हरिवंशराय बच्चन की 114वीं जयंती है....
इलाहाबाद के दिनों में हरिवंश राय बच्चन की सबसे अधिक निकटता शमशेर बहादुर सिंह सिंह, पंडित नरेन्द्र शर्मा, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना और सुमित्रानंदन पंत से हुआ करती थी. अपनी आत्मकथा नीड़ का निर्माण फिर में बच्चन पंत और निराला का एक दिलचस्प किस्सा लिखते हैं. 'पंत और निराला एक दूसरे से कितने एलर्जिक थे इसका अनुभव मुझे इलाहाबाद में हुआ. निराला उन दिनों पहलवानी मुद्रा में रहते थे. पांव में पंजाबी जूता, कमर में तहमद और बदन पर लंबा ढीला कुर्ता और सिर पर पतली साफी. कहीं अखाड़े में लोट कर चेहरे और मुंडे सिर पर मिट्टी भी पोत आते थे. एक दिन वो मेरे ड्राइंग रूम में आ धमके और उन्होंने पंत जी को कुश्ती के लिए ललकारा. वो बोले मैं निराला नहीं हूं मुत्तन खान हूं, टुट्टन खान का बेटा. बोलते बोलते वो ताल ठोक कर दंड बैठक करने लगे. जब उन्हें पंत से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली तो मेरी तरफ़ मुड़ कर बोले, वो नहीं तो तुम सही. मैने कहा मैं आपके पैर छूने लायक भी नहीं हूं. कुश्ती क्या लडूंगा आपसे...'
Raman Hitkari
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