बहुत दिनों बाद -एक कविता
सुनो
जब तुम्हारी उम्र के
कनस्तर मे आटा
कम बचा हो।
जब सांसों के घड़े में
हो लिया हो छेद।।
और
जब देह की गठरी को
कुतरने लगें
समय के चूहे।
तो खाते मत जोड़ना,
हिसाब किताब करने
मत बैठ जाना
क्या खोया
क्या पाया
का । ।
याद रखना
जो गुज़र गया
वो लौटेगा नही ।
जो आज है
वो कल नही रहेगा
आखिर मे बचेगा कुछ नही
साँसें भी नहीं।
सो ज्यादा सोचना मत
हो सके तो जीना
जी भर के।
जीना
जितना हो सके
अपने साथ
अपने लिए
अपने सपनों के लिए
यकीन मानना
मज़ा आयेगा
और..
और..
मौत भी आसान हो जायेगी । ।
सुभाष चंदर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें