किलकारी अच्छी लगती है
थोड़ी बीमारी भी अच्छी लगती है।
अपनों की तैयारी अच्छी लगती है।।
जिन्हें सहारा दिया बुराई करते वो।
हमें वफादारी ही अच्छी लगती है।।
तहजीबों की इस दुनिया के नखरे हैं।
मां- बापू की गारी अच्छी लगती है।।
एक हवा जब शीतल मन को छू जाती।
गुलशन और फुलवारी अच्छी लगती है।।
जरा-जरा सी चोट मुझे लग जाती तो।
मां की हाहाकारी अच्छी लगती है।।
बड़ी गाड़ियां, चौड़ी सड़कें ,डरता हूं।
पगडंडियां- सवारी अच्छी लगती है।।
मजबूरी में और अधिक प्यार आता है।
कभी-कभी लाचारी अच्छी लगती है।।
जो कपड़े तन ढकते हैं वे अच्छे हैं।
फैशन में भी सारी अच्छी लगती है।।
मेरे देश का रंग सांवला सुंदर है।
कजरारी वो कारी अच्छी लगती है।।
चलो हंसाएं बच्चों को, जो रोते हैं।
बच्चों की किलकारी अच्छी लगती है।।.......
"अनंग "
2
देखा हैं
"लिट्टी सेंक रहे हाथों को "
लिट्टी सेंक रहे हाथों को जलते देखा है।
भरी ठंड में बिन कपड़ों के पलते देखा है।।
धंसे हुए कांटों के कारण पैर नहीं उठते।
नंगे -पांव उन्हें खेतों में चलते देखा है।।
लोगों ने तो अपनों को ही छल से बेच दिया।
गद्दारों को खूब फूलते-फलते देखा है।।
मिले हुए कपड़े पूरा तन कभी-कभी ढंकते।
चमरौधे जूते संभाल कर रखते देखा है।।
काट-काटकर पेट मालिकों के घर भरते हैं।
बार-बार गाली खाकर भी हंसते देखा है।।
बिन ब्याही बेटी की चिंता में बूढ़ा होना।
सदियों से ही कर्ज चुकाते मरते देखा है।।
गोबारधन सहेजते घर के बाहर घूरों पर।
गोबर सने हाथ से घुंघट करते देखा है।।
दुल्हन के पीले हाथों का रंग नहीं उतरा।
भरी जवानी खलिहानों में ढलते देखा है।।
सीमा पर जाने को व्याकुल वीर जवानों को।
अरमानों के पंख लगा कर उड़ते देखा है।।
बिगड़ रहे घर के चिराग को कौन बचाएगा।
राजनीति के इस दलदल में फंसते देखा है।।.....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें