जागो पत्रकार जागो.....
अरूण सिन्हा, स्वतंत्र पत्रकार
जोशो जुनून और चिंतन से भरपूर एक पेशा है जिसे हम पत्रकारिता कहते है। इस पेशे का उद्देश्य है आम से खास तक और खास से आम तक यानि जन जन तक सूचना पहुचाना और आवाम की आवाज़ बनना पर शायद इन आवाज़ों में खुद की हीं लड़ाई लड़ने का साहस खत्म सा हो गया है। पत्रकारिता को अपनी जिम्मेदारी और धर्म समझने वाला जोशो जुनून से लब्रेज़ आज का पत्रकार बॉस के कहने पर रोज़ आवाम की लड़ाई लड़ने तो निकल पड़ता है पर जब बारी अपने हक़ की लड़ाई की आती है तो धित्कार और ज़िल्लत भरी फटकार से डरकर रुक जाता है कि आवाज़ उठाउंगा तो बॉस एक पल में बाहर फ़ेंक, करियर ख़राब कर देगा।
इसे किस्सा कहानी मात्र न समझें क्यों कि ये आज की पत्रकारिता के परीवेश में काम कर रहे पत्रकारों कि व्यथा है जिसे आपलोगों के सामने रख रहा हुं। इस पेशे में ऐसे कई है जो जी तो रहे है घुट घुट कर पर हिम्मत जुटे तो जुटे कैसे आखिरकार अकेला चना भांड नहीं फोड़ सकता। मैं ऐसे कई लोगों को जानता हुं जो इस पेशे से जुड़े रहना चाहते हैं पर मीडिया में मजबूरी का फायदा उठाने वालों(शोषण करने वालों) के नीचे दबे रहने पर मजबूर हैं। पर ये हालात सब के साथ नहीं है भाई, आखिर मीडिया में चमचागिरी और चापलूसी नाम की भी कोई चीज़ है जिसे सलाम करने वाले कभी हमारी तरह शोषित नहीं होते। उन्हें तो बस बॉस को पैर छूकर प्रणाम भईया, गुड मॉर्निंग बॉस या फिर केबिन में घुंसकर बटरिंग करने का डोज़ देना होता है जिसके करने मात्र से हीं संस्थान में उनका डंका बजता है। देखा जाए तो ऐसे लोग अपनी नौकरी बचाए रखने के लिए दलाली तक करने पर अमादा हो जाते है जिसमें वो बॉस के लिए कुछ भी कर सकते हैं। इन लोगों का ना तो डिगरी से वास्ता होता है और ना हीं काबिलियत से बस महारथ होनी चाहिए बॉस की हां में हां मिलाने में और उसके लिए इमान बेचने में। सच तो ये है कि ज्यादातर इस जमात के लोग हीं इस वक्त सफलता पाने में सक्षम है, पर ऐसे लोगों से चैनल या पेपर नहीं चलता।
मीडिया संस्थानों को अपने परिश्रम और कार्यकुशलता से चलाने वाले लोंगो के साथ हो रहे शोषण के लिए वो कौन लोग जिम्मेदार हैं इसका पता जरुर लगना चाहिए। इतना हीं नहीं इस विषय पर सभी मीडिया संस्थानों में एक गुप्त जांच पड़ताल टीम भी होनी चाहिए जो चमचागिरी और दलाली जैसी गतिविधियों पर नज़र रख सके ताकि ऑफिस के हित में काम करने वाला कोई भी कर्मचारी खुद को कभी ठगा सा महसूस ना करे क्यों कि इन चिज़ो से उसकी गुणवत्ता और काम करने की क्षमता पर असर पड़ता है जिसके फलस्वरूप में टीआरपी गिरने लगती है और रिडरशिप कम होने लगती है। इसलिए अगर किसी मीडिया संस्थान को अपनी लोकप्रियता बढ़ानी है तो पहले अपने कर्मचारियों को एक शोषण मुक्त महौल दे ताकि पत्रकारिता के पेशे में आने वालें लोगो को इसमें एक बेहतर भविष्य दिख सके।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें