बुधवार, 15 दिसंबर 2021

लज्जा / ओशो

 🙏  लज्जा शब्द को समझने की कोशिश करें।


क्योंकि शब्द बहुत गहरा है और बहुत पूर्वीय है। पश्चिम की भाषाओं में ऐसा कोई शब्द नहीं है। क्योंकि लज्जा एक पूरब की अपनी अनूठी खोज है। लज्जा को हमने स्त्रैण व्यक्तित्व की आखिरी परम अवस्था माना है।


वेश्या को हम निर्लज्ज कहते हैं, क्योंकि वह शरीर को बेच रही है। शरीर को बेचना निर्लज्ज दशा है। क्योंकि शरीर परमात्मा का मंदिर है, बेचने के लिए नहीं है। यह तो आराधना के लिए है। यह ठीकरों के लिए गंवाने के लिए नहीं है। यह तो परम-धन के पाने की सीढ़ी है। तो जो भी शरीर को बेच रहे हैं, चाहे वेश्याएं हों, और चाहे दुकानदार हों, और चाहे तुम हो, अगर तुम शरीर को बेच रहे हो और ठीकरे कमा रहे हो, तो निर्लज्ज हो।


निर्लज्ज का एक ही अर्थ होता है कि जो शरीर को परमात्मा के खोजने के अतिरिक्त और किसी तरह से बेच रहा है। उसके जीवन में कोई लज्जा नहीं है। तुम वेश्या की तो निंदा करते हो, लेकिन दूसरे लोगों की क्या हालत है? फर्क क्या है? अगर तुम शरीर को बेच रहे हो धन कमाने के लिए, इस संसार में इज्जत कमाने के लिए, तो वेश्या और तुम में फर्क क्या है? वेश्या भी शरीर को बेच रही है धन कमाने के लिए, तुम भी बेच रहे हो शरीर को धन कमाने के लिए।


लज्जा की अवस्था का अर्थ है, शरीर को धन के लिए नहीं बेचना है। वह परमात्मा का मंदिर है। उसमें परमात्मा कभी अतिथि बनेगा। उसे परमात्मा के लिए प्रतीक्षा सिखानी है। और वह प्रतीक्षा निश्चित ही वैसी ही होगी, जैसी प्रेयसी अपने प्रेमी के लिए करती है। और जब प्रेमी पास आता है तो प्रेयसी घूंघट डाल लेती है। छिपती है। प्रेमी के सामने अपने को प्रगट नहीं करती, क्योंकि प्रगट करना तो निर्लज्ज अवस्था है। छिपाती है, अवगुंठित होती है। प्रेमी के लिए प्रतीक्षा करती है, प्रेमी को निमंत्रण भेजती है, जब प्रेमी पास आता है तो अपने को छिपाती है।

क्योंकि प्रेमी के सामने प्रकट करना तो अहंकार होगा। सब प्रकट करने की इच्छा एक्जीबिशन, अहंकार है।


परमात्मा के सामने क्या तुम अपने को प्रगट करना चाहोगे? तुम परमात्मा के सामने तो छिप जाओगे, जमीन में गड़ जाओगे। तुम तो परमात्मा के सामने घूंघटों में छिप जाओगे। परमात्मा के सामने अपने को प्रकट करने का भाव तो अहंकार है। वहां तो तुम प्रेयसी की भांति जाओगे, पंडित की भांति नहीं। वहां तो तुम ऐसे जाओगे कि पदचाप भी पता न चले। वहां तो तुम छुपे-छुपे जाओगे। क्योंकि तुम्हारे पास है क्या जो दिखाएं? लज्जा का अर्थ है, है क्या हमारे पास जो दिखाएं? कुछ भी तो नहीं है दिखाने को, इसलिए छिपाते हैं।


इसलिए भारत में जो स्त्री का परम गुण हमने माना है, वह लज्जा है। इसलिए भारत की स्त्रियों में जो एक ग्रेस, एक प्रसाद मिल सकता है, वह पश्चिम की स्त्रियों में नहीं मिल सकता। क्योंकि पश्चिम की स्त्री को कभी लज्जा सिखायी नहीं गयी। लज्जा दुर्गुण मालूम होती है। उसे दिखाना है, प्रदर्शन करना है, उसे बताना है, उसे आकर्षित करना है बता कर। जैसे बाजार में खड़ी है।


पूरब में हमने स्त्री को लज्जा सिखायी है। छिपाना है। इससे घूंघट विकसित हुआ। घूंघट लज्जा का हिस्सा था। फिर घूंघट खो गया। और जैसे ही घूंघट खोया, लज्जा भी खोने लगी। क्योंकि घूंघट लज्जा का हिस्सा था। वह उसका बाह्य अंग था। अब हमारी स्त्री भी प्रकट कर के घूम रही है। वह चाहती है लोग देखें। सज-संवर कर घूम रही है। और जब तुम सज-संवर कर घूम रहे हो, लोग देखें यह भीतर आकांक्षा है, तो तुम बाजार में खड़े हो गए।


नानक कहते हैं, परमात्मा के सामने हमारी लज्जा वैसी ही होगी, जैसी प्रेमी के सामने प्रेयसी की होती है। वह अपने को छिपाएगी। दिखाने योग्य क्या है? इसलिए लज्जा। बताने योग्य क्या है? इसलिए लज्जा। इसलिए घूंघट है। 


और ध्यान रखना, जितनी स्त्री लज्जावान होगी, उतनी आकर्षक हो जाती है। जितनी प्रगट होगी, उतना आकर्षण खो जाता है। पश्चिम में स्त्री का आकर्षण खो गया है। खो ही जाएगा। क्योंकि जो चीज बाजार में खड़ी है, उसका आकर्षण समाप्त हो जाएगा।


और परमात्मा के सामने तो हम बेचने को नहीं गए हैं अपने को। और परमात्मा के सामने तो हमारे पास क्या है दिखाने को? इसलिए परमात्मा के सामने तो हम प्रेयसी की तरह जाएंगे। कंपते पैरों से, कि पता नहीं स्वीकार होंगे या नहीं! संकोच से, कि पता नहीं उसके योग्य हो पाएंगे कि नहीं! लज्जा से, क्योंकि दिखाने योग्य कुछ भी नहीं है।


लज्जा बड़ी विनम्र दशा है। और उतनी विनम्रता से कोई उसके पास जाएगा तो ही अंगीकार होगा। और जो भक्त जितना अपने को छिपाता है, उतना आकर्षक हो जाता है परमात्मा के लिए। और जो भक्त अपने को जितना खोलता है और ढोल पीटता है कि देखो मैं पूजा कर रहा हूं, देखो मैं प्रार्थना कर रहा हूं, कि देखो मैं मंदिर जा रहा हूं, कि देखो मैंने कितने जपत्तप किए, वह उतना ही दूर हो जाता है। क्योंकि यह कोई अहंकार नहीं है, परमात्मा से मिलन एक निरअहंकार चित्त की बात है...............😍


❣ _*ओशो*_  ❣


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