होंने मूक-बधिर बच्चों की संवेदनाओं को समझने और उन्हें सामान्य जीवन की जानकारी देने के लिए साहित्य में विशेष प्रयास की आवश्यकता बताई।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विद्वान साहित्यकार रामेश्वर दयाल श्रीमाली ने अपने उद्बोधन में कहा कि इन मूक-बधिर विद्यार्थियों के बीच मुंशी प्रेमचन्द की जयन्ती का आयोजन सुखद संजोग है। उन्होंने कहा कि प्रेमचन्द के समय देश मूक-बधिर था। अंग्रेजियत के आतंक के आगे कोई बोलना नहीं चाहता था। प्रेमचन्द की कलम ने राष्ट्र को भाषा दी और उस समय के आदर्शों को साहित्य के माध्यम से गढा इसलिए वे सदैव स्तुत्य हैं। रामेश्वरदयाल श्रीमाली ने पुरुषोत्तम पोमल के संदर्भ में कहा कि उन्होंने तीन उपन्यास लिखे हैं। जिसमें से �ज्योत्स्ना� बेजोड *ति है, तथा गत वर्ष प्रकाशित उपन्यास �शहजादी फीरोजा� जालोर के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखी गई साहसिक *ति है।
पुरुषोत्तम पोमल ने अपने उद्बोधन में मुंशी प्रेमचन्द के जीवन चरित्र् के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि उपेक्षितों के प्रति करुणा भाव मनुष्य को मनुष्य बनने की प्रेरणा देता है। उन्होंने कहा कि इन बच्चों में शब्द बोलने व सुनने की शक्ति नहीं है, लेकिन शब्दों को लिखने-पढने की अद्भुत शक्ति है, जिसे विकसित किया जा सकता है।
जिला उद्योग संघ के अध्यक्ष उद्यमी मदनराज बोहरा ने विद्यालय के प्रभारी धन्नाराम पुरोहित के जज्बे की सराहना करते हुए मौजूद साहित्यकारों से मूक-बधिर बच्चों की संवेदनाओं पर साहित्य लिखने का आह्वान किया। गीतकार अचलेश्वर आनन्द ने �जब मनुजता भौतिकी के भार से चुपचाप रोती है...� और वरिष्ठ साहित्यकार लालदास राकेश ने �कोई जद् उगावै रूंख...� सुनाकर संवेदनाओं के जागरण की बात कही। समाज कल्याण अधिकारी एम.एल. मारू ने विद्यालय की ओर से किए जा रहे प्रयासों और सरकार की ओर से उपलब्ध करवाई जा रही सुविधाओं के बारे में जानकारी दी।
इस मौके पर मूक-बधिर बच्चों की ओर से बनाए गए प्रेमचन्द के चित्र् को देखकर जिला कलेक्टर प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। कार्यक्रम के मौके पर जालोर के उपन्यासकार पुरुषोतम पोमल ने अपनी रचना �शहजादी फीरोजा� से प्राप्त हुई 11 हजार की रॉयल्टी राशि मूक-बधिर बच्चों के विकास के लिए समर्पित की। कलक्टर ने विद्यालय के अध्यक्ष धन्नाराम पुरोहित को चैक भेंट करते हुए पोमल को साधुवाद कहा।
कार्यक्रम में नगरपालिका के पूर्व अध्यक्ष श्री मोहनलाल सिद्धावत, कवि श्री बाबूलाल व्यास, अधिवक्ता श्री भवानीसिंह सराणा, श्री दिनेशचन्द्र व्यास, कोषाधिकारी श्री देवीलाल माली, वरिष्ठ लेखाधिकारी एवं कर्मचारी कल्याण नेता श्री ईश्वरलाल शर्मा, श्री ललित दवे, श्री रमेश जैन, श्री महावीर जैन, रंगकर्मी श्री अनिल शर्मा व श्री हनीफ मंडोरी, शायद अकबर खां अश्क, उद्यमी सज्जन पोमल एवं देविका रानी समेत बडी संख्या में साहित्य प्रेमी लोग उपस्थित थे।
प्रस्तुति ः अचलेश्वर आनन्द, जालोर
उदयपुर। प्रेमचंद जयंती पर माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय के अंग्रेजी विभाग और जन संस्*ति मंच के संयुक्त तत्वावधान में प्रसिद्ध निर्देशक सत्यजीत राय की फिल्म �शतरंज के खिलाडी� का जन प्रदर्शन किया गया। गौरतलब है कि यह फिल्म प्रेमचन्द की इसी शीर्षक की अमर कहानी पर आधारित है।
प्रेमचन्द की यह कहानी नवाब वाजिद अली शाह के समय के लखनऊ की कथा कहती है। यह वह समय था जब ईस्ट इण्डिया कम्पनी भारत में पाँव पसार चुकी थी और राजनीतिक हस्तांतरण की तैयारी हो रही थी। फिल्म पस्त पड चुके सामंती ढाँचे की ब्रिटिश उपनिवेशवाद के हाथों पराजित होने की त्रसदी का उद्घाटन करती है। फिल्म में संजीव कुमार, सईद जाफरी, शाबाना आजमी और अमजद खान की मुख्य भूमिकाएं हैं।
आयोजन में वरिष्ठ कवि प्रो. नंद चतुर्वेदी ने कहा कि नये समय के दबावों का सामना करने के लिए साहित्य को भी नये-नये रूप धारण करने होंगे। उन्होंने कहा कि कहानी और फिल्म का अंत अलग-अलग है, ऐसे में क्या यह बहस का*विषय नहीं है कि दूसरे रूप में बदलते समय कला*ति के बदलने की कितनी छूट होनी चाहिए। विख्यात समालोचक प्रो. नवल किशोर ने कहा कि युवा वर्ग को साहित्य से जोडने के लिए ऐसे नवाचारों का स्वागत किया जाना चाहिए। रंगकर्मी महेश नायक ने फिल्म के एक विशेष पहलू की ओर ध्यान दिलाया कि सत्यजीत राय के अनुरोध पर हॉलीवुड के प्रसिद्ध निर्देशक रिचर्ड एटनबरो ने फिल्म में लॉर्ड डलहौजी की भूमिका निभाई थी।
अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष प्रो. हेमेन्द्र चण्डालिया ने कहा कि ब्रिटिश उपनिवेशवाद और भारतीय सामंतवाद दोनों प्रेमचन्द की कलम के निशाने पर रहे और यह फिल्म इसी बात की सच्ची गवाही देती है। उन्होंने कहा कि कहानी और फिल्म आज भी प्रासंगिक है क्योंकि ग्लोबलाइजेशन की शतरंज में हमारे जैसे देश फँस चुके हैं। संयोजन कर रहे जसम के राज्य संयोजक हिमांशु पण्ड्या ने कहा कि फिल्म में अमजद खां अपनी अभिनय कला के शिखर पर है। उन्होंने कहा कि शोले की अपूर्व ख्याति ने उनकी इस यादगार भूमिका को विस्मृत कर दिया। चर्चा में बनास के सम्पादक डॉ. पल्लव ने कहा कि अच्छी *ति किसी भी माध्यम से आये वह श्रेष्ठ साहित्य का आस्वाद भी देती है। आयोजन में फिल्म पर चर्चा में डॉ. सुधा चौधरी, डॉ. सर्वतुन्निसा खां, डॉ. फरहत बानो, डॉ. रजनी कुलश्रेष्ठ, डॉ. लालाराम जाट, डॉ. चन्द्रदेव ओला, तौशीन, शोधार्थी नंदलाल जोशी, गणेशलाल मीणा, केसरीमल निनामा ने भी भाग लिया। अंत में जसम की ओर से प्रज्ञा जोशी व गजेन्द्र मीणा ने सभी का आभार ज्ञापित किया।
इससे पूर्व जसम के युवा सदस्य शैलेन्द्र भाटी ने कहानी �शतरंज के खिलाडी� का प्रभावी पाठ किया।
प्रस्तुति ः प्रो. हेमेन्द्र चण्डालिया, उदयपुर
प्रेमचन्द जयन्ती पर परिचर्चा और �सफेद हाथी� का विमोचन
कोटा। प्रेमचन्द जयन्ती पर आयोजित कार्यक्रम में �प्रेमचन्द के साहित्य की वर्तमान समय में प्रासंगिकता� पर परिचर्चा और दूसरे सत्र् में डॉ. नरेन्द्रनाथ चतुर्वेदी के व्यंग्य उपन्यास �सफेद हाथी� का लोकार्पण किया गया।
समारोह के अध्यक्षता अभिव्यक्ति के संपादक श्री शिवराम ने की, वहीं मुख्य अतिथि डॉ. ओंकारनाथ चतुर्वेदी थे।
अभिव्यक्ति के सम्पादक शिवराम ने प्रेमचन्द के सामाजिक यथार्थ की चर्चा करते हुए उन्हें एक बेहतर दुनिया का स्वप्नद्रष्टा बताया तथा उनके कालजयी साहित्य के मूल्यों पर प्रकाश डाला। उनकी रचनाओं में बदलते समय के निरूपण की शक्तियों को रेखांकित करते हुए सामाजिक यथार्थ की गतिशीलता तथा रचनाकारों को मार्गदर्शक तत्त्वों की पहचान करने का आग्रह किया।
सत्र् की अध्यक्षता करते हुए डॉ. ओंकारनाथ चतुर्वेदी ने कहा कि रचना और रचनाकार सदा प्रासंगिक रहता है। आज की समकालीन परिस्थितियों में प्रेमचन्द जी के साहित्य की प्रासंगिकता पर चर्चा करते हुए प्रख्यात समीक्षक डॉ. कंचना सक्सेना ने प्रेमचन्द के कथा साहित्य में दलित चेतना, स्त्री स्वातंत्र््य तथा उनकी सभी वर्गों की समस्याओं को पहचानने की क्षमता के साथ वस्तुपरक विवेचना को रेखांकित किया।
कवि हितेश व्यास ने प्रेमचन्द के कथा साहित्य की चर्चा करते हुए कथा साहित्य में मनोरंजन के स्थान पर मनोदर्शन को अपनाने पर बल दिया। चिन्तक अरविन्द सोरल ने प्रेमचन्द जी के समग्र अवदान को स्वीकारने पर बल दिया।
कवि बृजेन्द्र कौशिक ने प्रेमचन्द के कथा साहित्य में जो समाज के प्रति आत्मीयता का भाव है उसकी पहचान स्पष्ट करते हुए साहित्य और बदलती हुई दुनिया के अंतर्सम्बन्धों में रचनाकार के लिए क्या बहुमूल्य है, उसकी पक्षधरता को रेखांकित किया।
शिवराज श्रीवास्तव ने एक शिक्षक के रूप में प्रेमचन्द की कहानियों का बालमन पर जो प्रभाव पडता है उसकी मार्मिक विवेचना की। शकूर अनवर ने अपनी लमही यात्र की चर्चा के साथ प्रेमचन्द के समय की साम्प्रदायिक घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि समय आज भी वही है या अधिक भयावह हुआ है, उनके साहित्य की प्रासंगिकता यही है कि हम इन समस्याओं से मुकाबला करना सीखें।
महेन्द्र नेह ने प्रेमचन्द के कथा साहित्य में शोषण के विरुद्ध उठी सकारात्मक पहल को विवेचित करते हुए वर्तमान समय की शोषण पर आधारित सामाजिक व्यवस्था तथा उसके प्रतिकार की संभावना को संकेतित किया।
परिचर्चा में अतुल चतुर्वेदी, गीता सक्सेना, ईश्वर चन्द सक्सेना, अरुण सैदवाल, बीना दीप, शिवनारायण वर्मा, अखिलेश अंजुम, *ष्णाकुमारी, अशोक मेहता ने भाग लिया।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र् में डॉ. नरेन्द्र चतुर्वेदी के व्यंग्य उपन्यास �सफेद हाथी� का लोकार्पण हुआ। व्यंग्यकार अतुल चतुर्वेदी ने *ति में समकालीन राजनीति, प्रशासनिक पाखण्ड, लक्ष्यहीन शिक्षा, रूढग्रस्त धर्म, समाज को जर्जर करने वाली प्रवृत्तियों पर करारी चोट करने वाली व्यंग्य रचना बताया।
नाटककार एवं समीक्षक शिवराम ने इस *ति को समकालीन समय की वि*तियों को चित्र्ति करते हुए प्रगतिशील सोच की रचना के रूप में स्वीकारा। कवि बृजेन्द्र कौशिक ने इसे समकालीन समय की विसंगतियों के अनावरण की रचना बताया।
कथाकार विजय जोशी ने इस उपन्यास में निहितार्थ व्यंग्य तथा किस्सागोई की शैली की विवेचना करते हुए सामाजिक यथार्थवादी उपन्यासों की परम्परा में, उल्लेखनीय *ति बताया। डॉ. गीता सक्सेना ने, इस *ति को सामाजिक यथार्थ के निरूपण के लिए एक सार्थक प्रयास के रूप में स्वीकार किया।
कार्यक्रम का संचालन साहित्यिक संस्था विकल्प की ओर से प्रख्यात कवि समीक्षक महेन्द्र नेह ने किया। अंत में डॉ. क्षमा चतुर्वेदी ने सबका आभार व्यक्त किया।
प्रस्तुति ः डॉ. क्षमा चतुर्वेदी, कोटा
पाठक मंच - �नारी कभी ना हारी�
जयपुर। अकादमी की पाठक मंच योजना के तहत राजस्थान लेखिका साहित्य संस्थान द्वारा वीना चौहान के सद्यः प्रकाशित उपन्यास �नारी कभी ना हारी� पर आयोजित परिचर्चा की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध उपन्यासकार मृदुला बिहारी ने की। संस्थान अध्यक्ष प्रो. पवन सुराणा ने स्वागत भाषण में �नारी कभी ना हारी� की सहजता और जीवटता के लिये बधाई देते हुए कहा कि इनकी *ति सिर्फ दर्पण की तरफ झाँकती नहीं अपितु जीवटता के साथ गति को कायम रखते हुए हर पल और परिवेश का अहसास कराती है। प्रो. सुराणा ने सुझाव रखते हुए कहा कि *ति प्रकाशन से पूर्व पाण्डुलिपि पर पूर्व विवेचना की जाने से *ति या रचना के सभी पहलुओं को छूने से उसे परिमार्जित कर तराशा जा सकता है।
संस्थान*सचिव*कमलेश माथुर ने बताया कि उक्त *ति राजस्थान*साहित्य अकादमी के सहयोग से प्रकाशित है। *ति पर विस्तृत जानकारी में �नारी कभी ना हारी� को नारी शक्ति की प्रतिष्ठित पहचान बताया, समाज, परिवार और परिवेश की हर चुनौती का डटकर सामना करते हुए लेखिका ने कहीं भी सम्बन्ध व सरोकार पर तनिक भी आँच नहीं आने दी। मुख्य वक्ता डॉ. प्रभा दशोरा ने कहा कि *ति की नायिका �एग्रेसिव� नहीं है, वह बिना किसी बाहरी विद्रोह या आंदोलन के विजयी होती है। गृहस्थी के तपोवन में तपना चुपचाप सहन करते*जाना*जैसे मूल्यबोध की जाग्रति का संदेश है इस *ति में। रचना में कहीं कोई *त्र्मि बनावट नहीं है। ईमानदारी की प्रस्तुति होने से यथार्थ से रूबरू कराती है, पलायन और वितृष्णा से विलग।
श्रीमती मंजुला गुप्ता ने अपने पत्र्वाचन में *ति को सामाजिक संघर्ष का सजीव एवं मार्मिक चित्र्ण बताया। श्रीमती उपमा जैन ने उपन्यास को मर्मस्पर्शी व धाराप्रवाह बताया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुविख्यात उपन्यासकार मृदुला बिहारी ने पुस्तक पर चर्चा को महोत्सव बताया। कहानी का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं होता, अपितु चुनौतियों के बीच रहकर संघर्षों का साहसपूर्वक मुकाबला करना और उसमें विजयी होना होता है, चेतना या जागृति पैदा करना होता है। कहानी या उपन्यास इस दृष्टि से सशक्त माध्यम है।
अंत में संस्थान संस्थापिका नलिनी उपाध्याय ने प्रस्तुत उपन्यास में संघर्षों से जूझते हुए सभी सकारात्मक पहलुओं पर प्रकाश डाला। संचालन उषा नांगिया ने किया।
प्रस्तुति ः कमलेश माथुर, जयपुर
15वाँ कथा यू.के. सम्मान समारोह
लंदन। ब्रिटेन के सांसद और पूर्व आंतरिक सुरक्षा राज्य मंत्री टोनी मैक्नल्टी ने ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ कॉमन्स में आयोजित एक गरिमामय समारोह में हिन्दी के सुपरिचित कथाकार भगवानदास मोरवाल को उनकी अनुपस्थिति में 15वाँ अन्तर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान प्रदान किया। यह सम्मान मोरवाल के नवीनतम उपन्यास �रेत� के लिये दिया गया। उनकी ओर से यह सम्मान उनके मित्र् अजित राय ने प्राप्त किया। इस अवसर पर उन्होंने ब्रिटेन के हिन्दी लेखकों के लिए �पद्मानंद सम्मान� ब्रिटिश हिन्दी कवि मोहन राणा को उनके ताजा कविता संग्रह �धूप के अन्धेरे में� के लिये प्रदान किया।
टोनी मैक्नल्टी ने लंदन एवं ब्रिटेन के अन्य क्षेत्रें से बडी संख्या में आए एशियाई लेखकों और ब्रिटिश साहित्य प्रेमियों को संबोधित करते हुए कहा कि भाषा संगीत की तरह होती है। यदि आप किसी दूसरे की भाषा समझते हैं तो आप जन्दगी की लय को समझ सकते हैं। दूसरों की भावनाओं को समझ सकते हैं। भाषा में आप सपने रच सकते हैं। इस तरह भाषा के माध्यम से आप मनुष्यता तक पहुँच सकते हैं। उन्होंने हिन्दी में अपना भाषण शुरू करते हुए कहा कि भाषाओें के माध्यम से हम सभ्यताओं के बीच संवाद स्थापित कर सकते हैं। भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं बल्कि आपकी पहचान होती है। उन्होंने कहा कि कथा यू.के. पिछले कई वर्षों से ब्रिटेन में बसे एशियाई समुदाय के बीच भाषा और साहित्य के माध्यम से संवाद स्थापित करने का महत्त्वपूर्ण कार्य का रही है।
लेबर पार्टी की काउंसलर और कथा यू.के. की सहयोगी संस्था एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स की अध्यक्ष जकीया जुबैरी ने भगवानदास मोरवाल के पुरस्*त उपन्यास �रेत� का परिचय देते हुए कहा कि लेखक ने काफी शोध के बाद एक ऐसी कथा पेश की है जिसका समाजशास्त्रीय अध्ययन किया जाना चाहिये। इस उपन्यास में कंजर जाति की स्त्र्यिों के जीवन संघर्ष का ऐसा प्रामाणिक चित्र्ण है कि पाठक चकित रह जाता है।

�थार के मध्य� पर परिचर्चा
जयपुर। राजस्थान लेखिका साहित्य संस्थान एवं उच्च अध्ययन केन्द्र, दर्शन शास्त्र् के तत्त्वावधान में कवयित्री डॉ. स्वर्णलता के काव्य संग्रह �थार के मध्य� पर परिचर्चा में प्रो. पवन सुराणा ने स्वागत भाषण में डॉ. स्वर्णलता की कविताओं को उनकी अंतस् की यात्र में समाहित अडिग विश्वास बताया। इनमें जीवन के विविध रंग हैं, प्र*ति के साथ सुन्दर सामंजस्य है वहीं समाज परिवेश के दायरे भी हैं, सरोकार हैं, संवेदनायें हैं जो कि संग्रह के मूलाधार हैं। मुख्य बात है कि द्वन्द्व को जीवन का आधार मानते हुए कवयित्री ने बडी शिद्दत से जिन्दगी को देखा है और अंतस् के भोगे यथार्थ को काव्य के माध्यम से उकेरा है। संस्थान सचिव कमलेश माथुर ने डॉ. स्वर्णलता का सविस्तार परिचय दिया। डॉ. सुषमा शर्मा ने �थार के मध्य� पर अपने पत्र्वाचन में कविता के सभी पक्षों पर सविस्तार कवयित्री की कविता की गुणवत्ता पर अपनी बात कही। नाथूलाल महावर ने काव्य संग्रह में चयनित मनोभावों के रत्नों को जीवन की श्रेष्ठतम समालोचना बताते हुए कहा कि*इन*कविताओं*में*शब्द स्वतः मुखरित होते हैं, कहीं प्र*ति की जलतरंग की झंकार है वहीं दूसरी तरफ बेचैनी, द्वन्द्व, अभाव मन की परतों को खोलते हैं। बी.एन. दवे, एडवोकेट हाईकोट ने कवयित्री की *ति को जीवन के समग्र अनुभवों की जीवनी बताया। डॉ. प्रतिभा जैन ने अपनी विचारशील उद्बोधन में *ति के शीर्षक �थार के मध्य� को प्यार की वीरानगी की कसक जैसे दृष्टान्तों की विराट् और जीवन्त झाँकी कहा। कवयित्री का अहसास ही �थार� की सार्थकता का मूल भाव बोध है। उच्च अध्ययन केन्द्र दर्शनशास्त्र् की संयोजक प्रो. कुसुम जैन ने स्वर्णलता जी को प्राणों से सींचकर जीवन के विविध पक्षों पर मन की गहराई का प्रतिबिम्ब बताया। डॉ. नरेन्द्र शर्मा �कुसुम� जी ने काव्य संग्रह की सराहना करते हुए विविध पक्षों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मन का समाधिस्थ होकर ही उपलब्धिमूलक लिखा जा सकता है। सचिव कमलेश माथुर ने जीवन की मुस्कानों के पीछे छिपी पीडा को पीकर अनुभूत अभिव्यक्ति की प्रस्तुति बताया।
डॉ. स्वर्णलता ने काव्य को आत्माभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बताते हुए कहा कि किसी भी रचनाकार की परास्त न होने की जिद ही उसके भीतर घुमडते अधूरेपन की बेचैनी और जन्दगी के बिखरते सपनों को समेट समय की इबारत लिखने का साहस देती है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. ताराप्रकाश जोशी ने कहा कि वीरानगी को समझने के लिये भी एक खास किस्म की दीवानगी चाहिये। प्राणों को सींचकर जो लिखी जाती है वो कविता है �थार के मध्य�। प्रो. कुसुम जैन ने धन्यवाद ज्ञापित किया। संचालन कमलेश माथुर ने किया।
प्रस्तुति ः कमलेश माथुर, जयपुर
�राजभाषा हिंदी विशिष्ट व्याख्यानमाला� आयोजित
देहरादून। भारतीय पेट्रोलियम संस्थान में �राजभाषा हिंदी विशिष्ट व्याख्यानमाला� के द्वितीय पुष्प में मुख्य अतिथि के रूप में अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रो. रवि कुमार �अनु�, हिंदी विभाग, पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला ने इस धारणा को मिथ्या बताया कि हिंदी की दशा दयनीय है। इस धारणा का मुख्य कारण सरकार की ओर से किए जा रहे हिंदी भाषा संवर्द्धन सम्बन्धी प्रयत्न हैं, जिनसे यह लगता है कि हिंदी सरकारी अवलंब पर ही जीवित है। सत्य तो यह है कि भाषा पर अधिकार लोक का है। लोक ही भाषा का पोषण करता है। भाषा का वर्चस्व लोक के पास होता है, सरकार के पास नहीं। भाषा लोक की सम्पत्ति है। भारत की साठ प्रतिशत से अधिक जनता हिंदी समझती है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि हिंदी बोलने वालों की संख्या अंग्रेजी बोलने वालों से दस करोड अधिक है। विश्व के 165 विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढाई जाती है। अंग्रेजी विश्व के मात्र् पाँच देशों में राजकीय रूप से अपनायी गई है। इस पर भी जहाँ अंग्रेजी अपनाई गई है, उन देशों में भी अंग्रेजी का सम्पूर्ण वर्चस्व नहीं है। प्रो. �अनु� ने भाषाशास्त्रीय आधार प्रस्तुत करते हुए कहा कि हिंदी अंग्रेजी से भी अधिक वैज्ञानिक भाषा है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी भी संस्*त से विकसित है, किन्तु ध्वनि परिवर्तन लोक करता है, जिससे भाषा में विविधता आती है। इन ध्वनि परिवर्तनों को सरकारों को भी स्वीकार करना पडता है। हिंदी हमारी पहचान का परिचय है, संकोच का आधार नहीं है, यह हमारी राष्ट्रीयता का भी परिचय है। संस्थान के वैज्ञानिक स्वरूप का उल्लेख करते हुए प्रो. �अनु� ने फ्राँस, जर्मनी, इटली, चीन आदि देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि वैज्ञानिक अनुसंधान भी हिंदी के माध्यम से हो सकता है। प्रो. �अनु� ने यह भी सूचित किया कि संयुक्त राष्ट्र संघ में की मान्यता प्राप्त भाषाओं के बाद अब हिंदी भी स्वी*त होने वाली है। प्रो. �अनु� ने आह्वान किया कि हम अपनी इच्छा शक्ति के आधार पर भाषा को आगे बढाएँ।
इससे पूर्व प्रो. �अनु� का स्वागत करते हुए डॉ. एच.बी. गोयल, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने हिन्दी के राजभाषा के रूप में महत्त्व और वैज्ञानिक क्षेत्र् में हिंदी के प्रयोग की आवश्यकता पर बल देते हुए राजभाषा के प्रचार-प्रसार की दिशा में संस्थान द्वारा किए जा रहे विभिन्न प्रयासों की सराहना की।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए संस्थान के वरिष्ठ हिंदी अधिकारी डॉ. दिनेश चमोला ने कहा कि राजभाषा हिंदी का प्रयोग स्वाभिमान का प्रतीक है। संस्कारधानी हिंदी जीवन मूल्यों की भाषा है जो अनेकता में एकता के संदेश को सन्निहित किए रहती है। चिंतन की जडता, चैतन्यता में परिवर्तित हो, इस व्याख्यानमाला का मूल मंतव्य है।
संस्थान की प्रशासन अधिकारी, श्रीमती सुशीला सिंघल ने प्रो. �अनु� द्वारा हिंदी की वैज्ञानिकता के संबंध में प्रस्तुत किए गए भाषाशास्त्रीय उदाहरणों के लिए उनका आभार व्यक्त किया और इस कार्यक्रम के आयोजन में संलग्न सभी का धन्यवाद किया। समारोह को सफल बनाने में राजभाषा अनुभाग के श्री मुकेशचन्द्र रतूडी, श्री प्रतापसिंह चौहान एवं श्री दीपक कुमार का विशेष योगदान रहा।
प्रस्तुति ः दिनेश चमोला, देहरादून
अनवर के सम्मान में गोष्ठी
उदयपुर। साहित्यिक, सामाजिक संस्था हमदर्द एकता संस्थान द्वारा काव्य गोष्ठी (मुशायरा) का आयोजन मुख्य अतिथि जोधपुर से आए मशहूर शायर अनिल अनवर, सम्पादक मरूगुलशन तथा बीकानेर से आए जिया उल् हसन कादरी, श्रीमती मृदुला श्रीवास्तव के विशिष्ट आतिथ्य में और संस्थान अध्यक्ष खुर्शीद नवाब की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ।
सरस्वती वंदना शकुन्तला सरूपरिया ने प्रस्तुत की। गोष्ठी का आगाज रमेश भटनागर के गीत �कौनसा गीत सुनाऊँ मैं तुझको कौन सी रागिनी गाऊँ� से हुआ। रामेश्वर दयाल पण्ड्या ने गीत �जिन्दगी का एक लम्हा रोज ही मरता रहा�। खुर्शीद नवाब ने गजल �कोई इधर से गुजरा तो ठोकर लगा गया, कोई शिकस्ता कब्र पे पत्थर लगा गया�, लालदास पर्जन्य ने पावस गीत �आई-आई सावणिये री तीज, मन भारी पीऊ बिन होवे है अधीर�, प्रेमप्यारी भटनागर ने गजल �सरहदों के ख्याल जाने दो, उलझे-उलझे सवाल जाने दो�, शायर इकबाल सागर ने गजल �पराये गम में यों आँसू बहाने कौन आता है, पुरानी कब्र पर शम्मे जलाने कौन आता है�, जगदीश तिवारी ने गीत �सागर से गहराई लेकर, नभ से ऊँचाई लेकर, भाव-शब्द के आँगन में चल रचना का संसार सजा�, शायर जगजीत निशांत ने गजलें �दिल के रुकने का कुछ तो बहाना होगा� तथा �जाने कब से बरस रहा है सुख-दुख का सावन� पढकर खूब दाद पाई। एस.पी. चौधरी �हलचल� व्यंग्यकार ने हास्य व्यंग्य के चुटकुले सुनाकर सभी को लोटपोट कर दिया। डॉ. मनोहर श्रीमाली ने राजस्थानी गीत �परताप जेहडो पूत जणवा अजकूंख क्यूं है तरसे� गाकर वीर रस घोला। शायरा जोहरा खान ने गजल ��जन्दगी ऐसे कटी कोई सजा हो जैसे, उसने मुझ पर कोई एहसान किया हो जैसे�, तारा दीक्षित ने गीत �जग धरियाणी कल्याणी शिव महाराणी मुजरो करूं हू मायड हाजरी भरावजे�, शकुन्तला सरूपरिया ने उम्दा शेर पढे तथा पावस गीत �बुलाए प्रीत का आँगन चले आओ - चले आओ, लो छाया झूमके सावन चले आओ-चले आओ�, कवि प्रकाश नागौरी ने गीत �सोच रहा हूँ इस जीवन में क्या-क्या तेरे नाम करूँ, शेष बची है जितनी धडकन दिल की तेरे नाम करूं�, पुष्कर गुप्तेश्वर ने गजलें �अपनी ही नजरों से गिरकर खडे हुए, गैरों के पेरों के नीचे बडे हुए� तथा �मैं अकेला ही नहीं तन्हाइयाँ भी हैं�, पं. नरोत्तम व्यास ने मुक्तक पढ और गीत �सच या कि ख्वाब कुछ नहीं, मैं हूँ तो दोनों हैं�, इकबाल हुसैन �इकबाल� ने गजल �या तो कुछ हो जाऊँगा, या फिर मैं खो जाऊँगा, देखो ना ऐसे मुझको, देखो मैं रो जाऊँगा, काटे से भी कट ना सके, बीज ऐसे बो जाऊँगा� पढकर भरपूर दाद पाई।
मदन आर्य ने �जा री संध्या सजना से कहना बैरन हो गई रैना� गीत पढा। गोष्ठी का संचालन कर रहे शायर मुश्ताक चंचल ने �लो आओ सभी मिल जाएँ गले कौमी एकता के साए तले� कविता और श्रीमती मृदुला श्रीवास्तव ने गजल �रह के भी सबके सामने हाजिर नहीं हुए� तथा पावस गीत �मेघा रे ऽऽ मेघों की है छाई चदरिया, देखो घिर घिर आई बदरियाँ� गाकर गोष्ठी को ऊँचाइयाँ प्रदान की। विशिष्ट अतिथि जिया उल् हसन कादरी बीकानेर ने गजल (आदीब अदीब की) इबारत में वो हुस्न नसी, खुशी का इजहार है कागज� पढकर वाहवाही लूटी। मुख्य अतिथि शायर अनिल अनवर ने चन्द मिसरे कहे और नज्म सुनाई �शब हुई माहताब निकला है,फूल महके हैं रातरानी के और इस गुलशन में कोई ढूँढ रहा चम्पे की कली� पढकर खूब तालियाँ बटोरी।
धन्यवाद, मेजबान और अध्यक्ष हमदर्द एकता संस्थान - खुर्शीद नवाब ने दिया।
प्रस्तुति ः खुर्शीद नवाब, उदयपुर

मुंशी प्रेमचंद जयन्ती पर कार्यक्रम



उदयपुर। राजस्थान साहित्य अकादमी की ओर से कथा सम्राट �मुंशी प्रेमचन्द जयन्ती� के अवसर पर �प्रेमचन्द होने का अर्थ� विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि प्रो. नंद चतुर्वेदी ने कहा कि प्रेमचन्द होने का अर्थ विस्तृत और महत्त्वपूर्ण प्र्रेमचन्द इसलिए पसन्द किए जाते हैं कि वे एक सजग, जागरूक लेखक थे। आर्थिक, सामाजिक, सांस्*तिक, धर्म, राजनीतिक सभी पहलुओं पर सजगता के साथ उन्होंने अपनी कलम चलाई। वही सच्चा लेखक है जो अपने समय को जानने की कोशिश करता है, अपने समय को नहीं समझने वाला लेखक किनारे कर दिया जाता है। विशिष्ट अतिथि डॉ. के.के. शर्मा ने कहा कि प्रेमचन्द का लेखन समाज के दुख-सुख से एकाकार करता है। वे वृहत्तर समाज से जुडने के लिए उर्दू से हिन्दी जगत् में आये, ईमानदारी और सजगता इनके साहित्य की विशेषता है। डॉ. राजेन्द्र मोहन भटनागर ने कहा कि प्रेमचन्द का लेखन देश ही नहीं समूचे विश्व को शोषण मुक्ति का संदेश देता है, आदर्शवाद की स्थापना करता है। प्रेमचन्द की 312 कहानियों में 52 जीवन संघर्ष की कहानियाँ हैं। मुख्य वक्ता डॉ. नवलकिशोर ने कहा कि प्रेमचन्द के साहित्य में सामाजिक कुप्रथा, अंधविश्वास और राजनीतिक सामन्तवाद का विरोध है और स्वतंत्र्ता संग्राम की लडाई है।
