सोमवार, 20 दिसंबर 2021

प्रेम पकता हैं / ओशो

 प्रेम आनंद है 💜


प्रेम सच्चा हो तो तुम्हारे जीवन में सब तरफ सच्चाई आनी शुरू हो जाएगी। क्योंकि प्रेम तुम्हें बड़ा करेगा, फैलाएगा।  


और धीरे-धीरे अगर तुमने एक व्यक्ति के प्रेम में रस पाया तो तुम औरों को भी प्रेम करने लगोगे। 


मनुष्यों को प्रेम करोगे–

प्रेम की लहर बढ़ती जाएगी– पौधों को प्रेम करोगे, पत्थरों को प्रेम करोगे। 


अब सवाल यह नहीं है कि 

किसको प्रेम करना है, अब तुम एक राज समझ लोगे कि प्रेम करना आनंद है। किसको किया, यह सवाल नहीं है। अब तुम यह भूल ही जाओगे कि प्रेमी कौन है। नदी, झरने, पहाड़, पर्वत, सभी प्रेमी हो जाएंगे।


लेकिन जैसे झील में कोई पत्थर फेंकता है तो छोटा सा वर्तुल उठता है लहर का, फिर फैलता जाता, फैलता जाता, दूर तटों तक चला जाता है; ऐसे ही दो व्यक्ति जब प्रेम में पड़ते हैं तो पहला कंकड़ गिरता है झील में प्रेम की,  फिर फैलता चला जाता है। 


फिर तुम परिवार को प्रेम करते हो, समाज को प्रेम करते हो, मनुष्यता को, पशुओं को, पौधों को, पक्षियों को, झरनों को, पहाड़ों को, फैलता चला जाता है।  


जिस दिन तुम्हारा प्रेम समस्त में व्याप्त हो जाता है, अचानक तुम पाते हो परमात्मा के सामने खड़े हो।


प्रेम पकता है  तब सुवास उठती है प्रार्थना की। जब प्रार्थना परिपूर्ण होती है तो परमात्मा द्वार पर आ जाता है। तुम उसे न खोज पाओगे।  तुम सिर्फ प्रेम कर लो; वह खुद चला आता है...

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