शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

अनंग की कविता / हम गरीब सब एक हैं "

 "हम गरीब सब एक हैं "


गोबर सिर पर ढोने वाले, शीश झुकाना छोड़ेंगे। 

आज नहीं तो कल से वे,दरबार लगाना छोड़ेंगे।। 

जैविक खाद बनाकर,खेतों को जीवन देने वाले। 

खुद का जीवन है खतरे में,टाट बीछाना छोड़ेंगे।।

बेटे -बेटी  संग  चला  वह , हरियाली  उपजाने  को।

तिनका-तिनका बीन रहे जो,कबतक दाना छोड़ेंगे।। 

अधिकारी -नेता -मंत्री सब ,मस्त हुए मैखाने में। 

चट्टी - चौराहों  के  हम , देशी  मैखाना  छोड़ेंगे।।

दिल में हम रखते थे तुमको,जान गए तिकड़म बाजों। 

मत  घबराओ  जाग गए तो , बिल  में भी ना छोड़ेंगे।।

जरा डरो मोटी रोटी , खाने वाले  बलशाली  हैं। 

पेड़ा छीलके खाने वालों,बेकारी करना छोड़ेंगे।। 

मूलभूत आवश्यकता भी,पूरी अगर नहीं करते। 

भागो धूर्तों भागो अब, हम ना दौड़ाना छोड़ेंगे।। 

जबतक सिरपर कफन नहीं बांधा,तबतक निश्चिंत रहो। 

महल  जला कर  राख  करेंगे , आग  बुझाना  छोड़ेंगे।।

गोबर-गोइठा करें कहां हम,कब्जा करके बैठे हो।

हाथ से हक ना जाने देंगे,अब  बतियाना  छोड़ेंगे।।

लोकतंत्र को बना लुगाई,मौज कर रहे रातों दिन। 

बहुत  हो  गया  छीनेंगे , अब  रोना गाना छोड़ेंगे।।

मत भरमाओ जाति-पाति में,हम गरीब सब एक हैं।

दर्द - भूख  ने

 एक  किया ,संबंध

 पुराना   जोड़ेंगे।।......"


अनंग"

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