युवा लेखक डॉ. पल्लव ने कहा कि युवाओं में पढने- पढाने का अभाव लगता है और प्रेमचन्द के सभी वारिस तो बनना चाहते हैं, किन्तु उनकी परम्परा निर्वाह करने की किसी में न क्षमता है और न ही कोशिश। डॉ. लक्ष्मीनारायण नंदवाना ने प्रेमचन्द को सर्वहारा वर्ग की आवाज बताया। डॉ. रजनी कुलश्रेष्ठ ने प्रेमचन्द को अन्याय, शोषण के खिलाफ लडने की ताकत देने वाला लेखक बताया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. घनश्याम शलभ ने कहा कि प्रेमचन्द जमीनी हकीकत के लेखक हैं, उनके साहित्य के पात्रें में विशालता, जीवन दर्शन है, आध्यात्मिक जीवन दर्शन ही नहीं, उनके साहित्य में जन समाज है, वह चरित्रें के साथ आत्मसात् होते हैं।
गोष्ठी का संचालन अकादमी सचिव डॉ. प्रमोद भट्ट ने किया। संगोष्ठी में सर्वश्री इकबाल हुसैन �इकबाल�, नवीन नंदवाना, डॉ. राजेन्द्र बारहठ, शिवदान सिंह जोलावास, खुर्शीद नवाब, गिरीश नाथ माथुर, पुरुषोत्तम पल्लव, श्रीरतन मोहता, रामदयाल मेहर, रमेश कोठारी, दिनेश अरोडा, प्रकाश नेभनानी, राजेश मेहता, डॉ. ज्योतिपुंज, विष्णु पालीवाल, जयप्रकाश भटनागर आदि की सार्थक उपस्थिति रही। प्रारम्भ में अतिथियों ने माँ सरस्वती एवं मुंशी प्रेमचन्द के चित्र् पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित किया। अन्त में धन्यवाद ज्ञापन अकादमी पुस्तकालयाध्यक्ष श्री दुर्गेश नंदवाना ने किया।
प्रस्तुति ः रामदयाल मेहर, उदयपुर
श्रीडूंगरगढ। राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति के सभाकक्ष में प्रेमचन्द जयन्ती मनाई गई। संगोष्ठी को संबोधित करते हुए साहित्यकार श्याम महर्षि ने कहा कि प्रेमचन्द का साहित्य उनके समय का ही नहीं, अपितु भविष्य में भी सदैव समसामयिक बना रहेगा। चेतना के बिन्दुओं को झकझोरने में उनका साहित्य अपने आप में अनूठापन लिए हुए है। कवि सत्यदीप ने कहा कि प्रेमचन्द भारतीय ग्रामीण परिवेश में व्याप्त शोषण एवं यातना के क्षणों में रचनाओं के माध्यम से पाठक को ले जाने में सक्षम रहे। प्रेमचन्द आम आदमी के लेखक एवं स्वतंत्र्ता पूर्व भारत की ग्राम्य परिवेश की क्रूरतम सच्चाई को प्रकट करने वाले लेखक थे। नवरतन सोनी ने अपने पत्र्वाचन के माध्यम से बताया कि उनकी रचनाओं में सांस्*तिक पुनर्जागरण एवं सुधारवादी प्रबल चेतना मौजूद है। संगोष्ठी में भंवर भोजक, रामकिशन उपाध्याय, बजरंग शर्मा, महेश जोशी, महावीर सारस्वत, वैद्य रमेशचन्द्र शर्मा ने अपने विचार रखे।
प्रस्तुति ः श्याम महर्षि, श्रीडूंगरगढ
जालोर। जालोर जिले के महावीर मूक-बधिर विद्यालय में उपन्यास सम्राट् मुंशी प्रेमचन्द की 129वीं जयन्ती के मौके पर साहित्य संवेदना की मार्मिकता स्वतः प्रस्फुटित हुई। मुख्य अतिथि जिला कलेक्टर एस.एस. बिस्सा ने पंजाबी की ख्यातनाम लेखिका, अमृता प्रीतम की रचना �धरती एक सुंदर किताब...� की चर्चा करते हुए कहा कि जिसने प्रेमचन्द का साहित्य नहीं पढा उसने बहुत कुछ खो दिया। उन्होंने मूक-बधिर बच्चों की संवेदनाओं को समझने और उन्हें सामान्य जीवन की जानकारी देने के लिए साहित्य में विशेष प्रयास की आवश्यकता बताई।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विद्वान साहित्यकार रामेश्वर दयाल श्रीमाली ने अपने उद्बोधन में कहा कि इन मूक-बधिर विद्यार्थियों के बीच मुंशी प्रेमचन्द की जयन्ती का आयोजन सुखद संजोग है। उन्होंने कहा कि प्रेमचन्द के समय देश मूक-बधिर था। अंग्रेजियत के आतंक के आगे कोई बोलना नहीं चाहता था। प्रेमचन्द की कलम ने राष्ट्र को भाषा दी और उस समय के आदर्शों को साहित्य के माध्यम से गढा इसलिए वे सदैव स्तुत्य हैं। रामेश्वरदयाल श्रीमाली ने पुरुषोत्तम पोमल के संदर्भ में कहा कि उन्होंने तीन उपन्यास लिखे हैं। जिसमें से �ज्योत्स्ना� बेजोड *ति है, तथा गत वर्ष प्रकाशित उपन्यास �शहजादी फीरोजा� जालोर के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखी गई साहसिक *ति है।
पुरुषोत्तम पोमल ने अपने उद्बोधन में मुंशी प्रेमचन्द के जीवन चरित्र् के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि उपेक्षितों के प्रति करुणा भाव मनुष्य को मनुष्य बनने की प्रेरणा देता है। उन्होंने कहा कि इन बच्चों में शब्द बोलने व सुनने की शक्ति नहीं है, लेकिन शब्दों को लिखने-पढने की अद्भुत शक्ति है, जिसे विकसित किया जा सकता है।
जिला उद्योग संघ के अध्यक्ष उद्यमी मदनराज बोहरा ने विद्यालय के प्रभारी धन्नाराम पुरोहित के जज्बे की सराहना करते हुए मौजूद साहित्यकारों से मूक-बधिर बच्चों की संवेदनाओं पर साहित्य लिखने का आह्वान किया। गीतकार अचलेश्वर आनन्द ने �जब मनुजता भौतिकी के भार से चुपचाप रोती है...� और वरिष्ठ साहित्यकार लालदास राकेश ने �कोई जद् उगावै रूंख...� सुनाकर संवेदनाओं के जागरण की बात कही। समाज कल्याण अधिकारी एम.एल. मारू ने विद्यालय की ओर से किए जा रहे प्रयासों और सरकार की ओर से उपलब्ध करवाई जा रही सुविधाओं के बारे में जानकारी दी।
इस मौके पर मूक-बधिर बच्चों की ओर से बनाए गए प्रेमचन्द के चित्र् को देखकर जिला कलेक्टर प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। कार्यक्रम के मौके पर जालोर के उपन्यासकार पुरुषोतम पोमल ने अपनी रचना �शहजादी फीरोजा� से प्राप्त हुई 11 हजार की रॉयल्टी राशि मूक-बधिर बच्चों के विकास के लिए समर्पित की। कलक्टर ने विद्यालय के अध्यक्ष धन्नाराम पुरोहित को चैक भेंट करते हुए पोमल को साधुवाद कहा।
कार्यक्रम में नगरपालिका के पूर्व अध्यक्ष श्री मोहनलाल सिद्धावत, कवि श्री बाबूलाल व्यास, अधिवक्ता श्री भवानीसिंह सराणा, श्री दिनेशचन्द्र व्यास, कोषाधिकारी श्री देवीलाल माली, वरिष्ठ लेखाधिकारी एवं कर्मचारी कल्याण नेता श्री ईश्वरलाल शर्मा, श्री ललित दवे, श्री रमेश जैन, श्री महावीर जैन, रंगकर्मी श्री अनिल शर्मा व श्री हनीफ मंडोरी, शायद अकबर खां अश्क, उद्यमी सज्जन पोमल एवं देविका रानी समेत बडी संख्या में साहित्य प्रेमी लोग उपस्थित थे।
प्रस्तुति ः अचलेश्वर आनन्द, जालोर
उदयपुर। प्रेमचंद जयंती पर माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय के अंग्रेजी विभाग और जन संस्*ति मंच के संयुक्त तत्वावधान में प्रसिद्ध निर्देशक सत्यजीत राय की फिल्म �शतरंज के खिलाडी� का जन प्रदर्शन किया गया। गौरतलब है कि यह फिल्म प्रेमचन्द की इसी शीर्षक की अमर कहानी पर आधारित है।
प्रेमचन्द की यह कहानी नवाब वाजिद अली शाह के समय के लखनऊ की कथा कहती है। यह वह समय था जब ईस्ट इण्डिया कम्पनी भारत में पाँव पसार चुकी थी और राजनीतिक हस्तांतरण की तैयारी हो रही थी। फिल्म पस्त पड चुके सामंती ढाँचे की ब्रिटिश उपनिवेशवाद के हाथों पराजित होने की त्रसदी का उद्घाटन करती है। फिल्म में संजीव कुमार, सईद जाफरी, शाबाना आजमी और अमजद खान की मुख्य भूमिकाएं हैं।
आयोजन में वरिष्ठ कवि प्रो. नंद चतुर्वेदी ने कहा कि नये समय के दबावों का सामना करने के लिए साहित्य को भी नये-नये रूप धारण करने होंगे। उन्होंने कहा कि कहानी और फिल्म का अंत अलग-अलग है, ऐसे में क्या यह बहस का*विषय नहीं है कि दूसरे रूप में बदलते समय कला*ति के बदलने की कितनी छूट होनी चाहिए। विख्यात समालोचक प्रो. नवल किशोर ने कहा कि युवा वर्ग को साहित्य से जोडने के लिए ऐसे नवाचारों का स्वागत किया जाना चाहिए। रंगकर्मी महेश नायक ने फिल्म के एक विशेष पहलू की ओर ध्यान दिलाया कि सत्यजीत राय के अनुरोध पर हॉलीवुड के प्रसिद्ध निर्देशक रिचर्ड एटनबरो ने फिल्म में लॉर्ड डलहौजी की भूमिका निभाई थी।
अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष प्रो. हेमेन्द्र चण्डालिया ने कहा कि ब्रिटिश उपनिवेशवाद और भारतीय सामंतवाद दोनों प्रेमचन्द की कलम के निशाने पर रहे और यह फिल्म इसी बात की सच्ची गवाही देती है। उन्होंने कहा कि कहानी और फिल्म आज भी प्रासंगिक है क्योंकि ग्लोबलाइजेशन की शतरंज में हमारे जैसे देश फँस चुके हैं। संयोजन कर रहे जसम के राज्य संयोजक हिमांशु पण्ड्या ने कहा कि फिल्म में अमजद खां अपनी अभिनय कला के शिखर पर है। उन्होंने कहा कि शोले की अपूर्व ख्याति ने उनकी इस यादगार भूमिका को विस्मृत कर दिया। चर्चा में बनास के सम्पादक डॉ. पल्लव ने कहा कि अच्छी *ति किसी भी माध्यम से आये वह श्रेष्ठ साहित्य का आस्वाद भी देती है। आयोजन में फिल्म पर चर्चा में डॉ. सुधा चौधरी, डॉ. सर्वतुन्निसा खां, डॉ. फरहत बानो, डॉ. रजनी कुलश्रेष्ठ, डॉ. लालाराम जाट, डॉ. चन्द्रदेव ओला, तौशीन, शोधार्थी नंदलाल जोशी, गणेशलाल मीणा, केसरीमल निनामा ने भी भाग लिया। अंत में जसम की ओर से प्रज्ञा जोशी व गजेन्द्र मीणा ने सभी का आभार ज्ञापित किया।
इससे पूर्व जसम के युवा सदस्य शैलेन्द्र भाटी ने कहानी �शतरंज के खिलाडी� का प्रभावी पाठ किया।
प्रस्तुति ः प्रो. हेमेन्द्र चण्डालिया, उदयपुर
प्रेमचन्द जयन्ती पर परिचर्चा और �सफेद हाथी� का विमोचन
कोटा। प्रेमचन्द जयन्ती पर आयोजित कार्यक्रम में �प्रेमचन्द के साहित्य की वर्तमान समय में प्रासंगिकता� पर परिचर्चा और दूसरे सत्र् में डॉ. नरेन्द्रनाथ चतुर्वेदी के व्यंग्य उपन्यास �सफेद हाथी� का लोकार्पण किया गया।
समारोह के अध्यक्षता अभिव्यक्ति के संपादक श्री शिवराम ने की, वहीं मुख्य अतिथि डॉ. ओंकारनाथ चतुर्वेदी थे।
अभिव्यक्ति के सम्पादक शिवराम ने प्रेमचन्द के सामाजिक यथार्थ की चर्चा करते हुए उन्हें एक बेहतर दुनिया का स्वप्नद्रष्टा बताया तथा उनके कालजयी साहित्य के मूल्यों पर प्रकाश डाला। उनकी रचनाओं में बदलते समय के निरूपण की शक्तियों को रेखांकित करते हुए सामाजिक यथार्थ की गतिशीलता तथा रचनाकारों को मार्गदर्शक तत्त्वों की पहचान करने का आग्रह किया।
सत्र् की अध्यक्षता करते हुए डॉ. ओंकारनाथ चतुर्वेदी ने कहा कि रचना और रचनाकार सदा प्रासंगिक रहता है। आज की समकालीन परिस्थितियों में प्रेमचन्द जी के साहित्य की प्रासंगिकता पर चर्चा करते हुए प्रख्यात समीक्षक डॉ. कंचना सक्सेना ने प्रेमचन्द के कथा साहित्य में दलित चेतना, स्त्री स्वातंत्र््य तथा उनकी सभी वर्गों की समस्याओं को पहचानने की क्षमता के साथ वस्तुपरक विवेचना को रेखांकित किया।
कवि हितेश व्यास ने प्रेमचन्द के कथा साहित्य की चर्चा करते हुए कथा साहित्य में मनोरंजन के स्थान पर मनोदर्शन को अपनाने पर बल दिया। चिन्तक अरविन्द सोरल ने प्रेमचन्द जी के समग्र अवदान को स्वीकारने पर बल दिया।
कवि बृजेन्द्र कौशिक ने प्रेमचन्द के कथा साहित्य में जो समाज के प्रति आत्मीयता का भाव है उसकी पहचान स्पष्ट करते हुए साहित्य और बदलती हुई दुनिया के अंतर्सम्बन्धों में रचनाकार के लिए क्या बहुमूल्य है, उसकी पक्षधरता को रेखांकित किया।
शिवराज श्रीवास्तव ने एक शिक्षक के रूप में प्रेमचन्द की कहानियों का बालमन पर जो प्रभाव पडता है उसकी मार्मिक विवेचना की। शकूर अनवर ने अपनी लमही यात्र की चर्चा के साथ प्रेमचन्द के समय की साम्प्रदायिक घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि समय आज भी वही है या अधिक भयावह हुआ है, उनके साहित्य की प्रासंगिकता यही है कि हम इन समस्याओं से मुकाबला करना सीखें।
महेन्द्र नेह ने प्रेमचन्द के कथा साहित्य में शोषण के विरुद्ध उठी सकारात्मक पहल को विवेचित करते हुए वर्तमान समय की शोषण पर आधारित सामाजिक व्यवस्था तथा उसके प्रतिकार की संभावना को संकेतित किया।
परिचर्चा में अतुल चतुर्वेदी, गीता सक्सेना, ईश्वर चन्द सक्सेना, अरुण सैदवाल, बीना दीप, शिवनारायण वर्मा, अखिलेश अंजुम, *ष्णाकुमारी, अशोक मेहता ने भाग लिया।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र् में डॉ. नरेन्द्र चतुर्वेदी के व्यंग्य उपन्यास �सफेद हाथी� का लोकार्पण हुआ। व्यंग्यकार अतुल चतुर्वेदी ने *ति में समकालीन राजनीति, प्रशासनिक पाखण्ड, लक्ष्यहीन शिक्षा, रूढग्रस्त धर्म, समाज को जर्जर करने वाली प्रवृत्तियों पर करारी चोट करने वाली व्यंग्य रचना बताया।
नाटककार एवं समीक्षक शिवराम ने इस *ति को समकालीन समय की वि*तियों को चित्र्ति करते हुए प्रगतिशील सोच की रचना के रूप में स्वीकारा। कवि बृजेन्द्र कौशिक ने इसे समकालीन समय की विसंगतियों के अनावरण की रचना बताया।
कथाकार विजय जोशी ने इस उपन्यास में निहितार्थ व्यंग्य तथा किस्सागोई की शैली की विवेचना करते हुए सामाजिक यथार्थवादी उपन्यासों की परम्परा में, उल्लेखनीय *ति बताया। डॉ. गीता सक्सेना ने, इस *ति को सामाजिक यथार्थ के निरूपण के लिए एक सार्थक प्रयास के रूप में स्वीकार किया।
कार्यक्रम का संचालन साहित्यिक संस्था विकल्प की ओर से प्रख्यात कवि समीक्षक महेन्द्र नेह ने किया। अंत में डॉ. क्षमा चतुर्वेदी ने सबका आभार व्यक्त किया।
प्रस्तुति ः डॉ. क्षमा चतुर्वेदी, कोटा
पाठक मंच - �नारी कभी ना हारी�
