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तेरी यादों के खुशबू से, तर होती है मेरी शामें।
कुछ हसरतें, हल्की आहटे, इन्तज़ार में बीतती हैं मेरी शामे।।
फर्क नहीं पड़ता,क्या सोचता है जमाना।
तेरे सानिध्य में खुशनुमा हो जाती हैं मेरी शामें।।
बहुत कुछ अनकहा उबल रहा हृदय में मेरे।
तोडो रूढ़ियों को तो, महक उठेंगी मेरी शामें।।
इल्ज़ाम नहीं दूंगी,ना कहूंगी तुझे पत्थर दिल।
सपनों के इन्द्रधनुष में डूबती उतराती मेरी शामें।।
जाते जाते संध्या निखर कर आयी देहरी पर।
क्षितिज की उदास आखें देख तड़प उठी मेरी शामें।।
सुषमा सिंह
औरंगाबाद
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धन सम्पदा प्रचूर हो
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दुःख दारिद्रय दूर हो,
धन सम्पदा प्रचूर हो।
ऋद्धि सिद्धि का हो आगमन
खुशियाॅं भरपूर हो।।
नित नवल कुसुम खिले,
ना पड़े दुःख की परछाईयाॅं।
जीवन का हर सुख मिले,
यश वैभव में वृद्धि हो।।
रवायतें निभाएं हम,
दीपों के इस त्योहार में।
नवाशा के ज्योति जलाएं हम,
जीवन आपका रौशन हो।।
वजूद अपना मिटा करके,
मद्धिम मद्धिम दीप जले।
झिलमिल झिलमिल जगमग,
धरा का स्वरूप हो।।
दीया बाती मिल जले,
घर देहरी रौशन करे।
आए राम अपने आंगन,
हृदय रामरूप हो।।
सद्वृति का परचम उठे,
पशुवृति मुॅंह बल गिरे।
सबके तारणहार राम,
यही मूलमंत्र हो ।।
धर्म चाहे अनेक हो,
संदेश सबका नेक हो।
राम रहीम जीसस में,
ना कोई विभेद हो ।।
अमीर हो फकीर हो,
ईश्वर की संतान सब।
सबके मन में प्रेम हो,
असत्य नाश समूल हो।।o
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( मार्तण्ड का मनुहार
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विदा ले रहे मार्तण्ड से,
सांध्य सुन्दरी करे मनुहार।
पल भर ठहरो प्रियतम,
अंजुरी जल करु सत्कार।।
सकल जगत जीवन ज्योति
अजस्त्र उर्जा के स्त्रोत ।
जल बीच में लधु तप
मेरा यह छोटा-सा व्रत।।
सम्पूर्ण वैभव के साथ सज,
अपने आंचल में फल ले कर।
प्रकृति स्वरूपा खड़ी वामा
आहृवान भास्कर का कर।।
हजारों बरसों से चली आ,
रही , परम्परा सनातना।
भुवन भास्कर को अर्घ्य दें,
करती सुख वैभव कामना।।
नवीन वस्त्र सोलह श्रृंगार,
सूर्यास्त सूर्योदय पावन बेला,
अचल सुहाग सुख सौभाग्य
अरध्य देती वनिता कर सुपला।।
सुषमा सिंह
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तुलसी महिमा
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तुलसी महिमा गाईए,
तुलसी के गुण हजार।
ज्वर ,कफ सब दूर करे,
शुद्ध करे घर द्वार।।
विष्णु वृंदा का पूजन,
शुभ सुफल सुखदाई।
गोबर मिट्टी लीप आंगन,
सुन्दर मंडप सजायी।।
गन्ना मिष्ठान भोग लगा,
जगमग दीप जलायी।
तुलसी चौरा लग्न विवाह,
मधुर गीत है गायी।।
महकाती आंगन तुलसी,
स्वच्छता की पहरेदार।
तुलसी पूज वर मांगिए,
खुशहाल हो परिवार।।
सुषमा सिंह
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