वह स्त्री जो सचमुच तुमसे प्यार करती है तुम्हें छोड़कर जाने का फैसला एक पल में नहीं करती। महीनों वह ख़ुद को समझाती है और जिस दिन वह तुम्हारे बिना ख़ुद को सम्हालना और समझाना सीख जाती है ठीक उसी पल वह तुम्हें छोड़कर सिर्फ़ ख़ुद की हो जाती है। तुम्हें उस दिन से डरना चाहिए जिस दिन स्त्री प्रेम और स्वाभिमान में से स्वाभिमान को चुनती है। क्योंकि उसी दिन स्त्री तुमसे मिले प्रेम को हीरे की तरह दिल में रख लेती है औऱ सारी दुनिया के लिए दिल के दरवाज़े सदा के लिए बंद कर लेती है। यह उसका अंतिम फैसला होता है तुम्हें छोड़ कर जाने का।
स्त्री सहज विद्रोही नहीं होती, विद्रोह करने से पहले वह बार-बार तुम्हें एहसास कराती है कि " अब पहले जैसा प्रेम महसूस नहीं हो रहा है , प्रेम को कुछ वक्त दिया करो " तुम उसे और उसकी बातों को लापरवाही से टाल देते हो और एक दिन वह तमाम यादें और प्रेम समेट कर तुमसे दूर चली जाती है।
एक बार प्रेम तज कर और प्रेम समेट कर जा चुकी स्त्री कभी पहली सी नहीं रह जाती। तुम्हारे जिस प्रेम ने उसे कोमल और संतुलित बनाया था , तुम्हारा वही प्रेम उसे जीवन भर के लिए कठोर और निष्ठुर बना देता है।
तुम लापरवाही में कभी जान ही नहीं पाते कि मरते दम तक वह स्त्री दुबारा वैसी कभी नहीं बन पाती जैसी वह तुमसे मिलने से पहले थी।
अपनी मौज में चलते तुम कभी जान ही नहीं पाते कि -
"तुम एक हरी-भरी , खिली औऱ खिलखिलाती स्त्री की हत्या कर चुके हो..!!
नीतू सचदेवा
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