जयपुर। अकादमी की पाठक मंच योजना के तहत राजस्थान लेखिका साहित्य संस्थान द्वारा वीना चौहान के सद्यः प्रकाशित उपन्यास �नारी कभी ना हारी� पर आयोजित परिचर्चा की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध उपन्यासकार मृदुला बिहारी ने की। संस्थान अध्यक्ष प्रो. पवन सुराणा ने स्वागत भाषण में �नारी कभी ना हारी� की सहजता और जीवटता के लिये बधाई देते हुए कहा कि इनकी *ति सिर्फ दर्पण की तरफ झाँकती नहीं अपितु जीवटता के साथ गति को कायम रखते हुए हर पल और परिवेश का अहसास कराती है। प्रो. सुराणा ने सुझाव रखते हुए कहा कि *ति प्रकाशन से पूर्व पाण्डुलिपि पर पूर्व विवेचना की जाने से *ति या रचना के सभी पहलुओं को छूने से उसे परिमार्जित कर तराशा जा सकता है।
संस्थान*सचिव*कमलेश माथुर ने बताया कि उक्त *ति राजस्थान*साहित्य अकादमी के सहयोग से प्रकाशित है। *ति पर विस्तृत जानकारी में �नारी कभी ना हारी� को नारी शक्ति की प्रतिष्ठित पहचान बताया, समाज, परिवार और परिवेश की हर चुनौती का डटकर सामना करते हुए लेखिका ने कहीं भी सम्बन्ध व सरोकार पर तनिक भी आँच नहीं आने दी। मुख्य वक्ता डॉ. प्रभा दशोरा ने कहा कि *ति की नायिका �एग्रेसिव� नहीं है, वह बिना किसी बाहरी विद्रोह या आंदोलन के विजयी होती है। गृहस्थी के तपोवन में तपना चुपचाप सहन करते*जाना*जैसे मूल्यबोध की जाग्रति का संदेश है इस *ति में। रचना में कहीं कोई *त्र्मि बनावट नहीं है। ईमानदारी की प्रस्तुति होने से यथार्थ से रूबरू कराती है, पलायन और वितृष्णा से विलग।
श्रीमती मंजुला गुप्ता ने अपने पत्र्वाचन में *ति को सामाजिक संघर्ष का सजीव एवं मार्मिक चित्र्ण बताया। श्रीमती उपमा जैन ने उपन्यास को मर्मस्पर्शी व धाराप्रवाह बताया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुविख्यात उपन्यासकार मृदुला बिहारी ने पुस्तक पर चर्चा को महोत्सव बताया। कहानी का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं होता, अपितु चुनौतियों के बीच रहकर संघर्षों का साहसपूर्वक मुकाबला करना और उसमें विजयी होना होता है, चेतना या जागृति पैदा करना होता है। कहानी या उपन्यास इस दृष्टि से सशक्त माध्यम है।
अंत में संस्थान संस्थापिका नलिनी उपाध्याय ने प्रस्तुत उपन्यास में संघर्षों से जूझते हुए सभी सकारात्मक पहलुओं पर प्रकाश डाला। संचालन उषा नांगिया ने किया।
प्रस्तुति ः कमलेश माथुर, जयपुर
15वाँ कथा यू.के. सम्मान समारोह
लंदन। ब्रिटेन के सांसद और पूर्व आंतरिक सुरक्षा राज्य मंत्री टोनी मैक्नल्टी ने ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ कॉमन्स में आयोजित एक गरिमामय समारोह में हिन्दी के सुपरिचित कथाकार भगवानदास मोरवाल को उनकी अनुपस्थिति में 15वाँ अन्तर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान प्रदान किया। यह सम्मान मोरवाल के नवीनतम उपन्यास �रेत� के लिये दिया गया। उनकी ओर से यह सम्मान उनके मित्र् अजित राय ने प्राप्त किया। इस अवसर पर उन्होंने ब्रिटेन के हिन्दी लेखकों के लिए �पद्मानंद सम्मान� ब्रिटिश हिन्दी कवि मोहन राणा को उनके ताजा कविता संग्रह �धूप के अन्धेरे में� के लिये प्रदान किया।
टोनी मैक्नल्टी ने लंदन एवं ब्रिटेन के अन्य क्षेत्रें से बडी संख्या में आए एशियाई लेखकों और ब्रिटिश साहित्य प्रेमियों को संबोधित करते हुए कहा कि भाषा संगीत की तरह होती है। यदि आप किसी दूसरे की भाषा समझते हैं तो आप जन्दगी की लय को समझ सकते हैं। दूसरों की भावनाओं को समझ सकते हैं। भाषा में आप सपने रच सकते हैं। इस तरह भाषा के माध्यम से आप मनुष्यता तक पहुँच सकते हैं। उन्होंने हिन्दी में अपना भाषण शुरू करते हुए कहा कि भाषाओें के माध्यम से हम सभ्यताओं के बीच संवाद स्थापित कर सकते हैं। भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं बल्कि आपकी पहचान होती है। उन्होंने कहा कि कथा यू.के. पिछले कई वर्षों से ब्रिटेन में बसे एशियाई समुदाय के बीच भाषा और साहित्य के माध्यम से संवाद स्थापित करने का महत्त्वपूर्ण कार्य का रही है।
लेबर पार्टी की काउंसलर और कथा यू.के. की सहयोगी संस्था एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स की अध्यक्ष जकीया जुबैरी ने भगवानदास मोरवाल के पुरस्*त उपन्यास �रेत� का परिचय देते हुए कहा कि लेखक ने काफी शोध के बाद एक ऐसी कथा पेश की है जिसका समाजशास्त्रीय अध्ययन किया जाना चाहिये। इस उपन्यास में कंजर जाति की स्त्र्यिों के जीवन संघर्ष का ऐसा प्रामाणिक चित्र्ण है कि पाठक चकित रह जाता है।

�थार के मध्य� पर परिचर्चा
जयपुर। राजस्थान लेखिका साहित्य संस्थान एवं उच्च अध्ययन केन्द्र, दर्शन शास्त्र् के तत्त्वावधान में कवयित्री डॉ. स्वर्णलता के काव्य संग्रह �थार के मध्य� पर परिचर्चा में प्रो. पवन सुराणा ने स्वागत भाषण में डॉ. स्वर्णलता की कविताओं को उनकी अंतस् की यात्र में समाहित अडिग विश्वास बताया। इनमें जीवन के विविध रंग हैं, प्र*ति के साथ सुन्दर सामंजस्य है वहीं समाज परिवेश के दायरे भी हैं, सरोकार हैं, संवेदनायें हैं जो कि संग्रह के मूलाधार हैं। मुख्य बात है कि द्वन्द्व को जीवन का आधार मानते हुए कवयित्री ने बडी शिद्दत से जिन्दगी को देखा है और अंतस् के भोगे यथार्थ को काव्य के माध्यम से उकेरा है। संस्थान सचिव कमलेश माथुर ने डॉ. स्वर्णलता का सविस्तार परिचय दिया। डॉ. सुषमा शर्मा ने �थार के मध्य� पर अपने पत्र्वाचन में कविता के सभी पक्षों पर सविस्तार कवयित्री की कविता की गुणवत्ता पर अपनी बात कही। नाथूलाल महावर ने काव्य संग्रह में चयनित मनोभावों के रत्नों को जीवन की श्रेष्ठतम समालोचना बताते हुए कहा कि*इन*कविताओं*में*शब्द स्वतः मुखरित होते हैं, कहीं प्र*ति की जलतरंग की झंकार है वहीं दूसरी तरफ बेचैनी, द्वन्द्व, अभाव मन की परतों को खोलते हैं। बी.एन. दवे, एडवोकेट हाईकोट ने कवयित्री की *ति को जीवन के समग्र अनुभवों की जीवनी बताया। डॉ. प्रतिभा जैन ने अपनी विचारशील उद्बोधन में *ति के शीर्षक �थार के मध्य� को प्यार की वीरानगी की कसक जैसे दृष्टान्तों की विराट् और जीवन्त झाँकी कहा। कवयित्री का अहसास ही �थार� की सार्थकता का मूल भाव बोध है। उच्च अध्ययन केन्द्र दर्शनशास्त्र् की संयोजक प्रो. कुसुम जैन ने स्वर्णलता जी को प्राणों से सींचकर जीवन के विविध पक्षों पर मन की गहराई का प्रतिबिम्ब बताया। डॉ. नरेन्द्र शर्मा �कुसुम� जी ने काव्य संग्रह की सराहना करते हुए विविध पक्षों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मन का समाधिस्थ होकर ही उपलब्धिमूलक लिखा जा सकता है। सचिव कमलेश माथुर ने जीवन की मुस्कानों के पीछे छिपी पीडा को पीकर अनुभूत अभिव्यक्ति की प्रस्तुति बताया।
डॉ. स्वर्णलता ने काव्य को आत्माभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बताते हुए कहा कि किसी भी रचनाकार की परास्त न होने की जिद ही उसके भीतर घुमडते अधूरेपन की बेचैनी और जन्दगी के बिखरते सपनों को समेट समय की इबारत लिखने का साहस देती है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. ताराप्रकाश जोशी ने कहा कि वीरानगी को समझने के लिये भी एक खास किस्म की दीवानगी चाहिये। प्राणों को सींचकर जो लिखी जाती है वो कविता है �थार के मध्य�। प्रो. कुसुम जैन ने धन्यवाद ज्ञापित किया। संचालन कमलेश माथुर ने किया।
प्रस्तुति ः कमलेश माथुर, जयपुर
�राजभाषा हिंदी विशिष्ट व्याख्यानमाला� आयोजित
देहरादून। भारतीय पेट्रोलियम संस्थान में �राजभाषा हिंदी विशिष्ट व्याख्यानमाला� के द्वितीय पुष्प में मुख्य अतिथि के रूप में अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रो. रवि कुमार �अनु�, हिंदी विभाग, पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला ने इस धारणा को मिथ्या बताया कि हिंदी की दशा दयनीय है। इस धारणा का मुख्य कारण सरकार की ओर से किए जा रहे हिंदी भाषा संवर्द्धन सम्बन्धी प्रयत्न हैं, जिनसे यह लगता है कि हिंदी सरकारी अवलंब पर ही जीवित है। सत्य तो यह है कि भाषा पर अधिकार लोक का है। लोक ही भाषा का पोषण करता है। भाषा का वर्चस्व लोक के पास होता है, सरकार के पास नहीं। भाषा लोक की सम्पत्ति है। भारत की साठ प्रतिशत से अधिक जनता हिंदी समझती है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि हिंदी बोलने वालों की संख्या अंग्रेजी बोलने वालों से दस करोड अधिक है। विश्व के 165 विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढाई जाती है। अंग्रेजी विश्व के मात्र् पाँच देशों में राजकीय रूप से अपनायी गई है। इस पर भी जहाँ अंग्रेजी अपनाई गई है, उन देशों में भी अंग्रेजी का सम्पूर्ण वर्चस्व नहीं है। प्रो. �अनु� ने भाषाशास्त्रीय आधार प्रस्तुत करते हुए कहा कि हिंदी अंग्रेजी से भी अधिक वैज्ञानिक भाषा है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी भी संस्*त से विकसित है, किन्तु ध्वनि परिवर्तन लोक करता है, जिससे भाषा में विविधता आती है। इन ध्वनि परिवर्तनों को सरकारों को भी स्वीकार करना पडता है। हिंदी हमारी पहचान का परिचय है, संकोच का आधार नहीं है, यह हमारी राष्ट्रीयता का भी परिचय है। संस्थान के वैज्ञानिक स्वरूप का उल्लेख करते हुए प्रो. �अनु� ने फ्राँस, जर्मनी, इटली, चीन आदि देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि वैज्ञानिक अनुसंधान भी हिंदी के माध्यम से हो सकता है। प्रो. �अनु� ने यह भी सूचित किया कि संयुक्त राष्ट्र संघ में की मान्यता प्राप्त भाषाओं के बाद अब हिंदी भी स्वी*त होने वाली है। प्रो. �अनु� ने आह्वान किया कि हम अपनी इच्छा शक्ति के आधार पर भाषा को आगे बढाएँ।
इससे पूर्व प्रो. �अनु� का स्वागत करते हुए डॉ. एच.बी. गोयल, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने हिन्दी के राजभाषा के रूप में महत्त्व और वैज्ञानिक क्षेत्र् में हिंदी के प्रयोग की आवश्यकता पर बल देते हुए राजभाषा के प्रचार-प्रसार की दिशा में संस्थान द्वारा किए जा रहे विभिन्न प्रयासों की सराहना की।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए संस्थान के वरिष्ठ हिंदी अधिकारी डॉ. दिनेश चमोला ने कहा कि राजभाषा हिंदी का प्रयोग स्वाभिमान का प्रतीक है। संस्कारधानी हिंदी जीवन मूल्यों की भाषा है जो अनेकता में एकता के संदेश को सन्निहित किए रहती है। चिंतन की जडता, चैतन्यता में परिवर्तित हो, इस व्याख्यानमाला का मूल मंतव्य है।
संस्थान की प्रशासन अधिकारी, श्रीमती सुशीला सिंघल ने प्रो. �अनु� द्वारा हिंदी की वैज्ञानिकता के संबंध में प्रस्तुत किए गए भाषाशास्त्रीय उदाहरणों के लिए उनका आभार व्यक्त किया और इस कार्यक्रम के आयोजन में संलग्न सभी का धन्यवाद किया। समारोह को सफल बनाने में राजभाषा अनुभाग के श्री मुकेशचन्द्र रतूडी, श्री प्रतापसिंह चौहान एवं श्री दीपक कुमार का विशेष योगदान रहा।
प्रस्तुति ः दिनेश चमोला, देहरादून
अनवर के सम्मान में गोष्ठी
उदयपुर। साहित्यिक, सामाजिक संस्था हमदर्द एकता संस्थान द्वारा काव्य गोष्ठी (मुशायरा) का आयोजन मुख्य अतिथि जोधपुर से आए मशहूर शायर अनिल अनवर, सम्पादक मरूगुलशन तथा बीकानेर से आए जिया उल् हसन कादरी, श्रीमती मृदुला श्रीवास्तव के विशिष्ट आतिथ्य में और संस्थान अध्यक्ष खुर्शीद नवाब की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ।
सरस्वती वंदना शकुन्तला सरूपरिया ने प्रस्तुत की। गोष्ठी का आगाज रमेश भटनागर के गीत �कौनसा गीत सुनाऊँ मैं तुझको कौन सी रागिनी गाऊँ� से हुआ। रामेश्वर दयाल पण्ड्या ने गीत �जिन्दगी का एक लम्हा रोज ही मरता रहा�। खुर्शीद नवाब ने गजल �कोई इधर से गुजरा तो ठोकर लगा गया, कोई शिकस्ता कब्र पे पत्थर लगा गया�, लालदास पर्जन्य ने पावस गीत �आई-आई सावणिये री तीज, मन भारी पीऊ बिन होवे है अधीर�, प्रेमप्यारी भटनागर ने गजल �सरहदों के ख्याल जाने दो, उलझे-उलझे सवाल जाने दो�, शायर इकबाल सागर ने गजल �पराये गम में यों आँसू बहाने कौन आता है, पुरानी कब्र पर शम्मे जलाने कौन आता है�, जगदीश तिवारी ने गीत �सागर से गहराई लेकर, नभ से ऊँचाई लेकर, भाव-शब्द के आँगन में चल रचना का संसार सजा�, शायर जगजीत निशांत ने गजलें �दिल के रुकने का कुछ तो बहाना होगा� तथा �जाने कब से बरस रहा है सुख-दुख का सावन� पढकर खूब दाद पाई। एस.पी. चौधरी �हलचल� व्यंग्यकार ने हास्य व्यंग्य के चुटकुले सुनाकर सभी को लोटपोट कर दिया। डॉ. मनोहर श्रीमाली ने राजस्थानी गीत �परताप जेहडो पूत जणवा अजकूंख क्यूं है तरसे� गाकर वीर रस घोला। शायरा जोहरा खान ने गजल ��जन्दगी ऐसे कटी कोई सजा हो जैसे, उसने मुझ पर कोई एहसान किया हो जैसे�, तारा दीक्षित ने गीत �जग धरियाणी कल्याणी शिव महाराणी मुजरो करूं हू मायड हाजरी भरावजे�, शकुन्तला सरूपरिया ने उम्दा शेर पढे तथा पावस गीत �बुलाए प्रीत का आँगन चले आओ - चले आओ, लो छाया झूमके सावन चले आओ-चले आओ�, कवि प्रकाश नागौरी ने गीत �सोच रहा हूँ इस जीवन में क्या-क्या तेरे नाम करूँ, शेष बची है जितनी धडकन दिल की तेरे नाम करूं�, पुष्कर गुप्तेश्वर ने गजलें �अपनी ही नजरों से गिरकर खडे हुए, गैरों के पेरों के नीचे बडे हुए� तथा �मैं अकेला ही नहीं तन्हाइयाँ भी हैं�, पं. नरोत्तम व्यास ने मुक्तक पढ और गीत �सच या कि ख्वाब कुछ नहीं, मैं हूँ तो दोनों हैं�, इकबाल हुसैन �इकबाल� ने गजल �या तो कुछ हो जाऊँगा, या फिर मैं खो जाऊँगा, देखो ना ऐसे मुझको, देखो मैं रो जाऊँगा, काटे से भी कट ना सके, बीज ऐसे बो जाऊँगा� पढकर भरपूर दाद पाई।
मदन आर्य ने �जा री संध्या सजना से कहना बैरन हो गई रैना� गीत पढा। गोष्ठी का संचालन कर रहे शायर मुश्ताक चंचल ने �लो आओ सभी मिल जाएँ गले कौमी एकता के साए तले� कविता और श्रीमती मृदुला श्रीवास्तव ने गजल �रह के भी सबके सामने हाजिर नहीं हुए� तथा पावस गीत �मेघा रे ऽऽ मेघों की है छाई चदरिया, देखो घिर घिर आई बदरियाँ� गाकर गोष्ठी को ऊँचाइयाँ प्रदान की। विशिष्ट अतिथि जिया उल् हसन कादरी बीकानेर ने गजल (आदीब अदीब की) इबारत में वो हुस्न नसी, खुशी का इजहार है कागज� पढकर वाहवाही लूटी। मुख्य अतिथि शायर अनिल अनवर ने चन्द मिसरे कहे और नज्म सुनाई �शब हुई माहताब निकला है,फूल महके हैं रातरानी के और इस गुलशन में कोई ढूँढ रहा चम्पे की कली� पढकर खूब तालियाँ बटोरी।
धन्यवाद, मेजबान और अध्यक्ष हमदर्द एकता संस्थान - खुर्शीद नवाब ने दिया।
प्रस्तुति ः खुर्शीद नवाब, उदयपुर
�भावुक� को गाँधी स्मृति पुरस्कार
जयपुर। गाँधी विचार प्रचार-प्रसार के लिये समर्पित गाँधी स्मृति ट्रस्ट, कोटा ने जयपुर के राजभवन में राजस्थान के कार्यकारी तथा मध्यप्रदेश के महामहिम राज्यपाल 19 जुलाई को श्री रामेश्वर ठाकुर के मुख्य आतिथ्य में भव्य एवं गरिमामय समारोह म अंतरप्रांतीय साहित्य परिषद् के संस्थापक महामंत्री और गाँधी शांति प्रतिष्ठान केन्द्र, जोधपुर के मानद सचिव श्री नेमिचन्द्र जैन �भावुक� को �हिन्द स्वराज� के शताब्दी वर्ष में �गाँधी स्मृति पुरस्कार� से अलं*त एवं सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर राज्यपाल महोदय ने कहा कि आज समाज में अर्थ की महत्ता, नैतिक मूल्यों की अवहेलना, जातिगत एवं साम्प्रदायिकता का बोलबाला है। देश का नौजवान आज आतंकवाद, अलगाववाद और नस्लवाद के जाल में फँसता जा रहा है। ऐसे समय में महात्मा गाँधी के दिखाये मार्ग पर चलने से ही मानव जाति की रक्षा की जा सकती है। गाँधीजी के सत्य और अहिंसा के आदर्शों को सामने रखकर अनेकानेक समस्याओं के समाधान के लिये नई रणनीति तैयार करनी होगी।
अपने आभार प्रदर्शन सम्बोधन में श्री नेमिचन्द्र जैन �भावुक� ने कहा कि गाँधीजी विचारों के अनंत आकाश और अथाह महासागर हैं। जीवन का कोई भी क्षेत्र् ऐसा नहीं है जिसको उन्हें स्पर्श नहीं किया हो। केन्दि्रयकरण से हिंसा व शोषण को बल मिलता है इसलिये अहिंसक आवरण ही अपरिहार्य है। गाँधी विचार वर्तमान वैश्वीकरण और भूमण्डलीकरण के स्थान पर �वसुधैव कुटुम्बकम्� की भावना का पक्षधर है। उन्होंने गाँधीजी के रचनात्मक कार्यक्रम एवं एकादश-व्रतों को प्रकाश स्तम्भ बताते हुए कहा कि गाँधीजी की कालजयी *ति �हिन्द स्वराज� पश्चिमी सभ्यता के स्थान पर भारत की मानवीय सभ्यता के आचरण की प्रेरणा देती है। �हिन्द स्वराज� गाँधी जी के विचारों की बीज पुस्तक है। भावुक जी ने जीवन की अंतिम साँस तक साहित्यिक चेतना और गाँधी विचार-प्रसार के लिए सक्रिय रहने का संकल्प प्रकट किया।
गाँधी स्मृति पुरस्कार-2008 के अलंकरण समारोह के प्रारम्भ में सर्वधर्म प्रार्थना, ट्रस्ट के अध्यक्ष स्वतंत्र्ता सैनानी श्री आनन्द लक्ष्मण खांडेकर ने स्वागत और सचिव डॉ. रमेश भारद्वाज ने संचालन किया। इसके पूर्व नेहरू विश्वविद्यालय के प्रो. वाचस्पति उपाध्याय ने गाँधी दर्शन की प्रासंगिकता के साथ साथ सम्मानित श्री नेमिचन्द्र जैन �भावुक� ने अपरिग्रही जीवन का नमन किया।
समारोह में कई वि.वि. के कुलपति, गणमान्य नागरिक, शिक्षाशास्त्री, बुद्धिजीवी, खादी ग्रामोद्योग संस्थाओं, राजस्थान समग्र सेवा संघ एवं राजस्थान राज्य गाँधी स्मारक निधि के पदाधिकारियों, हाडौती अंचल के खादी ग्रामोद्योग और सामाजिक कार्यकर्ताओं की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
प्रस्तुति ः कमलेश सोनी, जोधपुर
नागर की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि सभा
उदयपुर। मनीषी पं. जनार्दनराय नागर का व्यक्तित्व एक साथ शिक्षा, साहित्य और कला संस्*ति की त्र्विेणी है। उन्होंने विद्यापीठ के रूप में कार्यकर्ताओं के बीच नयी कर्म संस्*ति का प्रसार कर शिक्षा के क्षेत्र् में बडी पहल की। राजस्थान विद्यापीठ के चांसलर प्रो. भवानीशंकर गर्ग ने उक्त विचार माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय में पं. नागर की पुण्य तिथि पर आयोजित श्रद्धांजलि समारोह में व्यक्त किए। प्रो. गर्ग ने कहा कि भारतीय स्वतंत्र्ता आन्दोलन के साथ सामाजिक क्षेत्र् में किए गए कार्यों से ही भारत का नवनिर्माण सम्भव हो पाया। इस अवसर पर महाविद्यालय के प्रो. एन.के. पण्ड्या ने पं. नागर के द्वारा रचित साहित्य की विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि उनका उपन्यास जगद्गुरु शंकराचार्य भारतीय साहित्य की निधि है।
समारोह का संयोजन प्रो. हेमेन्द्र चंडालिया ने किया, विशिष्ट अतिथि साहित्य संस्थान के निदेशक डॉ. ललित पाण्डेय थे। अंत में महाराणा कुंभा कला केन्द्र की प्राचार्या विनय भटनागर ने आभार ज्ञापित किया। वहीं प्रतापनगर स्थित विश्वविद्यालय की केन्द्रीय युनिट में कुलपति प्रो. दिव्यप्रभा नागर, रजिस्ट्रार प्रो. विजय सिंह और माश्रम के पूर्व प्राचार्य प्रो. रामावतार शर्मा और विद्यापीठ के पूर्व वरिष्ठ कार्यकर्ता श्री उदयलाल चण्डालिया ने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए पं. नागर का स्मरण किया। साथ ही प्रतापनगर स्थित विभिन्न संघटकों के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओंे ने श्रद्धासुमन अर्पित किये।
पंचायतन युनिट डबोक में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में राजस्थान विद्यापीठ के कुल प्रमुख श्री प्रफुल्ल नागर ने पं. नागर के व्यक्तित्व एवं अनछुए पहलुओें पर प्रकाश डाला। इस मौके पर बीएड कॉलेज के प्राचार्य आर.पी. सनाढ्य सहित डबोक स्थित अन्य संघटकों के कार्यकर्ताओं ने पुष्पांजलि अर्पित की।
प्रस्तुति ः शब्बीर हुसैन, उदयपुर
गौड की पुण्यतिथि पर विशाल काव्य सत्संग
कोटा। विश्व ज्योतिष सम्राट् स्व. श्री रघुनन्दन प्रसाद गौड की द्वितीय पुण्य तिथि पर शहर में विशाल �काव्य सत्संग� का आयोजन कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। कार्यक्रम के अध्यक्ष शिवनारायण वर्मा, मुख्य अतिथि रमेशचन्द गुप्ता एवं विशिष्ट अतिथि भगवतीप्रसाद शर्मा व बाल*ष्ण निर्मोही थे।
स्व. गौड के पुत्र् भारत रत्न गौड ने उनके द्वारा रचित सात ज्योतिष ग्रंथों एवं उनकी जीवनी पर प्रकाश डाला और बताया कि स्व. गौड को अपने जीवन में कई सम्मान व उपाधियाँ प्राप्त थीं।
काव्य सत्संग में शहर के जाने-माने कवियों ने अपनी कविताओं एवं गीतों के माध्यम से स्व. श्री गौड को श्रद्धांजलि दी, इनमें अरविन्द सोरल, रामू भैया, शरद तेलंग, रामनारायण �हलधर�, डॉ.नलिन, शिवराज श्रीवास्तव, वीरेन्द्र विद्यार्थी, सुरेन्द्र गौड, डॉ. कंचना सक्सेना, बीना दीप, रचना गौड �भारती�, प्रमिला आर्य, महिमा सोनी प्रमुख थे।
प्रस्तुति ः रचना गौड �भारती�, कोटा
�थाली कैसे बजेगी� का लोकार्पण
बीकानेर। हिन्दी विश्वभारती अनुसंधान परिषद् के तत्त्वावधान में देवशर्मा की प्रथम लघुकथा *ति �थाली कैसे बजेगी� का लोकार्पण समारोह सम्पन्न हुआ। समारोह में लघुकथा विधा पर एवं देव शर्मा की लोकार्पित *ति पर गंभीर चर्चा हुई। समारोह अध्यक्ष डॉ. पुरुषोत्तम आसोपा ने कहा कि विडम्बनाओं को स्पष्ट करने के लिये व्यंग्य ज्यादा अच्छा है। असंगति को यदि लघुकथा का विषय बनाया जाता है, तब ज्यादातर रचनाएँ वक्तव्य के रूप में आती है। लघुकथा विधा के विषय में हिन्दी में काव्य शास्त्रीय दृष्टि नहीं होने के कारण लेखक का आत्मबोध कार्य करता है।
मुख्य वक्ता भवानीशंकर व्यास �विनोद� ने कहा कि लघुकथा जटिल विधा है। लेखक को आत्ममुग्ध नहीं होने की सलाह दी। विशिष्ट अतिथि व्यंग्यकार डॉ. मदन केवलिया ने लघुकथा के शैलीगत वैशिष्ट्य व भाषा वैज्ञानिक अध्ययन सम्बन्धी विचार व्यक्त किए।
मुख्य अतिथि लक्ष्मीनारायण रंगा ने कहा कि लघु कथा आज बहुत आगे निकल गई है, आज की लघुकथा जीवन से जुडी हुई है। लघुकथा में पैनेपन की दरकार है। आज मानव बौद्धिक होता जा रहा है, लघुकथा लिखने के लिये संवेदना व संवेदनापूर्ण दृष्टि आवश्यक है। *ति के लेखक देव शर्मा ने लघुकथा संकलन की 5 लघुकथाएँ, थाली कैसे बजेगी, बीज, कब लगा था, अतिविशिष्ट, पीडत का वाचन किया।
लोकार्पण समारोह के संयोजक रामनरेश सोनी ने कहा कि लघुकथा आज की देन है, यह कथात्मक अभिव्यक्ति का लघुतम रूप है।
हिन्दी विश्वभारती के मानद निदेशक डॉ. गिरिजा शंकर शर्मा ने लघुकथा के विधात्मक विश्लेषण किये जाने की आवश्यकता पर बल दिया एवं सभी का आभार ज्ञापित किया।
प्रस्तुति ः गिरिजा शंकर शर्मा, बीकानेर
�कबीर, रहीम, होरी� पुस्तक का लोकार्पण
गाजियाबाद। इंडिया इन्टरनेशनल सेन्टर के सभागार में आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह में राजकुमार सचान �होरी� के कविता संग्रह �हम भारत के लोग� तथा पद्मश्री डॉ.श्याम सिंह शशि और सुरेश नीरव द्वारा सम्पादित दोहा संकलन �कबीर, रहीम, होरी� का लोकार्पण मुख्य अतिथि डॉ.रत्नाकर पाण्डेय तथा डॉ. अमर कुमार अमर द्वारा किया गया।
दूरदर्शन केन्द्र के अमर कुमार अमर ने �कबीर, रहीम, होरी� पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कबीर और रहीम के दोहों से तुलना करते हुए अनेक दोहों का उद्धरण दिया। विशेषकर कबीर के �रूखा सूखा खायकर� की तुलना में होरी जी के दोहे को आधुनिक संदर्भों से अधिक प्रासंगिक बताया।
आकाशवाणी शिमला के कार्यक्रम अधिकारी डॉ. हरि सिंह पाल ने दोहों को प्राचीन विधा बताते हुए कहा कि हिन्दी साहित्य में सार्थक दोहों की रचनाएँ हो रही हैं। होरी जी के दोहों की बात ही अलग है। इसमें कबीर के फक्कडपन तथा रहीम के संयम दोनों की झलक मिलती है।
यू.एस.एम. पत्र्किा के संपादक उमाशंकर मिश्र ने इस पुस्तक को कबीर, रहीम व होरी के दोहों की पहली तुलनात्मक पुस्तक बताते हुए यह अपेक्षा व्यक्त की कि समीक्षक व शोधार्थी इस पर अपनी पैनी दृष्टि अवश्य डालेंगे।
रचनाकार राजकुमार सचान �होरी� ने दोहों में काव्य सौष्ठव की बात करने वालों को इस विधा को बाधा पहुँचाने वाला बताया और कहा कि इससे दोहों का अहित ही हगा। दोहों की भाषा, शब्दों का चयन इतना सहज व सरल हो कि वे जन-जन में लोकप्रिय हो सकें। कबीर, रहीम के दोहों में यही बात है और उन्होंने भी अपने दोहों में इसी परम्परा का निर्वाह किया है।
मुख्य अतिथि डॉ. रत्नाकर पाण्डेय ने रचनाकार �होरी� को बधाई देते हुए कहा कि कविता समग्रतः साहित्य लेखन की ऐसी साधना है जिसमें स्वयं रचना बसना पडता है। डॉ. पाण्डेय ने कबीर, रहीम, तुलसी और बिहारी के दोहों पर ठोस कार्य करने का आह्वान किया।
पद्मश्री डॉ. श्यामसिंह शशि ने दोहों के समाजशास्त्र् का परिचय देते हुए कहा कि होरी जी के दोहों में ऐसा आकर्षण है कि मैं दोहाकार न होते हुए भी इस पुस्तक की भूमिका लिखने को विवश हो गया। कार्यक्रम का संचालन सुरेश नीरव व मधु चतुर्वेदी ने किया।
प्रस्तुति ः विकास मिश्र, गायाजियाद
�कहना जरूरी था� का लोकार्पण
नई दिल्ली। सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित कन्हैयालाल नन्दन की आत्मसंस्मरणों की पुस्तक �कहना जरूरी था� का लोकार्पण श्री नन्दन के 76वें जन्म दिन पर हिन्दी भवन में आयोजित समारोह में साहित्य जगत् के कई प्रतिष्ठित लोगों की उपस्थिति में किया गया। समारोह की अध्यक्षता हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकार महीप सिंह ने की। मुख्य अतिथि रामदरश मिश्र थे। वरिष्ठ पत्र्कार आलोक मेहता, नया ज्ञानोदय के संपादक रवीन्द्र कालिया, वरिष्ठ कथाकार राजेन्द्र यादव, व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय और प्रकाशक महेश भारद्वाज इस अवसर पर शामिल थे।
प्रो. महीप सिंह ने कहा कि रचनाकार-पत्र्कार अपनी जीवन यात्र में कई ऐसे पडावों से होकर गुजरता है जहाँ वह बहुत कुछ कहना चाहता है। रवीन्द्र कालिया जैसे कुछ लोग खरी-खोटी बातों के लिए इस काले रजिस्टर को बिना किसी परवाह के सबके सामने रख देते हैं, तो कन्हैयालाल नंदन जैसे लोग साहस व ईमानदारी के बावजूद उस कशमकश से बाहर निकलने का इंतजार करते हैं जो उन्हें अपने आदर्श (धर्मवीर भारती) के खिलाफ लिखने बोलने को खडा करता है।
इस अवसर पर प्रो. *ष्णदत्त पालीवाल ने कहा कि इस पुस्तक में साहित्यिक पत्र्कारिता का इतिहास लिखने वालों के लिए बेहद उच्च कोटि की शोध सामग्री है। पुस्तक मात्र् आत्मकथात्मक संस्मरण नहीं है, यह साहित्यिक विधाओं की सीमाओं को तोडती है। इसे पढते हुए उपन्यास का आनन्द आता है। धर्मवीर भारती और कन्हैयालाल नंदन का टकराव दो भिन्न तरह के व्यक्तियों का टकराव था जिसमें एक नई कविता की जटिल संवेदना वाला व्यक्ति था तो दूसरा लोकभावुक गीतकार।
आलोक मेहता ने कहा मेरे लिए, ��कहना जरूरी था� और स्वयं कन्हैयालाल नन्दन एक पाठ है, जिसको जितनी बार, जितनी दृष्टि से पढता हूँ उतने नए अर्थ उद्घाटित होते हैं। यह पुस्तक साहित्य जगत् के लिए ही नहीं, साहित्यिक पत्र्कारिता के इतिहास के रूप में पत्र्कारिता के छात्रें के लिए भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।�� रवीन्द्र कालिया ने कहा कि मृत लोगों पर आमतौर पर संस्मरण इसलिए लिखा जाता है कि उसमें झूठ बोलने की काफी गुंजाइश होती है पर इस संस्मरण की सबसे बडी खासियत यह है कि इसमें झूठ का सहारा नहीं लिया गया है। मैं उस समय का साक्षी हूँ, इसमें नंदन जी ने साहस के साथ सत्य लिखा है।
कार्यक्रम के अंत में सामयिक प्रकाशन के महेश भारद्वाज द्वारा सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया।
प्रस्तुति ः महेश भारद्वाज, नई दिल्ली
�नगेन्द्र की कुण्डलियाँ� का लोकार्पण
नाथद्वारा। राजस्थान साहित्यकार परिषद् द्वारा गोवर्धन हायर सैकण्डरी स्कूल के सभागार में आयोजित समारोह में प्रतिष्ठित साहित्यकार एवं सम्बोधन के संपादक कमर मेवाडी ने पुस्तक पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि नगेन्द्र ने अपनी कुण्डलियों में सामाजिक विसंगतियों और विद्रूपताओं पर जमकर प्रहार किया है। सुप्रसिद्ध कहानीकार माधव नागदा ने कहा कि �मुकरियाँ� के पश्चात् �कुण्डलियों� पर कलम चलाना नगेन्द्र की सृजनात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। मधुसूदन पण्ड्या ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि सुप्त विधाओं पर लिखकर नगेन्द्र मेहता ने बहुत बडे अभाव को पाटने की कोशिश की है।
शिक्षाविद् एवं साहित्यकार डॉ. राकेश तैलंग ने अपने आलेख में नगेन्द्र की कुण्डलियों को मर्म और धर्म की पारम्परिक नवचिंतनयुक्त अभिव्यक्ति करार दिया। साहित्य मर्मज्ञ धर्मचन्द मेहता �शशि� एवं रजनीकांता पुरोहित ने नगेन्द्र की कुण्डलियों को छन्द की महत्ता को स्थापित करने में सक्षम बताया। कर्नल देशबंधु आचार्य, अफजल खां �अफजल�, कौशलेन्द्र गोस्वामी ने भी अपने विचार व्यक्त किये। शेख अब्दुल हमीद ने इस अवसर पर गजल के माध्यम से अपने उद्गारों को वाणी प्रदान की। कार्यक्रम का संयोजन एम.डी. कनेरिया ने किया। परिषद् के मंत्री राधेश्याम सरावगी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर जवानसिंह सिसोदिया, त्र्लिोकीमोहन पुरोहित, किशन कबीरा, शाबीर शुक्रिया, भंवरलाल चपलोत, घनश्याम दईया, ईश्वर शर्मा, भला बंशीवाल, डॉ. दिनेश जोशी, मनोहरसिंह आशिया, चित्र्कार योगेश अमाना आदि उपस्थित थे।
प्रस्तुति ः एम.डी. कनेरिया �स्नेहिल�, नाथद्वारा
श्याम महर्षि अध्यक्ष निर्वाचित
श्रीडूंगरगढ। साहित्यिक-सांस्*तिक संस्था राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति की कार्यकारिणी का पंचवर्षीय निर्वाचन सम्पन्न हुआ। कार्यकारिणी में एल.सी. बिहानी सभापति, श्याम महर्षि अध्यक्ष, सीताराम मोहता वरिष्ठ उपाध्यक्ष, शिवप्रसाद सिखवाल एवं रामकिशन उपाध्याय उपाध्यक्ष, सत्यदीप उपाध्यक्ष (साहित्य), बजरंग शर्मा मंत्री, रवि पुरोहित एवं विजय महर्षि संयुक्त मंत्री, नारायण प्रसाद शर्मा कोषाध्यक्ष एवं महावीर प्रसाद सारस्वत प्रचार मंत्री के अलावा भरतसिंह राठौड, रामचन्द्र राठी, महावीर प्रसाद माली, विजयराज सेठिया, भंवर भोजक, भीकमचन्द पुगलिया, मनीष शर्मा, श्री*ष्ण खण्डेलवाल, महेश जोशी को सदस्य मनोनीत किया गया। सर्वसम्मति से निर्वाचित कार्यकारिणी समिति के अध्यक्ष श्याम महर्षि ने निर्वाचित पदाधिकारियों एवं सदस्यों को बधाई देते हुए कहा कि संस्थाएँ कार्यकर्ताओं की निष्ठा और श्रम के बल पर ही फलती-फूलती हैं। संस्था मंत्री बजरंग शर्मा ने आगामी वर्ष के कार्यक्रमों की रूपरेखा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि समिति विगत 25 वर्षों से शोध संस्थान के रूप में सक्रिय है।
प्रस्तुति ः श्याम महर्षि, श्रीडूंगरगढ
�मेवाड संत महिमा� का लोकार्पण
उदयपुर। साहित्यिक, सांस्*तिक संस्था युगधारा की ओर से कवि भगवानलाल शर्मा �प्रेमी� द्वारा रचित पुस्तक �मेवाड संत महिमा� के विमोचन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए साहित्य, कला एवं संस्*ति विभाग के प्रमुख शासन सचिव और राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष श्री उमराव सालोदिया ने कहा कि नई पीढी को आदर्शवाद एवं चारित्र्कि गुणों से परिपूर्ण करने के लिए सामाजिक एवं सांस्*तिक उत्थान के आधार बने संतों के आदर्शों से उनका साक्षात्कार करायें। उन्होंने कहा कि आधुनिक काल में भी संतों की महिमा को भुलाया नहीं जा सकता है।
सालोदिया ने मेवाड संत महिमा के रचयिता भगवानलाल शर्मा को साधुवाद देते हुए कहा कि यह पुस्तक निश्चय ही बुजुर्गों व नई पीढी के लिए प्रेरणास्रोत बनेगी। सालोदिया ने कबीर के दोहों पर आधारित ��मन लागो मेरो यार फकीरी में�� की सस्वर प्रस्तुति से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।
इस मौके पर पुस्तक रचयिता भगवानलाल शर्मा का शॉल, माल्यार्पण एवं स्मृति चिह्व प्रदान कर अभिनन्दन किया गया। पुस्तक समीक्षा दायित्व निभाते हुए राधेश्याम मेहता ने कहा कि पुस्तक में गुरु-शिष्य परम्परा के साथ ही संतों की जीवन प्रेरणा निश्चय ही इसे संदर्भ ग्रंथ के रूप में स्थापित करती है। कवि भवानीशंकर गौड ने काव्य प्रस्तुति एवं डॉ. करुणा दशोरा ने लेखक परिचय दिया।
समारोह को विशिष्ट अतिथि डॉ. औंकारसिंह राठौड, हरिसिंह ताणा, आकाशवाणी के सहायक निदेशक इन्द्रप्रकाश श्रीमाली, युगधारा के अध्यक्ष पुरुषोत्तम पल्लव, संरक्षक भवदत्त मेहता सहित अन्य साहित्यिक प्रतिभाओंे ने सम्बोधित किया। समारोह का संयोजन डॉ. ज्योतिपुंज पण्ड्या ने किया। इस अवसर पर पंडित नरोत्तम व्यास, देवेन्द्र �इन्द्रेश�, अकादमी सचिव डॉ. प्रमोद भट्ट, डॉ. लक्ष्मीनारायण नंदवाना, डॉ. रजनी कुलश्रेष्ठ, गोपाल*ष्ण शर्मा, श्रीनाथ शर्मा सहित साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुडे गणमान्य लोग मौजूद थे।
प्रस्तुति ः लालदास पर्जन्य
�समय की लय� पर संगोष्ठी
कोटा। �विकल्प� जन सांस्*तिक मंच की ओर से आयोजित नवगीत-जनगीत केन्दि्रत समारोह �समय की लय� में गीत की सृजनात्मक भूमिका पर गंभीर चिन्तन-मनन और संवाद हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ गीतकार अखिलेश अंजुम व रमेशचन्द्र गुप्ता तथा संचालन आर.सी. शर्मा �आरसी� ने किया। सुप्रसिद्ध गीत-गजलकार सुरेन्द्र श्लेष (जयपुर) गीत संध्या में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे।
गीत-संध्या का प्रारम्भ इन्द्रबिहारी सक्सेना ने अपने ओजस्वी गीत �शूल तक की चुभन का न तो अनुभव जिन्हें, वे क्या समझेंगे परिभाषा बलिदान की� से किया। मदन मदिर ने अपने गीत में प्रश्न उठाया �पसीने की बूँदों का अभिनन्दन कब होगा? कोई भी राज हो, जगमग है राजपथ, वंचित पगडंडी का आलोकन कब होगा?� गीतकार बृजेन्द्र कौशिक ने अपने गीत में देश का वर्तमान परिदृश्य उकेरते हुए कहा �स्वार्थों की उफनती नदी, उत्तर आजादी का दर्द ढोती इक्कीसवीं सदी�, बडौदा से पधारे सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ. विष्णु विराट् ने अपने गीत के माध्यम से कहा, ��तुम रथी योद्धा नहीं हो, जान लो यह, एक अंधे प्रशासन के भृत्य हो तुम, नीतियों के नाम पर दुर्गन्ध हो तुम, अब तुम्हारा व्यू-भेदन हम करेंगे� दिल्ली से पधारे नवगीत के प्रसिद्ध हस्ताक्षर राधेश्याम बन्धु ने कहा �कोलाहल हो या सन्नाटा कविता सदा सृजन करती है, जब भी आँसू हुआ पराजित कविता सदा जंग लडती है�� तथा ��हम समय के सारथी हैं, शब्द को झुकने न देंगे�� गीतकार रामकुमार *षक ने अपने गीत में देश की प्यास को यूँ उभारा - ��कंठ की सुराही को बूँद का अभाव, किस तरियों पेट घट भरे�� मुख्य अतिथि सुरेन्द्र श्लेष ने गीतों में वर्तमान समय की प्रस्तुति इन शब्दों में की -
��दिन भर खटते रहे और अब काली रात करें दीप जलाएँ आँखों के तम पर आघात करें,
आ कुछ बात करें।��
समारोह के दूसरे दिन प्रेस क्लब के कला-दीर्घा सभागार में �नवगीत का परिदृश्य और चुनौतियाँ� व �जनगीत ः सामर्थ्य व संभावनाएँ� विषय पर परिचर्चा हुई। चर्चा में जनगण के पक्ष में खडे गीतों को ही सार्थक बताया गया। वक्ताओं ने नवगीत को अब तक उपेक्षित रखने के लिए अच्छे समीक्षकों व पत्र्-पत्र्किाओं की कमी को जिम्मेदार बताया।
कार्यक्रम के प्रथम सत्र् में मुख्य अतिथि राधेश्याम बन्धु व राम कुमार *षक, अध्यक्ष डॉ. नरेन्द्रनाथ चतुर्वेदी व शिवराम ने पत्र्किा �सम्यक� के नवगीत-जनगीत पर केन्दि्रत विशेषांक और �अभिव्यक्ति� के ताजा अंक का विमोचन किया। इस अवसर पर �सम्यक� के मुख्य सम्पादक मदन मोहन �उपेन्द्र� व अतिथि सम्पादक महेन्द्र नेह भी उपस्थित रहे। राधेश्याम बन्धु ने अपने उद्बोधन में कहा कि �सम्यक� का नवगीत-जनगीत विशेषांक गीत की परम्परा के साथ-साथ समकालीन प्रतिरोधी कविता का भी संवाहक है। इस अंक में निराला से लेकर अंशु मालवीय तक गीतकारों की चार पीढयों का प्रतिनिधित्व है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह विशेषांक नवगीत व जनगीत में युग-बोध एवं परिवर्तन की अलख जगाने का काम करेगा।
�नवगीत का परिदृश्य और चुनौतियाँ� विषय पर पत्र् वाचन करते हुए डॉ. विष्णु विराट् ने कहा कि वैश्विक स्तर पर आये परिवर्तन का प्रभाव साहित्य की सभी विधाओं में दिखने लगा है। यह अस्सी के दशक में गीत-विधा में भी आया, जिसे नवगीत का नाम दिया गया। यह परिवर्तन उसी तरह है, जैसे हिन्दी में �नई कविता� आई। उन्होंने कहा कि छंद विहीन, मुक्त कविता में काफी अव्यवस्था और अराजकता है, इसके विपरीत नवगीत राग, रंग व गेयात्मकता के कारण पाठक व श्रोताओं के ज्यादा करीब है। अध्यक्षता कर रहे डॉ. नरेन्द्रनाथ चतुर्वेदी ने कहा कि �नव� प्रवृत्तियाँ साहित्य के पाठकों को नहीं जोड पा रही है। गीत हृदय की अन्तःस्थली से निकलता है, इसके लिए �नव� होना जरूरी नहीं। चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए शिवराम ने कहा कि गीत या कविता के माध्यम से साहित्यकारों को जन-गण के पक्ष में खडा होना होगा, तभी वह अपनी और रचना-कर्म की सार्थकता को सिद्ध कर सकते हैं। हितेश व्यास ने कहा कि नवगीत समकालीन कविता के सकारात्मक पक्ष को सामने रखते हैं, जीवन में हो या कविता में लय के बिना समाज की सृजनात्मकता अधूरी है। प्रथम सत्र् का संचालन करते हुए डॉ. उषा झा ने कहा कि गीत हमारी संवेदनाओं के सेतु हैं तथा मनुष्य की सृजन व विकास-यात्र के मुखर दस्तावेज है। दूसरे सत्र् में �जनगीत सामर्थ्य और संभावनाएँ� विषय पर पत्र् वाचन करते हुए महेन्द्र सिंह नेह ने कहा कि वर्तमान जटिल परिस्थितियों और तनावग्रस्त समय में भी गीत अपनी लोकोन्मुखी प्रवृत्तियों के कारण हमारी चेतना और संवेदना को स्पंदित करने और झकझोर देने की पर्याप्त सामर्थ्य रखता है। आज वैश्वी*त साम्राज्यवाद व बाजारवाद से मुक्ति का सवाल हिन्दी के सभी रचनाकर्मियों के साथ गीतकारों के सामने भी सबसे बडी चुनौती है। चर्चा में भागीदारी करते मुनीश मदिर ने कहा कि नवगीत को बाजार के विरुद्ध चेतना जगाते हुए जनगीत बनना होगा। जितेन्द्र निर्मोही ने सामन्तवाद विरोधी राजस्थानी गीतों के उद्धरण देते हुए जनगीत की महत्ता को बताया। मुकुट मणिराज ने गीत के लोक-पक्ष को मजबूती के साथ सामने रखा। डॉ. देवीचरण वर्मा व किशनलाल वर्मा ने कहा कि जनगीत को शोषितों, पीडतों की आवाज बनना होगा। सत्र् के मुख्य अतिथि �अलाव� के सम्पादक रामकुमार *षक ने समकालीन साहित्य को लोक जीवन से जोडने की आवश्यकता बताते हुए कहा कि जनता के सामने लेखक अपने विचार इस तरह रखे कि कलात्मकता की माँग पूरी हो सके और सम्प्रेषणता की धार भी बनी रहे। उन्होंने कहा कि आज मुख्य धारा की मुक्तछंद कविता हिन्दी की जातीय परम्परा से कट रही है, इसलिए वह जनता तक नहीं पहुँच पा रही। योरोपीय कविता से प्रभावित मुख्य धारा की कविता में संवेदना का हिस्सा शून्य होता जा रहा है। बौद्धिकता का अतिरेक हो गया है। नतीजन ऐसी कविता आमजन तक नहीं पहुँच रही। अध्यक्षता कर रहे गीतकार बृजेन्द्र कौशिक ने कहा कि ��साहित्य में विधाओं का विवाद निरर्थक है। मुख्य बात लोक-उन्नयन की है।�� राजस्थानी के प्रसिद्ध गीतकार दुर्गादान सिंह गौड ने कहा कि गीत के सभी रूप अभी भी प्रभावी हैं। गीत में हमारी माटी की गंध और लोक-चेतना का स्फुरण होता है। ख्याति प्राप्त कवि - गीतकार बशीर अहमद मयूख ने कहा कि गीत हमारी मुक्तिकामी चेतना के सबसे प्रबल और तरल संवाहक है। सत्र् का संचालन कर रहे कवि अम्बिका दत्त ने कहा कि जनगीत हमारे वर्तमान समय की त्रसदी और इसकी अग्रगामी चेतना को जगाने का ऐतिहासिक दायित्व निभा सकने की सामर्थ्य रखते हैं, वे रचनाकार व पाठकों-श्रोताओं के बीच आ गये अलगाव को भी तोड सकते हैं। इस अवसर पर गीत विधा में महत्वपूर्ण व उल्लेखनीय योगदान हेतु डॉ. विष्णु विराट्, राधेश्याम बन्धु, रघुराज सिंह हाडा एवं दुर्गादान सिंह को �विकल्प� सम्मान प्रदान किया गया।
प्रस्तुति ः महेन्द्र नेह जयपुर। गाँधी विचार प्रचार-प्रसार के लिये समर्पित गाँधी स्मृति ट्रस्ट, कोटा ने जयपुर के राजभवन में राजस्थान के कार्यकारी तथा मध्यप्रदेश के महामहिम राज्यपाल 19 जुलाई को श्री रामेश्वर ठाकुर के मुख्य आतिथ्य में भव्य एवं गरिमामय समारोह म अंतरप्रांतीय साहित्य परिषद् के संस्थापक महामंत्री और गाँधी शांति प्रतिष्ठान केन्द्र, जोधपुर के मानद सचिव श्री नेमिचन्द्र जैन �भावुक� को �हिन्द स्वराज� के शताब्दी वर्ष में �गाँधी स्मृति पुरस्कार� से अलं*त एवं सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर राज्यपाल महोदय ने कहा कि आज समाज में अर्थ की महत्ता, नैतिक मूल्यों की अवहेलना, जातिगत एवं साम्प्रदायिकता का बोलबाला है। देश का नौजवान आज आतंकवाद, अलगाववाद और नस्लवाद के जाल में फँसता जा रहा है। ऐसे समय में महात्मा गाँधी के दिखाये मार्ग पर चलने से ही मानव जाति की रक्षा की जा सकती है। गाँधीजी के सत्य और अहिंसा के आदर्शों को सामने रखकर अनेकानेक समस्याओं के समाधान के लिये नई रणनीति तैयार करनी होगी।
अपने आभार प्रदर्शन सम्बोधन में श्री नेमिचन्द्र जैन �भावुक� ने कहा कि गाँधीजी विचारों के अनंत आकाश और अथाह महासागर हैं। जीवन का कोई भी क्षेत्र् ऐसा नहीं है जिसको उन्हें स्पर्श नहीं किया हो। केन्दि्रयकरण से हिंसा व शोषण को बल मिलता है इसलिये अहिंसक आवरण ही अपरिहार्य है। गाँधी विचार वर्तमान वैश्वीकरण और भूमण्डलीकरण के स्थान पर �वसुधैव कुटुम्बकम्� की भावना का पक्षधर है। उन्होंने गाँधीजी के रचनात्मक कार्यक्रम एवं एकादश-व्रतों को प्रकाश स्तम्भ बताते हुए कहा कि गाँधीजी की कालजयी *ति �हिन्द स्वराज� पश्चिमी सभ्यता के स्थान पर भारत की मानवीय सभ्यता के आचरण की प्रेरणा देती है। �हिन्द स्वराज� गाँधी जी के विचारों की बीज पुस्तक है। भावुक जी ने जीवन की अंतिम साँस तक साहित्यिक चेतना और गाँधी विचार-प्रसार के लिए सक्रिय रहने का संकल्प प्रकट किया।
गाँधी स्मृति पुरस्कार-2008 के अलंकरण समारोह के प्रारम्भ में सर्वधर्म प्रार्थना, ट्रस्ट के अध्यक्ष स्वतंत्र्ता सैनानी श्री आनन्द लक्ष्मण खांडेकर ने स्वागत और सचिव डॉ. रमेश भारद्वाज ने संचालन किया। इसके पूर्व नेहरू विश्वविद्यालय के प्रो. वाचस्पति उपाध्याय ने गाँधी दर्शन की प्रासंगिकता के साथ साथ सम्मानित श्री नेमिचन्द्र जैन �भावुक� ने अपरिग्रही जीवन का नमन किया।
समारोह में कई वि.वि. के कुलपति, गणमान्य नागरिक, शिक्षाशास्त्री, बुद्धिजीवी, खादी ग्रामोद्योग संस्थाओं, राजस्थान समग्र सेवा संघ एवं राजस्थान राज्य गाँधी स्मारक निधि के पदाधिकारियों, हाडौती अंचल के खादी ग्रामोद्योग और सामाजिक कार्यकर्ताओं की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
प्रस्तुति ः कमलेश सोनी, जोधपुर
नागर की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि सभा
उदयपुर। मनीषी पं. जनार्दनराय नागर का व्यक्तित्व एक साथ शिक्षा, साहित्य और कला संस्*ति की त्र्विेणी है। उन्होंने विद्यापीठ के रूप में कार्यकर्ताओं के बीच नयी कर्म संस्*ति का प्रसार कर शिक्षा के क्षेत्र् में बडी पहल की। राजस्थान विद्यापीठ के चांसलर प्रो. भवानीशंकर गर्ग ने उक्त विचार माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय में पं. नागर की पुण्य तिथि पर आयोजित श्रद्धांजलि समारोह में व्यक्त किए। प्रो. गर्ग ने कहा कि भारतीय स्वतंत्र्ता आन्दोलन के साथ सामाजिक क्षेत्र् में किए गए कार्यों से ही भारत का नवनिर्माण सम्भव हो पाया। इस अवसर पर महाविद्यालय के प्रो. एन.के. पण्ड्या ने पं. नागर के द्वारा रचित साहित्य की विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि उनका उपन्यास जगद्गुरु शंकराचार्य भारतीय साहित्य की निधि है।
समारोह का संयोजन प्रो. हेमेन्द्र चंडालिया ने किया, विशिष्ट अतिथि साहित्य संस्थान के निदेशक डॉ. ललित पाण्डेय थे। अंत में महाराणा कुंभा कला केन्द्र की प्राचार्या विनय भटनागर ने आभार ज्ञापित किया। वहीं प्रतापनगर स्थित विश्वविद्यालय की केन्द्रीय युनिट में कुलपति प्रो. दिव्यप्रभा नागर, रजिस्ट्रार प्रो. विजय सिंह और माश्रम के पूर्व प्राचार्य प्रो. रामावतार शर्मा और विद्यापीठ के पूर्व वरिष्ठ कार्यकर्ता श्री उदयलाल चण्डालिया ने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए पं. नागर का स्मरण किया। साथ ही प्रतापनगर स्थित विभिन्न संघटकों के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओंे ने श्रद्धासुमन अर्पित किये।
पंचायतन युनिट डबोक में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में राजस्थान विद्यापीठ के कुल प्रमुख श्री प्रफुल्ल नागर ने पं. नागर के व्यक्तित्व एवं अनछुए पहलुओें पर प्रकाश डाला। इस मौके पर बीएड कॉलेज के प्राचार्य आर.पी. सनाढ्य सहित डबोक स्थित अन्य संघटकों के कार्यकर्ताओं ने पुष्पांजलि अर्पित की।
प्रस्तुति ः शब्बीर हुसैन, उदयपुर
गौड की पुण्यतिथि पर विशाल काव्य सत्संग
कोटा। विश्व ज्योतिष सम्राट् स्व. श्री रघुनन्दन प्रसाद गौड की द्वितीय पुण्य तिथि पर शहर में विशाल �काव्य सत्संग� का आयोजन कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। कार्यक्रम के अध्यक्ष शिवनारायण वर्मा, मुख्य अतिथि रमेशचन्द गुप्ता एवं विशिष्ट अतिथि भगवतीप्रसाद शर्मा व बाल*ष्ण निर्मोही थे।
स्व. गौड के पुत्र् भारत रत्न गौड ने उनके द्वारा रचित सात ज्योतिष ग्रंथों एवं उनकी जीवनी पर प्रकाश डाला और बताया कि स्व. गौड को अपने जीवन में कई सम्मान व उपाधियाँ प्राप्त थीं।
काव्य सत्संग में शहर के जाने-माने कवियों ने अपनी कविताओं एवं गीतों के माध्यम से स्व. श्री गौड को श्रद्धांजलि दी, इनमें अरविन्द सोरल, रामू भैया, शरद तेलंग, रामनारायण �हलधर�, डॉ.नलिन, शिवराज श्रीवास्तव, वीरेन्द्र विद्यार्थी, सुरेन्द्र गौड, डॉ. कंचना सक्सेना, बीना दीप, रचना गौड �भारती�, प्रमिला आर्य, महिमा सोनी प्रमुख थे।
प्रस्तुति ः रचना गौड �भारती�, कोटा
�थाली कैसे बजेगी� का लोकार्पण
बीकानेर। हिन्दी विश्वभारती अनुसंधान परिषद् के तत्त्वावधान में देवशर्मा की प्रथम लघुकथा *ति �थाली कैसे बजेगी� का लोकार्पण समारोह सम्पन्न हुआ। समारोह में लघुकथा विधा पर एवं देव शर्मा की लोकार्पित *ति पर गंभीर चर्चा हुई। समारोह अध्यक्ष डॉ. पुरुषोत्तम आसोपा ने कहा कि विडम्बनाओं को स्पष्ट करने के लिये व्यंग्य ज्यादा अच्छा है। असंगति को यदि लघुकथा का विषय बनाया जाता है, तब ज्यादातर रचनाएँ वक्तव्य के रूप में आती है। लघुकथा विधा के विषय में हिन्दी में काव्य शास्त्रीय दृष्टि नहीं होने के कारण लेखक का आत्मबोध कार्य करता है।
मुख्य वक्ता भवानीशंकर व्यास �विनोद� ने कहा कि लघुकथा जटिल विधा है। लेखक को आत्ममुग्ध नहीं होने की सलाह दी। विशिष्ट अतिथि व्यंग्यकार डॉ. मदन केवलिया ने लघुकथा के शैलीगत वैशिष्ट्य व भाषा वैज्ञानिक अध्ययन सम्बन्धी विचार व्यक्त किए।
मुख्य अतिथि लक्ष्मीनारायण रंगा ने कहा कि लघु कथा आज बहुत आगे निकल गई है, आज की लघुकथा जीवन से जुडी हुई है। लघुकथा में पैनेपन की दरकार है। आज मानव बौद्धिक होता जा रहा है, लघुकथा लिखने के लिये संवेदना व संवेदनापूर्ण दृष्टि आवश्यक है। *ति के लेखक देव शर्मा ने लघुकथा संकलन की 5 लघुकथाएँ, थाली कैसे बजेगी, बीज, कब लगा था, अतिविशिष्ट, पीडत का वाचन किया।
लोकार्पण समारोह के संयोजक रामनरेश सोनी ने कहा कि लघुकथा आज की देन है, यह कथात्मक अभिव्यक्ति का लघुतम रूप है।
हिन्दी विश्वभारती के मानद निदेशक डॉ. गिरिजा शंकर शर्मा ने लघुकथा के विधात्मक विश्लेषण किये जाने की आवश्यकता पर बल दिया एवं सभी का आभार ज्ञापित किया।
प्रस्तुति ः गिरिजा शंकर शर्मा, बीकानेर
�कबीर, रहीम, होरी� पुस्तक का लोकार्पण
गाजियाबाद। इंडिया इन्टरनेशनल सेन्टर के सभागार में आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह में राजकुमार सचान �होरी� के कविता संग्रह �हम भारत के लोग� तथा पद्मश्री डॉ.श्याम सिंह शशि और सुरेश नीरव द्वारा सम्पादित दोहा संकलन �कबीर, रहीम, होरी� का लोकार्पण मुख्य अतिथि डॉ.रत्नाकर पाण्डेय तथा डॉ. अमर कुमार अमर द्वारा किया गया।
दूरदर्शन केन्द्र के अमर कुमार अमर ने �कबीर, रहीम, होरी� पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कबीर और रहीम के दोहों से तुलना करते हुए अनेक दोहों का उद्धरण दिया। विशेषकर कबीर के �रूखा सूखा खायकर� की तुलना में होरी जी के दोहे को आधुनिक संदर्भों से अधिक प्रासंगिक बताया।
आकाशवाणी शिमला के कार्यक्रम अधिकारी डॉ. हरि सिंह पाल ने दोहों को प्राचीन विधा बताते हुए कहा कि हिन्दी साहित्य में सार्थक दोहों की रचनाएँ हो रही हैं। होरी जी के दोहों की बात ही अलग है। इसमें कबीर के फक्कडपन तथा रहीम के संयम दोनों की झलक मिलती है।
यू.एस.एम. पत्र्किा के संपादक उमाशंकर मिश्र ने इस पुस्तक को कबीर, रहीम व होरी के दोहों की पहली तुलनात्मक पुस्तक बताते हुए यह अपेक्षा व्यक्त की कि समीक्षक व शोधार्थी इस पर अपनी पैनी दृष्टि अवश्य डालेंगे।
रचनाकार राजकुमार सचान �होरी� ने दोहों में काव्य सौष्ठव की बात करने वालों को इस विधा को बाधा पहुँचाने वाला बताया और कहा कि इससे दोहों का अहित ही हगा। दोहों की भाषा, शब्दों का चयन इतना सहज व सरल हो कि वे जन-जन में लोकप्रिय हो सकें। कबीर, रहीम के दोहों में यही बात है और उन्होंने भी अपने दोहों में इसी परम्परा का निर्वाह किया है।
मुख्य अतिथि डॉ. रत्नाकर पाण्डेय ने रचनाकार �होरी� को बधाई देते हुए कहा कि कविता समग्रतः साहित्य लेखन की ऐसी साधना है जिसमें स्वयं रचना बसना पडता है। डॉ. पाण्डेय ने कबीर, रहीम, तुलसी और बिहारी के दोहों पर ठोस कार्य करने का आह्वान किया।
पद्मश्री डॉ. श्यामसिंह शशि ने दोहों के समाजशास्त्र् का परिचय देते हुए कहा कि होरी जी के दोहों में ऐसा आकर्षण है कि मैं दोहाकार न होते हुए भी इस पुस्तक की भूमिका लिखने को विवश हो गया। कार्यक्रम का संचालन सुरेश नीरव व मधु चतुर्वेदी ने किया।
प्रस्तुति ः विकास मिश्र, गायाजियाद
�कहना जरूरी था� का लोकार्पण
नई दिल्ली। सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित कन्हैयालाल नन्दन की आत्मसंस्मरणों की पुस्तक �कहना जरूरी था� का लोकार्पण श्री नन्दन के 76वें जन्म दिन पर हिन्दी भवन में आयोजित समारोह में साहित्य जगत् के कई प्रतिष्ठित लोगों की उपस्थिति में किया गया। समारोह की अध्यक्षता हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकार महीप सिंह ने की। मुख्य अतिथि रामदरश मिश्र थे। वरिष्ठ पत्र्कार आलोक मेहता, नया ज्ञानोदय के संपादक रवीन्द्र कालिया, वरिष्ठ कथाकार राजेन्द्र यादव, व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय और प्रकाशक महेश भारद्वाज इस अवसर पर शामिल थे।
प्रो. महीप सिंह ने कहा कि रचनाकार-पत्र्कार अपनी जीवन यात्र में कई ऐसे पडावों से होकर गुजरता है जहाँ वह बहुत कुछ कहना चाहता है। रवीन्द्र कालिया जैसे कुछ लोग खरी-खोटी बातों के लिए इस काले रजिस्टर को बिना किसी परवाह के सबके सामने रख देते हैं, तो कन्हैयालाल नंदन जैसे लोग साहस व ईमानदारी के बावजूद उस कशमकश से बाहर निकलने का इंतजार करते हैं जो उन्हें अपने आदर्श (धर्मवीर भारती) के खिलाफ लिखने बोलने को खडा करता है।
इस अवसर पर प्रो. *ष्णदत्त पालीवाल ने कहा कि इस पुस्तक में साहित्यिक पत्र्कारिता का इतिहास लिखने वालों के लिए बेहद उच्च कोटि की शोध सामग्री है। पुस्तक मात्र् आत्मकथात्मक संस्मरण नहीं है, यह साहित्यिक विधाओं की सीमाओं को तोडती है। इसे पढते हुए उपन्यास का आनन्द आता है। धर्मवीर भारती और कन्हैयालाल नंदन का टकराव दो भिन्न तरह के व्यक्तियों का टकराव था जिसमें एक नई कविता की जटिल संवेदना वाला व्यक्ति था तो दूसरा लोकभावुक गीतकार।
आलोक मेहता ने कहा मेरे लिए, ��कहना जरूरी था� और स्वयं कन्हैयालाल नन्दन एक पाठ है, जिसको जितनी बार, जितनी दृष्टि से पढता हूँ उतने नए अर्थ उद्घाटित होते हैं। यह पुस्तक साहित्य जगत् के लिए ही नहीं, साहित्यिक पत्र्कारिता के इतिहास के रूप में पत्र्कारिता के छात्रें के लिए भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।�� रवीन्द्र कालिया ने कहा कि मृत लोगों पर आमतौर पर संस्मरण इसलिए लिखा जाता है कि उसमें झूठ बोलने की काफी गुंजाइश होती है पर इस संस्मरण की सबसे बडी खासियत यह है कि इसमें झूठ का सहारा नहीं लिया गया है। मैं उस समय का साक्षी हूँ, इसमें नंदन जी ने साहस के साथ सत्य लिखा है।
कार्यक्रम के अंत में सामयिक प्रकाशन के महेश भारद्वाज द्वारा सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया।
प्रस्तुति ः महेश भारद्वाज, नई दिल्ली
�नगेन्द्र की कुण्डलियाँ� का लोकार्पण
नाथद्वारा। राजस्थान साहित्यकार परिषद् द्वारा गोवर्धन हायर सैकण्डरी स्कूल के सभागार में आयोजित समारोह में प्रतिष्ठित साहित्यकार एवं सम्बोधन के संपादक कमर मेवाडी ने पुस्तक पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि नगेन्द्र ने अपनी कुण्डलियों में सामाजिक विसंगतियों और विद्रूपताओं पर जमकर प्रहार किया है। सुप्रसिद्ध कहानीकार माधव नागदा ने कहा कि �मुकरियाँ� के पश्चात् �कुण्डलियों� पर कलम चलाना नगेन्द्र की सृजनात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। मधुसूदन पण्ड्या ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि सुप्त विधाओं पर लिखकर नगेन्द्र मेहता ने बहुत बडे अभाव को पाटने की कोशिश की है।
शिक्षाविद् एवं साहित्यकार डॉ. राकेश तैलंग ने अपने आलेख में नगेन्द्र की कुण्डलियों को मर्म और धर्म की पारम्परिक नवचिंतनयुक्त अभिव्यक्ति करार दिया। साहित्य मर्मज्ञ धर्मचन्द मेहता �शशि� एवं रजनीकांता पुरोहित ने नगेन्द्र की कुण्डलियों को छन्द की महत्ता को स्थापित करने में सक्षम बताया। कर्नल देशबंधु आचार्य, अफजल खां �अफजल�, कौशलेन्द्र गोस्वामी ने भी अपने विचार व्यक्त किये। शेख अब्दुल हमीद ने इस अवसर पर गजल के माध्यम से अपने उद्गारों को वाणी प्रदान की। कार्यक्रम का संयोजन एम.डी. कनेरिया ने किया। परिषद् के मंत्री राधेश्याम सरावगी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर जवानसिंह सिसोदिया, त्र्लिोकीमोहन पुरोहित, किशन कबीरा, शाबीर शुक्रिया, भंवरलाल चपलोत, घनश्याम दईया, ईश्वर शर्मा, भला बंशीवाल, डॉ. दिनेश जोशी, मनोहरसिंह आशिया, चित्र्कार योगेश अमाना आदि उपस्थित थे।
प्रस्तुति ः एम.डी. कनेरिया �स्नेहिल�, नाथद्वारा
श्याम महर्षि अध्यक्ष निर्वाचित
श्रीडूंगरगढ। साहित्यिक-सांस्*तिक संस्था राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति की कार्यकारिणी का पंचवर्षीय निर्वाचन सम्पन्न हुआ। कार्यकारिणी में एल.सी. बिहानी सभापति, श्याम महर्षि अध्यक्ष, सीताराम मोहता वरिष्ठ उपाध्यक्ष, शिवप्रसाद सिखवाल एवं रामकिशन उपाध्याय उपाध्यक्ष, सत्यदीप उपाध्यक्ष (साहित्य), बजरंग शर्मा मंत्री, रवि पुरोहित एवं विजय महर्षि संयुक्त मंत्री, नारायण प्रसाद शर्मा कोषाध्यक्ष एवं महावीर प्रसाद सारस्वत प्रचार मंत्री के अलावा भरतसिंह राठौड, रामचन्द्र राठी, महावीर प्रसाद माली, विजयराज सेठिया, भंवर भोजक, भीकमचन्द पुगलिया, मनीष शर्मा, श्री*ष्ण खण्डेलवाल, महेश जोशी को सदस्य मनोनीत किया गया। सर्वसम्मति से निर्वाचित कार्यकारिणी समिति के अध्यक्ष श्याम महर्षि ने निर्वाचित पदाधिकारियों एवं सदस्यों को बधाई देते हुए कहा कि संस्थाएँ कार्यकर्ताओं की निष्ठा और श्रम के बल पर ही फलती-फूलती हैं। संस्था मंत्री बजरंग शर्मा ने आगामी वर्ष के कार्यक्रमों की रूपरेखा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि समिति विगत 25 वर्षों से शोध संस्थान के रूप में सक्रिय है।
प्रस्तुति ः श्याम महर्षि, श्रीडूंगरगढ
�मेवाड संत महिमा� का लोकार्पण
उदयपुर। साहित्यिक, सांस्*तिक संस्था युगधारा की ओर से कवि भगवानलाल शर्मा �प्रेमी� द्वारा रचित पुस्तक �मेवाड संत महिमा� के विमोचन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए साहित्य, कला एवं संस्*ति विभाग के प्रमुख शासन सचिव और राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष श्री उमराव सालोदिया ने कहा कि नई पीढी को आदर्शवाद एवं चारित्र्कि गुणों से परिपूर्ण करने के लिए सामाजिक एवं सांस्*तिक उत्थान के आधार बने संतों के आदर्शों से उनका साक्षात्कार करायें। उन्होंने कहा कि आधुनिक काल में भी संतों की महिमा को भुलाया नहीं जा सकता है।
सालोदिया ने मेवाड संत महिमा के रचयिता भगवानलाल शर्मा को साधुवाद देते हुए कहा कि यह पुस्तक निश्चय ही बुजुर्गों व नई पीढी के लिए प्रेरणास्रोत बनेगी। सालोदिया ने कबीर के दोहों पर आधारित ��मन लागो मेरो यार फकीरी में�� की सस्वर प्रस्तुति से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।
इस मौके पर पुस्तक रचयिता भगवानलाल शर्मा का शॉल, माल्यार्पण एवं स्मृति चिह्व प्रदान कर अभिनन्दन किया गया। पुस्तक समीक्षा दायित्व निभाते हुए राधेश्याम मेहता ने कहा कि पुस्तक में गुरु-शिष्य परम्परा के साथ ही संतों की जीवन प्रेरणा निश्चय ही इसे संदर्भ ग्रंथ के रूप में स्थापित करती है। कवि भवानीशंकर गौड ने काव्य प्रस्तुति एवं डॉ. करुणा दशोरा ने लेखक परिचय दिया।
समारोह को विशिष्ट अतिथि डॉ. औंकारसिंह राठौड, हरिसिंह ताणा, आकाशवाणी के सहायक निदेशक इन्द्रप्रकाश श्रीमाली, युगधारा के अध्यक्ष पुरुषोत्तम पल्लव, संरक्षक भवदत्त मेहता सहित अन्य साहित्यिक प्रतिभाओंे ने सम्बोधित किया। समारोह का संयोजन डॉ. ज्योतिपुंज पण्ड्या ने किया। इस अवसर पर पंडित नरोत्तम व्यास, देवेन्द्र �इन्द्रेश�, अकादमी सचिव डॉ. प्रमोद भट्ट, डॉ. लक्ष्मीनारायण नंदवाना, डॉ. रजनी कुलश्रेष्ठ, गोपाल*ष्ण शर्मा, श्रीनाथ शर्मा सहित साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुडे गणमान्य लोग मौजूद थे।
प्रस्तुति ः लालदास पर्जन्य
�समय की लय� पर संगोष्ठी
कोटा। �विकल्प� जन सांस्*तिक मंच की ओर से आयोजित नवगीत-जनगीत केन्दि्रत समारोह �समय की लय� में गीत की सृजनात्मक भूमिका पर गंभीर चिन्तन-मनन और संवाद हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ गीतकार अखिलेश अंजुम व रमेशचन्द्र गुप्ता तथा संचालन आर.सी. शर्मा �आरसी� ने किया। सुप्रसिद्ध गीत-गजलकार सुरेन्द्र श्लेष (जयपुर) गीत संध्या में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे।
गीत-संध्या का प्रारम्भ इन्द्रबिहारी सक्सेना ने अपने ओजस्वी गीत �शूल तक की चुभन का न तो अनुभव जिन्हें, वे क्या समझेंगे परिभाषा बलिदान की� से किया। मदन मदिर ने अपने गीत में प्रश्न उठाया �पसीने की बूँदों का अभिनन्दन कब होगा? कोई भी राज हो, जगमग है राजपथ, वंचित पगडंडी का आलोकन कब होगा?� गीतकार बृजेन्द्र कौशिक ने अपने गीत में देश का वर्तमान परिदृश्य उकेरते हुए कहा �स्वार्थों की उफनती नदी, उत्तर आजादी का दर्द ढोती इक्कीसवीं सदी�, बडौदा से पधारे सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ. विष्णु विराट् ने अपने गीत के माध्यम से कहा, ��तुम रथी योद्धा नहीं हो, जान लो यह, एक अंधे प्रशासन के भृत्य हो तुम, नीतियों के नाम पर दुर्गन्ध हो तुम, अब तुम्हारा व्यू-भेदन हम करेंगे� दिल्ली से पधारे नवगीत के प्रसिद्ध हस्ताक्षर राधेश्याम बन्धु ने कहा �कोलाहल हो या सन्नाटा कविता सदा सृजन करती है, जब भी आँसू हुआ पराजित कविता सदा जंग लडती है�� तथा ��हम समय के सारथी हैं, शब्द को झुकने न देंगे�� गीतकार रामकुमार *षक ने अपने गीत में देश की प्यास को यूँ उभारा - ��कंठ की सुराही को बूँद का अभाव, किस तरियों पेट घट भरे�� मुख्य अतिथि सुरेन्द्र श्लेष ने गीतों में वर्तमान समय की प्रस्तुति इन शब्दों में की -
��दिन भर खटते रहे और अब काली रात करें दीप जलाएँ आँखों के तम पर आघात करें,
आ कुछ बात करें।��
समारोह के दूसरे दिन प्रेस क्लब के कला-दीर्घा सभागार में �नवगीत का परिदृश्य और चुनौतियाँ� व �जनगीत ः सामर्थ्य व संभावनाएँ� विषय पर परिचर्चा हुई। चर्चा में जनगण के पक्ष में खडे गीतों को ही सार्थक बताया गया। वक्ताओं ने नवगीत को अब तक उपेक्षित रखने के लिए अच्छे समीक्षकों व पत्र्-पत्र्किाओं की कमी को जिम्मेदार बताया।
कार्यक्रम के प्रथम सत्र् में मुख्य अतिथि राधेश्याम बन्धु व राम कुमार *षक, अध्यक्ष डॉ. नरेन्द्रनाथ चतुर्वेदी व शिवराम ने पत्र्किा �सम्यक� के नवगीत-जनगीत पर केन्दि्रत विशेषांक और �अभिव्यक्ति� के ताजा अंक का विमोचन किया। इस अवसर पर �सम्यक� के मुख्य सम्पादक मदन मोहन �उपेन्द्र� व अतिथि सम्पादक महेन्द्र नेह भी उपस्थित रहे। राधेश्याम बन्धु ने अपने उद्बोधन में कहा कि �सम्यक� का नवगीत-जनगीत विशेषांक गीत की परम्परा के साथ-साथ समकालीन प्रतिरोधी कविता का भी संवाहक है। इस अंक में निराला से लेकर अंशु मालवीय तक गीतकारों की चार पीढयों का प्रतिनिधित्व है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह विशेषांक नवगीत व जनगीत में युग-बोध एवं परिवर्तन की अलख जगाने का काम करेगा।
�नवगीत का परिदृश्य और चुनौतियाँ� विषय पर पत्र् वाचन करते हुए डॉ. विष्णु विराट् ने कहा कि वैश्विक स्तर पर आये परिवर्तन का प्रभाव साहित्य की सभी विधाओं में दिखने लगा है। यह अस्सी के दशक में गीत-विधा में भी आया, जिसे नवगीत का नाम दिया गया। यह परिवर्तन उसी तरह है, जैसे हिन्दी में �नई कविता� आई। उन्होंने कहा कि छंद विहीन, मुक्त कविता में काफी अव्यवस्था और अराजकता है, इसके विपरीत नवगीत राग, रंग व गेयात्मकता के कारण पाठक व श्रोताओं के ज्यादा करीब है। अध्यक्षता कर रहे डॉ. नरेन्द्रनाथ चतुर्वेदी ने कहा कि �नव� प्रवृत्तियाँ साहित्य के पाठकों को नहीं जोड पा रही है। गीत हृदय की अन्तःस्थली से निकलता है, इसके लिए �नव� होना जरूरी नहीं। चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए शिवराम ने कहा कि गीत या कविता के माध्यम से साहित्यकारों को जन-गण के पक्ष में खडा होना होगा, तभी वह अपनी और रचना-कर्म की सार्थकता को सिद्ध कर सकते हैं। हितेश व्यास ने कहा कि नवगीत समकालीन कविता के सकारात्मक पक्ष को सामने रखते हैं, जीवन में हो या कविता में लय के बिना समाज की सृजनात्मकता अधूरी है। प्रथम सत्र् का संचालन करते हुए डॉ. उषा झा ने कहा कि गीत हमारी संवेदनाओं के सेतु हैं तथा मनुष्य की सृजन व विकास-यात्र के मुखर दस्तावेज है। दूसरे सत्र् में �जनगीत सामर्थ्य और संभावनाएँ� विषय पर पत्र् वाचन करते हुए महेन्द्र सिंह नेह ने कहा कि वर्तमान जटिल परिस्थितियों और तनावग्रस्त समय में भी गीत अपनी लोकोन्मुखी प्रवृत्तियों के कारण हमारी चेतना और संवेदना को स्पंदित करने और झकझोर देने की पर्याप्त सामर्थ्य रखता है। आज वैश्वी*त साम्राज्यवाद व बाजारवाद से मुक्ति का सवाल हिन्दी के सभी रचनाकर्मियों के साथ गीतकारों के सामने भी सबसे बडी चुनौती है। चर्चा में भागीदारी करते मुनीश मदिर ने कहा कि नवगीत को बाजार के विरुद्ध चेतना जगाते हुए जनगीत बनना होगा। जितेन्द्र निर्मोही ने सामन्तवाद विरोधी राजस्थानी गीतों के उद्धरण देते हुए जनगीत की महत्ता को बताया। मुकुट मणिराज ने गीत के लोक-पक्ष को मजबूती के साथ सामने रखा। डॉ. देवीचरण वर्मा व किशनलाल वर्मा ने कहा कि जनगीत को शोषितों, पीडतों की आवाज बनना होगा। सत्र् के मुख्य अतिथि �अलाव� के सम्पादक रामकुमार *षक ने समकालीन साहित्य को लोक जीवन से जोडने की आवश्यकता बताते हुए कहा कि जनता के सामने लेखक अपने विचार इस तरह रखे कि कलात्मकता की माँग पूरी हो सके और सम्प्रेषणता की धार भी बनी रहे। उन्होंने कहा कि आज मुख्य धारा की मुक्तछंद कविता हिन्दी की जातीय परम्परा से कट रही है, इसलिए वह जनता तक नहीं पहुँच पा रही। योरोपीय कविता से प्रभावित मुख्य धारा की कविता में संवेदना का हिस्सा शून्य होता जा रहा है। बौद्धिकता का अतिरेक हो गया है। नतीजन ऐसी कविता आमजन तक नहीं पहुँच रही। अध्यक्षता कर रहे गीतकार बृजेन्द्र कौशिक ने कहा कि ��साहित्य में विधाओं का विवाद निरर्थक है। मुख्य बात लोक-उन्नयन की है।�� राजस्थानी के प्रसिद्ध गीतकार दुर्गादान सिंह गौड ने कहा कि गीत के सभी रूप अभी भी प्रभावी हैं। गीत में हमारी माटी की गंध और लोक-चेतना का स्फुरण होता है। ख्याति प्राप्त कवि - गीतकार बशीर अहमद मयूख ने कहा कि गीत हमारी मुक्तिकामी चेतना के सबसे प्रबल और तरल संवाहक है। सत्र् का संचालन कर रहे कवि अम्बिका दत्त ने कहा कि जनगीत हमारे वर्तमान समय की त्रसदी और इसकी अग्रगामी चेतना को जगाने का ऐतिहासिक दायित्व निभा सकने की सामर्थ्य रखते हैं, वे रचनाकार व पाठकों-श्रोताओं के बीच आ गये अलगाव को भी तोड सकते हैं। इस अवसर पर गीत विधा में महत्वपूर्ण व उल्लेखनीय योगदान हेतु डॉ. विष्णु विराट्, राधेश्याम बन्धु, रघुराज सिंह हाडा एवं दुर्गादान सिंह को �विकल्प� सम्मान प्रदान किया गया।
प्रस्तुति ः महेन्द्र नेह

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